🌸याद बहुत तुम आती हो माँ!
याद बहुत तुम आती हो।
🌸घर लौट कर आती हूँ जब
कमरे को खाली पाती हूँ ,
नज़रें ढूंढती हैं, तुमको ,पर
नज़र नहीं तुम आती हो जब
🌸याद बहुत तुम आती हो माँ!
याद बहुत तुम आती हो ।
🌸पर्स तुम्हारा खोलती हूँ जब ,
डायरी उसमें देखती हूँ,
कलम उठा कर हाथों में
चश्मे को मैं चूमती हूँ जब,
🌸याद बहुत तुम आती हो माँ !
याद बहुत तुम आती हो ।
🌸किलकारी घर मे गूँजी थी जब
लोग मिले थे आ-आ कर,
गोद में उसको लेकरअपनी ,
लोरी गा नहीं पाई थी जब
🌸याद बहुत तुम आईं थीं माँ,
याद बहुत तुम आईं थीं।
🌸जाड़े की सर्द रातों में जब
टार्च उठा कर हाथों में
रजाई उढ़ाने आती थी तुम ;
ये मंज़र याद आता जब
🌸 याद बहुत तुम आती हो माँ !
याद बहुत तुम आती हो ।
🌸खुद को दर्पण में देखती हूँ जब
छवि तुम्हारी ही पातीं हूँ,
हर साँस में मेरी बस्ती हो तुम
भूल तुम्हें नहीं पाती हूँ
🌸याद बहुत तुम आती हो माँ
याद बहुत तुम आती हो
🌸होले से आकार फिर तुम
कान में मेरे कहती हो,
क्यों इतना करती है याद मुझे
तेरे ही दिल में रहती हूँ मैं ।
तेरे ही दिल में रहती हूँ ।.......
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*सय्यदा ख़ातून,,
(मौलिक रचना )
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