टी.वी, रेडियो, दूरसंचार, मौसम की भविष्यवाणी करने, अंतरराष्ट्रीय टेलीफोन संवादों, सुरक्षा उपायों, जासूसी करने, दूरस्थ ग्रह-नक्षत्रों का अध्ययन करने के लिए कृत्रिम अपग्रह अंतरिक्ष में भेजे जाते हैं। संसार का पहला उपग्रह स्पुतनिक-1 था। इसे 4 अक्तूबर, 1957 को सोवियत संघ से अंतरिक्ष में छोड़ा गया था। आज अंतरिक्ष में बहुत से उपग्रह हैं। यह उपग्रह आज बहुत से लाभकारी काम कर रहे हैं। संचार उपग्रह रेडियो संकेतों को एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप में भेजते हैं जिससे विश्वभर में टी.वी ओर रेडियो के प्रसारण संभव होते हैं। वैज्ञानिक उपग्रह अंतरिक्ष के वातावरण की जांच पड़ताल करते हैं और सूर्य, ग्रह तथा तारों का पर्यवेक्षण करते हैं। मौसम संबंधी उपग्रह धरती के मौसम से संबंधित फोटोग्राफ लेते हैं और वापस धरती पर भेजते हैं। इससे मौसम संबंधी भविष्यवाणियां अधिक सही निकलती हैं। उपग्रह समुद्र यात्रा एवं वायुयात्रा में सहायक होते हैं। कुछ उपग्रह धरती में खणिज पदार्थों की जानकारी देते हैं। यह उपग्रह समुद्र में तेल और मछली वाले स्थानो की सूचना भी देते हैं। एक ही प्रकार की सेवाएं देने वाले उपग्रह एकउद्देशीय और अनेक प्रकार की सेवाएं देने वाले बहुउद्देशीय उपग्रह कहलाते हैं। भारत उन गिने-चुने देशों में शामिल था जिन्होंने मानव जाति और समाज की मूलभूत समस्याओं को हल करने के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के महत्व को अनुभव किया था और राष्ट्रीय लाभ के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के विकास के लिए पहल की। भारत ने शुरुआत में ही यह अनुभव कर लिया था कि अंतरिक्ष में देश के विकास की प्रक्रिया को गति देने की व्यापक क्षमता निहित है और यह ब्राह्मांड को समझाने के व्यापक अवसर भी उपलब्ध कराता है। तेजी से आर्थिक और सांस्कृतिक समृद्धि की ओर रुपांतरित हो रहे भारत के संदर्भ में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी को अनिवार्यता के रुप में देखा गया। भारत की इंडियन नेशनल सेटेलाइट सिरीज बहुउद्देशीय है जो घरेलू संचार व्यवस्था, मौसम संबंधी निरीक्षणों, रेडियो और टी.वी प्रसारण आदि कार्यों को राष्ट्रीय स्तर पर करती है। भारत ने अपना पहला कृत्रिम उपग्रह आर्यभट्ट अंतरिक्ष में प्रक्षेपित कर अंतरिक्ष शोधकार्यों में प्रवेश किया था। 1962 ई. में अंतरिक्ष वैज्ञानिक डॉ विक्रम साराभाई की अध्यक्षता में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति का गठन किया गया। इसने परमाणु ऊर्जा विभाग के अंतर्गत काम करना प्रारंभ किया। 21 नवंबर, 1963 को देश का पहला सांउडिंग रॉकेट नाइके-अपाशे(अमेरिका निर्मित) का प्रक्षेपण थुंबा से किया गया। दो चरणों वाला 715 किलोग्राम का यह रॉकेट 208 किमी की ऊंचाई तक गया। 1967 में अहमदाबाद में उपग्रह दूरसंचार भू-केंद्र स्थापित हुआ। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की स्थापना 1969 में की गई। भारत सरकरा द्वारा 1972 में अंतरिक्ष नीतियों और कार्यक्रम के निर्माण व क्रियान्वयन के लिए देश में अंतरिक्ष आयोग और अंतरिक्ष विभाग की स्थापना की गई। भारत ने अपना पहला बहुउद्देशीय संचार और मौसमी उपग्रह – 1बी 30 अगस्त, 1983 को अमेरिका के फलोरिडा स्थित केप केनवरल से सफलतापूर्वक भेजा था। 19 अप्रैल, 1975 ई. को आर्यभट्ट के रुप में पूर्व सोवियत संघ के बैंकानूर प्रक्षेपण केंद्र से प्रथम भारतीय उपग्रह का प्रक्षेपण कारमास नामक यान से किया गया था । क्योंकि भारत के पास श्रीहरिकोटा जैसा प्रक्षेपण स्थल नहीं था। इसलिए इसे सोवियत यूनियन से छोड़ा गया था। 360 किलो वजनी इस सेटेलाइट के पुर्जे बेंगलूरू के निकट पीन्या में जोड़े गए थे। महान खगोलविद आर्यभट्ट के नाम से छोड़े गए इस उपग्रह के नसीब में भी शुरुआती नाकामियां लिखी थीं। पांचवें दिन इस उपग्रह को पावर सिस्टम में गड़बड़ी के चलते बंद करना पड़ा। तब तक वह महत्वपूर्ण जानकारियां जुटा चुका था। आर्यभट्ट को भेजने का मकसद एकस्रे एस्ट्रानॉमी, एयरोनॉमिक्स और सोलर फिजिक्स के क्षेत्र की जानकारियां हासिल करना था। इसने सूर्य से परिवर्तित होने वाली गामा किरणों और न्यूट्रॉनों के संबंध में भी सूचनाएं जुटाई। 2, अप्रैल,1984 को पूर्व सोवियत यूनियन के यान सौयूज टी-11 के जरिए अंतरिक्ष में उड़े स्क्वाडरन लीडर राकेश शर्मा पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री बने। नासा अंतरिक्ष यान कोलंबिया से उड़ान भरकर 19 नवंबर, 1997 को कल्पना चावला पहली भारतीय महिला अंतरिक्ष यात्री बनी। अंतरिक्ष के अपने पहले मिशन के दौरान चावला ने धरती की 252 कक्षाओं में यही कोई 65 लाख किलोमीटर के करीब सफर किया, वह 375 घंटे से भी अधिक समय तक अंतरिक्ष में रहीं। 10 सितंबर, 2004 को जी.एस.एल.वी 01 से दुनिया के सबसे पहले शैक्षणिक उद्देश्यों वाले तथा दो करोड़ डॉलर लागत वाले एजुसेट जैसे भारी उपग्रह का प्रक्षेपण करके भारत ने एक सराहनीय छलांग लगाई। किसी भारतीय रॉकेट से छोड़ा जाने वाला यह सबसे भारी उपग्रह भी था। अंतरिक्ष विज्ञान क्षेत्र में निश्चय ही भारत की यह एक बहुत बड़ी छलांग थी बल्कि आधुनिक अंतरिक्ष विज्ञान का मानवहित में उपयोग और अंतरिक्ष उपग्रह प्रक्षेपण तकनीक में अच्छी महारत का भी यह एक अच्छा परिचय है। पी.एस.एल.वी एफ 01 की यों यह तीसरी उड़ान थी लेकिन पहली दो उड़ाने विकास क्रम की उड़ाने थीं। इसलिए व्यावसायिक एवं व्यापारिक दृष्टि से इसे पहली सफल उड़ान कहा जा सकता है। यान ने अपने साथ ले गए उपग्रह को ठीक उसी कक्षा में स्थापित कर दिया जिसमें उसे स्थापित किया जाना था। बीच में किसी सुधार संशोधन की जरुरत भी नहीं पड़ी। यह भी उल्लेखनीय है कि जी.एस.एल.वी 01 ने इस बार जिस उपग्रह को कक्षा में स्थापित किया वह उस समय तक का सबसे भारी 1950 किलो वजनी उपग्रह था। इस सफल प्रक्षेपण के साथ भारत के लिए उपग्रह प्रक्षेपण व उपग्रह निर्माण के व्यावसायिक क्षेत्र में भी रास्ते खुल गए। 22 अक्तूबर, 2008 को सुबह ठीक 6.22 बजे ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान पीएसएलवी-सी 11 भारत के सबसे प्रतिष्ठित अंतरिक्ष यान चंद्यान-1 को अपने साथ लेकर श्रीहरिकोटा के प्रक्षेपण स्थल से नारंगी धूएं के गुबार के साथ अंतरिक्ष के सफर को निकल पड़ा। भारतीयों के लिए दीवाली पर इसे अच्छा और कोई तोहफा नहीं हो सकता था। 400 करोड़ रुपए की लागत वाला यह रॉकेट संभवत: इस त्यौहार के स्वागत में छोड़ा गया उस वक्त तक का सबसे महंगा यान था। चंद्र अभियान ग्रहीय खोज और यहां तक मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ानों की तरफ भारत के मजबूत कदमों का एक प्रमाण है। चंद्रमा तक की 4,00,000 किमी की यात्रा, यह दिल्ली से न्यूयार्क के बीच की दूरी की तकरीबन 34 गुणा है। 18 मिनट के संघर्ष के बाद प्रक्षेपण यान ने चंद्रयान-1 को पृथ्वी की 36000 किमी की दीर्घकक्षा में सबसे उच्च और 250 किलोमीटर के सबसे निकट बिंदु पर स्थापित कर दिया। 386 करोड़ की कुल लागत, 720 दिन की अनुमानित अवधि, प्रक्षेपण के समय 1380 किलोग्राम वजन और 1.5 घनमीटर आकार और 11 वैज्ञानिक पेलोड(उपकरण) ले जाने वाला यह यान अब तक का सबसे बड़ा चंद्र उपग्रह है। 10 माह की ही अपनी अवधि में इस अभियान ने चांद पर पानी और हीलीयम-3 जैसी खोजों से परिणामों को खुशगवार बना लिया। पहले ही अभियान में लालग्रह पर दुनिया का अब तक का सस्ता भारतीय उपग्रह मार्स ऑर्बिटर अपने अभियान में सफलता पाकर काम कर रहा है। 05 जनवरी, 2014 की सफल उड़ान (मिशन जीएसएलवी-डी5) के माध्यम से भारत ने 36000 किलोमीटर की ऊंचाई वाली भूस्थिर/भू-समकालिक(जीएसओ) कक्षा में उपग्रह को स्थापित करने वाली क्षमता हासिल करली और पांच राष्ट्रों- अमेरिका, रुस, फ्रांस, चीन और जापान की क्लब में शामिल हो गया। भारत ने दो कार्यात्मक प्रणालियां स्थापित की हैं – इंडियन नेशनल सेटेलाइट प्रणाली जो दूरसंचार, टीवी प्रसारण और मौसम विज्ञान के लिए सेवाएं उपलब्ध कराती है तथा दूसरी इंडियन रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट जो प्राकृतिक संसाधन निगरानी और प्रबंधन के लिए उपयोगी है। दो उपग्रह प्रक्षेपण वाहनो का विकास किया गया है। पहला पोलर सेटेलाइट लाँच व्हीकल दूरसंवेदी उपग्रहों को ध्रुवीय कक्षा में प्रक्षेपित करता है तथा दूसरा जिओस्टेशनरी सेटेलाइट लाँच व्हीकल संचार और मौसम वैज्ञानिक उपग्रहों को 36000 किलोमीटर ऊंची भू-तुल्यकालिक स्थानांतरण कक्षा में स्थापित करता है। भारत ने दिनांक 28.03.2015 को पीएसएलवी-सी27(XL) के जरिए भारत इंडियन रीजनल नेविगेशनल सेटेलाइट सिस्टम(आईआरएनएसएस)-1डी(1425 कि.ग्रा वजन) का सफल प्रक्षेपण किया। पीएसएलवी-सी 27 ने प्रक्षेपण के 21 मिनट बाद उपग्रह को उसकी कक्षा में छोड़ दिया। यह पीएसएलवी का 28 वां सफल मिशन है। जिसके बाद देश स्वयं की नेवीगेशनल प्रणाली शुरु करने को तैयार है इससे पूर्व इस कार्य के लिए भारत संयुक्त राज्य अमेरिका पर निर्भर था। यह नेविगेशनल, ट्रैकिंग और मानचित्रण सेवा मुहैया कराएगा और इसका जीवन 10 वर्ष का होगा। इसरो ने आईआरएनएसएस गठन के लिए सात उपग्रहों के जिस समूह की योजना बनाई है उसमें यह चौथा होगा। एक बार सभी उपग्रह प्रक्षेपित होने के बाद आईआरएनएसएस अमेरिकी जीपीएस नेवीगेशनल प्रणाली के समकक्ष होगा। चार उपग्रह आईआरएनएसएस का काम शुरु करने के लिए काफी होंगे, बाकी तीन उपग्रह उसे सटीक एवं कुशल बनाएंगे। अमेरिका की वैश्विक स्थापना पद्धति के मुकाबले केवल दक्षिण एशिया तक ही सीमित होगा भारतीय नेवीगेशन सिस्टम । इसरो ने आगामी वर्ष मार्च माह तक अनेक उपग्रहों को भेजना है। पीएसएलवी के माध्यम से यू.के का एक व्यावसायिक उपग्रह, दो नेवीगेशन उपग्रह, एक जीसेट श्रंख्ला का उपग्रह और तीन आईआरएनएसएस श्रंख्ला के उपग्रह। तकनीक प्रदर्शन योजना अंतर्गत फिर से इस्तेमाल योग्य प्रक्षेपण यान का परीक्षण, यह काम 3 महीने में पूरा हो जाएगा। इसरो ने 245 करोड़ की लागत से एक बहु-वस्तु खोजने लायक राडार लगाया है जिसका परीक्षण जल्द किया जाएगा। यह राडार एक ही समय पर साथ-साथ 10 वस्तुओं को सही समय में खोज सकने में सक्षम है। मंगलयान भी डाटा भेज रहा है। सार्क देशों के इस्तेमाल के लिए 18 माह के भीतर उपग्रह छोड़ा जाएगा। इसके लिए सार्क देशों से बातचीत जारी है। देश में गैरकानूनी खनन पर लगाम लगाने के लिए कार्टोसेट उपग्रहों का इस्तेमाल किया जाएगा। भारतीय खनन ब्यूरो को खानों की सीमाएं निर्धारित करने के लिए कहा गया है। इसरो ने नेविगेशन प्रक्रिया शुरु करने के लिए कक्षा में चार उपग्रह की न्यूनतम जरुरत को पूरा कर लिया है। अमेरिकी जीपीएस प्रणाली में 24 उपग्रह होते हैं। मात्र 1420 करोड़ और 4 वर्ष की लघु अवधि में भारत यह क्षमता प्राप्त करने में सफल हो जाएगा। यह प्रणाली भारत की मुख्य भूमि तथा उसके ईर्दगिर्द के 1500 किलोमीटर के क्षेत्र को अपने दायरे में लेगी। 01 जुलाई, 2013 को ध्रुवीय रॉकेट ने अपनी 24वीं उड़ान(पीएसएलवी-सी22) में भारत के पहले नेविगेशन सेटेलाइट सिस्टम को भू-स्थिर कक्षा में स्थापित कर दिया था। यह ध्रुवीय रॉकेट की 23वीं सफल उड़ान थी। 4 अप्रैल, 2014 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र श्रीहरिकोटा से ध्रुवीय रॉकेट(पीएसएलवी-24) से सायं 5.19 बजे -1बी का प्रेषण कर दिया। उड़ान भरने के 19 मिनट बाद ही यान ने उपग्रह को कक्षा में स्थापित कर दिया। (पीएसएलवी-सी26) ने दिनांक 16 अक्तूबर, 2014 को उड़ान भरी और 20 मिनटों के बाद -1सी को 36000 किलोमीटर ऊंचाई वाली भू-स्थिर कक्षा में सफलता पूर्वक स्थापित कर दिया। चौथे नेविगेशन उपग्रह का प्रेषण 28.03.2015 को किया गया। ग्रहों की खोज के लंबे अनुभव के बाद इसरो अपने सबसे महत्वाकांशी अभियान मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान की ओर अग्रसर है।