🌹इस खिलखिलाती हुई सुबह का
कब से मैं कर रही थी इंतज़ार।
🌹यक़ीन था मुझको आओगे तुम
जरूर ही एक दिन मेरे पास
🌹 मेरी वीरान जिंदगी को तुमने
आके कर दिया है गुले गुलज़ार
🌹 हर सुबह उदास हो जाती थी
बहुत ही याद करके तुमको मैं
🌹 अब खिलखिलाती लग रही है
सुबह भी मुझको आज की ,
🌹गपशप के बीच मज़ा दे रही हैं
चुस्कियां भी आज तो चाय की
🌹 क्यों चले जाते हो बेवजह ही
छोड़कर तन्हा मुझको भीड़ में
🌹लगता नहीं है मेरा दिल फिर
कहीं आपके चले जाने के बाद
🌹दुआ मांगती हूं मैं तो बस यही
अब अपने परवर दिगार से मैं
🌹हर सुबह खिलखिलाती मिले
इसी तरह मुझको तेरे साथ ही
🌹जुदाई का आलम ना मिले मुझे
ना हो इसमें कोई भी तिश्नगी,(तिश्नगी-कमी)
🌹मैं रहूं सदा साथ तेरे ख़ुश हो कर
ता उम्र इसी तरहां हर सुबह,हर शाम भी
(आमीन,,😊😃)
मौलिक रचना
सय्यदा खा़तून,, ✍️
-------🌹🌹---------