लुका छुपी के खेल से उकता गए हैं हम
आ भी जाओ सामने थक गये हैं हम
उम्मीद का दिया आंखों में जल रहा है
आओगे ज़रूर यह यक़ीन हो गया है।
ज़्यादा देर खेल कोई खेल सकता नहीं
आना पड़ेगा सामने छुपके रह सकते नहीं
बहुत खेल लिए हमने लुका-छुपी के खेल
ढूंढ लिया है तुमको कोई दूसरा चाहिए नहीं
मौलिक रचना
सय्यदा ख़ातून,, ✍️