भारतीय जनता पार्टी के
साथ नजदीकियों के विवाद के चलते 29.02.2016 को दिल्ली पुलिस के कमिश्नर पद से
सेवानिवृत्त श्री बी.एस. बस्सी ने अपने विचार प्रकट करते हुए यह सुझाव दिया है कि विश्व के एक पुराने कारोबार
वेश्यावृत्ति को वैध बना देना चाहिए। हालांकि दिल्ली के रेडलाइट इलाके में पुलिस
की ओर से कार्रवाई न करने के प्रश्न को वे टाल गए। प्रश्न के उत्तर में उन्हें यह
मानना पड़ा कि वेश्यवृत्ति अनैतिक और गैरकानूनी है फिर भी
सच्चाई बताते हुए उन्होंने कहा कि गैरकानूनी तरीके से यह कारोबार करने वाली महिलाओं
को अत्याचार और शोषण का शिकार होना पड़ता है। बस्सी जी पूरी जिंदगी पुलिस से जुड़े
रहे हैं और निश्चित ही उन्होंने अपने अनुभवों के आधार पर यह सच्चाई बयाँ की है।
नावलकार एवं पत्रकार श्री खुशवंत सिंह ने भी एक समय विचार दिया था कि जितना आप देह
व्यापार को दबाने का प्रयास करेंगे मासूम महिलाओं के प्रति अपराध का आंकड़ा उतना
ही अधिक बढ़ेगा। यह एक कड़वी हकीकत है कि कुछ पुरूषों का तो बिन महिला मनोरंजन हो
ही नहीं सकता। मगर जब सामाजिक दायित्व निभाने की बात आती है तो अपना पल्ला झाड़ा
या कोई सुझाव दिया और एक तरफ। महान दार्शनिक प्लैटो तो दार्शनिक राजा तैयार करने
की प्रकिया के जोश में यह सुझाव भी दे गए कि दार्शनिक राजा की एक महिला से शादी एक
वर्ष से अधिक नहीं चलनी चाहिए। एक वर्ष बाद उसको बीवी से अलग हो जाना चाहिए। ताकि राजा
को मालूम ही न हो कि उसके बीवी बच्चे कौन हैं। राजा न तो संतान मोह में पड़ेगा और
न ही अपने परिवार के लालच को पूरा करने के लिए भ्रष्टाचार में लिप्त होगा। उस समय
प्लैटो के इस विचार का यह कहकर विरोध हुआ था कि वे समाज में वेश्यावृत्ति के
केंद्र खोलना चाहते हैं। यह भी हकीकत है कि कोई भी महिला अपनी मर्जी से इस कारोबार
से नहीं जुड़ती। मौकापरस्त समाज ही उन महिलाओं को इस व्यवसाय की ओर धकेलता है। मीलों
तक का सफर तय करके अपनी इस हसरत को पूरा करने के लिए पुरूष एक स्थान से दूसरे
स्थान तक जाते हैं। मानव तस्करी का सहारा लिया जाता है। रेलवे स्टेशनो, बस अड्डों,
हस्पतालों, पार्कों, अन्य सार्वजनिक स्थलों और गरीब बस्तियों में दलाल सक्रिय रहते
हैं तथा किसी भी महिला की मजबूरी का पता चलते ही वेश्यावृत्ति के कारोबार में
धकेलने का प्रयास आरंभ हो जाता है। अपने सेवाकाल के आरंभिक दिनों में मैने जिस कारखाने में काम करना आरंभ किया था उसके मालिक
की आयु थी लगभग 70 वर्ष। अपनी बातचीत में वे अकसर बताया करते थे कि 1947 से पूर्व अपना
काम निपटाकर रोजाना सायंकाल अमृतसर से लाहौर मुजरा देखने जाया करते थे। कुछ समय के
लिए मैं होटल व्यवसाय से जुड़ा तो पता चला कि देह कारोबारी महिलाएं चाहे पुलिस हो
या दलाल या उनके रिश्तेदार पता नहीं किस-किस के अत्याचार का शिकार होती हैं।
तवायफों, बार बालाओं और मनोरंजन के कारोबार से जुड़ी महिलाओं को भूखा मारने के लिए
नित नए-नए हथकंडे अपनाए जा रहे हैं फिरभी मनोरंजन की खातिर न उनका उपयोग बंद हुआ न
होगा। अपनी युवा अवस्था में मैने बॉलीवुड की एक फिल्म देखी थी जिसका नाम था हंसते
जख्म। इस पिक्चर की नायिका जोकि एक पुलिस अधिकारी की बेटी है को बाल्यावस्था में
एक अपराधी उठाकर ले जाता है और देह व्यापार के कारोबार में डाल देता है। एक मामले
में वह पकड़कर पुलिस स्टेशन लाई जाती है। इंस्पैक्टर(सत्येन कपूर) – क्या काम करती
हो ? नायिका - “जिस्म बेचती हुं।” कहानी फिल्मी अंदाज में
आगे बढ़ती है। इंस्पैक्टर - कोई अच्छा काम क्यों
नहीं करती ? नायिका - इंस्पैक्टर साहब क्या आप मुझे अपनी
बीवी बनाना चाहेंगे ? अपने फिल्मी
पिता (बलराज साहनी)पर भी सवाल दागती है - क्या आप मुझे अपनी बेटी बनाएंगे ? लंबी वार्तालाप के बाद
पुलिस के समझाने का असर होता है और नायिका टैक्सी ड्राइवर का व्यवसाय आरंभ कर देती
है। पर क्या वास्तव में समाज और पुलिस इन पर अत्याचार बंद करेंगे। उत्तर - कभी
नहीं। हाँ फैशन के तौर पर पश्चिमी सभ्यता के प्रभावस्वरुप कोई अन्य विवादों को हवा
जरुर दे दी जाती है जबकि यह भी एक सत्य है कि समाज को बुराई परोसने में सबसे
ज्यादा हाथ सामराज्यवादियों(पश्चिमी) का है। निर्भया हत्याकांड जैसे अनेक बलात्कार
हो जाते हैं। कानूनी एजेंसियों के छदम नाम से लड़कियों से दुरव्यवहार होता है तथा
कभी-कभी तो पुलिस वाले ही अपनी इच्छापूर्ति के लिए गुनाहों का हिस्सा बन जाते हैं।
अब बात आती है बस्सी जी के विचारों की। उनका यह विचार देने का मतलब केवल यही है कि
महिलाओं पर हो रहे अनैतिक अत्याचारों को रोका जाए । भारत सहित विश्व के अनेक देशों
में देह व्यापार की सीमित अनुमति है(किसी पॉकेट में, खामोश अनुमति या कोई विशेष
सीमित क्षेत्र) कुछ देशों के श्रम कानूनों में तो बाकायदा श्रमिक की परिभाषा में
सैक्स वर्कर भी शामिल हैं। हाँ वेश्यालय खोलने या दलाली के मामलों में विशेष
सतर्कता बरती जाती है। इस सीमित अनुमति से कारोबार में लगीं कामगारों को कानूनी
संरक्षण मिलता है तथा सामाजिक सुरक्षा स्वरुप सभी सेवानिवृत्ति लाभ भी। जिससे उन्हें
स्वास्थ्य से संबंधित सुविधाएं भी मिल पाती हैं। पुलिस उन पर अत्याचार नहीं कर
सकती। उल्टे अगर उनके साथ कोई नाजायज करना चाहे तो वे अपनी शिकायत लेकर पुलिस के
पास जा सकती हैं। बड़ा फायदा तो यह होता है कि बच्चों को गैरकानूनी तरीके से इस
व्यवसाय में लाने वालों के विरुद्ध कानूनी शिकंजा कसा जा सकता है। वैध कर देने से
इस पर खर्च होने वाला सरकारी बजट बचेगा। लाइसैंस देने पर फीस एवं सुविधा का उपयोग
करने पर वसूले जाने वाले कर से सरकार की आमदन बढ़ेगी जिसे मानव तस्करी को रोकने के
लिए खर्च किया जा सकता है। इस व्यवसाय की सीमित अनुमति देने के समर्थकों का दावा
है कि विश्व के जिन क्षेत्रों में इस व्यवसाय को शर्तों के साथ लागु किया गया है
वहां बलात्कारों का आंकड़ा 39 प्रतिशत नीचे गिर गया है क्योंकि अधिकतर जरुरतमंदों
की काम वासनाएं पैसा खर्च करके पूरी हो जाती हैं । वेश्यावृत्ति को कानूनी जामा न
पहनाया जाए उनके लिए दलीलें देने वालों की दलीलें भी कम प्रभावशाली नहीं हैं। उनका
मानना है कि यह महिलाओं और पुरूषों के प्रति अपराध है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन
की रिपोर्ट अनुसार आर्थिक कारणों से ही कोई इस व्यवसाय को चुनता है अपनी इच्छा से
नहीं और यह एक सामाजिक बुराई है। यह मानव तस्करी रोकने में सक्षम नहीं है और यह
रेडलाइट इलाकों में बढ़ोतरी लाने का कारक बन सकता है । चाहे एक सप्ताह, दो सप्ताह
या तीन सप्ताह में सैक्स वर्कर का चैकअप होता है फिर भी चैकअप अवधि के दौरान अगर
किसी सैक्स वर्कर को एचआईवी या एड्स हो जाता है तो वह सैक्स वर्कर आगामी चैकअप से
पूर्व सैंकड़ों ग्राहकों को बीमारी का शिकार बना चुकी होगी। देह व्यापार को वैध
बनाना, गैर आपराधिक बनाना दलालों, मानव तस्करों और सेक्स उद्योग के लिए उपहार है ।
इससे सेक्स तस्करी को बढ़ावा मिलता है। गुप्त, गुपचुप, गैरकानूनी और स्ट्रीट वेश्यावृत्ति
को बढ़ावा मिलता है और बच्चों में देहव्यापार की प्रवृत्ति को भी बढ़ावा मिलता है।
सबसे बड़ी हानि यह है कि महिलाओं के पास और कोई विकल्प नहीं बचता। इस बुराई में
फंसे रहना उनकी नीयती बन जाती है। गैरकानूनी तरीके से वेश्यावृत्ति के कारोबार में
महिलाओं को लाने के लिए प्रमुखतह: पुरुष ही जिम्मेदार है, प्रकार चाहे कोई भी हो। वैधता
नहीं मिलने से समाज की नजरों में यह हमेशा दूसरे दर्जे की नागरिक ही बनी रहती हैं।
किसी समय में राजेश खन्ना की एक पिक्चर आई थी दुश्मन जिसमें नायक को एक ट्रक
ड्राईवर दिखाया गया है। एक रुट पर चलते हुए वह कोठे में गाना सुनने जाता है। मगर
नायक तो नायक ठहरा, वह गाना सुनता भी है और गाता भी। मौज-मस्ती के बाद जैसे ही वह
सड़क पर निकलता है तो सुबह-सुबह अपने खेतों की ओर जा रहा एक किसान उसके ट्रक के
नीचे आकर मर जाता है। सजा के तौर पर उस परिवार के भरणपोषण का जिम्मा फिल्म के नायक
को सौंप दिया जाता है। अंत में नतीजा यही निकलता है कि इस व्यवसाय के लाभ एवं हानि
दोनो ही हैं। अगर बस्सी जी का सुझाव मान कर सरकार इस कारोबार को वैध करने का
निर्णय लेती है(जोकि संस्कारों की दुहाई देने वाले वर्तमान हालातों में संभव नहीं
लगता) तो इसे सीमित स्वीकृति ही मिले। मगर देह का शोषण करने वाले अपराधियों के लिए
भी विशेष प्रकार की सजा का प्रावधान करने की आवश्यकता है। जो अपराधी अनैतिक तरीके
से बलात्कार, महिला तस्करी और महिलाओं को देह व्यापार में झोंकने वाले संगीन अपराधों
में पकड़े जाएं उनकी शादी रेडलाइट एरिया में रह रही महिलाओं से करा दी जाए। सरकार
उनके पुनर्वास की व्यवस्था इस तरीके से करे कि समाज के सामान्य लोग यह जान न पाएं
कि उनका अतीत क्या है। हाँ उनके लिए एक शर्त भी रखी जाए कि वे औलाद के रुप में कम
से कम तीन लड़कियां पैदा करें जिनकी पढ़ाई और उपयुक्त रोजगार उपलब्ध कराने की
जिम्मेदारी सरकार की हो। इससे अपराध करने से पूर्व अपराधी सौ बार सोचेंगे। अगर यह
नुस्खा काम कर जाए तो समाज के लिए बहुत ही अधिक फलदायी हो सकता है। लड़के-लड़कियों
की जनसंख्या का अनुपात भी बराबर, रेडलाइट इलाकों की समाप्ति और बस्सी जी का सुझाव
भी अधिक कारगर ।