जन्म से पहले ही भ्रूण हत्या विज्ञान की देन है। पुरुष प्रधान समाज में पहले लड़की को जन्म के बाद मारा जाता था। कन्या के जन्म लेने के तुरंत बाद उसे अफीम चटाकर, गर्म पानी में उलटा लटकाकर, आक का जहरीला दूध पिलाकर, गला घोंटकर या फिर ऐसी ही दूसरी विधियों से मारने के किस्से पुराने नहीं हुए हैं। इन सारी परिस्थियों के मद्देनजर क्या एक बात मथती नहीं कि उस शिशू का क्या दोष है जिसकी वजह से अल्ट्रासाउंड के जरिए पहले ही उनके लिंग का पता लगाकर जन्म लेने से पूर्व ही जिसे मार दिया जाता है। यह उस देश की स्थिति है जो एक धर्म प्रधान देश है, जिसे अहिंसा एवं आध्यामिकता प्रेमी और नारी-गौरव-गरिमा पर गर्व करने वाला देश माना जाता है । भारतीय समाज में 100 के मुकाबले महिलाओं का प्रतिशत 93 से कुछ कम है । गर्भधारण पूर्व व प्रसव पूर्व निधान तकनीक(लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 के अंतर्गत गर्भधारण से पूर्व या बाद में लिंग चयन या बाद में कन्या भ्रूण हत्या करना कानूनी अपराध घोषित किया गया है। गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम, 1971 के अनुसार निम्नलिखित परिस्थितियों में एक महिला गर्भपात करवा कर सकती है:
1. जब गर्भ की वजह से महिला की जान को खतरा हो 2. महिला के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को खतरा हो 3. गर्भ बलात्कार के कारण ठहरा हो 4. बच्चा गंभीर रुप से विकलांग और अपाहिज पैदा होने का खतरा हो 5. महिला और पुरुष द्वारा अपनाया गया परिवार नियोजन का साधन असफल हो गया हो । आईपीसी की धारा 313 के तहत स्त्री की सम्मति के बिना गर्भपात कारित करने के बारे में कहा गया है कि इस प्रकार से गर्भपात करवाने वाले को आजीवन कारावास और जुर्माने से भी दंडित किया जा सकता है। धारा 314 के अंतर्गत बताया गया है कि गर्भपात कारित करने के आशय से किए गए कार्यों द्वारा कारित मृत्यु में दस वर्ष का कारावास या जुर्माना या दोनो से दंडित किया जा सकता हैं मगर यदि गर्भपात स्त्री की मर्जी के खिलाफ कराया गया हो तो आजीवन कारावास होगा । धारा 315 के अंतर्गत बताया गया है कि शिशु को जीवित पैदा होने से रोकने या जन्म के उपरांत उसकी मृत्यु कारित करने के कार्यों से संबंधित अपराध में दस वर्ष का कारावास या जुर्माना या दोनो हो सकता है । वर्तमान में देश में असंख्य अलट्रासाउंट स्कैनिंग सैंटर और सोनोग्राफी सैंटर हैं। सभी के सामने यहां लिंग निर्धारण परीक्षण नहीं होता है का तख्ता लटका रहता है। भ्रूण हत्याओं को नियंत्रित करने के लिए सरकार की ओर से जुर्माने तथा कैद का कानून बनाया गया है । भ्रूण हत्या को रोकने के लिए सरकार ने बड़ी तेजी से अभियान चलाया हुआ है। प्रिंट मीडिया, इलैक्ट्रॉनिक मीडिया व जगह-जगह होर्डिंग्स लगाकर लोगों को व उनसे बने समाज को जागरुक करने की भरसक कोशिश हो रही है। 11 वीं पंच वर्षीय योजना में भ्रूण हत्या को रोकने के लिए रोडमैप तैयार हुआ था । पालना घर बनाकर नवजात बच्चियों की परवरिश, शिक्षा का पूरा खर्च वहन करने की योजनाएं बन चुकी हैं। लाल किले की प्राचीर से 60वें स्वतंत्रता दिवस के समारोह के अवसर पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए डॉ. मनमोहन सिंह के भाषण में महिलाओं की सुरक्षा को प्राथमिकता व कन्या भ्रूण हत्य़ा के बारे में प्रतिवचन, इस मामले में केंद्र सरकार की गंभीरता को दर्शाते हैं । केंद्र सरकार तो भ्रूण हत्या पर अंकुश लगाने के लिए स्कूली छात्राओं की मदद भी चाह रही है। जागरुकता कार्यक्रम में लगी बच्चियों की पढ़ाई बाधित होने के एवज में अतिरिक्त अंक दिए जाते हैं लेकिन फिर भी किलकारियां निकलने से पहले ही मारी जा रही हैं बच्चियां। बुद्धिजीवी, शिक्षाविद, समाज सुधारक तथा कानूनविदों के सभी प्रयास निरर्थक साबित होते हैं जब आज भी लड़की का जन्म परिवार वालों के चेहरे पर चिंता की लकीरें खींच देता है। पुत्र मोह में पगलाए लोग अपना देश छोड़ कर विदेश तक का रुख करते हैं जिससे गर्भपात व्यापार फलफूल रहा है । लिंग चयन इलाज में महारत हासिल लास एंजल्स के एक फर्टिलटी विशेषज्ञ जैफरी स्टीनबर्ग ने एक बार कहा था कि हर महीने करीब दो भारतीय उनके फर्टिलिटी केंद्र में इलाज हेतु आते हैं और उनमें से अधिकतर की मांग नर भ्रूण यानी बेटे की होती है। इन्हीं वैज्ञानिक तकनीकों के दुष्परिणाम का नतीजा है कि भारत के कुछ गांवों में बारात नहीं आती।
महिला के छह रुप बताए गए हैं । कामकाज में मंत्री के समान सलाह देने वाली, कार्य करने में दासी के समान सेवा करने वाली, शयन में अपसरा के समान सुख देने वाली, धर्म के अनुकूल चलने वाली, क्षमा आदि गुण धारण करने में पृथ्वी के समान स्थिर रहने वाली। नारी में धैर्य, साहस, सहनशीलता, दृढ़ इच्छा शक्ति जैसे ऐसे गुण हैं जो ईश्वर प्रदत्त हैं। मनुष्य के लिए कभी वह मातृ स्वरुपा तो कभी प्रेयसी, कभी बहन तो कभी पत्नी रुपा बन उसका साथ देती है। देवासुर संग्राम में दशरथ को कैकई के रण कौशल ने ही विजयी बनाया था तथा मांगार्गी, मैत्रयी, विद्योतमा आदि के रुप में नारी सम्मानीय है । आदर्श नारी का समाज में सर्वोच्च स्थान रहा है। समाज तथा देश की कल्याणकारिणी के रुप में वह सम्मान पाती रही है। वीर व साहसी पुत्रों की जननी होने पर उसे वीर प्रसूता कहा जाता है लेकिन परतंत्रता के साथ नारी का पतन प्रारंभ हुआ। उसकी सेवा भावना पुरुष के लिए दासी का पर्याय बनकर रह गई और वह घर की चारदीवारी में कैद कर दी गई। सभ्यता के आरंभ से ही पुरुष ने अपने शारीरक बल के गुमान पर महिलाओं के ऊपर रौब जमाया हुआ है। इसी के बल पर परदा, दहेज और सती प्रथा जैसी रुढ़ीवादी विचारधाराएं समाज में विद्यमान हैं। इसमें कोई शक नहीं कि बतौर मां, बहन और बेटी महिला का महत्वपूर्ण किरदार है किंतु बात जब जन अधिकारों की आती है तो वे उसके पास नहीं हैं। यह सब इसलिए ही है कि पुरुष महिलाओं को बराबर का भागीदार नहीं बनाना चाहता। महत्वपूर्ण मसलों जैसे जायदाद की बांट और राजगद्दी प्राप्ति के मामलों में लड़कों को ही प्राथमिकता मिलती है। शादी के बाद उसका मां-बाप की जायदाद में से हिस्सा समाप्त मान लिया जाता है। उसके नाम के आगे पति के नाम का उपनाम लग जाने के परिणाम स्वरुप उसकी रही सही पहचान भी समाप्त हो जाती है। मुस्लिम समाज के बारे में कहा जाता है कि पुरुषों का वर्चस्व बहुत ही ज्यादा है। वे चार पत्नियां रख सकते हैं, तीन बार तलाक-तलाक-तलाक शब्द का उपयोग करने पर अपनी पत्नी को तलाक दे सकते हैं। कुछ देशों में तो वे मतदान के अधिकार से भी वंचित है। न्यायालयों में उसकी गवाही भी मान्य नहीं होती। कुछ क्षेत्रों में ते उसके साथ दूसरे दर्जे के नागरिकों वाला बर्ताव होता है। मगर मुस्लिम बुद्धिजीवियों का दावा है कि स्त्री-पुरुष अनुपात उनके धर्म में बराबर है, दहेज के लिए हत्याएं भी नहीं होतीं तथा पत्नियों को जलाकर मारा नहीं जाता। दूसरी तरफ अधिकतर मामलों में मादा बच्चे के जन्म पर खुशी नहीं मनाई जाती। यह भेदभाव जन्म से लेकर उसकी खुराक, शिक्षा एवं पालन पोषण तक रहता है। संयुक्त एवं रुढ़ीवादी परिवार की विचारधाराएं मादा भ्रूण हत्या का प्रमुख कारण रहीं हैं। सड़े गले संस्कारों के तहत बेटा मुक्ति का मसीहा बनकर जब तक चिता को आग नहीं देगा, आत्मा मुक्त नहीं होगी। बुढ़ापे का सहारा है। कुछ परंपराओं को मानने से भी भ्रूण हत्या दर में बढ़ौतरी होती है। भारत में परिवार की सहमति से की गई शादियों की सफलता प्रेम विवाह से की गई शादियों की सफलता दर से ऊपर है। प्रेम प्रसंग की असफलता भी भ्रूण हत्या का कारण बन सकती है। अवैध संबंध और बलात्कार जैसी कुरीतियां भी भ्रूण हत्या के प्रतिशत को बढ़ाने में सहायक हैं। पूर्व में डॉक्टरों का व्यवसाय समाज की सेवा के लिए जाना जाता था किंतु अब इसके अभिप्राय बदल गए हैं। जिसके लिए रुढ़ीवादी समाज ही जिम्मेदार है। किसी समय डॉक्टरों को भगवान का रुप मानकर पूजा जाता था। गरीबों और मरीजों का इलाज ही उनका मिशन होता था। आजकल डॉक्टर भौतिक सुख-सुविधाओं और संपत्ति के दूत का काम कर रहे हैं व धन कमाने की लालसा में भ्रूण हत्या जैसे जघन्य अपराधों में शामिल हो रहे हैं । सरकारें तो इस सामाजिक बुराई को समाप्त करने में सहयोग देने वालों को नई-नई सुविधाएं दे रही हैं। एक तरफ भारत सरकार का बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ अभियान है, वहीं दूसरी ओर एक ऐसी डॉक्टर कानून की गिरफत में फंसी है जो चलती कार में भ्रूण हत्या का कारोबार चला रही थी। भ्रूण हत्या जैसे जघन्य अपराध को रोकने के लिए सामाजिक ताने-बाने में फंसी रुढ़ीवादी सोच बदलने के लिए धर्म गुरुओं और धार्मिक चैनलों का योगदान मील का पत्थर साबित हो सकता है। संयुक्त परिवार की विचारधारा गांवों व शहरों में लगभग समाप्त हो चुकी है। जबकि गांवों में जमीन कम होने की वजह से ग्रामीण रोजगार की तलाश में शहरों की ओर पलायन करते हैं व शहरों में न्युक्लियस परिवार पद्धति पाई जाती है, जहां शादी के बाद बच्चे अलग स्वतंत्र जीवनयापन के लिए चले जाते हैं। संयुक्त परिवारों की टूटन के बाद बेटा मां-बाप की सेवा कर पाएगा यह विचारणीय पक्ष समाज के सामने लाना आवश्यक है। भ्रूण हत्या के मामले में कानूनी खामियां दूर करके इसे और अधिक सख्त बनाना भी बहुत जरुरी है। भ्रूण हत्या में संलिप्त दोषियों के लिए सख्त से सख्त सजा का प्रावधान व पुरुषों और महिलाओं के अनुपात में बराबरी लाने में सहायक नागरिकों के लिए पुरस्कार ही आज के समय की मांग है।