गाय मेरी माता तो बनता बैल से पिता का नाता
चारे,घास के नाम पर इसको प्लास्टिक मैं खिलाता
आंधी,तूफान,बरसात,भूख में गाय का खुले से नाता
मारे अगर कोई इसे तो बर्दाश्त नहीं मैं कर पाता
बदलकर हजूम के हजूम में दंगे-फसाद मैं करवाता
गौरक्षा के नाम पर असहाय मासूमों को कटवाता
नदी मेरी मां तो बनता समंदर से पिता का नाता
वक्त था कभी तब इसका पेट चीरकर मैं पाप नहीं था कमाता
विदेशी हमलावरों से बचाने को विग्रहों को टापुओं में था छिपाता
माथा रगड़ पत्थर को पूजूं मानकर भगवान से उनका नाता मगर
करने को इंसान की हत्या एटम, हाईड्रोजन, न्यूट्रॉन बम
बनाता
भ्रूण,इज्जत,लव जेहाद के नाम से बेटियों की हत्या
मैं कराता
महिलाओं को करता बेइज्जत और उनको मुर्दा गोश्त बनाता
मरे जब इंसान कोई तो हिंदु, सिख, मुस्लिम, ईसाई का चश्मा
चढ़ाता
क्योंकि आंखों के सामने मेरी तब मेरा मजहब और वोट बैंक
ही है मंडराता
करता निरंतर मानवता की हत्या फिर भी न होकर शर्मिंदा
गौरक्षक कहलाता