अजीब शैय है उस दोस्त से मेरी दोस्ती
बिन कहे समझ जाता है जज़्बात को मेरे
कह दूं कुछ तो चिढ़ मचती है उसको बड़ी,,।
मिलता है जब भी वो झगड़ता है मुझसे,
मिलने से करदूं मना तो मानता भी नहीं।
कहता है तू दोस्त हैं मेरी, तू दोस्त है मेरी
मैं भी कहां रह पाती हूं कभी उसके बग़ैर
देखें बिना उसे,बेक़रार होती है ज़िन्दगी।
इंतज़ार करती रहती हूं मैं भी तो उसका
जब तक मिल कर मुझसे झगड़ता नहीं।
मौलिक रचना सय्यदा खा़तून,, ✍️
---------------🌹🌹🌹---------------