क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है? हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है। एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम और आज कई बार
बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है!! कितने दूर निकल गए, रिश्तो को निभाते निभाते खुद को भी खो दिया हमने, अपनों को पाते पाते
12 मार्च 2016
क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है? हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है। एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम और आज कई बार
बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है!! कितने दूर निकल गए, रिश्तो को निभाते निभाते खुद को भी खो दिया हमने, अपनों को पाते पाते
सच है ये, लेकिन ये आज की डिमांड है । हम कमाने मे इतना बिज़ि हो जाते हैं की बाकी सब रेह जाता है ।
14 मार्च 2016