जब से गए हो परदेस
ख़बर कोई मिली नहीं है।
कैसे हो तुम वहां पर
हमको पता नहीं है।
मेहंदी मेरे हाथों की
तुझको बुला रही है।
रह-रह कर याद तेरी
मुझको सता रही है।
यूं तो ख़्याल सभी का
हम पूरा रख रहे हैं।
बस याद करके तुमको
हम ही आधे हो गए हैं।
सर्दी पड़ रही है वहां
या गर्मी हो रही है।
मफलर तुम्हारा हम
कल से बुन रहे हैं।
छोटू भी रोता बहुत है
अब याद करके तुमको
दोस्त भी तुम्हारे आकर
अब पूछ रहे हैं तुम को।
ख़बर भेजो अपनी
तुम कैसे हो वहां पर।
बहुत फिक्र मंद तुम्हारे
अब्बा भी हो रहे हैं।
अम्मा भी याद करके
कुछ खा पी नहीं रही हैं।
याद हमको भीअब
तुम्हारी, सता रही है।
कर लेंगे हम भी नौकरी
तुम लौट आओ यहीं पर।
गुज़र हो जाएगी जब
कमाएंगे दोनों मिलकर।
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मौलिक रचना
सय्यदा खा़तून,,,, ✍️
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