औरत तो अपना फर्ज़ खूब निभाती रही,
और ये दुनिया मासूम पर ज़ुल्म ढाती रही
न मालूम कितनी कुर्बानियां दी हैं अब तलक,
वो बेक़सूर होकर भी ताउम्र सज़ा पाती रही
बेटी, माँ, सास का किरदार सलीके से निभाया,
इनाम तो न हुआ हासिल ज़िल्लत ही पाती रही
उसे इल्म ही न था कुछ सीखने समझने का,
यही एक कमी थी दुनिया बेवक़ूफ बनाती रही
कौन कहता है औरत कमज़ोर है, लाचार है
मिसाल है झांसी की रानी दुश्मनों को डराती रही
आज फिज़ाँ बदली है नारी ने ऊँची उड़ान भरी है
हर महकमे पर काबिज़ अपना सिक्का जमाती रही
चान्द को छूने वाली सुनीता भी मिसाल बनी,
ऐसी साइंसदाँ नारी सबसे इज्ज़त पती रही
जो गुजरी वो तवारीख़ है आज समां तेरे हाथों में,
नसीब भी बदल डाला नये पलान बनाती रही
नारी ममता, लाड़, प्यार की सच्ची देवी है
"रत्ती" इमानदारी से अपना काम निभाती रही
-सुरिन्दर रत्ती