भारत त्यौहारों का देश है। त्यौहारों और पर्वों पर पड़ने वाली छुट्टियों की वजह से कभी-कभी जनता को परेशानी भी होती है। क्योंकि भारत एक बहुधर्मी राष्ट्र है तथा बहुत से त्यौहार ऋतुयों, व्यापार और फसलों के साथ जुड़े हुए हैं, इससे भी अधिक इन त्यौहारों का आनंद लेने के लिए जगह-जगह मेले लगते हैं तथा त्यौहारों की खरीदारी से बहुत से लोगों को रोजगार भी मिलता है, इसलिए भारतवर्ष में त्यौहारों की महत्ता कभी भी कम नहीं होती। ऐसा ही एक त्यौहार है बैसाखी। पंजाब एवं हरियाणा का मुख्य पर्व है बैसाखी। बैसाखी मुख्यत: कृषि पर्व है। बेमौसम बरसात से कुछ किसानो की 85 लाख हेक्टेयर में लगी फसल इस वर्ष बर्बाद भी हो गई है। जिन किसानों की फसल बर्बाद हुई है उनके लिए इस बार बैसाखी का त्यौहार फीका रहने वाला हैं। क्योंकि वो तो मुआवजे की आस में सरकार की ओर देख रहें हैं। यह त्यौहार सभी धर्म एवं जातियों के द्वारा मनाया जाता है। यह संपूर्ण भारत में मनाया जाता है किंतु पंजाब एवं हरियाणा में इसका विशेष महत्व है। हिंदु इसे स्नान, भोग लगाकर और पूजा करके मनाते हैं। इस दिन समस्त उत्तर भारत की पवित्र नदियों में स्नान करके माहात्म्य मनाया जाता है। बैसाखी के दिन लगने वाला मेला बहुत प्रसिद्ध है। बैसाखी के दिन यह मेला नदियों के किनारे लगता है। मेले में बहुत भीड़ होती है। बैसाखी प्राय: प्रतिवर्ष 13 अप्रैल को मनाई जाती है किंतु कभी-कभी यह 14 अप्रैल को पड़ती है। इस बार बैसाखी 14 अप्रैल को आ रही है। 14 अप्रैल के दिन भारत के संविधान निर्माता और भारत के प्रथम कानून मंत्री डॉ. भीम राव अंबेदकर का जन्मदिन भी है। सिख इस त्यौहार को विशेष तरीके से मनाते हैं। वे मंदिर, गुरुद्वारा जाकर दर्शन करते हैं और पवित्र ग्रंथ का पाठ करते हैं। यहां के किसान फसल पकने पर अपनी खुशी के इजहार के रुप में बैसाखी पर्व मनाते हैं। इसी दिन से ही विधिवत फसल की कटाई आरंभ होती है। व्यापारियों की ओर से इसी दिन नए वर्ष के लिए अपने बही खाते आरंभ करने की परंपरा भी सदियों से चली आ रही है। पंजाबी अपने रीति-रिवाज के अनुसार गिद्दा और भांगड़ा तो करते ही हैं साथ ही लोकसंगीत, लोकनाट्य प्रस्तुत कर इसे और सुनहरा बना देते हैं। पंजाब के जलेबी, पकौड़े, मिठाइयां तथा तरह-तरह के घरेलू पकवान तो अपनी छटा चारों ओर बिखेरते ही हैं किंतु नए-नए और रंग-बिरंगे कपड़ों में सजे-धजे पंजाबियों का गीत- जट्टा आई बैसाखी स्थानीय लोगों में अलग ही जोश भर देता है। यह भारतीय नववर्ष की सूचना देता है, लेकिन यह पर्व सिखों के लिए विशेष रुप से महत्वपूर्ण होता है। कश्मीरी पंडितों व संपूर्ण हिंदु धर्म की रक्षा के लिए सिखों के 9वें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी की शहादत के उपरांत 30 मार्च, 1699 को श्री गुरू गोबिंद सिंह ने केशगढ़ के पास आनंदपुर साहब में एक आयोजन रखा। बैसाखी के दिन सिखों के दसवें गुरु श्री गुरू गोबिंद सिंह ने 1699 ई. में पांच प्यारों का चयन करके और सिखों को संगठित करके खालसा पंथ(सिख धर्म) की स्थापना की थी। भारत के स्वतंत्रता इतिहास में भी बैसाखी का दिन महत्वपूर्ण स्थान रखता है। सन 1919 में इसी दिन स्वर्ण मंदिर, अमृतसर के बगल में स्थित जलियांवाला बाग में (जहां हजारों, हिंदु, सिख, मुस्लिम एकत्रित थे) अंग्रेज जनरल डायर ने निर्दोश भारतीयों पर गोलियों की बौशार करके असंख्य देशवासियों को मौत के घाट उतार दिया था। ब्रिगेडियर जनरल रेगीनॉल्ड डॉयर और पंजाब के लेफ्टीनेंट गवर्नर माइकल ओ डॉयर इसके लिए जिम्मेदार थे। जिसका बदला लेने के लिए शहीद ऊधम सिंह ने 20 साल बाद 13 मार्च, 1940 को 4.30 बजे शाम केक्सटोन हॉल, लंडन, इंग्लैंड में इस गोलीबारी का आदेश देने वाले अंग्रेज अधिकारी पंजाब के उस समय के लेफ्टीनेंट गवर्नर माइकल ओ डॉयर को इंग्लैंड में जाकर मारकर लिया था। बैसाखी के आगमन से प्रकृति में परिवर्तन आना आरंभ हो जाता है। इस दिन से नवीन संवत का आरंभ होता है। बैसाखी के ही दिन दिन-रात बराबर होते हैं। इसीलिए इस दिन को ‘संवत्सर‘ भी कहा जाता है। देश के अलग-अलग हिस्सों में इसे अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। पश्चिम बंगाल में ‘नबा वर्ष’, केरल में ‘विशु’ तथा असम में ‘बिहु’ के नाम से इस वर्ष की धूम रहती है। अगर खुशियों के रंग देखने हों तो आप इस पर्व का मजा जरुर उठाइए।