सुबह की नींद जो
औरत को मयस्सर होती,
तो वह रात को कभी,
जल्दी नहीं सोती ,
क्या पकाना है ,
क्या खिलाना है,
और क्या लेकर,
जाना है उन्हें
यह इंतजाम वह ,
रात को कभी ,
करके नहीं सोती
सुबह की नींद,
जो हम औरत को
मयस्सर होती.......!
ख़ूब लगाती,
परिवार संग गप्पे,
वह भी, बैठकर रात भर ,
सुबह जल्दी,
उठना है मुझे,
यह कहकर ,
किसी से विदा नहीं लेती,
सुबह की नींद जो हम
औरत को मयस्सर होती......!
जिम्मेदारियां इतनी,
निभानी होती हैं
बहुत सीऔरतों को यहां
सुबह की नींद ,
उनकी क़िस्मत में,
लिखी नहीं होती.....
सो जाए सुबह को,
जो कभी देर तक, कोई औरत
पूरा दिन ज़िन्दगी उसकी,
पटरी पर नहीं होती.....
काश सुबह की नींद ,
हम औरतों को भी,
मय्यसर होती.......!
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मौलिक रचना सय्यदा खा़तून,, ✍️
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