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कविता

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बिन आँखों के भी अश्क निकलते हैंपत्थरों से पुछा तो जवाब आयाहम बिना दिल के भी धङकते हैबिन आँखों के भी अश्क निकलते हैं,समझते हैं चलने वाले समझ करऔर करे भी क्या बुझ करचकाचौंध लाइट मेंभागती भगाती जिन्दगी मेंइंसान

https://laxmirangam.blogspot.in/2016/11/blog-post_36.htmlविधाता क्यों बदनाम करो तुम उसको, उसने पूरी दुनियां रच दी है. हम सबको जीवनदान दिया हाड़ माँस से भर - भर कर. हमने तो उनको मढ़ ही दिया जैसा चाहा गढ़ भी दिया, उसने तो शिकायत की ही नहीं इस पर तो हिदायत दी ही नहीं। हमने तो उनको पत्थर में भी

तेरी सांसो की महक सांसो में मेरी शामिल हैतेरे बिना सफ़र जिन्दगी का बहुत मुश्किल हैतेरे हर अंग में मेरी मुहब्बत का पाक मंदिर हैये दिल यादों में सदा जिसकी हुआ गाफिल हैचाहत इंसानों की जहाँ हद से गुजर जाती हैऐसे रिश्तों को यहाँ मिलती ना कोई मंजिल हैतन्हा रहता है दर्द सहता है और मुस्कुराता हैहर इंसान अब

आज तनिक अनमनी व्यथित होसोचा कैसा जीवन है यह?रोज़ एक जैसी दिनचर्या !न कुछ गति न ही कोई लय !!इक विचार फिर कौंधा मन में चलो किसी से बदली कर लें कुछ दिन कौतूहल से भर लें ,कुछ नवीन तो हम भी कर लें!एक -एक कर सबको आँका सबकी परिस्थिति को परखाकुछ-कुछ सबमें आड़े आयानहीं पात्र फिर कोई सुहाया !कहीं बहुत

आस्थाओं की आस्था प्रेम की पराकाष्ठानिज का दफ़न ताप,माँ और बाप ..आंसुओं के नदपरवाह की हद अपनेपन की अमिट छापमाँ और बाप ..कतरा कतरा अर्पण निजसुख का तर्पण मोह का कालजयी शाप माँ और बाप ..समझोतों के सौदागरनिर्भर जीवनभर इच्छा? सुई की नाप माँ और बाप ..ईश्वर की क्षतिपूर्ति गतिशील मूर्ति व्योम सा सर पर हाथ माँ

कहीं बरसे नयन । बारिश से धुले मौसम । आसुओं से धुले मन । जाते हुए पल कितने खामोश हैं ! वो चुप सी तस्वीर यादों में बसी है । उस खामोश तस्वीर से, मैं बातें करता हूँ । लगता है उसके होंठ क्या कहा ? सुन नहीं पाता हूँ । -रवि रंजन गोस्वामी

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मैं तो अँधेरे में जी रहा थाटिमटिमाती ढिबरी के सहारेउसने मेरी झोपड़ी मेंआग लगाकर रोशनी कर दीअब मैं बेसहारा बन करइस रोशनी में जल रहा हूँनमक की हाड़ी की तरहजाड़े में गल रहा हूँजौ तो साबुत बचे हुए हैंजो घुन है पिस रहे है यह जो डिजिटल चक्की हैकोई साज़िश पक्की हैदिवंगत होती

देश बेंच के खा डाला है नेता और दलालों ने ।जनता के घर डाका डाला मिलकर नमक हरामों ने ।खादी टोपी बर्बादी की बनी आज परिचायक है ।चोर उचक्के आज बन गए जनता के जन नायक हैं ।गाली – गोली किस्मत अपनी जीवन फँसा सवालों में ।देश बेंच के खा डाला है नेता और दलालों ने ।सरकारी जोंकें चिपकी हैं लोकतन्त्र के सीने में ।

त्याग कर सारी निराशा दृढ़ मनोबल से बढ़ा, तब पराजय के शिखर पर जय पताका ले चढ़ा ! ……………… थी कमी प्रयास में आधे - अधूरे थे सभी, एक लक्ष्य के प्रति आस्था न थी कभी, अपनी ही कमजोरियों से सख्त होकर मैं लड़ा

तेरे इंतज़ार में पलकें बिछाए बैठें हैं तू आए या नहीं आए उम्मीद लगाए बैठे हैंअंधेरे में भी तेरी परछाईं ढूँढ रही हैं यह नज़रेंतेरे दीदार को तरस रहे हैं सुनसान कमरे में तेरी आवाज़ सुनने को तरस रहे हैं तेरी महक जाती नहीं है साँसों से मेरी, उसे क़रीब से महसूस करने को तरस रहे हैं तेरे स्पर्श का आकर्षण अब

“आदमी” आदमी हँस रहा है, आदमी डंस रहा है आदमी गा रहा है, आदमी खा रहा है जा रहा है आदमी, छा रहा है आदमी आदमी जी रहा है, आदमी मर रहा है।। आदमी बन रहा है, आदमी तन रहा है आदमी धुन रहा है, आदमी गुन रहा है कुढ़ रहा है आदमी, चिढ़ रहा है आदमी आदमी पिस रहा है, आदमी घिस रह

कुछ रंग तू भर दे स्याही में ,कुछ हवा दे दे अरमानों को, कलम भी तेरी कलाम भी तेरा, तू रुख बदल दे तूफानों के ...

एक रात समाचार है आयापाँच सौ हज़ार की बदली माया५६ इंच का सीना बतलाकरजाने कितनो की मिटा दी छायावो भी अंदर से सहमा सहमापर बाहर से है अखरोटजब से बदल गया है नोट.... व्यापारी का मन डरा डरा हैउसने सोचा था भंडार भरा हैहर विधि से दौलत थी कमाईलगा हर सावन हरा भरा हैएक ही दिन मे देखो भैयाउसको कैसी दे गया चोटजब

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Intro Poem Kadr Kavya Comicबेटा जब बड़े हो जाओगे….बेटा जब बड़े हो जाओगे ना……और कभी अपना प्रयास निरर्थक लगें, तो मुरझाये पत्तो की रेखाओं से चटख रंग का महत्त्व मांग लेना। जब जीवन कुछ सरल लगे,तो बरसात की तैयारी में मगन कीड़ो से चिंता जान लेना।बेटा जब बड़े हो जाओगे ना……और कभी दुख का पहाड़ टूट पड़े,तो कड़ी धूप

तेरी नज़रें बिन बोले भी, बहुत कुछ कहती हैं हमसेहोती हो जब तुम ख़ुश, ब्यान करती हैं यहहोती हो जब उदास, बता देती हैं यहहोती है जब मिलने की आस, समझा देती हैं यहहोती हो बिछुड़ने को जब, ज़ाहिर कर देती हैं यह करती हो जब कोई नदानी, बोल देती हैं यहकरती को जब कोई शरारत, बता देती हैं यह छुपाती हो कभी जब दर्द

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दिल मे आग का तूफान जला रखा था, आंखो मे कुछ पाने को अरमान खिला रखा था, मालूम ना थी मंजिल का ठिकाना मगर, चाहत मे उसने जहाँ भुला रखा था। इंटरनेट पे कभी गुगल करता, अखबारो सेकभी मंजिल का पता पूछ्ता, दौर परता उम्मीदकी थोरी सी किरन देख, निराशा

मुस्कुराना सीख लिया है मैंने दिल का दर्द दबाने के लिए मुस्कुरा देता हूँ ग़मों को भुलाने के लिए मुस्कुरा देता हूँआँसुओं को छुपाने के लिए मुस्कुरा देता हूँ यादों को मिटाने के लिए मुस्कुरा देता हूँ मायूसी को छुपाने के लिए मुस्कुरा देता हूँ रंज को मिटाने के लिए मुस्कुरा देता

दबे जस्बादों को उभार कर जीना सीख लिया है दिल के टुकड़ों को संजो कर जीना सीख लिया है ग़मों को हंसी में डुबोकर जीना सीख लिया है ज़ख्मों के साथ मुस्कुरा कर जीना सीख लिया है खुदगर्ज़ रिश्तों को दरकिनार कर जीना सीख लिया है हताशा में भी आशा की किरण ढूँढ़कर जीना सीख लिया है विफलत

तेरी याद आते ही क़लम ख़ुद बा ख़ुद चलने लगती है दिल के ज़स्बाद, लफ़्ज़ बन काग़ज़ पर उतर आते हैं मन की बातों को स्वर का मिल जाता है ख़्वाबों को अभिव्यक्ति का ज़रिया मिल जाता है तमन्नाओं को प्रकट होने का मौक़ा मिल जाता है इन कविताओं के ज़रिए तुझ से रूबरू होने का आभास हो जाता है तेरी याद आते ही, क़लम ख़

मुस्कुराना सीख लिया है मैंने दिल का दर्द दबाने को मुस्कुरा देता हूँ ग़मों को भुलाने के लिए मुस्कुरा देता हूँआँसुओं को छुपाने के लिए मुस्कुरा देता हूँ यादों को मिटाने के लिए मुस्कुरा देता हूँ मायूसी को छुपाने को मुस्कुरा देता हूँ रंज को मिटाने को मुस्कुरा देता हूँरोष को दबाने को मुस्कुरा देता हूँ रिश

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