हजारों वर्ष पूर्व महान पश्चिमी दार्शनिक एवं राजनैतिक विचारक प्लैटो ने शासकों को शासन करने के लिए एक मॉडल सुझाया था। उस मॉडल का नाम था दार्शनिक राजा के लिए सिद्धांत । “ द रिपब्लिक ” में स्वप्नदर्शी सुंदर नगर शासक के बारे में अपने विचार देते हुए प्लैटो कहते हैं कि राजा को बुद्धिमान और अनुभवी होना चाहिए, ज्ञानी और विचारवान होना चाहिए, दार्शनिक होना चाहिए और उसकी शादी पक्के तौर पर नहीं होनी चाहिए। न परिवार होगा और न ही वह किसी लालचवश कोई गलत काम करेगा। अगर उसकी शादी होती भी है तो वह शादी एक वर्ष से अधिक नहीं चलनी चाहिए। दार्शनिक राजा को पता ही नहीं चलेगा कि उसके बीवी बच्चे कहां हैं और किस हाल में हैं। इसलिए उसका ध्यान शासन चलाने की ओर ही रहेगा और गलत काम नहीं होने से जनता का जीवन भी खुशहाल रहेगा। किंतु जब इस मॉडल का विचार आया था तब शासनतंत्र इतना परिपक्व नहीं था तथा शासकों का क्षेत्र भी वर्तमान जैसा विशाल नहीं होता था। उस समय के शासकों और विचारकों ने इस मॉडल को बेफायदा पाया था और यह कहकर नकार दिया था कि प्लैटो समाज में वेश्यवृत्ति को बढ़ावा देना चाहते हैं तथा इससे तानाशाही को भी बढ़ावा मिलेगा। किंतु 20वीं सदी में उनके सोशल इंजीनियरिंग नियम से प्रभावित होकर जोसेफ स्टालिन(रुस), अडोल्फ हिटलर(जर्मनी) और अयातोल्ला खोमैनी(ईरान) ने इस मॉडल को अपनाया। मैत्थियास कोर्नीवस (1443-90) जो हंगरी और क्रोशिया के 1458 से शासक थे, वे भी प्लैटो के “ द रिपब्लिक ” में दिए गए मॉडल और विचार से प्रभावित थे।
वर्तमान में भारतीय प्रधानमंत्री ने विवाहित जीवन का तिरस्कार किया हुआ है तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भविष्य के प्रधानमंत्री पद के दावेदार कब से विवाह योग्य आयु पार कर चुके हैं किंतु शादी कब करेंगे कोई नहीं जानता । अब तक हुए भारतीय प्रधानमंत्रियों में से केवल दो प्रधानमंत्री (1. श्री अटल बिहारी बाजपेयी और 2. श्री नरेंद्र मोदी) ही हैं जो वास्तव में गैरकांग्रेसी प्रधानमंत्री हैं । दोनो ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सदस्य हैं। आरएसएस का अपने प्रचारकों के लिए निर्देश है कि वे अपने परिवार के मोह में न पड़े। इसलिए श्री अटल बिहारी बाजपेयी ने तो शादी ही नहीं की और श्री नरेंद्र मोदी जी की पत्नी तो तब सुर्खियों में आईं जब वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रभुत्व वाले राजनैतिक दल भारतीय जनता पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद के दावेदार घोषित हुए । राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ हिंदु राष्ट्र भी चाहता है, शासन की चाबी भी अपने हाथ में रखना चाहता है, बढ़ती हुई मुस्लिम आबादी से भी चिंतित है और अपने प्रचारकों को पारिवारिक मोह से दूर भी रखना चाहता है। आबादी का प्रतिशत तो तभी बराबर अनुपात में बढ़ेगा जब वांछित अनुपात में शादीयां होंगी । ऐसी हालत में हिंदुवादी संगठनो का बेकार में किसी को चार-चार बच्चे पैदा करने के लिए उकसाने का भी कोई मतलब नहीं निकल सकता । जब मानव को असफल होने का डर सताता है तो सोशल इंजीनियरिंग का सहारा लिया जाता है और भारतीय राजनीति में तो आज तक होता भी यही रहा है। शासक वर्ग का ध्यान नागरिकों को भरमाकर शासन कबजाने तक ही सीमित रहा है। परिणाम स्वरुप 1947 से लेकर आज तक पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर-पूर्व, ओडिशा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडू, केरल, महाराष्ट्र, दिल्ली इत्यादि में अनेक क्षेत्रीय राजनैतिक क्षत्रप पैदा हो चुके हैं जिनसे राष्ट्रीय राजनीति के लिए पार पाना टेढ़ी खीर है। नतीजतन वर्तमान में भारतीय राजनीति असंख्य क्षेत्रीय और राष्ट्रीय राजनैतिक दलों की नीतियों से प्रभावित है। 1989 से लेकर 2014 के चुनावी नतीजों तक देश को गठबंधन सरकारों ने चलाया और एक नहीं अनेक बार गठबंधन धर्म का रोना रोकर शासकवर्ग अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ता रहा । बीच-बीच में अनेक बार संसदीय शासन प्रणाली के स्थान पर राष्ट्रपति शासन प्रणाली अपनाने की बात चलती रहती है किंतु दब जाती है। 2014 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने अघोषित तरीके से राष्ट्रपति शासन प्रणाली को आधार बनाकर चुनाव लड़ा और वर्तमान प्रधानमंत्री के काम करने के ढंग से तो राष्ट्रपति शासन प्रणाली की खामोश आहट सुनाई भी दे रही है। इसीलिए विरोधी वर्तमान प्रधानमंत्री को तानाशाह की पदवी से भी नवाज रहे हैं। बेहतर यही है आरोप-प्रत्यारोप लगाने के स्थान पर स्थायी हल के लिए दोनों प्रमुख और बढ़ी राष्ट्रीय राजनैतिक पार्टियों भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी को राष्ट्रपति शासन प्रणाली को अपनाने की ओर बढ़ना चाहिए। नहीं तो न तो क्षेत्रीय क्षत्रप ढंग से वर्तमान व्यवस्था को चलने देंगे तथा श्री राहुल गांधी, श्री नरेंद्र मोदी और श्री अटलबिहारी वाजपेयी जैसे कुंवारे प्रधानमंत्रियों को अपनाने की आदत भारतीयों को डालनी पड़ेगी । फिर चाहे वो फासीवादी बनें, तानाशाह बनें या प्लैटो का दार्शनिक राजा का मॉडल अपनाएं हमें क्या ? भारतीयों की तरक्की करने की हसरत दबी की दबी रह जाएगी, उन्हें केवल पिसने की आदत ही डाल लेनी होगी।