गांधीजी न तो एक व्यक्ति थे और न एक विचार, अपितु वह विचारों का एक समूह थे । एक ऐसे व्यक्ति जिसने समाज की चिंता के हर पक्ष को छूआ और चिंतन की असीम गहराई तक पहुंचे। यही कारण है कि उन्होंने सामाजिक, आर्थिक व धार्मिक सभी क्षेत्रों से संबंद्ध विचार प्रस्तुत किए, जिन्हें समग्र रुप से गांधीवादी दर्शन कहा जाता है। शरीर पर एक धोती, हाथ में लाठी, सादा जीवन तथा उच्च विचार संबंधी सिद्धांत, इसी के बल पर उन्होंने हमारी दुनिया बदल दी। आइनस्टाइन ने कहा था—आने वाली पीढ़ियों को यकीन नहीं होगा कि गांधी जैसा हांड-मास का जीता-जागता आदमी दुनियां में था लेकिन वर्तमान काल की एकमात्र महाशक्ति संयुक्त राज्य अमेरिका के शासक राष्ट्रपति बराक ओबामा की ओर से बापू गांधी के साथ भोजन करने की अपनी इच्छा प्रकट करने से राष्ट्रपिता के विचारों को विश्व स्वीकारोक्ति की धारणा निरंतर बलवति बनी हुई है। अपने सदव्यवहार के बल पर वे अपने कट्टर विरोधियों का दिल जीतने में सफल हो जाते थे। दक्षिण अफरीका के तानाशाह जनरल स्मट्स ने गांधीजी को अपने कक्ष में बुलाया और कहा – तुम्हें रिहा किया जाता है। गांधी मुस्कराए और स्मट्स को एक छोटा सा पैकेट उपहार में दिया। स्मट्स ने पूछा -- यह क्या है – बम है क्या ? जब स्मट्स ने पैकेट खोला तो भीतर से एक जोड़ी सैंडिल निकली। यह सैंडिल गांधीजी ने उसी जेल में रहकर बनाई थी, जिस में स्मट्स ने उन्हें कैद किया था। कई साल बाद एकबार गांधीजी को अपने जन्मदिन पर स्मट्स का एक पत्र मिला। पत्र में लिखा था, मैने कई गर्मियों में यह सैंडिल पहने, फिर भी मुझे महसूस होता है कि मैं इतने महान व्यक्ति के बनाए जूते पहनने के लायक नहीं हुं। गांधी देश को नैतिक ताकत बनाना चाहते थे। यही नैतिक ताकत वैश्विक शक्ति बनते भारत को नई पहचान दे सकती है। गांधीजी के अनुसार श्रम के बगैर संपदा, आत्मा के बगैर आनंद, मानवता के बिना विज्ञान, चरित्र के बगैर ज्ञान, सिद्धांतों के बगैर राजनीति, नैतिकता के बगैर व्यापार और त्याग व बलिदान के बिना पूजा-अर्चना जीवन के सात जघन्य महापाप हैं। दिल और हाथ की शिक्षा, स्वच्छ जगह पर ईश्वर का वास, लालसा बुरी है संपदा नहीं और पुरुषों के लिए श्रंगार न करें, गांधीजी के चार ऐसे विचार हैं जो आपकी जिंदगी को निखार सकते हैं। गांधीजी यह मानते थे कि इतिहास में जो कभी नहीं हुआ वह भी हो सकता है। अहिंसा से स्वराज्य पाकर मिसाल कायम करने वाले नायक गरीबों के अधिक करीब थे। वे बार-बार गांवों को अपने पैरों पर खड़े करने की बात कहते थे। गांधीजी पूंजीपतियों को पूंजी का न्यासी मात्र मानते थे। ज्यादा से ज्यादा कामगारों को रोजगार में लगाए जाने के पक्षधर थे। ग्रामीण सर्वोदय गांधीजी का महान आदर्श था, सर्वोदय का अर्थ है व्यक्ति, समाज और देश सभी का सर्वोन्मुखी विकास । कुटीर तथा ग्राम उद्योगों को वे निर्धणता की रामबाण औषधि मानते थे। गांधीजी की सर्वोदय योजना के प्रमुख बिंदु हैं—
आत्मनिर्णय का लक्ष्य रखते हुए विभिन्न उद्योग-धंधों का क्षेत्रीय विकास ।
विशाल उत्पादन के दोषों के निवारण के लिए यंत्रीकरण का न्यूनतम उपयोग।
संपत्ति के वितरण में कम से कम विषमता और
राष्ट्रीय महत्व के बड़े उद्योगों का सार्वजनिक नियंत्रण ।
खाद्य समस्या पर विचार देते हुए वे ऐसे सुझाव देते हैं –सीमित उपभोग, अनाज की चोर बाजारी रोकना, सिंचाई सुविधाओं का विस्तार, निर्यातों पर नियंत्रण इत्यादि। प्रस्तुत हैं उनके जीवन के प्रेरक प्रसंग और विचार जो आज भी जरुरी और प्रासंगिक हैं।
गांधीजी का सत्याग्रह सत्य और अहिंसा पर आधारित था। यह थोरों, एमर्सन और टॉल्सटॉय के विचारों से प्रभावित था। सत्याग्रह का शाब्दिक अर्थ सत्य का पकड़ना था। गांधीजी इस बात से चिंतित थे कि सत्याग्रह को कैसे निष्क्रिय प्रतिरोध से अलग किया जाए क्योंकि सत्याग्रह एक अलग तकनीक पर आधारित था जिसमें उपवास, हिजरत, बंदी तथा हड़ताल प्रमुख था। मुस्लिमों द्वारा एक व्यवसाय संघ की मांग पर 1893 ई. में गांधीजी दक्षिण अफरीका के ट्रांसवाल की राजधानी प्रिटोरिया पहुंचे। थोरों के लेख सिविल डिसओबिडियंस से प्रभावित होकर उन्होंने 1909 ई. में लियो टॉससटॉय से पत्राचार शुरु किया। जिनके किंगडम ऑफ गॉड इज विदिन यू से गांधीजी काफी प्रभावित थे। 1901 ई. में जोहांसबर्ग वकालत के लिए गए। उनके द्वारा डर्बन के नजदीक एक फीनिक्स फार्म भी स्थापित किया गया। सन 1907 ई. में जब ट्रांसवाल विधायिका ने सभी एशिया निवासियों को पंजीकरण कार्ड की अवधारणा का कानून पारित किया तो इसके विरोध में उन्होंने अभियान चलाया, जिसे सत्याग्रह का नाम दिया गया। उनके द्वारा 1910 ई. में इस आंदोलन में भाग लेने वालों के लिए टॉल्सटॉय फार्म की स्थापना की गई। उन्होंने अपने विचारों का प्रसार इंडियन ओपिनियन से शुरु किया जिसकी स्थापना उन्होंने 1903 ई. में की थी। पुरुषों, महिलाओं तथा बच्चों के जिस शांतिपूर्ण मार्च का नेतृत्व उन्होंने ट्रांसवाल तक किया था, वह विलक्षण था। शुरु की दमनकारी नीति के बाद अंतत: सरकार को झुकना पड़ा। गांधी-स्मट्स समझौते जून, 1914 के द्वारा समस्या का समाधान हुआ जिसके बाद गांधी भारत लौटे। स्वदेश लौटते समय गांधीजी ने इंग्लैंड में एक हस्पताल ईकाई स्थापित की जिसके लिए वापस आने पर उन्हें केसर-ए-हिंद का स्वर्ण पदक दिया गया। भारत आने के बाद उन्होंने अहमदाबाद के पास साबरमती के तट पर सत्याग्रह आश्रम स्थापित किया। अगले दो वर्ष 1916-18 ई. के दौरान उन्होंने चंपारण बिहार तथा खेड़ा गुजरात में किसान आंदोलन संगठित किए। रोलट एक्ट, जलियांवाला बाग नरसंहार तथा खिलाफत द्वारा उत्पन्न परिस्थिति में कांग्रेस ने गांधीजी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन शुरु किया। 1922 ई. में एक मुकदमें में उन्हें 6 साल का कारावास हुआ लेकिन 1924 ई. में उन्हें छोड़ दिया गया। अगले पांच वर्षों तक गांधीजी द्वारा रच्नात्मक कार्यक्रमों पर अपना ध्यान केंद्रित किया गया - कताई तथा खादी, हिंदु-मुस्लमान एकता, मद्य निषिद्ध, ग्रामीण सुधार इत्यादि। गांधी-इरविन समझौते द्वारा अस्थायी तौर पर उनके द्वारा शुरु किया गया सविनय अवज्ञा आंदोलन समाप्त हो गया तथा इसी बीच इंग्लैंड में दूसरे गोलमेज अधिवेशन में उन्होंने भाग लिया। स्वदेश आने पर पुन: उन्होंने आंदोलन की शुरुआत की लेकिन फिर से जेल भेज दिए गए। अगस्त 1932 ई. में कम्यूनल अवार्ड की घोषणा के समय उनके द्वारा अनशन शुरु किया गया तथा पूना पेक्ट पर हस्ताक्षर किए गए। जेल से छूटने के बाद उन्होंने एक पत्रिका हरिजन 1933 ई. शुरु की जिसने उनके पहले समाचार पत्र यंग इंडिया 1919-32 ई. का स्थान ले लिया। उन्होंने 1934 ई. में औपचारिक रुप से कांग्रेस छोड़ दी लेकिन उनकी मृत्यु तक उन्हें पार्टी का प्रेरणस्रोत माना जाता रहा। उनके द्वारा वर्धा के पास सेवाग्राम में एक नए आश्रम की स्थापना की गई जिसमें अपने रचनात्मक कार्यक्रमों तथा अन्य कार्यों के अतिरिक्त प्राथमिक शिक्षा की सक्रिय योजना भी शामिल थी। 1940 ई. में उन्होंने अल्प समय के लिए कांग्रेस का नेतृत्व संभाला लेकिन अगले वर्ष छोड़ दिया। स्वतंत्रता प्राप्ति की उनकी मांग ने एक नारे का रुप ले लिया लेकिन अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन शुरु करने से पहले ही उन्हें जेल भेज दिया गया। जब वे पूना के आगाखान महल में बंदी थे, उन्हीं दिनो उनकी पत्नी कस्तूरबा का निधन हो गया। 1944 ई. में जेल से छूटने के बाद वे राजनैतिक समझौते के लिए जिन्ना के साथ अर्थहीन बातचीत में लगे रहे। सन 1945 ई. के बाद कांग्रेस के नेताओं पर गांधीजी का प्रभाव बहुत कम हो गया लेकिन उनकी जन्म तिथि 2 अक्तूबर, 1869 से 30 जनवरी, 1948 ई. को नाथूराम गोडसे की गोली से शहीद होने तक उनका पूरा का पूरा दर्शन भारतवासियों को समर्पित रहा ।