संत कबीर के अनुसार विद्वान होने के लिए मोटी-मोटी पोथिओं की नहीं, बल्कि खुद से खुदा के बंदों से प्रेम करने की जरुरत है। जरुरत है मानव के पांच शत्रुओं पाप, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार से दूर रहकर मानवता की सेवा करने की। मानव के लिए बहुत ही जरुरी है कि वह जीवन को सादा जीवन उच्च विचार का लक्ष्य लेकर जीए। धर्म कर्म के मामले में मैं संत कबीर और फादर कामिल बुल्के के विचारों से बहुत ही अधिक प्रभावित हूं। इन दोनो ही हस्तियों ने अपने उच्च विचारों, सादा जीवन, अनुशासन और परिश्रम से हिंदी साहित्य को संपन्न बनाने के लिए अपना-अपना अमूल्य योगदान दिया है।
धर्म के बारे में एक बेहद संजीदा सवाल उठता है कि ’यह जानने की चीज है, मानने की चीज है या फिर कुछ करने की।” इस सवाल का उठना सदा सदा के लिए बंद हो जाता है, जब हम उस शख्स के विचार पढ़तें हैं जो खुद में निवल अनपढ़ था। जो न तो कोई ऋषि मुनि था और न ही कोई त्यागी तपस्वी। जो महज एक बुनकर था और जिसने कपड़ा बुनते बुनते ही जीवन और धर्म का ताना-बाना बुन लिया था। जिंदगी तथा धर्म की गूढ़ बातों को जितनी सरलता से उन्होंने रखा, वह कबीर जैसे ”अनपढ़-विद्वान” के ही बूते की बात थी क्योंकि वे पढ़ी हुई बातें नहीं अनुभव की हुई बातें कहते थे।
इसके अतिरिक्त उन्होंने धनवान बनने के इच्छुक इंसानों को सुखी धनवान जीवन जीने का नुस्खा भी सुझाया है। उनका सुझाव था कि धनवान होने के लिए यदि कोई व्यक्ति लखपति बनने का मानक लक्ष्य रख लेता है तो लखपति धनवान होने का लक्ष्य हासिल कर लेने के पश्चात उसे और अधिक धन एकत्रित करने का मोह त्याग देना चाहिए तथा संतोषी सदा सुखी वाला सिद्धांत अपनाकर शेष जीवन सुखी-सुखी व्यतीत करना चाहिए। किंतु आज का इंसान है कि आसानी से संतुष्ट होने का नाम ही नहीं ले रहा। एक उदाहरण है मध्य प्रदेश के उस अधिकारी की जिसे भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तार किया गया था। उसके एक बैंक लॉकर से आठ करोड़ की नकदी बरामद हुई थी। उक्त लॉकर को उस अधिकारी ने सालों से ऑपरेट तक नहीं किया था। ऐसे धन और अमीरी का क्या लाभ। पश्चिमी सभ्यता में तीन डबल्यू वाईन, वोमैन और वेल्थ तथा भारतीय मान्यताओं अनुसार धरती, माया और स्त्री तमाम फसादों की जड़ें हैं। इसी के परिणाम स्वरुप राम-रावण तथा महाभारत के युद्ध तक हो चुके हैं।
ग्यारवीं की नियमित शिक्षा अर्जित करने के उपरांत मैने नौकरी करना आरंभ कर दिया था। नौकरी के साथ-साथ ही उच्च तालीम हासिल की। मेरी ही तरह मेरे एक अन्य गरीब मित्र थे जो इसी तरीके से पढ़ाई पूरी करने का प्रयास कर रहे थे। अपनी गरीबी से परेशान होने के बावजूद अमीरी का ख्वाब उसने कभी नहीं छोड़ा था। यहां तक कि पहली बार स्टार होटल में खाना खिलाने के लिए वही मुझे लेकर गया था। शिक्षकों की गरीबी और सादगी के किस्से वह चुटकलों के माध्यम से हम सभी दोस्तों को सुनाया करता था। उसका मूंह कभी बंद नहीं रहता था। निरंतर चलता रहता था, इसलिए वह सभी दोस्तों में ’भौंका ’ के नाम से मशहूर था। एक बार भौंका ने हमें दो अलग अलग चुटकले सुनाए ।
(क) एक समय की बात है कि एक अध्यापक महोदय साफ-सुथरे व अच्छे कपड़े पहन कर नहर के किनारे-किनारे अपनी साइकिल से जा रहे थे। उन्हें अमीर आदमी मानकर लुटेरों ने लूट के इरादे से घेर लिया। उनकी जेब से केवल एक चवन्नी निकली व उनका साइकिल भी छीनने लायक नहीं था। अपना गुस्सा निकालने के लिए लुटेरों ने अध्यापक को मार मार कर भगा दिया और उनकी पुरानी साइकिल पानी में फेंक दी।
(ख) हमारी ही अकादमी में एक अध्यापक हिंदी पढ़ाने आते थे। किंतु जब वे किसी से उधार ले लेते तो चुकाने की स्थिति में नहीं होते थे। एक बार अध्यापक महोदय ने भौंका से 20 रुपए उधार ले लिए। वापस मांगने पर वे इस स्थिति में नहीं थे कि 20 रुपए का उधार चुका सकें। किंतु मेरा मित्र अडिग था कि मैं अपने 20 रुपए नहीं छोड़ने वाला। बार-बार मांगने पर अध्यापक महोदय का मन पिघला तथा उन्होंने कहा –यह चवन्नी तो अभी ले लो बाकी का उधार भी इसी तरह उतार दूंगा।
दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स के मानद प्रोफेसर तथा “इंडिया डेवलमैंट एवं पारटिसिपेशन” के सह लेखक जीन डेजे ने लिखा है कि अनेक वर्ष पूर्व जब मैं भारत आया था तो “ इंडियन स्टेटिस्टिकल इंस्टीच्यूट” का बिरला ही कोई प्रोफैसर कार में चलता दिखाई देता था। सादा जीवन उच्च विचार उस समय का जीवन आदर्श था जो आज पलटकर “ऊंचा जीवन सादा विचार हो गया है।” आज अध्यापकों के पास कार है, घरों में एसी तथा अन्य शाही उपकरण हैं। मध्यम वर्ग भी कल्पनातीत ढंग से धनवान हो गया है। आज उभरती आर्थिक ताकत भारत का डंका पूरी दुनिया में बज रहा है। यह देश करोड़पतियों की संख्या में 15वें स्थान पर आ चुका है। ग्लोबल संपत्ति प्रबंधन उद्योग पर बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की रिपोर्ट के अनुसार 2018 तक भारत दुनिया का 7वां सबसे धनी देश बन जाएगा। वैसे उस समय का मेरा गरीब मित्र जो हमें चवन्नी के चुटकले सुनाया करता था, भी करोड़पति बन चुका है तथा कोठी, कार, धन, संपत्ति और शाही सुविधाओं का उपयोग कर रहा है।
अन्नय हिंदीनिष्ठ फादरकामिल बुल्के तुलसी और राम चरित मानस से कुछ ऐसे जुड़े कि भारत भूमि ही उनका घर हो गई। रांची के सर्जना चौक से जो राह पुरुलिया को निकलती है ठीक उसी नाके पर प्राचीन श्री राम मंदिर है और दस कदम की दूरी पर राम कथा के अन्नय गायक फादर कामिल बुल्के रहा करते थे। बीच में जेवियर्स कॉलेज। यहीं पर वे हिंदी संस्कृत के विभागाध्यक्ष रहे। पता नहीं राम कथा पर लिखते हुए वे इस प्राचीन राम मंदिर में कभी गए थे या नहीं पर सर्जना चौक से जो राह फूटी वह केवल पुरुलिया तक नहीं गई, देश देशांतर तक गई। हिंदी के प्रति लगाव, समर्पण और श्रद्धा के बारे में तो कहना ही क्या? एक बार एक युवक अपने चाचा के साथ उनसे मिलने आया। सुबह का समय, दोनो ने कहा, ” गुड मार्निंग फादर ”, कुछ देर तक देखते रहे। युवक ने कहा, ”मेरे अंकल हैं” फादर की भवें तन गईं। अंकल मतलब? पूछा, ”अंकल मतलब क्या होता है? चाचा, ताऊ, मामा......क्या? अंग्रेजी में तो इन सब के लिए बस एक ही शब्द है, पर हिंदी में अनगिनत और इससे रिश्ते भी पहचाने जा सकते हैं। जब हिंदी इतनी समृद्ध है तो फिर अंग्रेजी बोलते शर्म नहीं आती। कोश के निर्माण में ऐसे समर्पण भाव से लगे थे कि एक शब्द पर कभी कभी दिन भर लगा देते। दर्जी के बारे में जानकारी लेनी है तो वह उनके घर चले जाते। उसके सही उच्चारण और शब्द की तलाश करते। फादर ने लुवेन विश्वविद्यालय से 1930 ई. में अभियांत्रिकी स्नातक विज्ञान की उपाधि पास की थी। रामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास से प्रभावित होकर फादर भारत आए। भारत को वे अपना दूसरा घर मानते थे।
इन दोनो हस्तिओं से मैं इसलिए अत्यधिक प्रभावित हूं कि भारत में अपना-अपना कर्म-क्षेत्र चुनने से पूर्व दोनो ही देशी भाषाओं की लिपियों के ज्ञाता नहीं थे। एक अनपढ़ थे तो दूसरे विदेशी नागरिक। लोग आज स्पिर्चुएलिटी के पीछे पागल हैं:- योगा, ध्यान, दान, रात्रि जागरण, भंडारा, तीर्थ यात्रा से लेकर न जाने क्या-क्या प्रपंच। अपने कार्य को ही अगर धर्म मानकर मानवता की सेवा में लग जाएंगे तो मेंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारे तक भी जाने की आवश्यकता नहीं रहेगी। कबीर की इस एक लाइन का गुण लीजिए सारा अध्यात्म उतर जाएगा।
यह लाइन है, ”जस की तस धर दीनी चदरिया।” मर्यादा पुरुषोतम राम, भगवान श्री कृष्ण, महात्मा बुद्ध, गुरु नानक देव, महात्मा गांधी की शिक्षाओं से तो कुछ ग्रहण नहीं कर पाए, किंतु गलाकाट प्रतियोगिता का अनुसरण करके आज का मानव धर्म-कर्म के प्रति समर्पित होने का प्रपंच रचने में ही व्यस्त है। इंसान का इंसान से भाईचारा कब होगा? इंसान से इंसान को प्रेम करने का पैगाम कब तक आएगा? संत कबीर की यह पंक्तियां कब तक सार्थक हो पाएंगी?
“पोथी पढ़-पढ़ जग मुआं-पंडित भयो न कोय
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होए।”