घूमना चाहती हूं मैं
परी लोक में किसी
मिलना चाहती हूं
वहां की परियों से सभी
बचपन में सुनी थी मैंने
परियों की कथा
खूबसूरत लगती थी मुझे
उनकी हर एक अदा।
नहीं आती थी नींद
जब कभी भी मुझे
परियों के देश घुमाती
मेरी नानी मुझे।
बड़ी अच्छी रहती थी
परियों से मुलाकात मेरी
सुनहरे बाल, नीली आंखें ,
हाथ में जादू की छड़ी।
वापस नहीं आना
चाहती थी मैं छोड़
परी लोक की ख़ुशी
हां परी लोक की ख़ुशी
आज भी उस लोक की
खुशियां सुहाती हैं मुझे।
अपने पास हर घड़ी
बुलाती है मुझे।
सोचती हूं मैं अब
तभी रुक जाती वहीं
पंख किसी के कोई,
वहां काटता नहीं,
बलात्कार वहां
बच्चियों का होता नहीं।
बेख़ौफ़ घूमती, मुस्कुराती
इठलाती वहां परियां सभी,
काश रोक लेती मुझे वह
अपने लोक में वहीं
नील गगन में उड़ती
फिरती होके आज़ाद
जहां चाहती वहीं।
मैं जहां चाहती वहीं
हां जहां चाहती.....
मौलिक रचना
सय्यदा खा़तून,, ✍️
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