वर्तमान सरकार के
कार्यकाल में स्वच्छता अभियान आरंभ किया जा चुका है। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया
जा चुका है। भारतीय प्रधानमंत्री रिकॉर्ड विदेश यात्राएं करके सबसे अलग होने का
दावा कर रहे हैं। भारत में निर्मित का अभियान जोर शोर से प्रचारित किया जा रहा है।
भारत-पाकिस्तान में बातचीत आरंभ हो चुकी है। भारत की विदेशमंत्री पाकिस्तान का
दौरा करके आ चुकी हैं। संसद में शानदार सफलता पर बयान दे चुकी हैं और भारत के
प्रधानमंत्री बिना किसी पूर्व योजना के पाकिस्तान हो आए हैं। किंतु किसी के पास बताने लायक कुछ नहीं है कि आखिर बदला क्या है
जिससे भारत-पाकिस्तान में बातचीत जारी रहे बजाए इसके कि जब पूरा विश्व नववर्ष 2016
का स्वागत करने में मगन था उसी वक्त पठानकोट में वायू सेना एयरबेस पर पाकिस्तानी
आतंकवादियों ने हमला कर दिया। सुरक्षाबलों के 7 जवानों सहित अनेक लोग जख्मी हुए
तथा मारे गए। इसी के साथ अफगानिस्तान के चरार-ए-शरीफ में भारतीय कौंसुलेट पर हमला
हो गया। पिछले दिनों पेरिस में प्रदूषण नियंत्रण पर सम्मेलन चला। मसौदा पास हो गया
कि तापमान को 2 या 1.5 डिग्री सेल्सियस पर लाने का प्रयास किया जाएगा। प्रदूषण को
नियंत्रित करने का दायित्व सबसे अधिक विकसित देशों पर है। पर भारत सहित विकसित-अविकसित
धड़े इस पर ही प्रसन्न हैं कि चलो कुछ मसौदा तो तैयार हुआ परिणाम चाहे कोई आए या न
आए। भारत की आजादी से लेकर आज तक पूरे विश्व में भारत को कोई भरोसेलायक मित्र नहीं
मिला (सिवाए 1971 के भारत-पाक युद्ध तथा उसके बाद से उस समय का यूएसएसआर अबके रुस
के) जिसके सहारे राष्ट्र अपनी अंतरराष्ट्रीय कठिनाइयों का हल निकाल सके। जिस तरह बिना
माहौल को परखे जोश में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जम्मू-कश्मीर का मामला संयुक्त
राष्ट्र संघ में ले गए थे लेकिन संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद के पांच स्थाई
सदस्यों में से किसी भी सदस्य का भारत को सीधा समर्थन नहीं मिला बल्कि उल्टा आज तक
पाकिस्तान को शह मिल रही है, उसी तर्ज पर पठानकोट में आतंकवादियों के खिलाफ
कार्रवाई चलने के बीच में ही पाकिस्तान को आतंकवादी हमले के सबूत सौंप दिए गए
किंतु कार्रवाई का इंतजार हमेशा की तरह इस बार भी है! इस संबंध में मुझे वह
अवसर याद आ रहा है जब मैं सेवा में नया-नया आया था और मुझे लगता था कि सरकारी
सेवा में कार्यरत अनुभवी कर्मचारी बहुत ही कम काम कर रहे हैं और भ्रष्टाचारी भी
है, मेरा काम तो बहुत ही बढ़िया है। जोश में मैं दोस्त-दुश्मन को नहीं पहचान सका
और परिणाम स्वरुप दो साल तक सस्पैंड रहा। अनुभव के संबंध में बचपन से मैंने एक
कहानी सुन रखी है। वह कहानी इस प्रकार है : - शादी में वर पक्ष ने मांसाहारी खाने की मांग की।
वधु पक्ष राजी नहीं था लेकिन वर पक्ष को सबक सिखाने के लिए वधु पक्ष ने वर पक्ष की
बात मानते हुए यह शर्त रखी कि बारात में कोई बूढ़ा बाराती नहीं होगा। वर पक्ष ने
मशवरा किया और किसी अनहोनी की आशंका में एक बुजुर्ग को बोरी में बंद करके साथ ले
गए। जब बारात के लिए खाना परोसने की बात चली तो वधु पक्ष ने खाना परोसने के लिए एक
शर्त रख दी। शर्त थी कि प्रत्येक बाराती को पूरा का पूरा बकरा खाना होगा और न खा
पाने पर दंड भुगतना होगा। मुसीबत के समय बूढ़े को बोरे में से बाहर निकालकर हल
पूछा गया। बुजुर्ग ने सुझाया कि वधु पक्ष को बारातियों की संख्या बताओ और यह भी
शर्त रखो कि एक बार में एक ही बकरा काटकर पकाया जाए। उसे परोसने के बाद दूसरा बकरा
काट कर पकाया जाए। ऐसा सुनते ही वधु पक्ष को पता चल गया कि बारात में कोई अनुभवी
व्यक्ति अवश्य है व उस बूढ़े बाराती को ढूंढ लिया गया और चल रही समस्या का हल निकाल
लिया गया। मुझे अभी भी याद है कि पंजाब में आतंकवाद का वो दौर जब ज्यादातर
आतंकवादी युवा थे तथा पाकिस्तान ने उन्हीं के हाथों सभी राजनैतिक दलों के अनेक अनुभवी
राजनीतिज्ञों को या तो मरवा दिया था या उन्हें मरवाने का प्रयास किया
था। मगर वर्तमान सरकार के रणनीतिकार यह ढिंढोरा पीटने में व्यस्त हैं कि जो वो कर
रहे है इससे पहले कोई राजनैतिक नेतृत्व नहीं कर सका और इसी मुगालते में अपने ही दल
के अनुभवी नेताओं को सब से पिछली कतार पर बैठा रखा है। वर्तमान सरकार का पुरानी
सरकारों को बुद्धीहीन मानना तथा पश्चिमों देशों का पुराने ढर्रे पर चलते रहना
आसानी से विश्व को तीसरे विश्वयुद्ध की ओर धकेल सकता है। ध्यान देना होगा कि
वर्तमान में पूर्व की तुलना में दुनियाभर में नॉन-स्टेट एक्टरस की वजह से दुनिया
में तनाव बढ़ रहा है तथा संयुक्त राज्य अमेरीका में रिपब्लिकन पार्टी की ओर से
राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार यह मुद्दा उठा चुके हैं कि यू.एस.ए में मुस्लिमों के
आने पर प्रतिबंध हो। आईएसआईएस के विरुद्ध लड़ाई में भाग ले रहे रुस के एक विमान को
तुर्की ने गिरा दिया तथा रुस का एक पायलट भी मारा गया। रुस आग बबूला है तथा तुर्की
पर आर्थिक प्रतिबंधों सहित तुर्की की एक बोट को भी निशाना बना चुका है।
महाशक्तियों की साख भी दांव पर है। अब वो जमाना नहीं रहा कि गुप-चुप तरीके से किसी
देश की सत्ता परिवर्तित कराकर और डम्मी सरकार बनवाकर लाभ कमाया जा सके। आज इंटरनेट
और सोशलमीडिया का जमाना है और नॉन-स्टेट एक्टरस भी मुख्य भूमिकाओं में हैं।
इंटरनेट और सोशलमीडिया चलाने वाली संस्थाएं भी इनको अपना सहयोग देने का वादा कर
रही हैं। इसलिए बहुत ही जरुरी है कि न तो भारत की वर्तमान सरकार इतिहास की कैदी
बने तथा पुराने अनुभवों से सबक लेते हुए पश्चिमी समुदाय को भी विवश करे कि वो भी पुराने
अनुभवों से लाभ उठाए और विश्व समुदाय को
तीसरे विश्वयुद्ध की ओर जाने से रोके।