दिल का दौरा पड़ने से प्रसिद्ध साहित्यकार व विचारक डॉ. महीप सिंह (86) का मंगलवार की दोपहर निधन हो गया। भारत भारती सम्मान से नवाजे जा चुके डॉ. सिंह के निधन से साहित्य जगत में शोककी लहर है।
उन्नाव में जन्मे, कानपुर में पले बढ़े संपादक, साहित्यकार और स्तंभ लेखक महीप सिंह दिल्ली पहुंच कर भी कानपुर को ही जीते रहे। उनके लेखन में यहां की माटी का सोंधापन हमेशा जीता रहा।1जन्म के बाद ही उनका परिवार कानपुर के रेलबाजार बाजार में बस गया। उनके भाई की बिरहाना रोड में साइकिल की दुकान थी और बाद में भाई किदवई नगर में रहने लगे। प्रचार प्रसार से दूर रहने वाले कहानी कार महीप सिंह हमेशा दूसरों के लिए जीते रहे। परिचितों की परेशानी सुन वह द्रवित हो जाते और उनकी समस्या हल करने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। 1पद्मश्री साहित्यकार डॉ. गिरिराज किशोर का कहना है कि उनके जैसे लेखक कम ही होते है। अच्छे रचनाकार होने के बाद भी वह प्रचार प्रसार को कभी पसंद नहीं करते और गुटबंदी में कभी नहीं शामिल हुए। उनके लेखन में स्वतंत्रता थी और वह कभी किसी से प्रभावित नहीं हुए। पूछने पर ही वह अपने कृतित्व के बारे में जानकारी देते थे। अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में पुरस्कार कमेटी के सदस्य के रूप में उन्होंने अपने एक शिक्षक मित्र को पद्मश्री दिलवाने में काफी मदद की। इसे लेकर उनकी आलोचना भी हुई किंतु उन्होंने कोई परवाह नहीं की। साहित्य अकादमी की तरफ से हुई चीन यात्र का जिक्र करते हुए डॉ. गिरिराज किशोर ने कहा कि रात में डॉ. महीप सिंह की तबियत अचानक बिगड़ गयी तो उन्होंने पास में रखी कुछ दवाएं दीं और रात भर सिरहाने बैठ रहे। सुबह महीप सिंह ने कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा, ‘वह न होते तो रात में जाने क्या होता।’ डॉ. महीप अपनी रचनाओं के बूते हमेशा जीवित रहेंगे। 1कथाकार अमरीक सिंह दीप ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि अमन प्रकाशन ने उनकी कहानियों का संग्रह प्रकाशित किया था। उनकी कहानियां मानवीय संवेदना से परिपूर्ण होती थीं। दिल्ली के करोलबाग स्थित खालसा कालेज में शिक्षक रहे महीप सिंह ने सामाजिक और धार्मिक लेखों के साथ ही सिखों का इतिहास भी लिखा। दिल्ली में रहते हुए उन्होंने संरचना पत्रिका निकाली जिसमें नये लेखकों को अवसर मिलता था। अमरीक सिंह की कहानी ‘तीसरा रंग’ भी उसमें छपी थी।कानपुर, जागरण संवाददाता: उन्नाव में जन्मे, कानपुर में पले बढ़े संपादक, साहित्यकार और स्तंभ लेखक महीप सिंह दिल्ली पहुंच कर भी कानपुर को ही जीते रहे। उनके लेखन में यहां की माटी का सोंधापन हमेशा जीता रहा।