याद आ गई मुझको मेरे गांव की ताई
वो बड़ी सी हवेली आंगन में चारपाई ,
नीम की छांव तले रखा मटका, सुराही
भोजन की थाली में गुड़ और शुद्ध घी
की मिठाई ।
वो पलंगों पर बैठ पंचायत का लगना,
वो मिलजुल सबका हुक्का गुड़गुड़ाना
वो हांडी का चुल्हे पे पकना
वो हंसी वह ठठोली आंगन में
सभी की।
वो बिटिया की शादी में चावल का बिनना,
औरतों की गपशप और बच्चों का हुड़दंग
वो दादू रौब ,अम्मा की चतुराई।
वो चारपाई का बिछना और,
चारपाई का उठना ।
🌹 वो भय्या की चिक-चिक वो बहना की
बक-बक , वा पापा की धोती मम्मी की साड़ी
गुम हो गई हैं कहीं वो, अब देता नहीं है वहां
कुछ भी दिखाई।
( स्वरचित रचना)
सय्यदा----✒️🌹🌹
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