सार्वजनिक, गैरसरकारी, कॉर्पोरेट व निजी क्षेत्र की स्थापनाओं को अपने कार्य को सफल बनाने के लिए अनेक योजनाएं तैयार करनी होती हैं। अनेक उत्पादन/सेवा क्षेत्र की उपयोगिता सिद्ध करने के लिए आवश्यक, यहां तक कि आवश्यक प्रचार-प्रसार भी किया जाता है जिससे अधिक से अधिक जनो का ध्यान आकर्षित करने में सफलता मिले। स्थापनाओं का जनसंपर्क से जुड़ा संख्याबल साम, दाम, दंड, भेद का इस्तेमाल करके अपने क्षेत्र को सफल बनाने में लगा रहता है। भाषा संबंधी समस्याएं भी उनके रास्ते में रोड़ा अटकाने की हिमाकत नहीं कर सकतीं।
जिस संगठन का जनसंपर्क ढीला है उसे अपने लक्ष्य हासिल करने के लिए बहुत मेहनत-मशक्कत करनी पड़ती है। इसलिए किसी क्षेत्र की सफलता-असफलता के लिए उसका जनसंपर्क अभियान बहुत ही मायने रखता है। इसकी महत्वपूर्णता को समझते हुए ही सार्वजनिक, गैर सरकारी, कार्पोरेट व निजी संस्थाओं ने जनसंपर्क अनुभाग की स्थापना कर रखी है जिनको उनका दर्पण भी कहा जा सकता है क्योंकि पहले ही पड़ाव पर कुप्रभाव पड़ने से बाहरी व्यक्ति के दिमाग पर उस स्थापना के उत्पादन व प्रदान की जा रही सेवा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। अलग बात है कि कॉर्पोरेट लॉबी के अधिक सक्रिय होने से केवल लाभ के लिए ही जनों से संपर्क किया जाता है। यहां तक ऐसे विज्ञापन भी देखने को मिल जाते हैं जिनमें ऐसे नागरिकों का मजाक उड़ाया जाता है जो रिवायती तरीके की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को प्राथमिकता देते हैं मगर एकबार ग्राहक बनने के बाद वे ग्राहक से लाभ मिलने तक ही रिश्ता रखते हैं। ग्राहक को जरुरत पड़े तो आंखें माथे पर। फिर दूसरी किसी कंपनी का विज्ञापन देखने को मिलेगा कि आप उल्लु बनने की आदत मत डालें।
भारतीय समाज के कर्मचारी वर्ग को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से कर्मचारी भविष्य निधि संगठन की स्थापना की गई है। भारतीय संसद द्वारा पारित कर्मचारी भविष्य निधि एवं प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम, 1952 अंतर्गत श्रम एवं रोजगार मंत्रालय केंद्र सरकार की ओर से गठित केंद्रीय न्यासी बोर्ड के दिशानिर्देशों के अनुसार यह संगठन स्थापनाओं में कार्यरत कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के काम में लीन है। वर्तमान में जिन कर्मचारियों की तन्खवाह 15000/-(रु.पंद्रह हजार रुपए) तक है और जिस स्थापना में वह काम कर रहा है उस स्थापना में कार्यरत कर्मचारियों की संख्या 20 या बीस से ऊपर है, कर्मचारी भविष्य निधि अधिनियम, 1952 (अधिनियम की धारा, 16 को मद्देनजर रखते हुए या बीस व्यक्तियों से कम की निश्चित संख्या में, जिसका केंद्र सरकार की ओर से की गई अधिसूचना में उल्लेख हो, नियोजित करने वाले संस्थानों पर इस अधिनियम के प्रावधानों को ऐसा करने के आशय का कम से कम दो माह का नोटिस देकर, केंद्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना जारी करके लागू कर सकेगी)उस स्थापना पर लागु होता है। इस अधिनियम के तहत कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए कर्मचारी भविष्य निधि योजना-1952(जिसके तहत सदस्य की नौकरी छोड़ने या सेवानिवृति की स्थिति में उसके खाते में जमा राशी का ब्याज सहित भुगतान कर दिया जाता है) , कर्मचारी पेशन योजना- 1995(जिसके तहत 10 वर्ष या उस से अधिक अवधि की सेवा में रहने और 58 वर्ष की आयु प्राप्त करकें सेवानिवृत्त होने पर पेंशन) तथा कर्मचारी निक्षेप सहबद्ध बीमा योजना(जिसके तहत सदस्य की सेवा में रहते मृत्यु हो जाने पर नामित पारिवारिक सदस्य को 3.60 लाख तक का बीमा लाभ) अलग-अलग तीन योजनाएं चलाई जा रही हैं। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के तीन ध्येय हैं:
कर्मचारी भविष्य निधि एवं प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम, 1952 का प्रवर्तन ।
न्यास के धन की वसूली एवं प्रबंधन और
योजनाओं के सदस्यों को संतोषप्रद सेवा प्रदान करना।
इन ध्येयों को सफल बनाने के लिए अन्य विभागों की तरह ही जनसंपर्क से जुड़ा संख्याबल तन मन धन से रत है। किंतु बदलते परिवेश अनुसार निरंतर सुधार की गुंजाइश रहती है। उदारीकरण. निजीकरण और वैश्वीकरण के इस युग में जनसंपर्क के कार्य में लीन कर्मचारियों/अधिकारीयों की जिम्मेदारी के प्रकार में निरंतर परिवर्तन होते रहना अवश्यंभावी है। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन में जनसंपर्क की महत्वपूर्णता को समझते हुए पहले से ही यह व्यवस्था है कि कार्यालय प्रमुख स्तर के अधिकारी जनसंपर्क के कार्य को सीधे तौर पर देखतें हैं(जिसमें संगठन का मुख्यालय, मंत्रालय शामिल हैं) ताकि सदस्यों को प्रदान की जा रही सेवा व शिकायतों और कठिनाइयों के प्रति सीधे ही सूचना उन तक पहुंच जाए। जिस प्रकार इन दिनों स्पर्धा का क्षेत्र विशाल हो रहा है, उससे अधिकारी/कर्मचारी का ध्यान बहुत से कार्य क्षेत्रों की ओर बंट रहा है। इसलिए सीधे जनसंपर्क से जुड़े संख्याबल को बहुत चुस्त-दुरुस्त रहने व रखने की आवश्यकता अनुभव हो रही है। उन दिनो की कठिनाइयों को याद करके भी संगठन में सुधार लाने की आवश्यकता अनुभव हो रही है जब बीमा क्षेत्र के माध्यम से सामाजिक सुरक्षा में रत सार्वजनिक क्षेत्र की निगम, बाद में कॉर्पोरेट जगत के प्रबंधन ने संख्याबल को कुछ क्षेत्रों में दी जा रही बेहतर सुविधाओं के फलस्वरुप भविष्य निधि संगठन के मुकाबले अधिक लाभ कमाया था।
कर्मचारी भविष्य निधि संगठन का संख्याबल निष्ठा/समर्पण भाव से सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के कार्य में लगा है। फिर भी निजी लाभ के लिए कुछ लोग किसी भी संगठन चाहे वे अपना हो या बेगाना नुकसान पहुंचाने से नहीं चूकते। इसी बात पर मुझे 39 वर्ष पुरानी घटना याद आ रही है जब मैं एक गैरसरकारी स्थापना में कार्यरत था और सरकारी क्षेत्र के एक कर्मचारी ने स्थापना के एक काम के लिए पचास पैसे की रिश्वत मांगी और उसके बदले में अपने विभाग का बाईस रुपए का नुकसान करने को तैयार था। उस समय मैने एक ऐसा रास्ता अपनाया जिससे उसका काम भी हो गया व नुकसान न मेरी स्थापना का हुआ और न ही सरकार का। निजी लाभ प्राप्त करने की प्रवृत्ति के कुछ लोग कर्मचारी भविष्य निधि संगठन में भी हो सकते हैं। उनकी मंशा की पूर्ति होने पर विभाग को नुकसान पहुंचेगा ही, इसमें संदेह नहीं। ऐसे अवसरों पर जब शिकायतकर्ता निराश होकर कार्यालय पहुंचता है तो जनसंपर्क के कार्य में लगे संख्याबल की बहुत ही महत्वपूर्ण जिम्मेदारी यह होती है कि सर्वप्रथम विभाग के प्रति सदस्यों के गुस्से को शांत करें और उनका काम कराने में सहायक बनें ताकि वह व्यक्ति अगर दुखी मन से कार्यालय में प्रविष्ट हुआ है तो हंसता हुआ वापस लौटे । फिर बात आती है शिकायत की वैदता अवैदता की। निजी लाभों में विश्वास रखने वाले लोग कंसलटैंसी का काम भी करते हैं और अपना हित नहीं सधने पर शिकायतबाजी की ओर आकर्षित हो सकते हैं। सतर्क कार्यशैली से ऐसा रास्ता निकालने की आवश्यकता इस समय अधिक महसूस होती है और कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के ध्येयों से पीछे हटे बिना उस शिकायत का निपटारा करके उदाहरण कायम करना ही समय की आवश्यकता है।
अन्य क्षेत्रों की ही भांति कर्मचारी भविष्य निधि संगठन में भी जनसंपर्क के कार्य के निपटान के लिए वांछित सुविधाएं उपलब्ध हैं। किंतु उपलब्ध सुविधाएं समय के बीतने के साथ अपर्याप्त भी दिखने लगती हैं। इसलिए विभाग के नीति निर्माता वर्ग की भी जिम्मेदारी बनती है कि प्रदान की जा रही सुविधाओं की निरंतर समीक्षा होती रहे और दूसरे क्षेत्रों की ही भांति जनसंपर्क के लिए भी नियमित प्रशिक्षण दिए जाते रहें ताकि संख्याबल की सहनशीलता भी बरकरार रहे व विभाग का दर्पण यह कार्यक्षेत्र कार्यालय की ओर आ रहे गर्म हवा के किसी भी थपेड़े का मुकाबला करने में सदा सक्षम रहे। बाकी सभी सरकारी विभागों(जिनके स्वस्थ स्टाफ का प्रतिशत तो अधिक है लेकिन नई व पुरानी पेंशन योजना के चक्कर में उलझा हुआ है और गैरसरकारी/कॉर्पोरेटजगत(जिसका स्वयं का लगभग 42 प्रतिशत स्टाफ अवसाद का शिकार है लेकिन फिर भी सार्वजनिक-निजी भागीदारी से सामाजिक सुरक्षा स्वरुप किसानो सहित असंगठित क्षेत्र का प्रत्येक भारतीय नागरिक 1000 से 5000 रुपए तक की पेंशन के मायाजाल के भ्रम में है ) से भी यही अनुरोध है कि सुझाए गए सुझावों पर अमल करें तथा जनता की परेशानी की हालत में तत्पर रहने वाला संख्याबल अगर किसी जगह पर नहीं है तो उसे तैयार करने के प्रयास अवश्य किए जाएं।