प्रसंग
मंचन के दौरान /
बा बू हर दयाल वास्तव हास्य नाट्य समारोह में बुधवार को ‘मसाज’ नाटक में अकेले ही कई चरित्र निभा रहे चर्चित अभिनेता राकेश बेदी हॉल में मोबाइल बजने व कैमरों के फ्लैश चमकने से इतने खिन्न हुए कि उन्हें अभिनय रोक कर दर्शकों को नाटक देखने की तमीज सिखानी पड़ी। एक अभिनेता के लिए किसी चरित्र में उतरना, उसे मंच पर जीना कितना दुस्साध्य होता है, कितने कंसंट्रेशन की जरूरत होती है, यह शायद आज के दर्शक समझते ही नहीं या वहां जाना भी ‘जस्ट फॉर फन’ है। कुछ संजीदा नाट्य प्रेमियों ने अगर यह टिप्पणी की कि लखनऊ के दर्शकों में अब नाटक देखने की तमीज नहीं रही तो क्या गलत/
हाल के वर्षों में ऐसा कई बार हो चुका है। कुछ वाकये फांस की तरह गड़े हुए हैं।
पिछले साल लखनऊ लिटरेचर कार्निवाल में सलीम आरिफ के निर्देशन में बहुत संजीदा नाटक खेला जा रहा था, जो पति-पत्नी के उतार-चढ़ाव भरे रिश्तों के बहाने स्त्री-पुरुष संबंधों के विविध आयाम और आवेग को पेश करता है। बहुत प्रभावशाली संवाद थे, जो चिंतन-मनन की अपेक्षा करते थे, लेकिन दर्शक हर संवाद पर तालियां पीट रहे थे, गोया वे नाटक नहीं कोई प्रहसन या फिल्म देख रहे हों। पुराने दर्शक नाटक के बीच में ही नहीं, दृश्य परिवर्तन के दौरान भी तालियां बजाना आपत्तिजनक मानते थे। नाटक की कथा वस्तु, अभिनय और निर्देशक का संदेश ध्यान से ग्रहण कीजिए और तालियां अंत के लिए सुरक्षित रखिए।
सिर शर्म से झुक जाता है, जब बाहर से आए मशहूर अभिनेता नाटक रोक कर दर्शकों से शांत रहने की चिरौरी-सी करते या नाराजगी जताते हैं।
दो-तीन साल पहले मुम्बई से आए प्रसिद्ध अभिनेता अतुल कुलकर्णी गुलजार की नज्मों-डायरियों पर आधारित नाटक पेश कर रहे थे। देश विभाजन के समय हुए दंगों की भयावहता का प्रसंग था। पति-पत्नी दो बीमार बच्चों को लेकर ट्रेन की छत पर बैठे सीमा पार भाग रहे हैं। एक बच्चा मर गया। दहाड़ें मारती पत्नी को सम्भालते हुए पति निर्जीव बच्चे को नीचे फेंकता है, लेकिन दुख, बदहवासी और दहशत में जिंदा बच्चे को फेंक बैठता है। त्रासदी के इस चरम पर भी हॉल में मोबाइल बज रहे थे। अतुल कुलकर्णी ने एक-दो बार ध्यान नहीं दिया, लेकिन फिर दुखी होकर नाटक रोक दिया और अपना आक्रोश व्यक्त किया था। इसी तरह जया बच्चन ‘हजार चौरासी की मां’ में मां का किरदार निभा रही थीं। फोटोग्राफर मंच पर चढ़कर क्लोज अप लेने लगे और दर्शक उनसे हटने को कहने लगे थे। मां की पीड़ा का अभिनय छोड़कर जया ने लखनऊ के दर्शकों को लताड़ा था। तुगलक नाटक के दौरान प्रख्यात अभिनेता मनोहर सिंह ने दर्शकों को जो गुस्सा दिखाया था, वह पुराने नाट्य प्रेमियों को याद होगा।
वे याद दिलाते हैं कि आप तो तहजीब के लिए मशहूर लखनऊ के दर्शक हैं!
लेकिन यहां तहजीब बची है क्या !!!!!!!!!
साभार नवीन जोशी