4 मई 2015
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मैं राजनीति शास्त्र एवं हिंदी में एम.ए हुं, अपने विभाग में यूनियन का अध्यक्ष रह चुका हुं, जिला इंटक बठिंडा का वरिष्ठ उप प्रधान रह चुका हुं, नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति, बठिंडा एवं भुवनेश्वर का सदस्य-सचिव रह चुका हुँ, वर्तमान में अखिल भारतीय कर्मचारी भविष्य निधि राजभाषा संघ का सलाहकार हूँ, आयकर विभाग में सहायक निदेशक के पद पर कार्यरत रह चुका हुँ, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर हिंदी मामलों से संबंधित विशेषज्ञ पेनलों एवं हिंदी संगोष्टियों का हिस्सा रह चुका हुं, अलग-अलग नाम से विभागीय और नराकास की 12 से भी अधिक पत्रिकाओं का संपादक रह चुका हुँ, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन से राजभाषा अधिकारी के पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात जुलाई, 2019 से बतौर परामर्शदाता कौशल विकास और उद्यमशीलता मंत्रालय में तैनात हूँ, 05 वर्ष तक श्री साईं कॉन्वेंट स्कूल, अमृतसर के प्रधानाचार्य का पद संभाला और कुछ समय तक एनडीएमसी, दिल्ली के सोशल एजुकेशन विभाग के कौशल विकास अनुभाग का कार्य भी देखा। मनसुख होटल और करतार होटल अमृतसर का प्रबंधक रह चुका हूँ , भाषाकेसरीओएल के नाम से मेरा यूट्यूब चैनल है और स्वयं की ओर से लिखित पुस्तकों का लेखक भी हूँ ।D
धन्यवाद प्रियंका जी
6 मई 2015
आप जैसे अच्छे लेखको की रचना पोस्ट करना हमारे लिए सौभाग्य की बात होती है .... धन्यवाद एवं शुभकामनाएँ - प्रियंका शब्दनगरी संगठन
6 मई 2015
उक्त रचना को फेस बुक, ट्विटर तथा गुगल प्लस पर पोस्ट करने के लिए शब्दनगरी संगठन का कोटि-कोटि धन्यवाद
5 मई 2015
प्रिय मित्र ,मित्रता को जारी रखते हुए आपकी इस उत्क्रष्ट रचना को शब्दनगरी के फ़ेसबुक , ट्विट्टर एवं गूगल प्लस पेज पर भी प्रकाशित किया गया है । नीचे दिये लिंक्स मे आप अपने पोस्ट देख सकते है - https://plus.google.com/+ShabdanagariIn/posts https://www.facebook.com/shabdanagari https://twitter.com/shabdanagari - प्रियंका शब्दनगरी संगठन
5 मई 2015
धन्यवाद ओम प्रकाश शर्मा जी
4 मई 2015
विजय जी, कवि-ह्रदय की भाषा ही अलग होती है, वास्तव में जीवन के हर पग पर उसकी भावाव्यक्ति को लोग मुड़-मुड़ कर देखा-सुना करते हैं...यही तो उसकी निधि है...उम्र के साथ-साथ शब्दों के चयन, उपमाओं के प्रयोग और काव्यगात-सौंदर्य में और निखार आता जाता है, और कवि को स्वयं भी संतुष्टि की अनुभूति बढ़ती जाती है I
4 मई 2015
धन्यवाद शब्दनगरी संगठन
4 मई 2015
हम दरियादिल न भी हों, किन्तु आप जैसे हमारे 'शब्दनगरी-मित्रों' की उपस्थिति एक समंदर का एहसास दिलाती है. आपकी रचनाओं का इस मंच पर स्वागत है....विजय जी, पुनः आभार !
4 मई 2015