🌹बीत रहा है दिन हर रोज़ की तरहां
रात आख़िरी है यह इस साल की
🌹कल मिलेगी सुबह नए साल की
जो हुआ सो हुआ उसको भूल जा
🌹पुकारती है तुझे किरण सुबह की
बहार खड़ी द्वार पर लेकर आरती
🌹जो ना हो सका है इस साल में वह
करेंगे हम नए साल में हां नए साल में
मौलिक रचना
सय्यदा खा़तून,, ✍️
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