18 जुलाई 2015
बहुत सुन्दर लेख!
29 सितम्बर 2015
आशीष जी, आपके विभिन्न विषयों पर लेखों के बीच ऐसी हास्यपूर्ण रचनायें भी हमारे शब्दनगरी मित्रों को पसंद आती हैं. हमेशा गंभीर रहना भी अच्छा नहीं होता. लेख प्रकाशन हेतु बधाई !
20 जुलाई 2015
शर्मा जी इस रचना को हास्य रूप में ले, अन्यथा नहीं.. दुसरे ये भाषा कौन बोलता है अपने सार्वजनिक रूप में कोई भी नहीं ..फिर भी आपने जो विचार व्यक्त किया उसके लिए आभार
19 जुलाई 2015
जो लोग हिंदी पढ़ने के लिए मेहनत नहीं करते फिर भी हिंदी से लाभ उठाना चाहते हैं और जनता को हिंदी अपनाने से दूर भी रखना चाहते हैं वही अंग्रेजी समर्थक हिंदी का मजाक उड़ाते हैं इसलिए हिंदी प्रचार-प्रसार में व्यस्त लेखकों को इस चक्र में नहीं पड़ना चाहिए। कलिष्ठ हिंदी वाला किस्सा अब पुराना हो चुका है और भारत सरकार के प्रशासनिक एवं वैज्ञानिक शब्दावली आयोग द्वारा प्रमाणित शब्द ही उपयोग में लाने का सुझाव दिया जाता है चाहे वो अंग्रेजी के ही शब्द क्यों न हों ।
19 जुलाई 2015
बहुत-बहुत आभार शालिनी,मंजीत एवं नरेंद्र जी इस क्लिष्ट हिंदी को पढ़ कर आपने आनंद लिया..
19 जुलाई 2015
बहुत सुन्दर प्रयोग .. हिंदी से ही हंसाया और हिंदी से ही भरमाया .. भाई वाह मजा आ गया सुबह सुबह .. धन्यवाद आशीष जी . "चक्र तो वक्र हो गया " पर हिंदी पर फख्र हो गया ..
19 जुलाई 2015
हहहहहह ... :D हे त्रिचक्र वाहिनी सुधारक महोदय..... बहुत बढ़िया, बहुत बढ़िया आशीष जी .. .... काश आपके इस सफर में हम भी आपके साथ होते ... वाकई में काबिले तारीफ़ ... ऐसे ही लिखते रहिये ... आप हँसाते है तो अच्छा लगता है ....
18 जुलाई 2015
aaj kee hindi roman hai english hai .vah nahi jo aap bol rahe hain .very nice .
18 जुलाई 2015