भाषा मनुष्य द्वारा स्वीकृत और संप्रेषण व्यवस्था है। अनुवाद और भाषा विज्ञान के संबंधों को रेखांकित करते समय यह ध्यान देना आवश्यक है कि भाषा विज्ञान से अनुवाद का संबंध मूलत: अनुवाद सिद्धांत से स्थापित होता है। जिस प्रकार कोई भी व्यक्ति व्याकरण के प्रत्यक्ष ज्ञान के बिना अच्छा वक्ता हो सकता है उसी प्रकार यह समझना कि भाषा विज्ञान के ज्ञान के बिना अनुवाद करना संभव नहीं, गलत होगा। अनुवाद मूलत: व्यवहार है और अभ्यास से ही साबित होता है। भाषा विज्ञान के ज्ञान से अनुवादक दोनों भाषाओं के घटकों की आंतरिक व्यवस्था या प्रणाली को ठीक-ठीक समझने में मदद करता है।
अनुवाद करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए:-
स्रोत भाषा तथा लक्ष्य भाषा का सम्यक ज्ञान, विषय का सम्यक ज्ञान, सतत अध्ययनशीलता एवं अभ्यास।
समस्त संसार विविधता से परिपूर्ण है। दुनिया के विभिन्न देशों की अपनी-अपनी भिन्न-भिन्न भाषाई, सांस्कृतिक, सामाजिक, भौगोलिक और राजनैतिक विशेषताएं हैं। “वसुदेव कुटुंबकम” की संकल्पना इन देशों को आपस में जोड़ने का काम करती है। कोई भी व्यक्ति समाज या देश इन भाषाओं का ज्ञान एक साथ या एक ही समय में प्राप्त नहीं कर सकता। ऐसी स्थिति में इन विविधताओं को जानने के लिए व्यक्ति को अनुवाद की सहायता लेनी पड़ती है, ताकि वह एक भाषा में प्राप्त जानकारी/सूचना को दूसरी भाषा में व्यक्त कर सके। इसी आवश्यकता को मद्देनजर रखते हुए अनुवाद संकल्पना का उदय होता है।
अनुवाद का शाब्दिक अर्थ
अनुवाद सिद्धांत पर बात करने से पूर्व यह जानना जरुरी है कि अनुवाद शब्द की व्युत्पति कैसे हुई ?
“अनुवाद” शब्द संस्कृत भाषा के ”अनु” उपसर्ग तथा ”वद” धातु से मिलकर बना है ‘अनु’का अर्थ है – बोलना और इसी ’वद’ धातु में घन प्रत्यय लगाने से यह ‘ वाद‘ बना अनु+वाद =अनुवाद जिसका शाब्दिक अर्थ है ” पहले कही गई बात को पुन: कहना। “ शब्दार्थ चिंतामणी कोश के अनुसार : -
प्राप्तस्य पुन: कथने अर्थात जो प्राप्त या ज्ञात है, उसे पुन: कहना।
लेटिन में Trans+Latum है।
और यही अंग्रेजी में Trans- का अर्थ है Across- जिसका अभिप्राय अर्थात दूसरी ओर Latun Lation अर्थात Lation का अभिप्राय To carry अर्थात “ले जाना ।
इस तरह इसका सीधा अर्थ हुआ “इस ओर से दूसरी ओर ले जाना“ अत: यह कहा जा सकता है कि एक भाषा में कही गई बात को दूसरी भाषा में कहना अनुवाद है “
अनुवाद के विभिन्न सिद्धांतों को इस प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है:-
(1) संप्रेषणीयता का सिद्धांत (Theory of Communication)
अनुवाद का मूल उद्देश्य स्रोत भाषा के कथ्य को लक्ष्य भाषा में संप्रेषित करना है, जो सेम्युअल जॉनसन की इस परिभाषा “To Translate is to change into another language retaining the sense.” से भी स्पष्ट है, इस परिभाषा के अनुसार एक भाषा में कही गई बात को दूसरी भाषा में संप्रेषित करना तथा इसमें भाव (Sense) को कायम/अक्षुण्ण(retain) रखना अनुवाद है। इस तथ्य को इस अनुवाद की सहायता से समझा जा सकता है... He was a difficult writer. का अनुवाद “ वह एक कठिन लेखक था “ न होकर होगा कि “वह एक गूढ़ लेखक था“।
इस वाक्य में लक्ष्य भाषा के अनुसार भाव को सटीक रुप में प्रस्तुत करने पर A.H.Smith की परिभाषा “To translate is to change into another languaue retaining as much as of the sense as one can.” की सार्थकता भी सिद्ध होती है।
(2) समतुल्यता का सिद्धांत(Theory of Euivalence)
जे.सी.केटफोर्ड की परिभाषा
“Translation is the replacement of textual material in one language by equivalent textual material in another language.” अनुसार स्रोत भाषा की सामग्री का लक्ष्य भाषा की समतुल्य पाठ्य सामग्री द्वारा प्रतिस्थान(replacement) है।
यह समतुल्यता निम्नलिखित स्तरों पर देखी जा सकती है:-
(i) ध्वनि स्तर पर समतुल्यता :- संज्ञावाचक शब्दों में ध्वनियों का लिप्यंतरण लक्ष्य भाषा में उस शब्द का जैसा उच्चारण हो उसे वैसा ही लिखा जाना चाहिए।
उदाहरणार्थ :- फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति के नाम को Mitterand -
मिटरैंड न लिखकर “मित्तरां “ लिखा जाना चाहिए।
(ii) शब्द स्तर पर समतुल्यता :- जिन शब्दों के लिए लक्ष्य भाषा में पर्याय बना दिए गए हैं, उनके लिए उन्हीं मानक पर्यायों का उपयोग किया जाए, उदाहरणार्थ --
Atom परमाणु Electricity विद्युत/बिजली, Finance के लिए—वित्त
(iii) पद स्तर पर समतुल्यता – एक से अधिक शब्दों के समूह को पद कहते हैं। इस बात का विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए कि पद का पर्याय लक्ष्य भाषा की संरचना एवं प्रकृति के अनुकूल हो।
उदाहरणार्थ -- Partial modification का अनुवाद “आंशिक आशोधन “ होगा । इसी तरह “Capital Punishment” का शाब्दिक अर्थ “ पूंजी दंड “ न होकर ” मृत्यु दंड“ होगा ।
(iv) वाक्य के स्तर पर समतुल्यता – संपूर्ण वाक्य को समग्र रुप से समझते हुए लक्ष्य भाषा की व्याकरणिक संरचना को ध्यान में रखकर ही उसका समतुल्य दिया जाना चाहिए । उदाहरणार्थ: This action will be liable to criticism. उसकी कार्रवाई की आलोचना अवश्य होगी।
(v) प्रकार्य के स्तर पर समतुल्यता – किसी शब्द, पद, वाक्य का भाषाई दृष्टि से एक विशेष प्रयोजन होता है। जैसे नाटकों में विभिन्न संवादों का भिन्न-भिन्न प्रयोजन होता है, उदाहरणार्थ स्रोत भाषा में किसी संवाद का प्रयोजन पाठक में त्रासदी (Tragedy) का भाव उत्पन्न करना होता है और अनुवाद करने पर पाठक में उसका भाव त्रासदी के बजाय कॉमेडी (Comedy) होता है, तो ऐसी स्थिति में यहां अनुवाद पर प्रश्न चिन्ह लग जाएगा।
मेरा सिर चकरा रहा है का अंग्रेजी अनुवाद My head is circling या eating circle होगा तो वह हास्यस्पद होगा।
प्रोक्ति स्तर पर समतुल्यता—ध्वनि, शब्द, पद तथा वाक्य स्तर पर समतुल्यता कायम रखते हुए अंतत: प्रोक्ति के स्तर पर भी समतुल्यता कायम करने का प्रयास किया जाना चाहिए।
(3) अर्थ एवं शैली का सिद्धांत (Theory of meaning and style)—भाषाओं की अपनी शैलीगत विशेषताएं होती हैं तथा एक शब्द के अलग-अलग रुप में अलग –अलग अर्थ होते हैं। नाइडा की परिभाषा::- “Translating consists in producing in the receptor language first in meaning and secondly in style.” के अनुसार अनुवाद स्रोत भाषा(source language) की पाठ्यवस्तु से निकटतम सहज समतुल्य (closest natural equivalent) लक्ष्य भाषा में अंतरण है, ऐसा करते समय पहले अर्थ और उसके पश्चात लक्ष्य भाषा की शैलीगत विशेषताओं को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। वैदिक सूक्ति सत्यम् शिवम् सुंदरम् का अनुवाद प्लेटो द्वारा किए जाने पर वह “The truth The good The beauty” हुआ परंतु समतुल्य अंग्रेजी रुपांतरण करते हुए हिंदी में अनुवाद करने पर यह सत्य शिव और सुंदर नहीं होगा। इसी तरह The President is pleased to appoint Shri .. का अनुवाद लक्ष्य भाषा में श्री...... को नियुक्त करते हैं, न कि राष्ट्रपति सहर्ष श्री......... को नियुक्त करते हैं। यहां इस वाक्य को स्रोत भाषा में लिखने की अंग्रेजी भाषा की अपनी शैली या विशेषता है। लक्ष्य भाषा की शैलीगत विशेषता के अनुरुप कई बार स्रोत भाषा के कई शब्दों का अनुवाद आवश्यक नहीं है। उदाहरणार्थ—
Please sit down कृपया बैठिए या बैठ जाइए के स्थान पर बैठिए या तशरीफ रखिए में काम चल जाएगा। welcome delegates के लिए “प्रतिनिधियों का स्वागत “ की बजाए “सुस्वागतम” लिखना सही होगा।
(4) सांस्कृतिक एक्य का सिद्धांत—भाषा समाज को आपस में जोड़ती है। व्यक्ति जिस समाज में पला-बढ़ा होता है उसके संस्कारों में रच-बस जाता है। एक-दूसरे के संस्कारों से विश्व में मानव कल्याण की भावना पनपती है। अनुवाद के माध्यम से ही विभिन्न संस्कृतियां एक दूसरे के साथ interaction करती हैं। अनुवाद करते हुए ही एक व्यक्ति, समाज तथा देश विदेश की सांस्कृतिक विशेषताएं दूसरे व्यक्ति, समाज तथा देश को अवगत कराई जा सकती हैं। यही वजह है जिसके कारण आज विश्व एक गाँव स्वरुप लगने लगा है।
(5) व्याख्या का सिद्धांत (Theory of Interpretation)
विभिन्न शब्दों संकल्पनाओं का सामान्य रुप में अनुवाद करने पर उसका अर्थ प्रतीत नहीं होता और उस स्थिति में उनकी व्याख्या करनी आवश्यक हो जाती है। Exploitation of resources के लिए—संसाधनों का शोषण नहीं लिखा जाना चाहिए क्योंकि यहां पर संसाधन शोषण/उत्पीड़ण नहीं है। संसाधनों का दोहन होगा। यहां दोहन का अभिप्राय संसाधनों के सदुपयोग से है। इसी तरह से लेटिन भाषा की संक्षिप्तियां क्रमश: NB...... के लिए कृपया विशेष ध्यान दें। i.e के लिए अर्थात । इसी तरह AIIMS ऐम्स बोलचाल के लिए ठीक है परंतु लिखने के लिए “ऑल इंडिया इंस्टीच्यूट ऑफ मेडीकल साइंसेज“ या “अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान “ उपयुक्त होगा।
(6) पुन: कोडीकरण का सिद्धांत(Theory of recodification)
अनुवाद करते समय अनुवादक स्रोत भाषा के कथ्य Matrix code को Target code में अंतरित करता है। इसी प्रक्रिया में एक नया कोड सृजित होता है। इसी नए कोड को पुन:कोडीकरण अर्थात “अनुवाद“ कहते हैं। उदाहरणार्थ Matrix code में विद्यमान इस सामग्री“ Life Insurance made its debut in India well over 100 years “ का Target code(लक्ष्यकोड) में “ जीवन बीमा की भारत में शुरुआत 100 वर्ष पहले हो गई थी “, होगा। यह लक्ष्य भाषा में एक नए कोड में होगा और इसी को अनुवाद कहते हैं।
निष्कर्ष:- इस तरह अनुवाद की विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर विभिन्न सिद्धांत परिपादित हुए हैं। निष्कर्ष के तौर पर यही कहा जाता है कि अनुवाद एक सतत अभ्यास की प्रक्रिया है। अभ्यास के साथ-साथ अनुवाद साधन भी है। इसमें जो जितना अभ्यासरत होगा वह उतना ही अधिक सफल एवं कुशल अनुवादक होगा। इन सिद्धांतों की सार्थकता सिद्ध करने के लिए अनुवादक को सुधी पाठक होना चाहिए।
आज विश्व के देशों में आपस में अनेकों खेल, रक्षा, तकनीकी, शिक्षा, चिकित्सा तथा मनोरंजन आदि संबंधी अनेकों सौदे हो रहे हैं। इससे भी अधिक वैश्वीकरण तथा उदारीकरण के इस दौर में व्यापारिक प्रतिस्पर्द्धा भी बढ़ गई है। प्रत्येक राष्ट्र अपनी अर्थ व्यवस्था को मजबूती प्रदान करना चाहता है। इसके लिए वह विश्व के किसी भी कोने से सर्वोत्तम तकनीकी/प्रौद्योगिकी अपने देश में लाना चाहता है। ऐसे में अनुवादक की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। अत: अनुवादकों को अनुवाद में मूलनिष्ठता, सहजता, सटीकता, प्रभावशीलता तथा मौलिकता लाते हुए अनुवाद को अत्यधिक सार्थक बनाना होगा।