अनुवाद प्रक्रिया पर बात करने से पूर्व यह जानना जरुरी है कि अनुवाद शब्द की व्युत्पत्ति कैसे हुई ? प्राचीन समय से गुरू जो कुछ अपने शिष्यों के समक्ष कहते थे, शिष्य उसे दोहराते थे, इस विधा को अनुवाद कहा जाता था। कालांतर में जैसे-जैसे खोजें हुईं नए-नए विषय उभरे और अनुवाद का भी विस्तार हुआ और इसे दो भाषाओं के सेतु के रुप में देखा जाने लगा। अनेक भाषाओं में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाने लगा यथा तर्जुमा, उल्था, टीका तथा भाषांतरण आदि। अनेक विद्वानो ने इसकी अलग-अलग परिभाषाएं दीं परंतु सभी परिभाषाओं का एक ही निष्कर्ष है। एक भाषा की सामग्री का दूसरी भाषा में अंतरित करने को अनुवाद कहते हैं परंतु ऐसा करते समय दोनों भाषाओं की भाषागत विशेषताओं का विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। अनुवाद की इस विधा को करने की एक विशिष्ट प्रक्रिया होती है जिसे इस प्रकार से दर्शाया जा सकता है :-
1.पाठ बोधन: -- अनुवाद करने से पूर्व पाठ्य वस्तु Text को सावधानी पूर्वक पढ़ा जाना चाहिए। स्रोत भाषा की अपनी भाषिक संरचना सांस्कृतिक विशेषता, शैली, व्याकरण तथा भाषा सौष्ठव होता है। अत: अनुवादक द्वारा पाठ्यवस्तु को उपर्युक्त सभी तथ्य को ध्यान में रखकर ही पढ़ना चाहिए। कई बार लेखक, टंकक या मिलानकर्ता द्वारा वाक्य में कुछ छूट भी जाता है या मात्राएं कुछ अलग ही अर्थ प्रकट करने लगती हैं:--
उदाहरण-- A badminton tournament was organized in the flood hit stadium.
सामान्यत: मैच दिन या रात में Organize होते हैं। रात में रोशनी की व्यवस्था की जाती है। इसलिए यहाँ पर flood hit शब्द है न कि floodhit यह शब्द गलती से Floodhit हो गया है और यदि इसे सावधानी से नहीं पढ़ा जाएगा तो इसका अनुवाद रोशनी युक्त स्टेडियम के स्थान पर, बाढ़ग्रस्त स्टेडियम पढ़ा जाएगा जो कि सही नहीं होगा।
2. अर्थग्रहण करना :-- पाठ्यवस्तु को सावधानीपूर्वक पढ़ने के बाद अर्थग्रहण करना चाहिए। अर्थग्रहण करते समय निम्नलिखित बिंदुओं पर विशेष ध्यान दिया जाए:--
(क) व्याकरण – व्याकरण के विभिन्न घटकों को देखते हुए अर्थग्रहण किया जाना चाहिए। शब्द वाक्य में प्रयोग होने के बाद लिंग, वचन, क्रिया, संज्ञा, विशेषण के अनुरुप अर्थ देता है।
उदाहरण--(i) A stone on the road. यहां stone संज्ञा है।
(ii) Did you stone him. यहां stone क्रिया है।
(iii) A is stone deaf. यहां Stone विशेषण है।
लिंग She reads स्त्रीलिंग में यहां She reads- ‘ पढ़ती है‘ हो जाएगा
पुल्लिंग में He reads.. ‘ पढ़ता है ‘ हो जाएगा
वचन:-- (1) Let this work be done by the boy.
(2) Boys read.
यहां पहले वाक्य में boy एकवचन है—इस काम को लड़के से कराओ । दूसरे वाक्य में boys बहुवचन लड़के पढ़ते हैं।
(ख) शब्दकोश:-- अर्थग्रहण करते हुए शब्दकोशों की सहायता ली जाती है। विषय के अनुसार ही शब्दकोश का चयन किया जाना चाहिए। यदि प्रशासनिक सामग्री है तो ऐसी स्थिति में प्रशासन शब्दावली, यदि इंजीनियरी, मानविकी, रक्षा, तकनीकी, न्याय तथा कला से संबंधित है तो तदनुसार क्रमश: इंजीनियरी, विज्ञान, मानविकी, रक्षा, तकनीकी, न्याय तथा कला से संबंधित शब्दावली देखी जानी चाहिए। शब्दावली देखते समय शब्द की क्रिया, संज्ञा, विशेषण रुप को भी देखा जाना चाहिए। कई बार क्रिया का अन्य रुप शब्दकोश में नहीं मिलता। ऐसी स्थिति में विशेष सावधानी बरती जाए। उदाहरण--Ground chilly हम अगर शब्दकोश में देखेंगे तो Ground शब्द के लिए भू, पृथ्वी, जमीन, धरा आदि पर्याय मिलेंगे। यहां ground शब्द का Past participle form है और इसका अर्थ—पिसी हुई मिर्ची होगा।
(ग) उपमान—भाषा को अलंकारिक बनाने के लिए कई बार उपमानो का भी प्रयोग किया जाता है। ऐसी स्थिति में ऐसे उपमानो को तदनुसार ही अर्थ ग्रहण करना चाहिए। उदाहरण के लिए अनुरक्षण विभाग का श्री......... गधा है। यहां इसका अनुवाद donkey नहीं होगा—अर्थात dull होगा। इसी प्रकार उल्लू है का अर्थ मूर्ख है, परंतु यह भी सावधानी बरती जाए। जहां भारत में उल्लू का अभिप्राय मूर्ख है वहीं जापान में उल्लू का अर्थ समझदार है।
(घ) आप्त वाक्य—सार्वभौमिक सत्यों जिनके अर्थ विद्वतजनो द्वारा पहले बता दिए गए हों, उन्हें मात्र खोजे जाने की आवश्यकता है जैसे—सत्यं शिवं सुंदरम के लिए The Truth, The good, The beauty. इसी प्रकार Saluting my country वंदे मातरम Truth prevails ever सत्यमेव जयते, संविधान में Preamble के कुछ शब्द जैसे Sovereign Democratic—संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाजवादी लोकतांत्रिक गणराज्य आदि।
(च) अन्य पद से सानिध्य—पद के साथ शब्द के संबंध के अनुरुप अर्थ ग्रहण किया जाता है। जैसे Leave is granted—छुट्टी मंजूर की जाती है। Advance is sanctioned—अग्रिम मंजूर किया जाता है। The proposal is accepted—प्रस्ताव मंजूर किया जाता है।
यहां पर Leave के साथ Granted. Advanced के साथ Sanctioned तथा Proposal के साथ accepted के संबंध के अनुसार ही शब्द चयन किया गया है।
(छ) प्रोक्ति—प्रोक्ति संप्रेषण और संप्रेषण की अंतर्निहित आवश्यकता साधने वाली वाक्योपरी इकाई है। सस्पुर ने इसे Discourse कहा। उन्होने बताया कि Language is not a system of speaking but talking. इसी बातचीत को उन्होने प्रोक्ति का नाम दिया। अत: प्रोक्ति को संप्रेषण की पूर्ण इकाई मानते हुए ही अनुवाद किया जाना चाहिए।
3. विश्लेषण:-- अर्थ ग्रहण करने के पश्चात पाठ्य वस्तु को देश, काल, परिस्थिति, विषय संदर्भ को देखते हुए विश्लेषण किया जाना चाहिए—विश्लेषण में वाक्य संरचना अर्थात Active को Passive, Passive को Active, Compound complex sentence को Single sentence शब्दावली, भाषा सौष्ठव आदि घटकों का विश्लेषणात्मक अध्ययन किया जाना चाहिए।
उदाहरण-- Family headed by, Team headed by, Rally headed by, Organisation headed by
1.मुखिया 2.दल का नेतृत्व 3. रैली की अगुवाई 4. संस्था का प्रधान
काल—रिपोर्ट कल भेजी जाएगी ।
इसे कल तैयार कर लिया गया था।
यहां पहले वाक्य का कल—Tomorrow,
दूसरे वाक्य का Yesterday है ।
इसी प्रकार एक समय में अनुसंधान का अभिप्राय “सुधबुध “ था जबकि आज इसका “अर्थ “ खोज है।
परिस्थिति:-- पानी को जब अनुष्ठान के लिए उपयोग में लाया जाता है तो वह जल बन जाता है परंतु यही जब पौधों में सींचने के लिए उपयोग में लाया जाता है तो यह पानी कहलाता है परंतु जब आंखों से बहता है तो ‘ नीर ‘ कहलाता है। यही जब प्रात:काल गुलाब की पंखुड़ियों के ऊपर चमकता है तो ‘ शबनम ‘ कहलाता है।
संदर्भ—तकनीकी क्षेत्र में Plant संयंत्र है जबकि वनस्पति विज्ञान में Plant का अर्थ पौधा है। चिकित्सा में Treatment उपचार है तथा आम बोलचाल में Treatment व्हवहार है।
प्रसंग—कुर्सी—एक आम वस्तु है परंतु ‘कुर्सी की लड़ाई ‘—Post है ।
4. भाषांतरण:-- अर्थग्रहण तथा विश्लेषण के बाद अनुवादक को भाषांतरण करना चाहिए। स्रोत भाषा से लक्ष्य भाषा में भाषांतरण करते समय भी लक्ष्य भाषा को विभिन्न विराम चिह्नो, वर्तनी संबंधी उक्तियों आदि को देखा जाता है। भाषांतरण करते समय यह भी देखा जाना चाहिए कि यदि स्रोत भाषा में कहे शीर्षक या कुछ पदों को Underline किया गया है तो लक्ष्य भाषा में भी यह किया जाना चाहिए।
5. समायोजन:-- भाषांतरण हो जाने के बाद समायोजन किया जाता है। इसमें सर्वप्रथम स्रोत भाषा की पाठ्य वस्तु के साथ लक्ष्य भाषा की पाठ्य वस्तु को मिला लिया जाता है तथा यह देखा जाता है कि कोई शब्द या वाक्य या आंकड़ा या तथ्य छूट तो नहीं गया है। यदि छूट गया है तो उसे लक्ष्य भाषा में उस स्थान पर जोड़ा जाना चाहिए।
पुनरीक्षण:-- पुनरीक्षण अंतिम चरण है जिसमें समस्त अनुदित सामग्री को एक बार बहुत ही सावधानीपूर्वक पढ़ा जाना चाहिए कि कहीं अर्थ का अनर्थ तो नहीं हुआ है या कहीं अनुवाद में किसी बात को स्रोत भाषा की तुलना में कम शब्दों में पूर्ण रुप में व्यक्त किया जा सकता है या कहीं किसी शब्द, पद, वाक्य को लक्ष्य भाषा में और अधिक स्पष्ट करने के लिए आवश्यकता पड़ने पर एक से अधिक वाक्यों में लिखा जा सकता है। उदाहरण के लिए यह वाक्य – मायावती को डॉ मनमोहन सिंह जी द्वारा मुख्यमंत्री बनने पर बधाई दी गई। उपर्युक्त वाक्य, लक्ष्य भाषा की प्रकृति के अनुकूल नहीं है। अत: लक्ष्य भाषा की प्रकृति के अनुकूल ही इस वाक्य को बनाया जाना चाहिए। अर्थात डॉ मनमोहन सिंह ने मायावती को मुख्यमंत्री बनने पर बधाई दी। अर्थात पुनर्रीक्षण करते समय सभी तथ्यों यथा शब्द चयन, भाषा प्रकृति, शैली, भाषा सौष्ठव आदि शब्दों, घटकों की दृष्टि से अनुदित सामग्री का पुनर्रीक्षण किया जाना चाहिए।
निष्कर्ष – अंत में यह कहा जा सकता है कि अनुवाद कार्य में अनुवादक अनुवाद करते समय कभी इंजीनियर, कभी प्रशासक, डॉक्टर, वकील, कहानीकार, साहित्यकार अर्थात संबंधित विधा के विशेषज्ञ की तरह भूमिका निभाता है। उदाहरणार्थ यदि वह इंजीनियरी की कोई सामग्री अनुदित कर रहा है तो उसे भवन में लगने वाले Beam को ‘बीम‘ ही लिखना होगा न कि ‘किरण’ । यदि कोई चिकित्सा मैनुअल का अनुवाद कर रहा है तो उसे Operation ‘ऑपरेशन‘ ही लिखना होगा न कि ‘कार्रवाई‘ और इसी प्रकार यदि वह किसी बैंक की सामग्री के Instrument का अनुवाद कर रहा है तो उसे इसके लिए ‘ पराक्रम ‘ लिखना होगा न कि ‘ उपकरण ’ । इस अनुवाद प्रक्रिया में अनुवादक को सतत अध्ययनशील तथा कार्यशील बने रहना चाहिए।