मकान चाहे कच्चे थे लेकिन रिश्ते सारे सच्चे थे... चारपाई पर बैठते थे पास पास रहते थे... सोफे और डबल बेड आ गए दूरियां हमारी बढा गए..
छतों पर अब न सोते हैं
बात बतंगड अब न होते हैं..
आंगन में वृक्ष थे
सांझे सुख दुख थे...
दरवाजा खुला रहता था
राही भी आ बैठता था.