भय प्रगट कृपाला दीन दयाला
डॉ शोभा भारद्वाज
ब्रम्हा के पुत्र महर्षि पुलस्त्य कुल में जन्मा रावण ऋषि विश्वश्रवा एवं उनकी दूसरी पत्नी कैकसी की सन्तान था यह तीन भाई रावण कुम्भकर्ण , विभीषण बहन का नाम स्रूपनखा था चारो ने वन में जाकर कठोर तप किया रावण ने अग्नि कुंड में अपने हाथ से सिर काट कर आहुति दे दी चमत्कार नया सिर उत्पन्न हो गया इस तरह दस सिरों की आहुति देकर ब्रम्हा को सामने प्रगत होने के लिए विवश कर दिया .ब्रम्हा ने रावण से वर मांगने के लिए कहा रावण अमरता का वरदान चाहता था लेकिन प्रत्येक जीव जो जन्मा है उसकी मृत्यू अवश्य होगी. रावण ने कहा उसे मानव एवं बन्दर भालुओं से भय नहीं है वह तो उनकी जीति का भोजन हैं अत : उन्हें छोड़ कर कोई उसकी म्रत्यू का कारण न बने . वर प्राप्त कर वह मुस्कराया मूछों को सहलाया कुंभकर्ण को देख कर ब्रम्हा परेशान हो गये यह विशालकाय उनकी रचित सम्पूर्ण सृष्टि को खा जाएगा .उन्होंने सरस्वती को आदेश दिया वह कुम्भकर्ण की जिव्हा पर बैठ कर उसका विवेक हर ले मांगो वत्स तुम्हे क्या वर दू तुरंत मांगों वर पूर्ण होगा कुम्भकर्ण ने छः माह नींद एक दिन का जागरण माँगा एवमस्तु कहते ही वह वहीं सो गया .विभीषण ने विवेक एवं ज्ञान की कामना की .
रावण के दस सिर ,दस विद्याओं का ज्ञाता परम् ज्ञानी था . बीस भुजायें एक समय में अनेक शस्त्र चला सकता है 20 नेत्र हर दिशा में घूमते थे रावण को मय दानव ने देखा उसकी महत्वकांक्षा को पहचाना यह उन दिनों की बात है रावण हाथ में फरसा कमर में मृग चर्म लपेटे ऋषि एवं शूरवीर के वेश में राक्षस जाति का नेतृत्व करते हुए एक के बाद एक दक्षिण पूर्व एशिया के द्वीपों पर अधिकार जमा रहा था मय समझ गये उनकी अपूर्व सुंदरी ,गौर वर्ण, बुद्धिमान पुत्री के लिए उत्तम वर हैं उन्होंने मन्दोदरी रावण को सौंप दी रावण ने शुभ महूर्त में अग्नि को साक्षी मान सात वचन भर कर मन्दोदरी से विवाह किया .
रावण ने धीरे – धीरे हिन्द महासागर में स्थित द्वीपों पर अधिकार जमा लिए उसका साम्राज्य अफ्रीका के समुद्र तल तक फैल गया अपने सौतेला भाई कुबेर की सोने की लंका एवं उसके पुष्पक विमान पर अधिकार कर लिया जिस पर सवार होकर वह संपूर्ण बिश्व में युद्ध के उन्माद से रत होकर भ्रमण करता एक के बाद एक राजमुकुट रावण के सामने गिरने लगे उसने दानवों के पक्ष में देवासुर संग्राम में हिस्सा लिया रावण का पुत्र मेघनाथ महत्वकांक्षी पिता रावण के समान बलशाली पिता को पूरी तरह समर्पित उसका देवराज इंद्र के बीच भयंकर युद्ध हुआ देवराज बड़ी बहादुरी से लड़े हारने के बाद पकड़े गये, लेकिन उन्हें छोड़ दिया . भयंकर विध्वंस हुआ स्वर्ग का नन्दन वन उजड़ा हुआ था गन्धर्व मारे गये थे अप्सरायें सिसक रहीं थीं बिखरे शवों से स्वर्ग में बहने वाली नदी खून से लाल हो गयी देवराज का चेहरा एवं शरीर खून से सना हुआ था आँखे आंसुओं से भर गयीं दर्द एवं क्षोभ में अपनी हथेलियों को मलते ब्रम्हा जी के पास पहुंचे सृष्टि के रचयिता ब्रम्हा चन्दन से बने कमल की आकृति वाले सिंहासन पर बैठे थे इंद्र ने प्रणाम किया दुःख से कहा आज स्वर्ग की हालत के दोषी आप हैं आपने रावण को वरदान देकर असीम शक्ति प्रदान कर दी उनका गला रुंध गया ,आज देव गण उसकी सेवा में विवश खड़े हैं .
धरती राक्षसों के बोझ से त्रस्त है .धरती के वासी त्राहि –त्राहि कर रहे हैं . ब्रम्हा ने देवराज से कहा आप श्री नारायण की शरण में जाओ उन्हीं में रावण रूपी चिंता का निवारण करने की शक्ति है रावण भी अब सत्ता पाने के बाद भोग विलास में लिप्त हो रहा है इंद्र वैकुंठ धाम पहुंचे सृष्टि के रक्षक श्री हरी को उन्होंने दोनों हाथों को जोड़ कर मस्तक से लगा कर सिर उनके चरणों में झुकाया . अपने कमल रूपी नेत्रों से देवराज की और निहारते हुए कहा स्वर्ग संकट में है रावण से युद्ध में आप पराजित हो गये चिंता न करें आपने रावण के साथ संघर्ष करते हुए अपने धर्म का पालन किया अब भय से मुक्त हो जाईये. ब्रम्हा के वरदान सदैव सत्य होते है वरदानों में ही उसकी मृत्यू निहित है. धरती पर मैं मनुष्य के रूप अवतार लूंगा जीव बानर भालू राक्षसों एवं रावण को पराजित करने में मेरे सहायक बनेगे लक्ष्मी भी धरती पर अवतरित होंगीं वह रावण के विनाश का कारण बनेंगी .
अयोध्या के महाराजा दशरथ सन्तान हीन थे उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए अपने गुरुदेव वशिष्ठ की आज्ञा से यज्ञ का आयोजन किया जैसे –जैसे यज्ञ की लपटों को घी अर्पित किया जाता अग्नि की लपटें नृत्य करती आहुतियों के बीच बादलों के गर्जन जैसी कड़ककड़ाती आवाज सुनाई दी विशालकाय देव धुयें के अम्बार में प्रगट हुये उनके नेत्र शेर के नेत्रों जैसे पीले उनके लम्बे काले केश लहरा रहे थे उनके हाथों में एक पात्र था पात्र में से दूध में पके चावल की मीठी सुगंध आ रही थी. देव ने पात्र महाराज दशरथ की और बढ़ा कर आज्ञा दी राजन जाओ इसे अपनी रानियों में बाँट दो अंत:पुर में जाकर उन्होंने खीर के कटोरे से खीर को बड़ी रानी कौशल्या एवं छोटी रानी कैकई के बीच बाँट दिया दोनों रानियों ने आधे – आधे भाग महारानी सुमित्रा को दे दिए .
नौं माह के बाद चैत्र माह नवमी तिथि भगवान के प्रगट होने का सुअवसर आ गया अयोध्या के आकाश में अपने हर वाद्य को बजाते हुए देवगण श्री हरी की महिमा का गान कर रहे थे पुष्पों की वर्षा होने लगी मंद व्यार बहने लगी दिव्य प्रकाश महारानी का प्रकोष्ठ में फैल गया अन्तिक्ष में ॐ की ध्वनी गूंज रही थी चारों वेद स्तुति गा रहे थे . प्रकाश पुंज अन्तरिक्ष से पृथ्वी पर उतर रहा था उसी के बीच दिव्य स्वरूप में श्री नारायण प्रगट हुए उनकी चारो भुजाओं में शंख , चक्र ,गदा पद्म विराज रहे थे अनुपम रूप महारानी घुटनों के बल हाथ जोड़ कर बैठ गयीं माँ के मन में पहले वैराग्य उपजा फिर मोह हे प्रभू आपके दुर्लभ दर्शन पाकर में धन्य हो गयी मैं नन्हे बालक के रूप में आपकी बाल लीला का सुख लेना चाहती हूँ मुझे कृतार्थ कीजिए नारायण नवजात रूप में माता की गोद में अवतरित हुए बालक के रोने की ध्वनि से राजमहल चहक उठा उसी दिन महारानी कैकई से भरत ,सुमित्रा से दो बालक लक्ष्मण एवं शत्रूघ्न का जन्म हुआ नगर वासी गलियों में नृत्य कर रहे थे मन्दिरों में घंटियां बज रहीं थीं .
राम न बहुत लम्बे थे न छोटे उनका मझौला कद था ,सूर्य से भी अधिक तेजस्वी , गम्भीर आवाज , गहरी साँस , आँखे हरा रंग लिए हुए उनमें गजब की चमक थी , बदन की खाल ठंडी ,कोमल, हरी आभा ऐसी चिकनी थी जिस पर धूल का कण भी ठहर नहीं सकता था , सिर पर घुंघराले बाल जिनकी आभा गहरी हरी थी ,सिंह जैसी चाल ,पैरों के तलुओं पर धर्म चक्र के निशान , उनके सिंह के समान ऊँचें कंधे , चौड़ी छाती भुजायें लम्बी घुटनों तक पहुंचती थी कान तक धनुष खींच कर बाणों का संधान करने की अपार क्षमता , मोतियों जैसे दांत चौड़ी छाती गले पर तीन धारियां, तीखी नाक मजबूत जबड़े भारी भौहें उनकी सांसें कमल के पुष्प सी सुगन्धित थीं वह शौर्य और सुन्दरता का मूर्त रूप राम चौदह कला सम्पूर्ण थे’.
लक्ष्मण उनका भाई उनको पूर्णतया समर्पित सदा उनके साथ चलते थे उनके बदन की खाल सुनहरी , अप्रमित शक्ति , आँखे नीली ,सीधे बाल सुनहरा रंग लिए हुए थे वह राम के सोने के बाद ही सोते थे , राम के साथ ही भोजन गृहण करते थे जब श्री राम घोड़े पर सवार होते लक्ष्मण उनके साथ घोड़े पर सवार होकर चलते थे राम के समान ही शरीर सौष्ठव था श्री भरत की खाल की रंगत ललाई लिए हुए थी ऐसी ही लाल आँखें कमल के समान थीं घुंघराले बाल जिन पर लाल आभा थी . लक्ष्मण के जुड़वाँ भाई शत्रुघ्न शरीर की खाल नीली रंगत की थी काली आँखे काले बाल थे चारो भाईयों का शरीर सौष्ठव एक जैसा था ऐसे अनुपम पुत्र पाकर महाराज दशरथ धन्य हो उठे .