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कविता

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मदारी फिर घूम रहा हैपिटारा लेकर बातें दोहराएगा चटखारा लेकर मज़मा लगाकर चुरा लेगा आँखों का सुरमा बताएगा पते की बात कह उठेंगे हाय अम्मा बनाएगा अपने और अपनों के काम मन रंजित कर चकमा देकर

जाननाएक ने कहा- वह विद्वान है । दूसरे ने कहा - वह सरल है। तीसरे ने कहा- वह पागल है ।मैं उससे मिला-मैंने उसे हर दृष्टि से देखा परखा।मैंने पाया- वह ‘ईमानदार’ है। उसको तो मैं जाना हीसाथ ही बाकी तीनों को भी जान गया।

प्रत्याशा नई सदी, नई पवन,नव जीवन, नव मानव मन,नव उमंग, नव अभिलाषा करते ये ज्यों स्वागत-सा।नव शीर्षक नव परिभाषा,नव दृष्टि नव जिज्ञासा,शून्य से अनंत तक,नई आशा, नई प्रत्याशा।मंजरी यह एक तुलसी की?या फल एक साधना का?है अरुणिमा रूपी आशा,या जननी की अमृताशा?फैली आज ब्रह्मांड में, न

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मुझे उम्मीद नही है, कि वे अपनी सोच बदलेंगे.. जिन्हें पीढ़ियों की सोच सँवारने का काम सौपा है..! वे यूँ ही बकबक करेंगे विषयांतर.. सिलेबस आप उलट लेना..! उम्मीद नही करता उनसे, कि वे अपने काम को धंधा नही समझेंगे.. जो प्राइवेट नर्सिंग होम खोलना चाहते हैं..! लिख देंगे फिर

मापनी- 122 122 122 12, 10- 8 पर यति, पदांत- लघु गुरु "शक्ति छंद" मना लो गले से लगालो मुझे तमन्ना तुम्हारी मनालो मुझे।। भटकने न दो आस मेरी वफ़ा न होती जुदा खास मेरी वफ़ा।। निगाहें रहम की पियासी नहीं न रखती वहम मैं शियासी नहीं।। अरज आरती दीप आहें भली चली मनचली आप अपनी गली।। महातम मिश्र, गौतम ग

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सत्य की खातिर लड़ो और अत्याचार कभी ना सहोसर को सदा ऊँचा रखो और अपनी सारी बातें कहोमेरी इस शिक्षा को ही तो मेरी संतान ने ग्रहण कियातभी तो उसने मेरे विरुध्द लड़ने का एक प्रण कियाधर्म युद्ध होता है जब तो कुछ भी गलत होता नहीँपर युद्ध ना करना पड़े मिलजुल कर तो सोचो यहीजब तक दुर्योधन ने भी भूमि देने से ना म

कवि: शिवदत्त श्रोत्रियअगर दोनो रूठे रहे, तो फिर मनाएगा कौन?लब दोनो ने सिले, तो सच बताएगा कौन?तुम अपने ख़यालो मे, मै अपने ख़यालो मेयदि दोनो खोए रहे, तो फिर जगाएगा कौन?ना तुमने मुड़कर देखा, ना मैने कुछ कहाँऐसे सूरते हाल मे, तो फिर बुलाएगा कौन?मेरी चाहत धरती, तुम्हारी चाहत आसमानक्षितिज तक ना चले, तो म

"पिंडिया" पिंडिया लगाउंगी, सखियाँ बुलाऊंगी आज बाबुल दुवरा गोवर्धन बनाउंगी कजरी के गोबर व भइया के जौहर एक ही छलांगां पहाड़ कूद जाऊंगी।। चुनचुन चिचिहड़ा घासपाती मकहड़ा गन्ने के पोरवा ले बनाउंगी रमकड़ा मांटी की खपरी पहाड़ों की बखरी भांवर घुमाउंगी गोबरधन सड़सड़ा।। पिंडिया की रातजग दीया मशाला पोखर ता

"चौपई" भारी भीड़ लगी है मोल, रख अपना दरवाजा खोल छूट न जाए कोई होल, न कोई रगर न मोलतोल।।-1 पैसा झोला अपने पास, उलट पलट कर खेलो तास कौन पराया कौ है खास, अपनी रोटी अपनी घास।।-2 अपना दीपक अपना राम, साफ सफाई अपना काम आओ लक्ष्मी मेरे धाम, सह सह विष्णु विराजो वाम।।-3 महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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मेरे अपनों ने मेरे संग ये कैसा काम कर डाला मुझे रूसवा ज़माने भर में सरे शाम कर डालामुझे मालूम ना था मेरे घर में कई सर्प पलते हैउन्हे मौका मिला ज्यों ही मुझे तमाम कर डालालाख शक्ति थी रावण में राम से बैर करने कीविभीषण ने मगर हार का इन्तजाम कर डाला ज़माना भर यहाँ करता है श्री राम का

कुछ बच्चे औपचारिक शिक्षा के लिये अपने को अयोग्य पाते हैं किन्तु उनके अभिभावक इस सत्य को अस्वीकार करते हैं और अनावश्यक दबाव में बच्चे असहज रहते हैं - ऐसे माता पिता के लिये एक बच्चे की करुण पुकार ... मॉं मैं सबसे अलग थलग क्यूँ कक्षा में पड़ जाता हूँ ? कई बार तो कान पकड़ कर बाहर ही

इस जहां में.. अकेले ही आना है अकेले ही जाना है, किस बात की उम्मीदें किस बात का फसाना है. कितने राज इस जहां में किसी ने नहीं जाना है , बस अपने पीछे कुछ निशान छोड़कर जाना है. .. नरेन्द्र जानी (भिलाई) 🚥 लघु

ख्वाब कश्मीर का छोड़ दे,वरना जिंदगी मुहाल हो जायेगा,तबाह हो जायेगा तू, खुद के लिए भी सवाल हो जायेगा. मत छेद हमारे सब्र को, अंदर शोले हैं चिंगारी भी,रोक न पायेगा फिर, एक-एक हिंदुस्तानी भूचाल हो जायेगा.

रंग बदल देंगे,हम ढंग बदल देंगे,पाकिस्तान तेरा रूप रंग बदल देंगे. वक़्त है अब भी सुधर जाओ, वरना, बाप हैं तुम्हारे, जीने का ढंग बदल देंगे.

मारने मारने की बात करता है, अरे ओ नादान,पहले जीना तो सिख ले ऐ पागल पाकिस्तान.नापाक इरादे हैं तेरे, नापाक हर एक हरकत है,अतीत से कुछ सिख, तेरा बच जायेगा वर्तमान.

बहुत हुआ यह खेलम-खेलापूरी हो बिछड़न की वेला अब तो मेरी जान में करार रहने दे ; मेरे प्यार के उस रूप को साकार रहने दे || हो बहुत लिए हम दूर , अब सहा नही जाता मुझसे मुझ बिन जिन्दा नही रही वो , देखा कैसे जाता तुझसे सुन ले मेरी अर्जी एक बार रहने दे ; मेरे प्यार के उस रूप को साकार रहने दे ||गर मुस्काई ज

“कुंडलिया” कणकण है बिखरा जगत, धरती करें पुकार माँटी माँटी पूछती, कहाँ चाक कुंभार कहाँ चाक कुंभार, सृजन कर दीया-बाती आज अमावस रात, दीप बिन नहीं सुहाती कह गौतम अकुलाय, रहो जस माँटी कंकण अलग अलग दरशाय, मगर मिल जाएँ कणकण॥ महातम मिश्र, गौतम

शीर्षक- दीपक , दीप, दिया, प्रदीप , दियली चलता दिन प्रकाश ले, पहर रात अंधकार दीपक घर घर में जले, माँटी महक अपार सीमा के प्रहरी ललन, दीप कुमार प्रदीप सीना ताने तुम खड़ें, नमन करूँ शत बार॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

“मुक्तक” कृष्ण राधिका की छवि, दीपक रहा निहार सकुच रहीं हैं राधिका, मोहन दरश दुलार पीत वरण धरि मोहिनी, श्याम वरण रंगाय ओट हथेली की करें, चाहत लौ उंजियार॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

"दोहा मुक्तक" जीवन यज्ञ प्रकाश हैं, यही तीज त्यौहार भर देते खुशियां शहर, आप लिए व्यवहार गाँव गिरांव सुदूर से, आशा लाए ठौर मिलते जलते एक सम, धागा दीप कतार।।-1 कुशल क्षेम की चाहना, मिलकर पूछें लोग मेवा मिश्री पाहुनी, नूतन वर्षा जोग मिल जाते है एक संग, जाने कितने हा

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