बेगम साहिबा लाॅन में बैठी हुई फूलों को निहारते हुए गरम-गरम कॉफी का मज़ा ले रही थीं तभी लक्ष्मी आकर उनको आज का अख़बार दे देती है,,,।
कॉफी के साथ साथ बेगम साहिबा अख़बार की हेडलाइन पर नज़र डालती है,,,,,,। सरसरी तौर से अख़बार को देखते हुए अचानक उनकी नज़र एक हेड लाइन पर रुक जाती है,,,,,।
हेड लाइन थी दहेज की खा़तिर बहू को जलाया गया",,,,,,,,,।वह एक लंबी और गहरी सांस खींचतीं हैं,,,,,,, और तब पूरी न्यूज को ध्यान से पढ़ती हैं,,,,,,।
एक बहू को ससुराल में दहेज की खा़तिर आज फिर जला कर मार दिया गया है,,,,। और हमेशा की तरह आज भी बेगम साहिबा सोचने पर मजबूर हो जाती है,,,,,,,,।
कहां जाकर रुकेगा यह समाज कब तक होती रहेंगी यह हत्याऐं,,,,,,,क्या हर समस्या का समाधान बहू को जलाकर मार डालना है,,,,। कब आएगी लोगों की समझ में यह बात ,,,,,,,,,कब तक दहेज के दानवों को बढ़ावा मिलता रहेगा,,,,, कब तक वह मनमानी करते रहेंगे,,, कब तक एक बेटी घर में पैसों की कमी के कारण बैठी रहेगी कब तक उसके गुणों को पैसों के तराजू़ में तोला जाता रहेगा कब,,,तक उसकी आबरू को ख़तरा बना रहेगा,,,,।
बेगम साहिबा फिर एक गहरी सांस खींचते हुए सोचती हैं आज से 40 साल पहले भी वह इन खबरों को पढ़ती और सुनती थी,,,,, और आज तक पढ़ती सुनती चली आई हैं क्या कहीं कुछ बदलाव दिखाई देता है आपको नहीं ना,,,।
कितनी तरक्की कर ली है हमने लेकिन समस्याएं जहां की तहां खड़ी हैं,,,, कल भी न्यूज़ की हेडलाइंस यही थीं और आज भी यही है इन 40 सालों में भी,,,, क्यों नहीं बदली लोगों की मानसिकता,,,, क्यों नहीं समझ पाते लोग किसी की भावनाओं को,,,, यह समस्याएं जब तक जो कि तूं हमारे सामने खड़ी रहेंगे जब तक हम अपनी मानसिकता को नहीं बदलते,,,,,।
हमें ऊपर उठना ही होगा,,,, अपनी पुरानी सोच से पुरानी विचारधारा से,,,,,, चलना होगा नए वक़्त के साथ कदम से कदम मिलाकर,,,,, यह समस्या तब तक नहीं मिटेगी जब तक हम खुद ही इसके लिए कोई ठोस निर्णय लेने के काबिल नहीं हो जाते,,,।
हज़ार कानून बना दिए जाएं पर उसको कमज़ोर तो हम ही लोग करते हैं,,,,,,,,, आज हर लड़के के मां-बाप को सोचना होगा कि उसे वह लड़की लानी है जो पढ़ी लिखी हो और अपने पैरों पर खड़ी हो,,,,,।
हर लड़के को यह फैसला करना होगा कि उसे इतना मजबूत और सफल बनना है आर्थिक तौर पर,,,,,,,के किसी लड़की को अपने बलबूते पर ला सके,,,,, और दहेज जैसी लानत लेने से इनकार करने की उसमें ताकत हो,,,,,,, । उसको फैसला करना ही पड़ेगा कि वह अपने लिए बीवी लाए दहेज की गठरी नहीं,,,,,।
लोगों को यह समझना ही होगा,,,,
"जिसने अपने जिगर के टुकड़े को आप के हवाले कर दिया अब बचा ही क्या है उस पर आपको देने के लिए।"
उन्हें बदलना होगा अपनी मानसिकता को,,,, पैसे ही चाहिएं तो पढ़ी-लिखी लड़की जो अपने पैरों पर खड़ी हो सके,,,,, उससे शादी करने का फैसला करें ना कि दहेज मांग कर ,,,,,,, जब ख़ुद किसी का़बिल हों तभी किसी लड़की को अपने घर लाएं,,,,।
लड़की के मां-बाप को भी अपनी मानसिकता बदलनी पड़ेगी हालांकि काफी फर्क हो गया है आजकल के समाज में लेकिन फिर भी कुछ लोगों के बदलने से नहीं,,,,,, हर किसी को बदलना होगा,,,,,,।
लड़की के पैदा होते ही उसकी दहेज की फिक्र ना करके उसे आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़े होने की ताक़त देनी पड़ेगी,,,,,,, लड़की के मां-बाप को चाहिए कि वह लड़की को भी लड़कों की तरहं पढ़ाएं,,,,।
पढ़ा नहीं सकते तो कोई ना कोई हुनर हर किसी में होता है अपनी बेटी के उसी हुनर को इतना बढ़ावा दें कि वह आर्थिक रूप से अपने ऊपर डिपेंड हो जाए,,,,,।
जब लड़के आर्थिक रूप से डिपेंड लड़की से शादी करना चाहेंगे तो लड़की के मां-बाप भी अपनी लड़कियों को शिक्षा और आर्थिक रूप से मज़बूत करने के लिए विवश होंगे,,,,,।
जब तक ऐसा नहीं होता तब तक यह हेड लाइन न्यूज़ पेपर में लगातार छपती रहेगी,,,,,। और इस पर क्षणिक दुख व्यक्त करके हर कोई अपना पल्ला झाड़ता रहेगा,,,,
और कोई ना कोई मासूम किसी ना किसी जगह यूं ही तड़पती रहेगी जिंदगी के लिए,,,,,,,,,,,
मैं जानती हूं बहुत से लोग मेरी बात से सहमत नहीं होंगे पर कोई बात नहीं यह मेरे विचार हैं मेरी भावनाएं हैं मेरा दुख है उन लड़कियों के लिए जो दहेज कारण जला दी जाती है,,,,
जीवन में इतना कमाओ की बेटे की शादी में
दहेज मांगने की नौबत ना आए बेटी को इतना
पढ़ाओ कि दहेज देने की ज़रूरत ना पड़े,,,,,
मौलिक रचना सय्यदा खा़तून,, ✍️
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