समाज के आरंभ काल से ही विकसित-अविकसित, अमीर-गरीब और ताकतवर कमजोर के बीच द्वंद्व चलता रहा है। इस द्वंद्व में अधिकतर ताकतवर ही लाभांवित होते रहे हैं। यह सही ही है कि आपसी फूट न हो तो दुनिया में किसी भी बाहरी ताकत को अनुचित हस्तक्षेप का मौका नहीं मिल सकता लेकिन यदि एक बार उन्हें मौका मिल गया तो फिर मूल प्रतिस्पर्धी अपने बीच की दीवार गिराना भी चाहें तो नहीं गिरा सकते। दूसरे विश्व युद्ध के समापन के उपरांत संयुक्त राज्य अमेरिका-सोवियत संघ के बीच शीतयुद्ध, धर्म के आधार पर पाकिस्तान का उदय और सोवियत संघ का विघटन विश्व इतिहास की प्रमुख घटनाएं हैं। पाकिस्तान के साथ एक साथ दो शक्तियां काम कर रही हैं। एक तो अमेरिकी साम्राज्यवादी शक्ति है जो दक्षिण एशिया में भारत को क्षेत्रीय महाशक्ति बनने से रोकने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल कर रही है। दूसरे अरबी इस्लामी साम्राज्यवादी शक्तियां हैं जो पूरे दक्षिण एशिया को इस्लामी परचम के नीचे लाना चाहती हैं। पूर्व में यह विचारधारा पूर्वी एवं पश्चिमी पाकिस्तान के विभाजन का प्रमुख कारण भी बन चुकी है। अमेरिका शुरू से ही इस इस्लामी शक्ति का अपने हित में इस्तेमाल करता रहा है। पहले तो उसने इसे सोवियत संघ के खिलाफ इस्तेमाल किया। उसने कम्युनिस्ट सोवियत संघ को मजहब का दुश्मन करार दिया और उसकी बढ़ती ताकत को नियंत्रित करने के लिए कट्टरपंथी मुस्लिम जगत को उसके विरुद्ध खड़ा किया। पाकिस्तान को उसने एशिया में अपना सोवियत विरोधी अड्डा बनाया। उसे आधुनिकतम युद्धक उपकरणों से पाट दिया था। पाकिस्तान ने कभी भी उन अस्त्रों-शस्त्रों का उपयोग सोवियत संघ के विरुद्ध नहीं किया बल्कि उसके दिए सैबर जैटों और पैटर्न टैकों को लेकर 1965 में सीधे भारत पर आक्रमण कर दिया। पाक ने 1971 में भी भारत पर आक्रमण करने का दुस्साहस किया था। किंतु पाक को उस युद्ध में भारी क्षति झेलनी पड़ी। पूर्वी पाकिस्तान(वर्तमान में बांग्लादेश) उससे अलग हो गया और उसकी सेना के भारी संख्या बल को आत्मसमर्पण करना पड़ा जोकि एक विश्व रिकार्ड भी माना जाता है। अफगानिस्तान में सोवियत हस्तक्षेप के बाद इसके मुकाबले अपनी सेना उतारने के बजाए अमेरिका ने पाकिस्तान में ही तालीबानों की सेना तैयार कराई, उन्हें हर तरफ अन्य हथियारों से लैस किया और उन्हें हर तरह की सहायता दी। इस सेना में पूरे इस्लामीजगत के कट्टरपंथी जेहादी शामिल हुए थे जिन्हें अमेरिका का पूरा समर्थन एवं सहयोग प्राप्त था। तालिबानियों ने भारत के विरुद्ध भी जमकर जहर उगला। आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए भारतीय विमान अपहरण उपरांत कंधार ले जाया गया और सौदेबाजी की गई। भारत पाकिस्तान के बीच छदम युद्ध, पाकिस्तान को खुले अमेरिकी समर्थन के बावजूद भारत को राहत की सांस इसलिए मिली हुई है क्योंकि यह दोनो आक्रांत ताकतें आपस में भी टकरा रही हैं। पाकिस्तान व अन्य अरब देशों की सरकारें भले ही अमेरिका के साथ हैं किंतु वहां की जनता अमेरिका के सख्त खिलाफ है। इसीलिए बीच-बीच में अमेरिका यह दिखाता रहता है कि वह मजहबी तौर पर इस्लाम या इस्लामी देशों के खिलाफ नहीं है, वह केवल उन जेहादी संगठनो के विरुद्ध है जो अमेरिका के खिलाफ संघर्ष का बिगुल फूंक रहे हैं। यह जेहादी अगर किसी अन्य देश के खिलाफ कार्रवाई करने में लगे हैं तो अमेरिका को इसकी कोई परवाह नहीं।
आज मुकेश अंबानी संपत्ति 21 अरब डॉलर(करीब एक लाख तीस हजार करोड़ रुपए), दिलीप सांघवी संपत्ति 20 अरब डॉलर, विप्रो के अजीम प्रेमजी संपत्ति 19.1 ड़ॉलर, शिव नाडर संपत्ति 14.8 डॉलर, हिंदुजा ब्रदर्ज संपत्ति 14.5 डॉलर, लक्ष्मी मित्तल संपत्ति 13.5 डॉलर, आनंद कृष्णा संपत्ति 9.7 अरब डॉलर, कुमार मंगलम बिड़ला संपत्ति 9 अरब डॉलर, उदय कोटक संपत्ति 7.2 अरब डॉलर, गौतम अडानी संपत्ति 6.6 अरब डॉलर नई पीढ़ी के सबसे बड़े प्रेरणस्रोत हैं। जबकि भारत की पुरानी परंपरा में धन की कोई अधिक प्रतिष्ठा नहीं थी। ज्ञान, शीर्ष, त्याग आदि का अधिक सम्मान था, धन का कम। वर्षों की गुलामी के बाद स्वतंत्र हुए सोने की चिड़िया कहलाने वाले भारत में अमीर और गरीब के बीच की खाई बहुत चौड़ी हो गई है।
दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स के मानद प्रोफेसर तथा “इंडिया डेवलमैंट एवं पारटिसिपेशन” के सह लेखक जीन डेजे ने लिखा है कि अनेक वर्ष पूर्व जब मैं भारत आया था तो “ इंडियन स्टेटिस्टिकल इंस्टीच्यूट” का बिरला ही कोई प्रोफैसर कार में चलता दिखाई देता था। सादा जीवन उच्च विचार उस समय का जीवन आदर्श था जो आज पलटकर “ऊंचा जीवन सादा विचार हो गया है।” आज अध्यापकों के पास कार है, घरों में एसी तथा अन्य शाही उपकरण हैं। मध्यम वर्ग भी कल्पनातीत ढंग से धनवान हो गया है। आज उभरती आर्थिक ताकत भारत का डंका पूरी दुनिया में बज रहा है। यह देश करोड़पतियों की संख्या में 15वें स्थान पर आ चुका है। ग्लोबल संपत्ति प्रबंधन उद्योग पर बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की रिपोर्ट के अनुसार 2018 तक भारत दुनिया का 7वां सबसे धनी देश बन जाएगा। फोबर की रिपोर्ट अनुसार भारत के कुल अरबपतिओं की संख्या 90 है। गत वर्ष के मुकाबले 28 नए अरबपति इस सूचि में शामिल हुए हैं। माइक्रोसॉफट के बिल गेट्स संपत्ति 79.02 अरब डॉलर पिछले 21 वर्षें में 16वीं बार विश्व के सबसे बड़े अरबपति बने हैं। उन्होंने लगातार दूसरी बार मेक्सिको के टेलीकाम बादशाह कार्लोस स्लिम हेलू को पछाड़ा है।
इसके विपरीत भारत के गरीब भी दुनिया के अत्यधिक गरीब हैं। भारत में एक साथ दो दुनिया देखी जा सकती हैं। पहली दुनिया में आर्थिक सुधार के साथ सामाजिक परिवर्तन तेजी से हो रहे हैं। जिसे इस दुनिया के जीवन स्तर तथा जीवन शैली में साफ देखा जा सकता है। उधर दूसरी दुनिया में लगभग सारे के सारे लोग सार्वजनिक सेवा में रोजगार के अवसरों तथा बेहतर संभावनाओं से पूरी तरह वंचित हैं। ये जो दो भारत दिखाई देते हैं उनकी खाई को मिटाना इस देश की सबसे बड़ी चुनौती है। आज देश के आधे बच्चे कुपोषित या अर्ध कुपोषित हैं और सारी युवा औरतों में से आधी खून की कमी का शिकार हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की मानव विकास रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनिया के सर्वाधिक कुपोषित जनसंख्या वाले देशों इथोपिया बांग्लादेश की कतार में है और आश्चर्य तो यह है कि विकास के मामले में दुनिया के दरिद्रतम देशों में गिना जाने वाला देश बांग्लादेश भी भारत से आगे है। स्वास्थ्य और पोषण के निदेशक आंकड़े बताते हैं कि बांग्लादेश की प्रगति हम से बेहतर है। तेल, आर्थिक विकास के मामले में निश्चय ही भारत बहुत आगे है किंतु विकास के अन्य मापदंडों को यदि देखें, जैसे शिशु तथा मातृ मृत्युदर व स्कूल जाने वाले बच्चों का प्रतिशत तो बांग्लादेश भारत से आगे निकल गया है। 1990 में भारत और बांग्लादेश में शिशु मृत्यदर क्रमश: 80 तथा 90 प्रतिहजार थी, कुछ समय पूर्व 67 और 51 प्रति हजार थी। दुनिया के कुल अति गरीब लोगों में से करीब एक चौथाई भारत में रहते हैं। इनकी हालत सुधारने के लिए नारे तो दशकों से लगते रहे हैं लेकिन अब तक कुछ खास नहीं हुआ है। आंकड़ों में अवश्य बताता जाता है कि लगभग हर वर्ष एक प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से ऊपर उठ रहे हैं, लेकिन यह आंकड़ा खुद बहुत निराशाजनक है। जनसंख्या वृद्धि की दर यहां 3 प्रतिशत से ऊपर हो, एक प्रतिशत का गरीबी रेखा के आंकड़े को पार करने का क्या महत्व है। यह सही है कि इस देश के मध्यम वर्ग का विस्तार तेजी से हुआ है। पिछले दो ढाई दशकों में इसकी संख्या तीन गुणा बढ़ी है। यह देश का सबसे बड़ा उपभोक्ता वर्ग है। इसमें वह नव धनाढ्य वर्ग भी है जिसने उच्च धनी वर्ग की संख्या को बढ़ाया लेकिन देश का बहुसंख्यक अभी भी गरीब वर्ग ही है। अरस्तू ने कभी कहा था कि अच्छा समाज वह है जहां मध्यम वर्ग बाकी वर्गों की कुल संख्या से ऊपर है। कहने का अभिप्राय यह है कि गरीब और धनी तो हर समाज में होते हैं लेकिन अति गरीब और अति धनी लोगों की संख्या कम होनी चाहिए। भारत में 70 प्रतिशत से अधिक संख्या गरीबों की है जिसमें 50 प्रतिशत तो अति गरीब हैं। गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करने वालों की संख्या बढ़कर 25 फीसदी से 42 फीसदी हो गई है। ग्रामीण भागों में रहने वाले 78 फीसदी लोगों की प्रतिदिन आमदनी मात्र बीस रुपए है। 16 करोड़ लोग 11 रुपए से कम कमाते हैं। 42 करोड़ 15 रुपए से कम कमाते हैं और सात करोड़ लोग 9 रुपए से कम कमाते हैं(आंकड़े पुराने लेकिन वास्तविकता से परे नहीं हैं)।
एक ओर भारत की 80 प्रतिशत आबादी जो दिन में 20 रुपए से अधिक व्यय करने की क्षमता नहीं रखती तो दूसरी तरफ आईपीएल सहित अलग-अलग आयोजनों पर असीमित व्यय और भारतीय संसद व राज्य विधान सभाओं में करोड़पतियों की बढ़ती संख्या गंभीर स्थिति की ओर इशारा करती समस्या नहीं तो क्या है ? भारत की आजादी के समय भारतीय नीति निर्धारकों ने मध्यम वर्गीय अर्थव्यवस्था को अपनाया था। किंतु उदारीकरण व नई मुक्त बाजार व्यवस्था में उच्च आर्थिक वर्ग का निश्चय ही विकास हुआ है। मध्यवर्ग भी फैल रहा है किंतु यह प्रश्न आज एक प्रमुख सवाल है कि आखिर भारत के आर्थिक सुधारवादी इस अतुल गरीबी और बढ़ती संपदा के बीच की विराट खाई को कैसे पार कर सकेंगे। भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में विश्वस्तरीय शानो-शौक्त के बगल में ही एशिया की सबसे बड़ी मलिन बस्ती भी फैली है। एक तरफ एक रात की पार्टियों पर करोड़ों फूंके जाते हैं वहीं बगल में भूख कुपोषण व दवा के अभाव में सैंकड़ों दम तोड़ते हैं।
विकसित पश्चिमी जगत पहली दुनिया, विश्व के विकासशील देश दूसरी दुनिया और अविकसित देशों को तीसरी दुनिया में शामिल बताए जाने के बावजूद भी शोषित और शोषक दो ही देशों का प्रतिनिधित्व नजर आता है। कार्ल मार्कस जिनकी थ्यूरी को आधार मानकर पूंजीपतियों का विरोध आरंभ हुआ वे भी शोषक और शोषित दो ही दुनियां का संदर्भ देते हैं। उनके अनुसार पूंजीपति देश शोषक हैं और विश्व के सभी गरीब देश शोषित हैं। हो भी क्यों नहीं निम्न उदाहरण दर्शाते हैं कि विकसित पश्चिमी जगत प्रत्येक विषय में अलग-अलग दो मापदंड अपनाता है। शीतयुद्ध काल में अपनी रंगभेद की नीति के कारण दक्षिण अफरीका पूरे विश्व के लिए अछूत था। सोवियत रुस(USSR) के विघटन के बाद दक्षिण अफरीका विश्व बिरादरी के लिए अछूत नहीं रहा। भारत की संसद पर अगर हमला होता है तो होता रहे। 26/11 जैसे हमले भारत पर होते हैं तो होते रहें। दनदनाते आतंकवादी अगर भारत में कहीं भी कभी भी यहां तहां वारदातें करते घूमते हैं तो भी भारत को संयम बरतने की सलाह दी जाती है। किंतु अगर कहीं अमेरिका में विश्व ट्रेड सैंटर(9/11) जैसी घटना को अंजाम देने की हिमाकत की तो पूरे के पूरे मुस्लिम जगत की खैर नहीं फिर चाहे वो इराक, अफगानिस्तान या कोई भी अन्य ताकतवर देश का नागरिक ही क्यों न हो। पूरे विश्व से बुद्धि-पलायन कराना परंतु जिस किसी ने भी अपने बुद्धि बल से उन्नति करने का प्रयास किया जिसमें अमेरिकी स्वार्थ न सध रहा हो तो भारतीयों को टोल टैक्स देने और देश वापसी जैसी कार्रवाइयों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। 2010 में अमेरिकी समुद्र तट से 65 किलोमीटर दूर मैक्सिको की खाड़ी में ब्रिटिश पेट्रोलियम में हुए विस्फोट और तेल रिसाव से हुई 11 मौतों और जीव-जंतुओं को हानि के एवज में कंपनी को 1000 डॉलर का हर्जाना लगाया गया। कंपनी को होने वाले लाभ के एक हिस्से की मांग भी की गई। कंपनी ने इस रिसाव को रोकने के लिए करोड़ों खर्च किए और अमेरिकी गुस्से का आलम यह कि कंपनी के शेयरों का मूल्य भी आधा रह गया। यह है अमेरिका के गुस्से की हद। दूसरी ओर अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड की ओर से सुरक्षा कारणों की अवहेलना के परिणामस्वरुप दुर्धटना से भारत में हजारों हजारों लोगों की मौत और उनकी जिंदगी का मोल अमेरिका की मछलियों से भी कम आंकने की हिम्मत केवल अमेरिकी सरकार ही कर सकती है। यूनियन कारबाइड इंडिया लिमिटेड के सीईओ वॉरेन एंडरसन को दुर्घटना का दोषी मानते हुए पीड़ितों को मुआवजा दिलाना और उसे भारत सरकार को सौंपना अमेरिका को कैसे उचित लग सकता है। शोषक और शोषित वर्ग का अस्तित्व समाज के आरंभ काल से ही रहा है। समय-समय पर शोषक वर्ग की श्रेणियां बदलती रही हैं। वर्तमान में पश्चिम जगत विश्व का प्रमुश शोषक वर्ग है। भारत में अमीर-गरीब के बीच बहुत चौड़ी खाई है। वोट देने के अधिकार मात्र से ही समानता संभव नहीं है। किसी भी जगत की सफलता के लिए मध्यम वर्ग जोकि गुटनिर्पेक्ष संगठन के झंडे तले दो महाशक्तियों के मध्य संतुलन बैठा रहा था सोवियत संघ के विघटन के बाद से ही अपनी ताकत खो चुका है। फलस्वरुप भारत में भी उदारीकरण और वैश्वीकरण के कारण मध्यमवर्ग जिसे परिवर्तन के लिए महत्वपूर्ण माना जाता था का रोल बदल गया है। परिवर्तन के इस युग में संपूर्ण विश्व के नागरिक अपने देश की सीमाओं की परवाह किए बगैर आर्थिक लाभ को ही प्राथमिकता दे रहे हैं जोकि बहुत ही घातक प्रवृत्ति है।विश्व स्तर पर अनेक साम्राज्यवादी,साम्यवादी,अधिनायकतावादी और तानाशाही आए,प्रजातंत्र के समर्थकों काभी राज रहा तथा वर्तमान में है भी, जो अपनेआप में ही पूरे विश्व को सुसंस्कृत करने का दावा करते हैं अथवा करते रहे हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत भारत में भी अलग-अलग समय में अनेक शासक आए जिनका केवल और केवल एक ही लक्ष्य है कि किसी भी हाल में देश से गरीबी को दूर भगाना है। किंतु देश और दुनिया का गरीब अपनी आदत से इतना मजबूर है कि वो अमीर होने का नाम तक नहीं ले रहा ! विश्व और भारत के परिदृश्य में शोषित और शोषक वर्ग की दो अलग-अलग परिभाषाएं और इसके बीच मध्यमवर्ग की चुप्पी आने वाली भयानकता की ओर इशारा कर रही है।