तिरंगा
डॉ
शोभा भारद्वाज
15 अगस्त 1947 पहला स्वाधीनता दिवस ,लाल किले से देश
के पहले प्रधान मंत्री श्री जवाहरलाल
नेहरू ने तिरंगा फहराया था, लहराता हुआ झंडा शान बान के साथ आजादी का संदेश दे रहा था. आजाद भारत के
नागरिक घरों से निकल कर लाल किले के मैदान में इकठ्ठे हो कर आजादी का जश्न मना रहे
थे ‘अपने’ राष्ट्रीय झंडे के नीचे पूरा देश नत था हर्ष एवं उल्लास से भारत माता के
जयनाद से आकाश गूँज उठा तब से देश के प्रधान मंत्री 15 अगस्त की सुबह लाल किले पर झंडा फहराते हैं व राष्ट के नाम संदेश देते हैं. गणतन्त्र दिवस पर राष्ट्रपति झंडा फहराते हैं, उसके बाद 26 जनवरी की परेड शुरू होती है सलामी मंच से ‘तीनों सेना के
सुप्रीम कमांडर राष्ट्रपति’ के सामने से गुजरती हुई सेना की टुकड़ियाँ एवं युद्ध में उपयुक्त होने वाले
शस्त्र तीन सेकेंट के लिए राष्ट्रपति के सामने झुकते हुए सलामी देते हैं जनपथ पर
करतब दिखाते फाईटर विमान रंगीन धुएं के साथ आसमान पर तिरंगा बनाते हैं अबकी देश रफेल को उड़ते देखेगा जिसकी
आवाज जोधपुर तक सुनी जायेगी .
तिरंगे झड़े की कहानी भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के
साथ जुड़ी है अंग्रेजों के खिलाफ 1857 में पहली क्रान्ति
का बिगुल बजाने वाले चाहते थे भारत का एक राष्ट्रीय ध्वज हो जिसके तले सब मिल कर
ब्रिटिश साम्राज्य का विरोध करेंगे , पहली क्रान्ति को अंग्रेजों ने कुचल दिया गया
1904 में स्वामी विवेकानन्द की शिष्या भगिनी निवेदिता द्वारा पहला राष्ट्रीय
ध्वज डिजाइन किया गया झंडे को हरी लाल ,पीले रंग की
पट्टियों से बनाया गया था हरी पट्टी पर आठ कमल बने थे नीचे की आखिरी पट्टी पर एक
तरफ सूरज दूसरी और चाँद बीच में पीली पट्टी पर बन्देमातरम आजादी का नारा लिखा था
इस झंडे को 7 अगस्त 1906 में पारसी बागान चौक कलकत्ता के कांग्रेस अधिवेशन में फहराया गया.
दूसरा झंडा 22 अगस्त 1907 के दिन विदेश की धरती जर्मनी की राजधानी बर्लिन में जहाँ विश्व के समाजवादी
नेता इकठ्ठे हुये थे मैडम भीका जी कामा एवं इनके साथ में देश से निर्वासित
क्रांतिकारियों ने मानवाधिकारों , समानता एवं
ब्रिटिश साम्राज्य से मुक्ति के नाम पर फहराया . पहले झंडे से दूसरे झंडे में एक अंतर था हरी पट्टी पर एक कमल सात सप्त ऋषि
बने थे.
1917 में होमरूल
आन्दोलन के प्रमुख नेता बाल गंगाधर तिलक एवं आयरिश महिला एनीबीसेंट वह भारत को
अपनी मातृभूमि मानती थी ने होमरूल लीग की स्थापना की इसका उद्देश्य ब्रिटिश
साम्राज्य के आधीन रहते हुए ओपनिवेषिक स्वराज्य प्राप्त करना था श्री बाल गंगाधर
गर्म दल की विचार धारा के समर्थक थे उनका नारा था ‘स्वराज्य हमारा
जन्म सिद्ध अधिकार है इसे मैं ले कर रहूंगा’ तीसरी बार भारत का झंडा नये स्वरूप में नजर आया इसे एनीबीसेंट एवं लोकमान्य
तिलक द्वारा फहराया गया झंडे में पाँच लाल
चार हरी पट्टियाँ थीं इन पर सात सितारे बने थे झड़े के बायें कोने पर ब्रिटिश झंडा
यूनियन जेक छपा था एक कोने में सफेद अर्ध चन्द्र भी बना था लेकिन यह झंडा अधिक
लोकप्रिय नहीं हुआ .
काकीनाडा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में
आंध्र के कृषि वैज्ञानिक पिंगली वैंकैया ने अपने विचार रखते हुए कहा था भारतवर्ष
का अपना राष्ट्रीय झंडा होना चाहिए गांधी जी ने उन्हें ही देश का सर्वमान्य झंडा
तैयार करने का सुझाव दिया, पाँच वर्ष तक विभिन्न राष्ट्रों के झंडों का अध्ययन करने के बाद वह
कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में झंडा डिजाइन कर लाये , झंडा दो रंगों से बना था लाल और हरा दोनों रंग दो समुदायों के प्रतीक थे
लाल हिन्दू ,हरा मुस्लिम समाज का गाँधी जी ने सलाह दी भारत में अन्य समुदाय भी निवास
करते हैं उनके लिए बीच में सफेद पट्टी पर देश की प्रगति का सूचक चलता हुआ चरखा भी
होना चाहिए झंडे के बीच में सफेद रंग पवित्रता का भी प्रतीक है .
1924 को अखिल भारतीय संस्कृत कांग्रेस के अधिवेशन में फहराये जाने वाले झंडे का
रंग केसरिया था बीच में गदा बनी थी केसरिया रंग हिन्दू समाज का प्रतीक माना जाता
है . एक विद्वान की सलाह थी झंडे का रंग गेरुआ होना चाहिए यह रंग तीन धर्मों
हिन्दू , ईसाई ,मुस्लिम का प्रतीक है अंत में सात सदस्यों की कमेटी बनाई गयी श्री पिगली
द्वारा बनाये झंडे जिसमें ऊपर केसरिया बीच में सफेद और नीचे हरा रंग स्वीकार किया
गया .सफेद रंग के बीच
में अशोक चक्र होना चाहिए मौर्य सम्राट अशोक द्वारा निर्मित सारनाथ में शेर के
स्तम्भ मे बने चक्र को धर्म चक्र भी कहते हैं. जिसकी 24 तीलियाँ हिन्दू दर्शन के अनुसार सभी तीलियाँ जीवन को दिखाती हैं . धर्म चक्र को ‘विधि’ का चक्र मानते हैं 24 तीलियां बताती हैं जीवन में 24 घंटे के दिन रात
गतिशील हैं रुकने का अर्थ है अंत . चक्र का नीला रंग
खुले आकाश की विशालता एवं पानी की गहराई का प्रतीक है एवं रंग में प्रगति एवं सर्व
साधारण की हित कामना है .
1931 में कराची में हुए कांग्रेस के अखिल भारतीय सम्मेलन के आखिरी दिन तिरंगे को
स्वीकार किया गया इसके बीच मे चरखा था .यही झंडा लहराते हुए अंग्रेजो को भारत
छोड़ने के लिए विवश किया . 22 जुलाई 1947 को भारतीय संविधान सभा में अशोक चक्र के साथ तिरंगे को स्वीकार किया गया . तिरंगे में तीनों पट्टियाँ समानांतर हैं ऊपर केसरिया देश की शक्ति और साहस
का प्रतीक है बीच में सफेद रंग की पट्टी जिसमें 24 तीलियों वाला नीले
रंग का अशोक चक्र, शान्ति सत्य का प्रतीक है हरी पट्टी धरती की उर्वरक शक्ति हरी भरी वसुंधरा
की पवित्रता को दर्शाती हैं . झंडे की लम्बाई
चौडाई 3:2 है झंडा खादी ,सिल्क या काटन के कपड़े का बना होना चाहिए .सबसे बड़ा झंडा 21 फिट लम्बा 14 फिट चौड़ा होता है .झंडे के निर्माण में त्रुटी एक गम्भीर
दंड नीय अपराध माना जाता है इसके लिए जुर्माना व जेल की सजा का कानून है.
पर्वतारोही
सफलता मिलने पर हिमालय की चोटी पर देश का झंडा गाड़ कर जयहिंद कह कर सल्यूट करते
हैं . खेलों के अवसर पर सभी देशों के झंडे लगाये जाते हैं दो खिलाड़ी खेलते हैं
उनका स्कोर दिखाने के लिए उनके देश के झंडे का इलेक्ट्रानिक लोगो का प्रयोग किया
जाता है . हर देश के झंडे का रंग अलग होता है विदेश से राष्ट्रपति , उच्च अधिकारी और राजदूत आते हैं उनकी कारों पर उनके देश का झंडा लगा रहता
है . सभी सरकारी इमारतों पर झंडा फहराया जाता है राष्ट्रीय पर्वों जैसे 26 जनवरी गणतन्त्र दिवस , स्वतन्त्रता दिवस
एवं दो अक्टूबर के अवसर पर झंडा फहराने का नियम था लेकिन उद्योगपति नवीन जिंदल ने
उच्च न्यायालय में भारत के नागरिकों द्वारा झंडा फहराने पर लगे प्रतिबन्ध को हटाने
के लिए जन हित याचिका दायर की उन्होंने बहस में कहा हर नागरिक को सम्मान के साथ
अपने घरों पर भी झंडा फहराने का अधिकार मिलना चाहिए .
26 जनवरी 2002 को एक संशोधन के बाद भारत के नागरिको को यह अधिकार मिला अब वह तिरंगे को
घरों ,कार्यालयों और फैक्ट्रियों में फहरा सकते हैं लेकिन ध्वजा का सम्मान बना
रहना चाहिए . राष्ट्रीय ध्वज को शिक्षण संस्थानों में निष्ठा पूर्वक फहराया जाता है .ध्वज
देश की गरिमा सम्मान का प्रतीक है सरकारी नियमों के अनुसार ध्वज के कपड़ें का इस्तेमाल पर्दों , कुशन कवर ,तकियों ,रुमाल मेजपोश या मंचों पर बिछाया नहीं जा सकता न ही मूर्तियों को इनसे ढका
जाना चाहिए .पहले झंडे का
प्रयोग वर्दी के रूप में नहीं किया जा सकता था प्रदर्शन करते विमानों पर झंडा
लगाया जाता है लेकिन 5 जुलाई 2005 में नियमों में संशोधन कर पोशाक या वर्दी के रूप में झंडे के उपयोग की
इजाजत दे दी गयी लेकिन इसका प्रयोग कमर के नीचे के परिधान में इस्तेमाल न किया
जाये .झंडे को फर्श या
पानी का स्पर्श नही कराना चाहिए न कुछ लपेटने में इसका प्रयोग किया जाये . झंडा राष्ट्रीयता
की पहचान है अत : सूर्योदय एवं सूर्यास्त तक फहराया जाना चाहिए इसे सम्मान पूर्वक
उतारना चाहिए गलती से भी उलटा न फहराया जाए फूलों की पंखुड़ियों के अलावा झंडे में
अन्य वस्तु नहीं रखी जा सकती .
किसी महान व्यक्ति
की मृत्यू पर उनके सम्मान में झंडा झुकाया जाता है लेकिन झुकाने से पहले पूरा फहरा
कर फिर झुकाना चाहिए सूर्यास्त के समय झंडा उतारते समय भी नियम का ध्यान रखना
चाहिए. देश के लिए प्राण
न्योछावर करने वाले शहीदों को झंडा सम्मान दिया जाता है केसरिया पट्टी सिर की तरफ
और पैरों की तरफ हरी पट्टी होनी चाहिये ,राष्ट्रीय ध्वज को
सही ढंग से ढका जाता है मुखाग्नि या कब्र में शरीर को रखने से पहले शरीर से
राष्ट्रिय ध्वज को हटा कर लपेट दिया जाता है जिस गावं या शहर का शहीद निवासी होता है जब उसका झड़े में लिपटा शव लाया जाता है उनके अंतिम
दर्शन करने लोग इक्कठे हो जाते हैं हर आँख में आंसू होते हैं कई बार नन्हें बच्चे
को अपने पिता को मुखाग्नि देते देख कर जन समुदाय तड़फ उठता है वीरों के सम्मान में
लगे नारों से आकाश गूँज उठता है नारों से शहादत को सम्मान दिया जाता है पूरा देश
शहीद के परिजनों के साथ खड़ा दिखाई देता है .
झंडा क्षतिग्रस्त है या मैला हो गया है उसे अलग या
निरादरपूर्ण ढंग से नहीं रखना चाहिए, झंडे को गरिमा के
अनुरूप उसका गंगा में विसर्जन या उचित सम्मान के साथ दफना देना है . यही प्रक्रिया
पार्थिव शरीर से उतारे गये झंडों के साथ की जाती है . तिरंगा भारत की शान ,हमारी पहचान, देश की अखंडता एकता का प्रतीक हैं .