🌹सफलता के पांच स्तंभ ,
मिल जाए अगर किसी को
वह बता दे आकर मुझको
अपना लूंगी मैं भी उनको।
🌹सफलता के पीछे हम भी,
भागते रहे बहुत पर हर बार
छुड़ा के पीछा मुंह चिढ़ाती
मिली वो मुझको , मुंह,,,,,,,,,।
🌹थक हार के जब से मैंने
छोड़ा है इसका पीछा
भागती फिरती है पीछे मेरे,,
एक बार तो देखलूं मैं उसको।
🌹जितना धैर्य रखा है मैंने
इतना सबर करके दिखा ,
हर बार छुड़ा के हाथ मुझसे
निकल जाती थी तू बेवफा।
🌹अब चूमकार क़दमों को मेरे
कहती है मुझसे, मुझे गले लगा,
आ गई हूं पास तेरे अब तो मुस्कुरा
अब तो मुस्कुरा,,,,,,,,।
मौलिक रचना
सय्यदा खा़तून,, ✍️
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