19 साल के रिश्व को समझाना उसके माता-पिता के लिए बहुत मुश्किल काम था, दोस्तों का साथ, देर रात घर लौटना, तेज गाड़ी चलाते हुए घूमना और समझाने पर तपाक से कहना कि यह मेरी लाइफ है और मैं जैसे चाहुं इसे जिउं, जो चाहे करुं, हस्तक्षेप करने वाला कोई होता कौन है। लेकिन एक रोज तेजी से दौड़ती उसकी बाइक जीप से टकरा गई और वह दुर्घटना में अंगहीन हो गया। अब वह सोचता है कि दोस्तों की बात न मानकर यदि मां-बाप की बात मान ली होती तो आज किसी का सहारा नहीं लेना पड़ता।
पिंकी के माता-पिता उसके दोस्तों को देखकर बार-बार कहते बेटा यह लोग ठीक नहीं लगते, पर पिंकी तो किसी की बात सुनने को तैयार ही नहीं थी। मम्मी ने कई बार उसके कपड़ों और मॉडरन लाइफ स्टाइल के बारे में समझाने की कोशिश की पर उत्तर वही- आप क्या जानें आजकल की लाइफ के बारे में। एक दिन वही हुआ जिसका उसकी मां को डर था। दोस्तों के चक्कर में आकर नशे की हालत में पिंकी अपना सब कुछ गंवा बैठी।
53 साल की नीना को आज भी अफसोस होता है कि उसने अपनी मां की बात मानकर शादी की होती तो रात के अंधेरे में अकेलापन नहीं डंसता। अपने कैरियर व उच्च पद पर वह किसी का हस्तक्षेप नहीं चाहती थी। इसलिए तमाम रिश्तों को यह मेरी लाइफ है- कहकर ठुकराती रही।
अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने की चाहत के कारण कृष्ण और अमृता के बीच तकरार रहता है। पति-पत्नी में से कोई भी झुकने को तैयार नहीं। दोनो कामकाजी अपनी मर्जी से जिंदगी जीने वाले। रोज देर रात तक उनके घर से आने वाली झगड़े की आवाजें पड़ोसियों की शांति अलग से भंग करती हैं।
यदि हम नागरिकों के अधिकार और कर्तव्यों की भाषा में बात करें तो सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त हैं, किंतु जब दूसरे नागरिक का अधिकार क्षेत्र आरंभ होता है तो अपना अधिकार समाप्त। अपनी लाइफ अपने ढंग से जीने वाला कौशिक लाठी घुमाते हुए सड़क पर घूम रहा था। सामने से आते हुए निशान ने उसे ऐसा न करने के लिए कहा क्योंकि लाठी उसे लगने का अंदेशा था। निशान ने उसे समझाया कि तुम्हारा अधिकार क्षेत्र मेरी नाक के पीछे तक है। यहां मेरी नाक शुरु तुम्हारा अधिकार खत्म। इसलिए लाठी घुमाना चाहो तो घुमाओ किंतु मेरी नाक का ध्यान रखकर अन्यथा परिणाम भुगतने को तैयार हो जाओ। असफलता सफलता की कुंजी है। आदमी गिर-गिर कर ही संभलता है। विकसित समाज में बच्चे की शिक्षा पर इसलिए बल दिया जाता है कि वह पढ़-लिख कर एक अच्छा नागरिक बने ताकि उसे अच्छे बुरे की समज आसानी से हो सके।
भारतीय संस्कृति से संबंधित इतिहास को अगर खंगाला जाए तो पुरातन काल में जनरेशन गैब जैसा मुहावरा ढूंढने से भी नहीं मिलेगा। यहां तक कि कट्टरपंथी आज के युग में भी संस्कारों की दुहाई देकर समाज को अपनी मुट्ठी में रखने के प्रयास में रहते हैं। अपनी लाइफ स्टाइल अपने ढंग से जीने के नाम पर गलत हरकतें करके अपना और समाज का नुकसान करने की प्रवृत्ति पश्चिमी समाज की देन है। पश्चिमी चाल-ढाल के भारतीय समाज के एक वर्ग पर हावी हो जाने के फलस्वरुप बुजुर्गों तथा अन्य संबंधितों का अनादर करने की प्रवृत्ति अपने पैर पसार रही है। इस सोच के साथ फैसले लेने से कभी-कभी आप अधिक स्वार्थी होने लगते हैं। ऐसे में आप यह भूल जाते हैं कि आपके सिर्फ अपने लिए हुए स्वार्थी निर्णय अपनों को कितनी ठेस पहुंचा रहे हैं। सभी एक समाज में रहते हैं और कोई भी व्यक्ति अकेला नहीं रह सकता। समाज में व्यक्ति दूसरों को प्रभावित करता है और उनसे प्रभावित भी होता है। सभी परिवार, जाति, समाज, देश में से किसी न किसी रुप में एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और कुछ हद तक एक दूसरे पर आश्रित भी हैं। इसलिए अपने आसपास के व्यक्तियों से परिपक्व एवं जिम्मेदारीपूर्ण व्यवहार की अपेक्षा की जाती है। स्वार्थ के कारण दूसरों का अहित न हो। दूसरों की भावनाओं को ठेस न पहुंचे और ऐसा करके हम अपना ही फायदा करते हैं। जीवन में अनुभव और परिपक्वता बहुत मायने रखते हैं । प्रत्येक के माता-पिता यह चाहते हैं कि उनके बच्चों के पांव में कांटा भी न चुभे और अपने जीवन के अनुभवों को संजोकर बच्चे का जीवन संवारना चाहते हैं। बच्चे जब बिना सोचे समझे मनमानी पर उतर आते हैं तो फिर उन्हें इसका नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। सामान्य परिवार से संबंधित सोनिया, सविता, कविता और पूनम चार सगी सहेलियों ने मिलकर अपनी एक लाइफस्टाइल सैट की। चारों ने ही बिना सोचे समझे यह प्रण ले लिया कि उच्च पद पर ही आसीन किसी अमीर अधिकारी अथवा किसी धनवान पुरुष से शादी करेंगी। किंतु रिश्तों में ग्रहों का भी योगदान रहता है। इसलिए सभी को इच्छित वर नहीं मिलता। समय बीतने के साथ तीनों ने तो हालात अनुरुप शादी करली किंतु चौथी सहेली बिना शादी के ही जीवन का निर्वाह कर रही है। आसमान से तारे तोड़कर ले आने की इच्छा का परिणाम क्या हो सकता है इसका अंदाज लगाना कोई बहुत ज्यादा कठिन कार्य नहीं। केवल धन अर्जित करने, अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए शक्तियों का संग्रहालय खोलने वाला लाइफ स्टाइल कभी भी हानिकारक हो सकता है।
बात सिर्फ इतनी सी है कि यह सच है कि यह मेरी लाइफ है। परंतु यह भी सच है कि इस लाइफ पर थोड़ा सा हक समाज और उनका भी है जिन्होंने यह लाइफ आपको दी है। थोड़ा सा हक उनका भी है जो अपनी जिंदगी के अनुभवों से यह जानते हैं कि उनके बच्चे के लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा। थोड़ा सा हक तो उनका भी है जो हमारे अपने हैं, जिनके साथ रहने से हमें स्नेह, प्यार, सुरक्षा और परिवार मिला है, रिश्ते मिले हैं। अगर सब को यह बात समझ में आ जाए तो रिश्तों की मिठास और बढ़ जाएगी। युवा पीढ़ी को यह चाहिए कि वे तब तक अपना लाइफ स्टाइल निर्धारित न करें जब तक उनको पर्याप्त अनुभव और परिपक्वता हासिल नहीं हो जाती। अनुभवहीनता किसी भी समाज के लिए हानिकारक है। अनुभवहीनता, अपरिपक्वता और स्वार्थी सोच का लाभ उठाकर विघटनकारी शक्तियां भी लाभ उठाने की ताक में रहती हैं। माता-पिता एवं अन्य अनुभवी नागरिकों का भी यह दायित्व बनता है कि वे दोहरी मानसिकता का त्याग करके सवस्थ और अनुभवी युवा पीढ़ी समाज को समर्पित करें।