तेरे इंतज़ार में पलकें बिछाए बैठें हैं
तू आए या नहीं आए उम्मीद लगाए बैठे हैं
अंधेरे में भी तेरी परछाईं ढूँढ रही हैं यह नज़रें
तेरे दीदार को तरस रहे हैं
सुनसान कमरे में तेरी आवाज़ सुनने को तरस रहे हैं
तेरी महक जाती नहीं है साँसों से मेरी,
उसे क़रीब से महसूस करने को तरस रहे हैं
तेरे स्पर्श का आकर्षण अब भी खींचता है मुझे
तुझे छूने को तरस रहे हैं
तेरे प्यार में है जादू
उस जादू से रूबरू होने को तरस रहे हैं
तेरे इंतज़ार में पलकें बिछाए बैठें हैं
६ दिसम्बर २०१६
जिनीवा