सतगुरु नानक प्रकटया मिटी धुंध जग चाणन होया । मान्यता के अनुसार सिख धर्म के संस्थापक श्री गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1469 को लाहौर के पास राय भोये की तलवंडी(ननकाना साहब वर्तमान में पाकिस्तान में है) में हुआ । प्रतिवर्ष कत्तक पूर्णिमा के दिन उनका जन्मदिन बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है । इस वर्ष गुरु नानक देव जी का प्रकाश पर्व 25 नवंबर, 2015 को मनाया जा रहा है । कल्याण चंद दास बेदी (मेहता कालू के नाम से विख्यात) और माता तृप्ता इनके माता-पिता थे । उनसे पांच साल बड़ी उनकी एक बहन थी नानकी जिनकी शादी सुल्तानपुर में हुई थी । गुरु नानक देव जी की शादी बटाला की सुलखनी से हुई थी । इनके लखमी चंद और श्रीचंद दो पुत्र थे । उन्होंने अपने बचपन के मुस्लिम सहयोगी भाई मरदाना के साथ पूर्व, पश्चिम, उत्तर तथा दक्षिण की हजारों किलोमीटर लंबी चार प्रमुख पैदल यात्राएं कीं और प्रमुख हिंदु-मुस्लिम पूजा स्थलों में गए । हिंदु, मुस्लिम, जैन और बुद्ध धर्म का अध्ययन किया एवं जन-सामान्य को धार्मिक रुढ़ियों और कुसंस्कारों से निकलने की शिक्षा दी । समाज सुधारक, चिंतक और सिखों के प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव जी ने जन-सामान्य को मानवता की सही राह दिखाई । महापुरुषों का जीवन सामान्य मनुष्यों के लिए सदा प्रेरणादायक रहता है । उनके जीवन में अनेक ऐसे प्रसंग घटते हैं, जो जीवन के गहरे अर्थों को उदघाटित करके उसे जीने की सही समझ प्रदान कर जाते हैं । महान आध्यात्मिक चिंतक, समाज सुधारक और सिखों के प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव जी का जीवन पथ भी ऐसे अनगिनत प्रसंगों से औत-प्रोत था, जिनके माध्यम से हम सहज जीवन युक्तियां सीखते हैं।
प्रसिद्ध प्रसंग
व्यापार के लिए मिले बीस रुपयों से साधु-संतों को भोजन करा देने वाला सच्चा सौदा प्रसंग, भाई लालो की परिश्रम से कमाई सूखी रोटी को स्वीकर करना तथा मलिक भागो के शोषण से बनाए पकवानो का तिरस्कार करना, लोभी दुनी चंद को सूई दे परलोक ले जाने के बहाने संतोष का सबक देने और ईश्वर किस दिशा में नहीं है की स्थापना करने जैसे अनेक प्रसंग तो गुरु जी के बारे में प्रसिद्ध है हीं, परंतु जन्म साखियों में कुछ ऐसे अल्प प्रसंग भी दर्ज हैं, जो गुरु जी के जीवन को मानवता के स्तंभ के रुप में स्थापित करते हैं ।
सच्चे मन से स्मरण
गुरु नानक देव जी सुल्तानपुर लोधी में नवाब दौलत खां के मोदीखाने(रसद भंडार) के संचालक थे। नवाब को पता चला कि श्री गुरु नानक देव जी कहते हैं सभी इंसान एक ही ईश्वर की संतान हैं । नवाब ने कहा, ऐसा है तो हमारे साथ नमाज पढ़िए । गुरु जी साथ चले गए परंतु खड़े होकर नवाब और काजी को देखते रहे । नमाज के बाद नवाब ने पूछा कि नमाज क्यों नहीं पढ़ी ? तो गुरु जी ने कहा कि मैं किसके साथ नमाज पढ़ता ? आपका ध्यान तो काबुल में घोड़े-खरीदने में था । सच्चे मन से स्मरण किए बिना कोई इबादत स्वीकार नहीं होती । नवाब निरुत्तर रह गया।
आत्मिक शुद्धि अनिवार्य
अपनी यात्राओं के दौरान एक बार गुरु जी प्रयाग में त्रिवेणी के निकट विराजमान थे । तमाम लोग उनके दर्शन हेतु आ पहुंचे । संगत ने गुरु जी से प्रश्न किया कि हम पूजा-पाठ तो बहुत करते हैं, परंतु न तो उसका असर होता है और न ही उसमें रस आता है । गुरु जी ने समझाया कि जब तक हम काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार को नहीं त्यागेंगे, तब तक हमें वास्तविक आनंद प्राप्त नहीं होगा ।
राज में त्याग का उपदेश
बनारस के निकट चंदौली का राजा हरिनाथ गुरु जी से प्रभावित होकर राज्य त्यागकर सन्यास लेने के लिए प्रस्तुत हुआ तो गुरु जी ने उपदेश दिया, प्रजा की सेवा करो, राज में ही योग की प्राप्ति होगी ।
बांटकर खाओ
गुरु जी का कथन था कि बांटकर खाओ। रामेश्वरम के निकट कुछ योगियों ने इस पर शंका प्रकट की और गुरु जी को एक तिल देकर कहा कि इसे कैसे बांटकर खाया जा सकता है । गुरु जी ने तिल को सिलबट्टे पर पीसकर सभी को बांट दिया । यह देखकर योगियों ने भक्तिभाव से गुरु जी को प्रणाम किया ।
एक पैसे का सच-झूठ
यात्राओं के दौरान एक बार गुरु जी स्यालकोट नगर में पहुंचे तो भाई मरदाना ने गुरु जी से जीवन का सत्य समझाने की प्रार्थना की । गुरु जी ने भाई मरदाना को शहर में भाई मूले के पास भेजा और कहा कि एक पैसे का सच और एक पैसे का झूठ लेकर आओ । भाई मूले ने कागज के टुकड़े पर लिख दिया कि मरना सच और जीना झूठ । गुरु जी ने मरदाने को समझाया कि यही है जीवन का सत्य ।
गृहस्थ का गौरव
गुरु जी जब पेशावर के निकट गोरखहटड़ी में पहुंचे तो योगियों ने पूछा कि आप उदासी(सन्यासी) हैं या गृहस्थ ? गुरु जी ने उत्तर दिया मैं गृहस्थ हूं । तो योगियों नें कहा , माया में फंसा गृहस्थ ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता । गुरु जी ने उत्तर दिया कि ईश्वर सद्गुणो से प्राप्त होता है । गृहस्थ या सन्यासी जो सद्गुण धारण करेगा, वही ईश्वर को प्राप्त कर सकेगा । इस प्रकार गुरु नानक देव जी के जीवन के ऐसे अनेक प्रसंग हैं जो मनुष्य को जीने की सही राह दिखाते हैं।
आपकी बाणी की प्रमुख तुकबंधियां जो कहावतों की तरह जनसामान्य के मूंह पर चढ़ी हुई हैं
मिट्ठत नीवीं नानका गुण चंगिआईयां तत्त 2. मन जीते जग जीत 3. नानक फीका बोलिए तनमन फीका होवे 4. मंदीं कम्मीं नानका जद कद मंदा होवे और बाबर के हमले के वक्त बाबर द्वारा किए गए कत्लेआम, मचाई गई लूट-खसूट और स्त्रीयों पर किए गए अत्याचारों के विरुद्ध गुरुनानक भगवान से शिकायत करते हुए कहते हैं - ऐसी मार पई कुरलाणै तैं की दर्द न आया।