Man is Born Free . But Everywhere he is in chains .
A positive way should be selected to earn maximum fruits of these chains .
मानव जन्म से स्वतंत्र है परंतु जीवनभर बंधनों में रहता है। कुटुंब, गोत्र, धर्म, जाति, समाज, नियम, विनियम, परंपराएं और नियंत्रण एवं संतुलन तंत्र के रुप में उसके लिए अनेक बंधन हैं। समाज के नियमों की अवहेलना करने से मानवता खतरे में पड़ सकती है। समाज कुदरत के नियमों अनुसार चलते हुए परिवर्तनो को अपने में समाता रहता है। कुछ विशिष्ट हस्तियां नियमों व परंपराओं को झटके में बदलना चाहती हैं। उन्हें निश्चित तौर पर कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। एक कहावत भी है- कि पर्वत पर जल्द चढ़ने की हड़बड़ाहट में तेजी से चढ़ने वाले हमेशा गिरते हैं । मानना है कि परिवर्तन कुदरत का नियम है परंतु समाज में परिवर्तन लाने के लिए उच्च श्रेणी के संयम और कठिन परिश्रम की दरकार रहती है। भगवान राम, कृष्ण. महात्मा बुद्ध, जीसज क्राइसट, गुरु नानक देव जी और महात्मा गांधी इत्यादि महापुरुष अपने सिद्धांतों पर दृढ़ रहकर ही समाज को प्रभावित करने में सफल रहे।
परिवर्तन के दौर से गुजरते हुए मानव जाति को उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ेगा ही। भारत भी एक उदाहरण है। पुरातन काल में भारत भी एक महान समुद्रीय एवं उपनिवेशी शक्ति थी। प्रतिष्ठित भारतीय एवं विदेशी इतिहासकारों के अनुसंधानों के अनुसार प्राचीन भारतवासियों ने भारत की सीमाओं को बढ़ाया जो सुदूर पूर्वी देशों तक भी पहुंच जाती थीं। निम्नलिखित देश जैसे वियतनाम, जावा, सुमातरा, बोश्नियां, कमबोदिया, सिलोन, बर्मा, मलाया इत्यादि में भारतीय सभ्यता के जोत मिलते हैं। इतिहास गवाह है कि महाराजा रंजीत सिंह के सिपहासलार हरि सिंह नलुआ का नाम लेकर अफगानी पठानों के बच्चों को उनकी माताएं यह कहकर डराती थीं कि सो जा, सो जा नहीं तो हरि सिंह नलुआ आ जाएगा। जब अंग्रेजों और सिख सैनिकों के बीच युद्ध आरंभ होने को था तो दोनो सेनाओं का आमना-सामना होते ही विरोधी टीमों के सैनिक पंजाब की सेना के ताकतवर शरीर को देखकर तो घबराए ही परंतु जब सिख सेना ने दांत साफ करने के लिए पेड़ तोड़-तोड़ कर दातुन करना आरंभ किया तो अंग्रेज सैनिक बहुत ही खौफजदा हो गए और आपस में गुफतगू करने लगे कि जो सैनिक पेड़ों को खा-खाकर उनका यह हाल कर रहे हैं वो सैनिक जब हमला करेंगे तो अंग्रेजों का क्या हाल होगा। समय बीतने के साथ साथ प्रशासकों की कमजोरियों को भांपकर साम्राज्यवादी ताकतों ने प्रयास किए व भारत को गुलाम बनाने में सफल रहे।
स्वतंत्रता उपरांत भारतीयों ने ऊर्जा और शक्ति से नए युग की शुरुआत की है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के पास प्रत्येक क्षेत्र में भारत के बढ़ते हुए प्रभाव को स्वीकारने के सिवाए अन्य कोई विकल्प शेष नहीं बचा है।
विश्व परिवर्तनों को ध्यान में रखते हुए 1990 की दशक अवधि से खुली बाजार व्यवस्था का लाभ उठाकर भारतीय, सूचना प्रौद्योगिकी के साधनों से नित नई उपलब्धियां हासिल कर रहे हैं। इस क्षेत्र में भारतीयों का योगदान नीचे से ऊपर तक बढ़ रहा है। विचार व्यक्त किए जा रहे हैं कि आने वाले वर्षों में कुल निर्यात के माध्यम से अर्जित राजस्व में ¼ हिस्सा साफ्टवेयर निर्यात का होगा।
भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी कंपंनियों में दूसरे देशों के मुकाबले उच्च दर्जे का समन्वय है। सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र के भारी भरकम व्यक्तित्व व मानवबल दोनों की ही भारत में उपलब्धता है। संयुक्त राज्य अमेरिका(USA) जैसे विकसित देशों में बाजार उपलब्ध कराने के लिए साफ्टवेयर कंपंनियों के लिए अप्रवासी भारतीय महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। श्रम मंत्रालय सामाजिक सुरक्षा क्षेत्र का समन्वयक है और मालिक-नौकरों में अच्छा रिश्ता बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान देता है। यह कर्मचारियों को रोजगार और व्यापारियों को कर्म बुजाएं उपलब्ध कराने में सहायता करता है। सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र विश्व समुदाय के लिए मुख्य रोजगार प्रदाता की भूमिका संभालने को तैयार हो चुका है। बदलते युग के परिवेश में श्रम मंत्रालय, नियोजक व नियोजितों और अन्य सभी संबंधितों को प्रण लेना चाहिए कि हम सभी भारतीय समाज की सफलता के लिए मिलकर काम करेंगे। भारतीय समाज के बंधनों का उपयोग भारतीयता के लाभ व बुद्धिपलायन के अभिशाप को रोकने के लिए होना चाहिए। भारत के लिए यह बहुत ही आवश्यक है कि शीत युद्धकाल की एक महाशक्ति और उसके समर्थकों की असफलता के कारणों का विशेष तौर पर अध्ययन किया जाए। यू.के के अलिखित संविधान से भी सीख लेते हुए लिखित संविधान में उपलब्ध अच्छी-अच्छी बातों के साथ-साथ बंधनों स्वरुप उपलब्ध स्वस्थ परंपराओं का उपयोग करके एवं नए और पुराने में समन्वय बैठाकर परिवर्तन लहरों का लाभ उठाना चाहिए। विकास क्रम में आ रही कठिनाइयों को दूर करने के उद्देश्य से विशेष कार्यक्रमों एवं सेमीनारों के आयोजनों में निरंतर वृद्धि होते रहना बहुत ही आवश्यक है। मेरा विश्वास है कि कठिन परिश्रम व सरकार, कर्मचारियों, स्वयंसेवियों, मालिकों, पारिवारिक एवं धार्मिक सकारात्मक बंधनो और कॉर्पोरेट जगत के परिश्रम एवं उसके ऊपर जरुरी विधिक नियंत्रण से भारत विश्व में अग्रिम पंक्ति के देशों में उस उच्च महत्वपूर्ण स्थान पर पहुंच सकता है यहां से संपूर्ण विश्व का मार्गदर्शन संभव है।