साहिब श्री गुरु रामदास जी सिखों की गुरु परंपरा के चौथे गुरु हैं। इनका जन्म कार्तिक कृष्ण पक्ष द्वितिया, संवत, 1591 विक्रमी को लाहौर शहर की चूना मंडी बस्ती में हुआ। नानकशाही जयंती में यह तिथि 9 अक्तूबर, 1534 ई. निश्चित की गई है। गुरु जी के पिता का नाम हरिदास जी और माता का नाम दया कौर(अनूप देवी) जी था। घर में बड़ा पुत्र होने के कारण उन्हें “जेठा” कह के बुलाया जाता था।
संघर्ष एवं अभाव युक्त बचपन — रामदास जी की आयु अभी सात वर्ष ही हुई थी कि पहले माता जी और उसके कुछ समय बाद पिता जी का साया असमय ही सर से उठ गया। उनके नाना उन्हें अपने यहां अमृतसर जिले के “बासरके” गाँव ले आए। यही गाँव तीसरे गुरु श्री अमरदास जी का जन्म स्थान था। बालक जेठा का पालन-पोषण इसी गाँव में हुआ। परिवार की आर्थिक जिम्मेदारियों में हिस्सा बंटाने के लिए वे घुंघणियां(उबला हुआ अनाज, गेहुं आदि) बेचा करते थे।
गुरु अमरदास जी की सेवा — बालक जेठा बारह साल की आयु में एकबार गोइंदवाल साहिब गए। यहां गुरु अमरदास जी के दर्शन करके ऐसे प्रभावित हुए कि सदा के लिए गुरु चरणों में रहने का निश्चय कर लिया। सुबह से ही गुरु अमरदास जी की सेवा में जुट जाते, फिर लंगर में सेवा करते और बाकी बचे समय में घुंघणियां बेचा करते ।
बीबी भानी से विवाह – गुरु अमरदास जी उनकी सेवा-साधना और विनम्रता से अत्यंत प्रभावित थे। एक बार का वाक्य है — गुरु अमरदास जी अपनी पत्नी रामो जी के साथ विराजमान थे। माता रामो जी ने गुरु जी से कहा कि पुत्री बीबी भानी के विवाह की भी फिक्र करें तो गुरु जी ने पूछा कि भानी के लिए किस तरह का वर चाहिए ? सामने भाई जेठा घुंघणियां बेच रहे थे। माता रामो बोले वर तो जेठा जैसा होना चाहिए। गुरु अमर दास जी ने वचन किया — “अपने जैसा तो वह खुद है”। इस तरह 1553 ई. में भाई जेठा का विवाह बीबी भानी से हो गया। उनके जहां तीन पुत्रों का जन्म हुआ — प्रिथीचंद, महादेव और पंचम पातशाह गुरु अर्जन देव जी।
ग्रंथों की रचना – भाई जेठा ने अपने “आनंद-कारज”(विवाह) के समय चार “लावां”(ग्रंथ) की रचना की। इनमें आत्मा-परमात्मा के मिलन का वर्णन किया गया है। अब ये चार लावां सिखों के विवाह के समय एक-एक फेरे के साथ एक-एक पढ़ी जाती हैं। चार फेरे और चार लावां । बाद में गुरु जी ने “वाणी” की रचना भी की, उनके 688 शब्द-श्लोक गुरु ग्रंथ साहिब में भी दर्ज हैं ।
अमृतसर की स्थापना – गुरु जी की योग्यता के कारण ही पहले गुरु अमरदास जी ने उन्हें गोइंदवाल साहिब में “बावली”(कूएं) के निर्माण का काम सौंपा, जो 1559 ई. में संपूर्ण हुआ । इसके बाद उन्होंने 1564 ई. में गुरु की आज्ञा लेकर गांव तुंग के जमीन के मालिकों से 700 रुपए में जगह खरीदकर “अमृतसर” का निर्माण आरंभ कराया। पहले इस स्थान का नाम “गुरु का चक्क”(बाद में जिसे चक्क गुरु रामदास के नाम से भी जाना जाने लगा) रखा गया। वर्तमान में इस नगर का नाम अमृतसर है। 1573 ई. में यहां “अमृत सरोवर” का निर्माण आरंभ हुआ, जिसे 1586 ई. में गुरु अर्जन देव जी ने पूर्ण कराया ।
गुरु गद्धी की प्राप्ति – 1574 ई. में सभी प्रकार से योग्य जानकर गुरु अमरदास जी ने गुरु गद्धी भाई जेठे को सैंप दी और स्वयं ज्योति जोत समा गए। भाई जेठा चतुर्थ गुरु श्री रामदास जी के रुप में गुरु गद्धी पर विराजमान हुए। गुरु जी ने अमृतसर नगर के विकास के लिए विशेष प्रयास किए। 52 कित्ते(विभिन्य प्रकार के व्यवसाय वाले) लोगों को अमृतसर में लाकर बसाया। सात वर्षों के बाद 1581 ई. में वे ज्योति जोत समा गए और अपने सबसे छोटे पुत्र गुरु अर्जन देव जी को गुरु गद्धी की जिम्मेदारी सौंप गए ।
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मैं राजनीति शास्त्र एवं हिंदी में एम.ए हुं, अपने विभाग में यूनियन का अध्यक्ष रह चुका हुं, जिला इंटक बठिंडा का वरिष्ठ उप प्रधान रह चुका हुं, नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति, बठिंडा एवं भुवनेश्वर का सदस्य-सचिव रह चुका हुँ, वर्तमान में अखिल भारतीय कर्मचारी भविष्य निधि राजभाषा संघ का सलाहकार हूँ, आयकर विभाग में सहायक निदेशक के पद पर कार्यरत रह चुका हुँ, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर हिंदी मामलों से संबंधित विशेषज्ञ पेनलों एवं हिंदी संगोष्टियों का हिस्सा रह चुका हुं, अलग-अलग नाम से विभागीय और नराकास की 12 से भी अधिक पत्रिकाओं का संपादक रह चुका हुँ, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन से राजभाषा अधिकारी के पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात जुलाई, 2019 से बतौर परामर्शदाता कौशल विकास और उद्यमशीलता मंत्रालय में तैनात हूँ, 05 वर्ष तक श्री साईं कॉन्वेंट स्कूल, अमृतसर के प्रधानाचार्य का पद संभाला और कुछ समय तक एनडीएमसी, दिल्ली के सोशल एजुकेशन विभाग के कौशल विकास अनुभाग का कार्य भी देखा। मनसुख होटल और करतार होटल अमृतसर का प्रबंधक रह चुका हूँ , भाषाकेसरीओएल के नाम से मेरा यूट्यूब चैनल है और स्वयं की ओर से लिखित पुस्तकों का लेखक भी हूँ ।D