हजारों परवाने आजादी के कुरबान हो गए मेरी
ख्वाहिशों पर
पर भारत माता की मुहब्बत को किसी ने न तोला
न परखा अजब मां हुँ बच्चा मेरा कोई मुझसे मेरी ख्वाहिश
नहीं पूछता ख्वाहिशें मेरी भूल मुहब्बत को जीत-हार के
तराजू में तोलता रास्ता मेरा भटकाकर जातपात, धर्म,
संप्रदाय की ओर मोड़ता केसरी, सफेद और हरे रंग को अपनी-अपनी कसौटी
से परखता मैं समझा रही तुझे तराजू में न तोल, तराजू
का मोल घटता बंद आंखों से हाथों में थाम तराजू फिर भी कानून
अंधा बनता है यह भी
हकीकत कि आईने में देर तक चेहरा नहीं दिखता मौकापरस्त से बना दूरी जिसे सिंधु गंगा
में फरक नहीं दिखता दुनिया तुम्हारी तो थी पहले से ही अजब-गजब
अंदाज वाली हमसाया कोई अब मुझे अपनी दुनिया में भी नहीं दिखता भेदभाव भूल हमेशा साथ रहती है मुहब्बत की
खुशबू जिसे जय हिंद - जय भारत में कोई फरक नहीं
दिखता