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कविता

hindi articles, stories and books related to kavita


घर तक तो तेरे पहुँच गए दहलीज़ मगर पार कर ना पाए दिल से बहुत चाहा तुझेज़ुबान से मगर बता ना पाए आँखों से आँखें मिली कई बारउन में बसी तेरी मूर्त मगर दिखा ना पाए लिखे तेरे नाम ख़त कई, तुझ तक मगर, पहुँचा ना पाए बनाई कई तस्वीरें तेरीजान उन में मगर डाल ना पाए प्यार तुझ से किया ख़ुद से ज़्यादाप्यार मगर तेरा

किसे में असली समझू... तेरे उन बेबाक़ शब्दों को.. या उन चुप होंटो को, तेरे उन शोर मचाते झगड़ो को.. या उन गुपचूप से मासूम आँसुओ को, किसे में असली समझू ...तेरे बार-बार नाराज होने को..या तेरे भेजे उन रोमांटिक गानों को,किसे में असली समझू.

तुझ से बिछड़ कर जाना आसान नहीं है जीना वो सब छोटी छोटी बातें जिनका मोल समझता नहीं था आज पता लगा कितनी अनमोल हैं वोसुबह आज भी होती है मगर तेरी मुस्कुराती सूरत दिखती नहींरात आज भी होती हैमगर सुकून की नींद जो तुझे पकड़ कर आती थी, वो अब आती नहीं फ़ोन की घंटी आज भी बजती हैपर द

आज जलंधर फिर आया है हाहाकार मचाने को अट्टहास

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अपना उधार ले जाना!तेरी औकात पूछने वालो का जहां, सीरत पर ज़ीनत रखने वाले रहते जहाँ, अव्वल खूबसूरत होना तेरा गुनाह, उसपर पंखो को फड़फड़ाना क्यों चुना?अबकी आकर अपना उधार ले जाना!पत्थर को पिघलाती ज़ख्मी आहें,आँचल में बच्चो को सहलाती बाहें,तेरे दामन के दाग का हिसाब माँगती वो चलती-फिरती लाशें। किस हक़ से देखा

भारत सरकार ने8 नवम्बर 2016 को रात 8 बजे हज़ार पांच सौ के नोटों को अमान्य किये जाने की घोषणा कीअगले चार घंटों में देश एटीएम के आगे कतारों में खड़ा हो गयासयाने लोग सोना खरीदते

करेंसी बैन ने जीवन परिवर्तन कर दिया। 10-12 दिन से जहाँ देखो वहाँ बस कतारें ही नज़र आ रही है। यह स्थिति किसी के लिए बड़ी दर्द दायीं है तो कोई इस हाल का लुत्फ़ उठा रहा है। मैंने अपनी समझ के हिसाब से इसे शब्द देने की कोशीश की... लगी है ऐसी कतारें

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एक देश में कई देश देखालाइन में खड़ा दरवेश देखाजड़ खोदकर फल इतरा रहा हैकिसकी ज़मीन खा रहा हैभस्मासुर गा रहा हैगंगाजल बेचकरनमामि गंगे गा रहा हैलक्ष्मी के दरबार मेंश्रीहीनता का दौर हैदिवंगत धन के बोझ सेनिजात पा कर पेट खाली हैदुरभिसंधि की जुगा

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अदा रखती थी मुख्तलिफ ,इरादे नेक रखती थी , वतन की खातिर मिटने को सदा तैयार रहती थी . .............................................................................. मोम की गुड़िया की जैसी ,वे नेता वानर दल की थी ,,

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आंसूआपने रोहित वेमुला की माँ की आँखों में आंसू देखे थे ?आपने नजीब की माँ की आँखों में भी आंसू देखे थे ?पर आपको वह नजर नहीं आये ...वह नेता नहीं थेवह नेताओं के पुत्र-पौत्र नहीं थे...आपने उस उना काण्ड में मार खाने वालों के भी आंसू देखे थेआपको उस वक्त क्या लगा था ?आपने जब वह फैसला आया जब देश में आप जो र

एक मुक्त काव्य......... सुबह से शाम हुई कतारें बदनाम हुई धक्का मुक्की बोला चाली काका हजारी की राम राम हुई।। दिन भर चले अढ़ाई कोस घर से निकले हो मदहोश नए नोट का सपना अपना बैंक भर गए पुराने कोष।। दो हजारी बाहर आई सेल्फ़ी ने माला पहनाई चेहरे चढ़ी है लाली लाल शादी मंडप अरु शहनाई।। नए कदम की

जब एक फैसला हुआउस दिन एक बुजुर्ग की नजर में चमक दिखी थीदुसरे दिन बेंको में अपने नोट जो कुछ ही दिन पहले निकले थेबदलने गएउनका बीपी बस बढ़ने लगा था...वह तो देश को अपने सीने में बसा के आया थापर जब अपने आस-पास देखा बूढ़े-गरीब अपना काम छोड़कर अपने लिए खड़े थेदेश के नाम परमैं सोचते हुए आगे बढा ही थाबैंक में पै

शब्‍द कुछ अपने कुछ पराये,शब्‍द कुछ छोटेकुछ बड़े,शब्‍द कुछ साथ कुछ अकेले,शब्‍दकुछ थुलथुलेकुछ बुलबुले,शब्‍द ही तोमात्र शब्‍दनि:शब्‍द ।।

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ये जो प्रदूषण की बात करके हम चिंतित होते हैं तो क्या वाकई हम बढ़ते प्रदूषण के कारण चिंतित होते हैं ये जो महँगाई की बात करके हम चिंतित होते हैं तो क्या वाकई हम कीमतों की मार से चिंतित होते हैं और ऐसी चिंताएं हम तभी क्यों करते हैं जब सबके साथ होते हैं तब ऐसी ही च

गँवई बात हकीकत कै । बँटवारे का लइके अबकी बहुत बडा होइगा बवाल । अम्मा केकरे मा रहिहैं के झेले बाबू कै सवाल ॥ गाँव देश कै पर पँचाइत किहिन यक्कठी बगिया मा । बइठ के दूनौ रहे चौधरी बात बनावै सझिया मा ॥ अम्मा बाबू सोच के रोवैं ई कवन मुसीबत आन पडी । दूनौ दुल्हिन जबसे लडि अप

"चौपई" पहला पहला मिलन बिभोर, चाहत बढ़ जाती है जोर अच्छा लगता कैसे शोर, चोरी चुपके आ चित चोर।। मिलन आतुरी आँखें चुराय, कुछ घबराती औ शरमाय चले चकोरी आस लगाय गलागली तनमन बहलाय।। महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

लाल बुझक्कड़ की सरकार मेंसनसनी ही सनसनी हो रही हैजनता में जनता का ही हिस्सा हैऔर उस हिस्से का कोई किस्सा हैबासी अख़बारों की तरह योजनाएँरोज काले चश्मों से पढ़ी जाती हैंसमाधान भी विचित्र गढ़ी जाती हैपेट की आग पर पूंजी पक रही हैबटलोई में कोई राज ढक रही हैजो तिजोरी में बंद है वह सफ़ेद हैजेब से जो बच गया वह

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दिल्ली में छायी प्रदूषित धुंध नेजीना मुहाल कर दिया जागरूक लोगों ने पर्यावरण -संरक्षण का ख्याल कर लिया नेताओं के बयान आये फ़ौरी सरकारी समाधान आये राजनीति की बिसात बिछी दोषारोपण का दौर आरम्भ हुआ ज़हरीली हवा में श्वांस लेने वालों की तकलीफ़ों का अ

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