हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय में कोहिनूर हीरे से संबंधित एक मामले में जवाब देते हुए भारत सरकार ने यह पक्ष रखा है कि कोहिनूर हीरा यूके सरकार से वापस नहीं माँगा जा सकता क्योंकि ऐसा करने पर दूसरे देश भी भारत के संग्रालयों में पड़ी बहुमूल्य वस्तुओं पर दावा कर सकते हैं(हालांकि चहुतर्फा आलोचना के पश्चात सरकार ने अपना पक्ष बदल लिया है तथा पूरा का पूरा ठीकरा भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के सर फोड़ दिया है। कोहिनूर हीरा (कूह-ए-नूर) 105 कैरट(21.6 ग्राम) किसी समय विश्व का सबसे बड़ा ज्ञात हीरा था। कई मुगल एवं फारसी शासकों से होते हुए वर्तमान में युनाइटेड किंगडम(अंग्रेजों) के अधिकार क्षेत्र में है। यह पुरूष स्वामियों के लिए दुर्भाग्य व मृत्यु तथा स्त्री स्वामिनियों के लिए भाग्य का परिचायक रहा है। अन्य मान्यता यह भी है कि कोहिनूर का स्वामी संसार पर राज करने वाला बना। कोहिनूर हीरा अंग्रेजों के अधिकार में 177 वर्ष से है। काबुल एवं कंधार के शास्कों के अधिकार में यह 66 वर्ष तक रहा। 213 वर्षों तक मुगल शासकों का इस पर मालिकाना हक था। इस का उद्गम स्पष्ट नहीं है।
दक्षिण भारत में हीरों से जुड़ी कई कहानियां रहीं हैं, परंतु कौन सी इसकी है कहना मुश्किल है। कई स्रोतों के अनुसार कोहिनूर हीरा लगभग 5000 वर्ष पूर्व मिला था और यह प्राचीन संस्कृत इतिहास में लिखे अनुसार स्यमंतक मणि नाम से प्रसिद्ध रहा। हिंदु कथाओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं यह मणि जांबवंत से ली थी, जिसकी पुत्री जामवंती ने बाद में श्रीकृष्ण से विवाह भी किया था। जब जामवंत सो रहे थे तब श्रीकृष्ण ने यह मणि चुरा ली थी। एक अन्य कथा अनुसार 3200 ईसा पूर्व यह हीरा नदी की तली में मिला था। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार 13वीं सदी में गुंटूर के पास आंध्र प्रदेश में कोल्लर खान से कोहिनूर हीरा मिला था और यह दक्षिण भारतीय कथा कुछ पुख्ता भी लगती है।
भारत की गोलकुंडा की खानों से कोहिनूर के अलावा भी दुनिया के कई बेशकीमती हीरे निकले। ग्रेट मुगल, ओरलोव, आगरा डायमंड, अहमदाबाद डायमंड, ब्रोलिटी ऑफ इंडिया जैसे न जाने कितने ऐसे हीरे हैं, जो कोहिनूर जितने ही बेशकीमती हैं। गोलकुंडा में रायलसीमा डायमंड खान की ओर से इसे निकाला गया। सन 1730ई. तक गोलकुंडा विश्व का एकमात्र ज्ञात हीरा उत्पादक क्षेत्र था। इसके बाद ब्राजील में हीरों की खोज आरंभ हुई। 753 कैरेट (158.6 ग्राम) वजनी हीरा सबसे पहले काकातिया वंश के स्वामित्व में था। 1310 ई. में दिल्ली पर राज कर रहे खिलजी वंश के दक्षिण राज्यों के अभियान के दौरान वारंगल पर हमले के वक्त यह खिलजियों के हाथ लग गया। दिल्ली पर शासकों के बदलने पर इसका मालिकाना हक भी बदलता रहा। 1526 ई. में इब्राहीम लोधी की हार के बाद इसकी मलकीयब बाबर को मिल गई। 1739 ई. में परशियन(ईरानी) शासक नादिर शाह के मुगल शासन पर हमले के दौरान यह नादिर शाह के हाथ में आ गया। नादिर शाह ने ही इसे इसका वर्तमान नाम कोहिनूर(ऱोशनी का पहाड़) नाम दिया। 1747 ई. में नादिर शाह की हत्या के बाद उसका राज्य बिखर गया। उसकी मृत्यु के बाद यह उसके एक जनरल शासक अहमद शाह दुरानी के हाथ में चला गया। उसी के ही एक उत्तराधिकारी शाह शुजा दुरानी ने 1813ई. में यह हीरा पंजाब के शासक महाराजा रंजीत सिंह को दे दिया जिसका शासन वापस दिलाने में महाराजा रंजीत सिंह ने सहायता की थी। 1839ई. में अपनी मृत्यु शय्या पर उसने अपनी वसीयत में कोहिनूर को पुरी ओड़िशा के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर को दान देने को लिखा था ।
किंतु उसके अंतिम शब्दों के बारे में विवाद उठा और अंतत: वह पूरे न हो सके। 29 मार्च, 1849 को लाहौर में अंग्रेजी ध्वज फहराया गया । अंग्रेजों ने पंजाब जीत लिया तथा लाहौर की संधि अस्तित्व में आई। जिसकी एक शर्त यह थी कि कोहिनूर नाम से ज्ञात रत्न जिसे महाराजा रंजीत सिंह ने शुजा-उल-हक से लिया था लाहौर के महाराजा को इंग्लैंड की महारानी को देना होगा। अप्रैल, 06 1850 को कोहिनूर ने भारतीय सीमाओं को छोड़ दिया। लॉर्ड डलहौजी ने 1851ई. में रंजीत सिंह के उत्तराधिकारी दिलीप सिंह की ओर से कोहिनूर हीरे को भेंट स्वरुप इंग्लैंड की महारानी को भेंट करने की व्यवस्था की। हाईड पार्क, लंदन में एक बहुत बड़े हीरा भेंट कार्यक्रम का आयोजन किया गया। तब से कोहिनूर इंग्लैंड में है। 1852 में विक्टोरिया के पति एल्बर्ट की उपस्थिति में हीरे को पुन: तराशा गया जिससे वह 42% घटकर 105.602 कैरेट का हो गया किंतु इसकी आभा में कई गुणा बढ़ोतरी हो गई। हीरे को मुकुट में अन्य दो हजार हीरों सहित जड़ा गया। महारानी अलेक्जेंडिया इसे प्रयोग करने वाली प्रथम महारानी थी। 1936 में इसे महारानी एलिजाबिथ के किरीट की शोभा बनाया गया तथा 2002 में इसे उनके ताबूत पर सजाया गया।
स्वतंत्रता प्राप्ति उपरांत 1947 में भारत सरकार ने कोहिनूर पर दावा किया । इसी के साथ ही साथ ओड़िशा सरकार का भी दावा इस आधार पर आ गया कि पंजाब के पूर्व शासक महाराजा रंजीत सिंह की वसीयत अनुसार यह भगवान जगन्नाथ मंदिर की संपत्ति है। भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान की सरकारें अपना-अपना मालिकाना हक जताकर यूके से इसे वापस लेने का दावा कर चुकी हैं। अंग्रेजों का दावा है कि हीरा छीना नहीं गया था बल्कि लाहौर संधि के अनुसार हासिल किया गया था। भारत सरकार की ओर से पहला अनुरोध 1947 में किया गया था। 1976 में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुलफिकार अलि भुट्टो ने यूके के प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर कोहिनूर हीरा पाकिस्तान को देने का दावा किया जिसे वहां की सरकार की ओर से विनम्रता से ठुकरा दिया गया । अफगानिस्तान में तालीबानी शासन के दौरान कोहिनूर पर यह कहकर दावा किया गया कि हीरा अफगानिस्तान से भारत गया था इसलिए यह इस देश को मिलना चाहिए। 2000 में भारत के अनेक सांसदो ने इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए कि कोहिनूर भारत को वापस मिलना चाहिए। 2010 और 2013 में य़ूके के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने हीरा वापस करने से इंकार करते हुए कहा था कि ऐसे तो उनके संग्रहालय खाली हो जाएंगें।
भारत सरकार ने दिनांक 18.04.2016 (सोमवार) को सर्वोच्च न्यायालय में जवाब
दाखिल करते हुए यह दलील दी थी कि बरतानिया द्वारा कोहिनूर रंजीत सिंह के
उत्तराधिकारियों से छीना नहीं गया था बल्कि महाराजा दिलीप सिंह की ओर से भेंट किया
था। अब जबकि भारत सरकार ने अपना स्टैंड बदला है तो मजबूत तरीके से दावा करना
चाहिए। मजबूती का दावा करने वाली सरकार को वास्तव में मजबूती दिखानी चाहिए। सरकार
को यह मजबूती से विश्व के सामने लाना होगा कि सामराज्यवादी दौर के अन्याय स्वरुप
भारत का एक बहुमूल्य रत्न इंग्लैंड ले जाया गया था। अन्य देशों का दावा तो बिल्कुल
खोखला है क्योंकि यह उनकी संपत्ति कभी था ही नहीं। उनके लिए केवल यह एक लूट का ही
माल था। भारत सरकार की वर्तमान मजबूत सरकार के ध्यान में यह भी लाना जरुरी है कि एक
समय भारत सरकार का दबाव कहें या कुछ और इस की नकल को अमृतसर स्थित महाराजा रंजीत
सिंह के समर पैलेस संग्रहालय में रखा गया था तथा लेखक को भी उस कृति को देखने का
अवसर मिला था।
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