भारत में प्रत्येक राज्य की अपनी संस्कृति है, अपना एक अतीत है और अपना एक अस्तित्व है। उनमें से एक है पंजाब। यह प्रदेश भारत के उत्तर में स्थित है और हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, राजस्थान और हरियाणा के साथ-साथ पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से जुड़ा होने के कारण इसके अधिकांश क्षेत्रों की संस्कृति सीमाओं से मिले क्षेत्रों की संस्कृति से काफी मिलती है । पंजाब शब्द दो शब्दों पंज तथा आब से मिलकर बना है। पंज का अर्थ है पांच तथा आब का अर्थ है पानी। अत: पंजाब की धरती पांच जलधाराओं के मिलन की स्थली है। ये जलधाराएं हैं पांच नदियां झेलम, रावी, ब्यास, चिनाब तथा सतलुज। पंजाब का नाम संस्कृत के “पंचनद” अथवा युनानी नाम पैंटापोटाम्या का फारसी रुपांतरण है। जो लोग इस प्रदेश से संबंध रखते हैं या यहां की भाषा बोलते हैं उन्हें पंजाबी कहते हैं। न केवल भारत के विभिन्न हिस्सों में बल्कि विदेशों में भी पंजाब के लोग फैले हुए हैं। वे जहां भी गए वहीं अपने साथ अपनी बोलचाल, रहन-सहन के तरीके, खान-पान, नाच-गाना इत्यादि ले गए जिसे उन्होंने समस्त भारत की संपत्ति बना दिया है।
इतिहास -- प्राचीन पंजाब काफी विस्तृत था। इतिहास साक्षी है कि पंजाब पर हुए बाहरी हमलों से समस्त भारत के इतिहास की रुपरेखा निर्धारित हुई है क्योंकि जिसने पंजाब पर अधिकार कर लिया वही प्राय: सारे उत्तर भारत को जीतने में सफल हो सका। भारत में पंजाब को आर्यों का पहला उपनिवेश माना जाता है। आर्य लोग खैबर, बोलान आदि उत्तर पश्चिमी दर्रों से आकर पंजाब में बसे। इसी के भूभाग के नदी तटों पर ऋग्वेद की रचना हुई। 1194 ईसा पूर्व में हुए महाभारत में कुरुक्षेत्र के विनाशकारी युद्ध का वर्णन तत्कालीन पंजाब और भारत की स्थिति का अच्छा ज्ञान कराता है। 326 ईसा पूर्व में सिकंदर का आक्रमण ही पंजाब की पहली ऐतिहासिक घटना रही है और यहीं से भारत का क्रमबद्ध इतिहास आरंभ होता है। उस समय पंजाब में कई छोटे-छोटे राज्य थे। जिनके बीच आपसी बैर भाव रहता था। इसका उदाहरण झेलम चिनाब के बीच के क्षेत्र के राजा पोरु और तक्षशिला के राजा अंबी के बीच शत्रुता का पारस्परिक लाभ उठाकर सिकंदर का पोरु पर विजय पाना। किंतु आगे बढ़ने पर भारतीयों ने उसे इतना हतोत्साहित कर दिया कि उसे वापस अपने देश लौटना पड़ा और रास्ते में ही ईराक में उसकी अकाल मृत्यु हो गई। सिकंदर के आक्रमण के समय कई परिवार मगध छोड़कर दूसरी जगह रहने लगे। चंद्र गुप्त मौर्य भी उनमें से एक था। जो बाद में तक्षशिला के विद्यालय में पढ़ता था। उसने अपने गुरु चाणक्य की मदद से पंजाब पर अधिकार कर लिया तथा मगध सम्राट को परास्त कर पहला ऐतिहासक सम्राट बना। सिकंदर के उत्तराधिकारी युनानी शासक सेल्यूकस ने यूनानी सत्ता की पुनर्स्थापना के लिए जब पंजाब पर चढाई की तो चंद्रगुप्त से उसे पराजय हाथ लगी। इस पराजय में काफी संपत्ति के अतिरिक्त उसने अपनी पुत्री हेलन का विवाह भी चंद्रगुप्त से कर दिया। चंद्रगुप्त के पुत्र बिंदुसार और पौत्र अशोक महान के राज्यकाल में पंजाब अखंडित रुप से विस्तृत मौर्य साम्राज्य का एक महत्वपूर्ण अंग रहा। अशोक के राज्यकाल में बौद्ध धर्म यहां का राजधर्म बना जैसा कि एक ओर कांगड़ा तथा दूसरी ओर पाए गए बौद्ध स्तंबों से प्रकट होता है। पंजाब की राजधानी तक्षशिला थी जहां राजकुमार निवास करता था। उसके अधीन गांधार क्षेत्र में सतलुज से अफगानिस्तान और कश्मीर सिंध प्रदेश सम्मिलित थे। अशोक की मृत्यु के पश्चात बहुत समय तक युनानी राजा पंजाब पर राज करते रहे और प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान नागसैन के संपर्क में आने से उन्होंने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया और पूर्णतया भारतीय हो गए। अंतिम गुप्त सम्राट स्कंदगुप्त के राज्यकाल में पंजाब रास्ते हुणों ने भारत पर आक्रमण किया। हुणों में तुरमान का पुत्र मिहिर कुल अपने साम्राज्य(मालवा) से वंचित होकर कश्मीर में जा बैठा। उसने कश्मीर और पंजाब में बौद्धों का भीषण नरसंहार किया और इन क्षेत्रों में बौद्ध मत का प्राय: अंत ही कर दिया गया था। फिर वर्धन साम्राज्य के मुख्य सम्राट हर्षवर्धन का राज्य पूर्वी पंजाब पर रहा। ग्यारवीं शती तक तोमर, राठौर, राजपूत, पल्लवों का राज रहा। इसी शती में पंजाब पर मुस्लमानी आक्रमण प्रारंभ हुए। इसी बीच गौर वंश का उत्थान हुआ जिसमें तराइन के द्वीतीय युद्ध में मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराकर दिल्ली पर अधिकार कर भारत में मुस्लमानी राज्य का सूत्रपात किया। पंजाब के खोखरों का विद्रोह दबाने के बाद जब गौरी वापस जा रहा था तो एक देशभक्त खोखर ने छुरा मारकर उसका अंत कर दिया। तैमूर लंग ने पंजाब में भीषण विध्वंस करते हुए दिल्ली पर आक्रमण किया। इसके बाद पंजाब के हाकिम ने सैय्यद वंश का सूत्रपात किया। बाबर के आगमन का कारण भी हाकिम दौलत खां था। हुमांयुं ने सरहिंद में सिकंदर नूर को परास्त करके भारत में मुगल साम्राज्य की पुनर्स्थापना की। अफगान बादशाह अबदाली तथा मराठों के बीच हुई पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों की पराजय के पश्चात पंजाब में सिखों का उत्थान हुआ। राय भोए की तलवंडी नामक स्थान पर जन्में गुरुनानक देव द्वारा 15वीं शती में सिख धर्म चलाया गया । उनके शिष्य सिख कहलाए। वे एकेश्वरवाद में विश्वास रखते थे। सिखों के दस गुरु हुए हैं। उनके पांचवें गुरु अर्जुन देव को मुगल शासक जहांगीर ने इसलिए शहीद करा दिया था क्योंकि उन्होंने उसके पुत्र खुसरो के विद्रोह में मदद की थी। इससे सिख समुदाय मुगलों का शत्रु हो गया। उत्तराधिकार युद्ध के समय दारा शिकोह को आठवें गुरु हर राय द्वारा आश्रय देने पर औरंगजेब अप्रसन्न था। इसी कारण गुरु हर राय की मृत्यु के पश्चात नौवें गुरु तेग बहादुर को औरंगजेब ने दिल्ली बुलाकर उन्हें बर्बरता पूर्वक शहीद करा दिया। जिससे गुरु तेग बहादुर के पुत्र तथा दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह ने मुगलों से टक्कर लेने की ठानी। उन्होंने आनंदपुर साहब में एक यज्ञ किया जिसमें अपने शिष्यों को पांच व्रत कड़ा, कंघा, केश, कृपाण तथा सिंह नाम धारण करने की प्रेरणा देकर खालसा अथवा विशुद्ध वाहिणी का संगठन किया और मुगल साम्राज्य पर आक्रमण कर दिया जिसमें उन्हें अपने पुत्रों का बलिदान भी देना पड़ा। सिखों ने आक्रमण करके काफी क्षेत्र अपने अधीन कर लिया। उस समय ये 12 संगठित क्षेत्रों में बंटा हुआ था जिन्हें “मिसल” कहते थे। कुचिमा मिसल का नेता चड़त सिंह विशेष शक्तिशाली था। उसी का पोता रंजीत सिंह पंजाब का पहला सिख राजा बना। उसकी मृत्योपरांत सिखों में अराजकता फैल गई। 1845 ई. में सिखों और अंग्रेजों के बीच फिरोजपुर में युद्ध हुआ। जिसमें अंग्रेजों को काफी हानि हुई। अंत में सिखों और डोगरा राजाओं की स्वार्थ परता से सिख सेना का सर्वनाश हुआ ओर सतलुज नदी लाशों से भर गई। सिख और डोगरा सामंतों का देशद्रोह सिख राज्य के साथ-साथ पंजाब की स्वतंत्रता के अंत का कारण भी बना। स्वाधीनता की क्रांति में ज्यादा नाम पंजाब के वीर देश भक्तों के ही मिलते हैं। लाला हरदयाल की गदर पार्टी, गुरुदित्त सिंह और कामागाटा मारु की वीरगाथा। भाई परमानंद के महान प्रयत्न, बब्बर, अकाली आंदोलन तथा मदन लाल ढींगरा, करतार सिंह सराभा, सोहन सिंह भकना और अंत में शहीद भगत सिंह-राजगुरु और सुखदेव, उनके साथियों और शहीद ऊधम सिंह के आत्म बलिदान की अमर कहानियां भारतीय वीर साहित्य को गौरान्वित करती हैं। देश के लिए फांसी पर चढ़ने वाले तथा काला पानी की सजा भुगतने वालों में अधिक संख्या पंजाब के युवकों की रही है। अमृतसर के जलियांवाल बाग में जनरल डायर द्वारा निहत्थे लोगों की हत्या की घटना आज भी दिलों को दहला देती है। अंग्रेजो की सफल कूटनीति के फलस्वरुप स्वतंत्रता प्राप्ति समय भीषण विध्वंस और रक्तपात के साथ बंगाल की तरह पंजाब भी विभाजित हुआ। इस दौरान लाखों लोगों का उजड़ना, मरना, स्त्रियों का सतीत्व नष्ट होना, करोड़ों की संपत्ति का नष्ट होना इत्यादि घटनाओं की स्मृति से आज भी दिल दहल उठता है। एक नवंबर, 1966 को यह पंजाब, हरियाणा और हिमाचल के रुप में विभाजित हो गया। भौगोलिक आधार पर यह माझा, मालवा और दोआबा तीन क्षेत्रों में विभाजित है।
धर्म और संस्कृति -- पंजाब पर हुए प्रत्येक आक्रमण के बाद हजारों विदेशी जैसे यूनानी, ईरानी, शक, हुण, अरबी और चीनी यहीं बस गए हैं। इस प्रकार के जातीय सम्मिश्रण से पंजाबियों की उत्पत्ति हुई। यहां के लोग लंबे कद, सुदृढ़ हाथ-पैर, चौड़ी छाती वाले सुगठित और बलवान व्यक्ति होते हैं। यहां के लोगों का मुख्य पेशा कृषि है और किसान प्राय: अत्यंत स्वस्थ, बलिष्ठ और अपार परिश्रम क्षमता के मालिक हैं। यहां के लोगों का मुख्य धर्म सिख धर्म है लेकिन सिखों की उत्पति भारत के मुख्य धर्म हिंदु धर्म से हुई है। अत: गुरुद्वारों में गुरुवाणी के अतिरिक्त यहां शिवजी के शिवाले, राम और कृष्ण के ठाकुर द्वारे, देवियों के मंदिरों की घंटियों की गूंज भी सुनाई देती है। जाति-पाति की व्यवस्था गुरुओं द्वारा निंदित होने पर सिखों और विभिन्न संप्रदायों के बीच रोटी-बेटी का संबंध आज तक चला आ रहा है। सन्यासी या जोगी की भांति यहां पीरों को काफी माना जाता है। कबीर पंथी, गोरख पंथी, दादूपंथी संप्रदाय भी यहां पर हैं।
भाषा साहित्य -- पंजाब की पंजाबी की अपनी लिपि गुरुमुखी है और इसमें लाहौर अमृतसर की केद्रीय भाषा को साहित्यिक मापदंड माना जाता है। भाषा, सजीव, सरस और मुहावरेदार तथा थोड़े शब्दों में अधिक कहने की क्षमता वाली है। इसमें पुराना और नया उत्कृष्ट साहित्य उपलब्ध है। गुरु नानक, सूफी बाबा फरीद, जोगी बाबा गोरखनाथ, कबीर, रवीदास, दादू दयाल आदि रचयितायों ने अपनी रचनाओं में सघुम्ड़ी भाषा का प्रयोग किया है। पंजाब के लोग हिंदी भी अच्छी तरह लिख, बोल और समझ सकते हैं। धार्मिक साहित्य एकेश्वरवाद, मानवी तथा शांति और सद्भावना का उपदेश देते हैं और यह रहस्यवादी आध्यात्मिक और उपदेशात्मक है। उपरोक्त रचयिताओं के अलावा शाह हुसैन, बुल्लेशाह, अंगद, अमरनाथ, रामदास. गुरु गोबिंद सिंह, गुरु अर्जुन देव, तेग बहादुर, सुलतान बाहु, मोहन सिंह, अमृता प्रीतम आदि की प्रमुख रचनाएं हैं। गुरु ग्रंथ साहब, जपुजी साहब, सुखमनी साहब आदि हैं। रोमांटिक साहित्य— हीर-रांझा, सस्सी-पुन्नु, सोहणी-महीवाल, रुप रानी शकुंतला आदि पंजाबी साहित्य की अमूल्य निधि है।
गीत, नृत्य, मेले, त्यौहार -- पंजाबी लोक गीतों के कितने ही रुप आधुनिक भारतीय संगीत का अंग बन गए हैं और हिंदी चलचित्रों में अपना स्थान पा रहे हैं। जिसमें मां का उपहार प्यार लिए हुए “लोरी” प्रेम के लिए “माहिया“ और विरह के लिए ढोला गाया जाता है। इनके अलावा चरखे पर सूत कातते लड़कियों द्वारा “घल“ विवाह के समय ढोलक के साथ “घोड़ी सुहाग” और “नृत्यगीत“ तथा बच्चे के जन्म पर अनेक महिलाओं द्वारा होलार गाया जाता है। इसमें से गिद्धा और भंगड़ा का अपना महत्व है। भंगड़ा केवल पुरुषों का नृत्य है। ढोल की उत्साहप्रद ध्वनि के साथ अनुकूल संगीत का संगठन और हर्ष की हार्दिक भावना की संगती करती हुई हाथों पैरों और गर्दन की तीव्र गति घुंघरुओं की मधुर झंकार तथा नर्तकों का उत्साहपूर्वक हाव-भाव ये सब तत्व जब एकत्र होते हैं तो भंगड़ा जन्म लेता है। यह सच्ची प्रसन्नता का प्रदर्शन करने वाला पंजाब का सबसे आकर्षक सामुदायक नृत्य है। नर्तक की वेषभूषा जिसमें सर पर रंगीन साफा, उसी रंग का तहमद और काली या नीली जाकेट कुर्ते के ऊपर होती है, की दृष्टि से भी यह आकर्षक होता है। भंगड़ा किसी भी खुशी के मौके पर डाला जा सकता है। इसके अलावा गिद्दा, झूमर और ढमयाल भी पंजाब के लोक नृत्य प्रमुख हैं। पंजाब के लोग त्यौहार चाहे यह मौसमी हो या फसली धार्मिक हो या सामाजिक, उन्हें सदैव बढ़े उत्साह और श्रद्धा से मनाते हैं। संभवत: यह जीवन और उसकी रंगीनियों के प्रति अगाध प्रेम का परिचायक है। वैसे तो यहां पर होली, दीवाली, दशहरा, जन्माष्टमी, भैयादूज आदि त्यौहार विधिवत मनाए जाते हैं लेकिन उनके प्रमुख त्यौहार हैं गुरुपूर्ब, बैसाखी, लोहड़ी और बसंत पंचमी।
पर्यटन स्थल -- अमृतसर का स्वर्ण मंदिर, दुर्ग्याना मंदिर, जलियांवाला बाग, आनंदपुर साहब, तख्त श्री दमदमा साहब तलवंडी साबो, भाखड़ा नंगल, जालंधर शहर, लुधियाना, पठानकोट, रोपड़ प्रमुख पर्यटन स्थल हैं। बठिंडा में किला मुबारक है, यहां पर पहली मुस्लिम महिला शासक रजिया सुल्तान को बंदी बनाकर रखा गया था। राजधानी चंडीगड़ जिसकी योजना फ्रांसीसी वास्तुकार ने की थी और यहां का रॉक गार्डन भी महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल हैं। अत: यहां के लोग ईमानदार, परिश्रमी, सरल और स्पष्ट भाषी और होशियार होते हैं। उनकी होशियारी क्रियात्मक प्रकार की होने के कारण वे विदेशों, हर प्रदेश, हर शहर और हर पेशे में हैं। वे सफल विकासोन्मुखी और संपन्न हैं। अत: यह कहना अनुचित नहीं होगा कि यहां के लोग एक अत्यंत परिश्रमी व्यावसायक साहसिक वर्ग के नाते राष्ट्र का बहुमूल्य अंग हैं।