अविनाश और कल्याणी को मुक्ती मिल गई| अब फैसला बाकी था विकास का!
सारे गाव वाले उसके खून के प्यासे हो गए थे|
"पंडितजी! हम तो कहते हैं इसे भी इसी पेड पर लटका दो जहापर इसने अविनाश को लटकाया था|" एक आदमी बहुत गुस्सेमें बोला|
"हाँ.... हाँ! मार दो इसे! इसे जीने का कोई हक नही है! मार दो इसे! मार दो इसे!" सब गाव वाले एक ही गुहार लगा रहे थे|
"रुक जाइये! रुक जाइये! ये आप सब लोग क्या कह रहे हो? ये सब करके आप भी इसी की तरह बन जाओगे| क्या आप भी इसी की तरह बनना चाहते हो? क्या आप भी खूनी बनना चाहते हो?" रुद्र सबसे पूछ रहा था|
उसके इन सवालो से सब लोगो ने एक ही झटके मे अपनी गलती समझ आ गई और सबने अपनी गर्दन झुका ली|
"तो अब आप ही बताइये बाबू जी! हम क्या करे? इसे ऐसे ही छोड दे?" एक औरत बहुत गुस्सेमें बोली
"हमे इसे पुलिस के हवाले कर देना चाहिए| आप लोग पुलिस को बुलाइये|" रुद्र ने कहा|
सब लोगो को रुद्र का कहना सही लगा|
पुलिस को फोन किया गया|
तब तक विकास को पकडकर रखा गया|
"हम लोग आपका जितना शुक्रिया अदा करे कम होगा! आप लोग ना होते तो शायद मेरी बच्ची को मै हमेशा कोसता रहता और ना ही उसे मुक्ति मिल पाती!" पंडितजी हाथ जोडकर रुद्र और गौरी से कहने लगे|
"ये आप क्या कर रहे हैं? मै भी तो आपकी ही बेटी हूँ ना और बेटी के सामने कोई पिता अपने हाथ नही जोडता|" गौरी उनके सीने से लग गयी|
उन्हे इस तरह देखकर सब लोग भावुक हो गए|
"अब वक्त आ गया है पंडितजी देवी माँ का त्रिशूल फिरसे उनके हाथ आ जाये|
चलिये! वो गहने निकाल कर माँ दुर्गा की पूजा आरंभ करते है| वैसे भी पूजा का समय हो गया है|" एक पूजारी ने पंडितजी को याद कराया|
शाम हो गई थी|
"जी आप सही कह रहे हैं| चलिये! जय माता दी!" पंडितजी ने सहमती दी|
कुछ लोग जाकर वो पत्थर हटाने लगे| जहापर अविनाश ने गहने छिपाये थे| पर बहुत कोशिश करने पर भी वो पत्थर हट नही रहा था| कुछ लोगो ने मिलकर कोशिश की पर वो पत्थर हिला तक नहीं| रुद्र ने भी कोशिश की पर वो पत्थर नही हिला|
फिर पंडितजी ने कुछ सोचा और गौरी से कहा कि वो कोशिश करे| गौरी को लगा की इतने सारे लोगो ने प्रयास किया वो भी उससे कई गुना ताकतवर पर वो पत्थर तस से मस नही हुआ तो वो क्या कर पायेगी! पर पंडितजी के आग्रह करने पर उसने कोशिश की! वो पत्थर नही हिला!सब को बहुत आश्चर्य हुआ और चिंता भी होने लगी की अब वो गहने कैसे वहा से बाहर निकलेंगे!
पंडितजी ने कुछ देर सोचा और रुद्र गौरी दोनों को मिलकर वो पत्थर हटाने के लिए कहा|
जब रुद्र और गौरी दोनो ने मिलकर कोशिश की तो बिना किसी ताकत के वो पत्थर एकदम आसानी से हट गया|
ये देखकर सब लोग चौक गए| रुद्र और गौरी को भी बहुत आश्चर्य हुआ कि ये कैसे हो गया|
जैसे ही वो पत्थर हटा| वहा गहनो से भरा बडा सा बैग था| रुद्र ने उसे बाहर निकाला|
जब उसने उसे सबके सामने खोला तो सबकी आँखे खुली की खुली रह गयी|
विकास भी देखता रह गया|
वो गहने बहुत ही दिव्य प्रतीत हो रहे थे| उनकी चमक अलग ही थी| गौरी तो दूर से ही ये सब देख रही थी| गहनो को छोडकर उसका ध्यान बस एक बडी सी चीज पर था जो लाल कपडे में बाँधकर रखी गई थी|
गौरी उसके पास गई और उसे हाथ लगाने ही जा रही थी की अचानक बहुत सी गाडियाँ तेजी से आकर वहा पर रुकी|
उनमे से बहुत से हथियारबंद लोग बाहर निकले| उनके हाथो मे बडी बडी बंदुके और तलवारे थी| उन्हें देखकर सब डर गए|
उनमे से एक ने आगे आकर एक गाडी का दरवाजा खोला| उसमे से एक आदमी बाहर निकला| साधारण पंडितजी की ही उम्र का, सफेद सफारी सूट पहने हुए!
वो आगे बढकर आया| उसके आदमी भी उसके पीछे आए|
"क्या तमाशा लगा रखा है यहा? विकास कहा पर है? विकास! विकास!" वो विकास को भीड मे ढुंढने लगा|
"मै यहा हू नेगी सर! प्लीज मुझे बचाइये! देखिए इन लोगो ने मेरे साथ क्या किया है! प्लीज मुझे यहा से छुडाइये सर!" विकास उस आदमी के कहने लगा|
वो जयप्रकाश नेगी था| एक स्मगलर! ये वही इंसान था जिससे विकास ने पहले उन गहनो का सौदा किया था और गौरी के मंदिर पहुंचते ही जिसे उसने फोन किया था|
उसे पता था कि अगर अब गौरी बच गई है तो वो उसका भांडा फोड देगी और पंडितजी के कहे मुताबिक वो गहने मंदिर मे वापिस भी ले आयेगी| इस वजह से उसने नेगी को फोन करके बुला लिया था ताकि वो उसे बचा भी ले और गहनो का सौदा भी पूरा हो जाये| इस तरह विकास ने एक तीर से दो निशाने लगाये थे|
"जाओ! उसे छुडाकर लेके आओ मेरे पास! मेरा इतना बडा फायदा कराया है भाई तुमने! मै तुम्हें कैसे कुछ होने दे सकता हूँ! तुम तो पहले से ही मेरे खास आदमी हो!" जयप्रकाश ने अपने एक आदमी को गन के साथ विकास को छुडाने के लिए भेजा|
"रुको! कौन हो तुम लोग और ये सब क्या हो रहा है? ये हमारे पूरे गाँव का गुनहगार है| हम इसे पुलिस के हवाले करने वाले है| तुम लोग कौन होते हो उसे छुडाने वाले!" रुद्र ने गुस्सेमें उससे कहा|
"ओहअगर ये तुम्हारे गाँव का गुनहगार है तो इससे बडा गुनहगार तो मै हूँ!" नेगी ने अपना चश्मा हटाते हुए कहा|
"जाओ! लेकर आओ उसे!" नेगी चिल्लाकर बोला|
उसके कहते ही उसका एक आदमी आगे आकर विकास को लेने गया|
इससे पहले की रुद्र और गाँव के लोग उसे रोकने के लिए आगे आते नेगी के आदमीयो ने उन सब पर बंदुके रोक ली|
उन्होने विकास को रस्सियों से आजाद कराया और कोई कुछ नही कर पाया|
विकास ने जाकर सीधे नेगी के पैर छू लिए|
"आपका बहुत बहुत शुक्रिया नेगी साहब! अगर आप ना आते तो ये लोग तो मुझे पुलिस के हवाले कर देते!" विकास उसके आगे हाथ जोड़कर कह रहा था|
"तुम्हे मै कैसे कुछ होने दे सकता था| तुम मेरे खास आदमी हो और साथ ही सोने के अंडे देने वाली मुर्गी! ओह माफ करना! मुर्गे हो|" वो विकास के कंधे पर हाथ रखकर हसने लगा|
गाँव के सारे लोगो को बहुत गुस्सा आ रहा था| पर कोई कुछ नही कर पा रहा था क्योंकि उन लोगों के हाथो मे बंदुके थी|
"चलो! मेरे पास ज़्यादा वक्त नही है| वो गहने लेकर आओ|" उसके कहे अनुसार विकास उन गहनो के बैग के पास आया और सारे गहने बैग मे भरने लगा|
"देखो विकास! तुम ये जो कुछ भी कर रहे हो बहुत गलत हैं| अब भी वक्त है तुम अपनी गलती सुधार सकते हो! अब भी वक्त है विकास! कुछ नही बिगडा है|" गौरी विकास को समझाने की कोशिश कर रही थी|
"गलती सुधार दे? अरे भाई कैसी गलती? हमने कोई गलती की ही नहीं तो सुधारेंगे कैसे? अपना भला सोचना कोई पाप नही है| इन गहनो के बदले में नेगी साहब हमे बहुत सारे पैसे देने वाले हैं| जिससे हमारी आगे की जिंदगी सवर जायेगी और हमे नही लगता कि इसमे कोई पाप है|" विकास बैग उठाते हुए नेगी की तरफ जाने लगा|
"पर कल्याणी और अविनाश का क्या? तुमने उन्हें अपने लालच का बली चढा दिया! क्या ये भी सही था? ये पाप नही था?" गौरी के इस सवाल से विकास रुक गया...
वो गौरी के पास आया|
"अविनाश ने ये गहने मुझसे छीन लिये थे| जो मेरे थे| इसलिए तो उसे मरना ही था और रही कल्याणी की बात तो वैसे भी वो मरने ही वाली थी| मरने से पहले हम सब का भला करके गई तो इसमे क्या हो गया?" विकास की ये बात सुनकर सबको उसकी घिन आ रही थी|
वो बैग लेकर जाने लगा| पर फिरसे रुक गया और मुड़कर कहने लगा, "वैसे तुम्हारे साथ भी शायद कल रात वो ही होता जो कल्याणी के साथ हुआ| पर बदकिस्मती से तुम उस मंदिर में चली ग वरना......." विकास हसते हुए कहने लगा|
गौरी के बारे मे ऐसी घटिया बात सुनकर रुद्र बहुत गुस्सेमें आ गया| वो विकास को मारने जा रहा था पर नेगी के आदमीयो ने उसे पकड लिया| वो शांत ही नही हो रहा था| पर गौरी ने जब उसे रोका तो वो शांत हो गया|
विकास ने वो बैग ले जाकर नेगी को दे दिया|
ये हुई ना बात! सुनो! जैसे ही हम ये सब लेकर यहा से बाहर निकले इन सब लोगो को मार देना| कोई भी नही बचना चाहिये| मै नही चाहता की कोई भी सबूत पीछ छुटे|" नेगी ने अपने आदमीयो को आदेश किया|
उसकी ये बात सुनते ही सब लोग डर गए|
रुद्र और गौरी दोनो को समझ मे आ गया की अब शायद उन लोगों के बचने की उम्मीद बहुत कम है और उन्हे खुद ही खुद को बचाने के लिए कुछ करना पड़ेगा|
रुद्र और गौरी ने आँखो से ही बाते कर ली|
रुद्र ने भी आँखो ही आँखो मे सबको अपनी योजना समझा दी|
नेगी और विकास दोनो जैसे गाडी की तरफ मुडे| रुद्र ने सबको आँखो से ही इशारा किया|
रुद्र के इशारे पर सबने नीचे से मिट्टी उठाकर उन लोगों के आँखो मे डाल दी|
ये सब इतनी जल्दी मे हुआ की कोई कुछ समझ ही नहीं पाया|
अपने आदमीयो की आवाज़ सुनकर विकास और नेगी रुक गए|
गाँव वालो ने उन सबसे उनके हथियार छीन लिए और छिपा दिये| वो लोग सबको बहुत मारने लगे|
सब गाँव वालो ने मिलकर उन सब लोगो को बहुत मारा| रुद्र ने भी विकास और नेगी की पिटाई की|
इसी बीच उनके हाथ से वो गहनो का बैग गिरकर दूर पेड के पास पड गया और उसमे से वो दिव्य त्रिशूल भी बाहर गिर गया| पर इस सब के दौरान उसका गौरी पर से ध्यान हट गया और नेगी को मारते मारते विकास से भीट
इसी का फायदा उठाकर खुद को बचाने के लिए विकास ने नीचे गिरा चाकू उठाया और गौरी को पकड लिया| उसने उसके गले पर चाकू रख दिया|
किसी का ध्यान उसपर नही थ
"रुक जाओ! रुको! रुको वरना मै मार दूंगा इसको! सब रुक जाओ!" विकास ने सबको रोका|
गौरी को खतरे में देखकर सब रुक गए|
"ए रुद्र! छोड़ उनको! सब हमारे आदमीयो को छोड दो वरना मै इसका गला काट दूँगा!" विकास सब को धमकी दे रहा था|
"विकास देखो गौरी को छोड दो|अगर उसे छोटीसी खरोच भी आयी ना तो मै तेरी जान ले लुंगा|" रुद्र विकास से कहने लगा| गौरी को खतरे मे देखकर वो डर गया था|
गौरी को बचाने के लिए सब ने उन लोगों को छोड दिया|
नेगी भी भागकर विकास के पास जा पहुंचा|
गौरी को ढाल बनाकर विकास ने अपने आदमीयो से सबको मारने के लिए कहा|
गौरी की जान बचाने के लिए सबने मार भी खा ली|
वो लोग सबको बहुत मार रहे थे| सब को लहुलूहान कर दिया| रुद्र को भी बहुत चोट लगी|
गौरी को बहुत बुरा लगा कि उसे बचाने के लिए सबने अपनी जान जोखिम में डाल दी| वो बहुत रो रही थी|
रुद्र को तो उन लोगों ने मार मार कर अधमरा कर दिया| वो जमीन पर गिर पडा|
उसे इस हालत मे देखकर गौरी के तो शरीर में जान ही नही रही| वो बहुत रोने लगी|
अब बाजी पूरी तरह पलट चुकी थी| सभी गाँव वालो को नेगी के आदमीयो ने बंदी बनाया था और रुद्र तो बेचारा जमीन पर अधमरा पडा हुआ था|
गौरी बहुत ज्यादा रो रही थी|
"हम लोगों पर हाथ उठाकर तुम लोगो ने बहुत बडी गलती कर दी| सब कुछ ठीक चल रहा था| तुम लोगो को क्या जरूरत थी यहापर आकर मसीहा बनने की? तुम लोगो ने बहुत परेशान किया है| इस तरह नही छोडेंगे तुम्हें! हमे पुलिस के हवाले करने चले थे!"
विकास ने गौरी के बाल पकडकर कहा|
उसने गौरी को बहुत जोर से थप्पड़ मारा| वो सीधे नीचे जमीन पर गिर गई|
रुद्र ये सब देख रहा था पर बेचारा कुछ नहीं कर सकता था|
गौरी को चक्कर आने लगे|
इसी दौरान विकास गौरी के पास आया और उसके बाल पकडे|
"बहुत शौक था ना हमे बेनकाब करने का?"
वो गौरी को उसके बालो से खींचकर उसी पेड के पास ले गया| उसने बालो से ही उसे उठाया और उसका सिर पेड से पटक दिया|
उसके सिर से खून बहने लगा| उसका पूरा चेहरा खून से भर गया और वो नीचे गिर पडी|
वो सब लोग गौरी की तकलीफ देखकर हसने लगे|
पर रुद्र बेचारा अपनी लाचारी पर रो रहा था|
अब अंधेरा हो गया था|
"तुम्हें तो मै बाद में देखता हूँ| पहले इस रुद्र का काम तमाम करना है मुझे! इसने मुझ पर हाथ उठाया था ना! इसका इनाम तो इसे मिलना ही चाहिए!" विकास ने एक रॉड उठाया और रुद्र की तरफ रूद्र को मारने जाने लगाट
रुद्र को जान से मारने की बात सुनते ही पता नहीं कैसे पर गौरी मे अचानक जान आ गई|
वो उठने की कोशिश करने लगी और उसी दौरान उसका हाथ उसी दिव्य त्रिशूल पर पड गया जो उस पेड के पास गिर गया था|
उसने उस त्रिशूल को उठा लिया और उसपर जो लाल कपडा था वो हटा दिया|
वो कपडा हटाते ही उस त्रिशूल से बहुत ही दिव्य रौशनी बाहर निकलने लगी| वो रौशनी इतनी तेज थी कि सबकी आँखे अपने आप बंद हो गई| उस रौशनी में गौरी भी नजर नही आ रही थी|
उस रौशनी की कारण विकास भी रुक गया|
जब वो रौशनी कम हुई तो गौरी उस त्रिशूल को हाथ मे पकडे हुए खडी थी| वो बहुत ही दिव्य त्रिशूल था| उसपर अनगिनत दिव्य रत्न जडे हुए थे| उसके प्रभाव से गौरी के
शरीर के सारे जख्म अपने आप भर गए थे| उसकी आँखों में अब डर का नामोनिशान नही था| चेहरे पर अलग ही तेज था| उसने जो पहले चोटी बनाई हुई थी वो अब खुले लंबे घने बालो मे बदल चुकी थी| अब तो वो साक्षात देवी माँ का स्वरुप लग रही थी|
गौरी को इस रुप मे देखकर सब दंग रह गए| रुद्र ने अपनी सारी ताकत जुटायी और उठकर बैठ गया|
पंडितजी गौरी को देखकर उसके पास आये और उसके चरणो पे अपना सर रख दिया| जैसे ही उन्होंने गौरी को छुआ उनके भी सारे सारे जख्म भर गए|
पंडितजी को देखकर सब गाव वाले भी अपने हाथ जोडकर घुटनो पर बैठ गए|
पंडितजी गौरी की तरफ श्रद्धा से देख रहे थे| उनकी आँखों मे पानी था|
गौरी ने बस उनकी तरफ देखकर एकदम हल्का सा स्मितहास्य किया और वो रुद्र के पास आयी|
उसने रुद्र के आगे हाथ बढाया|
जैसे ही रुद्र ने उसके हाथ मे अपना हाथ दिया| उसके भी सारे जख्म भर गए| वो उठकर खडा हो गया|
ये चमत्कार देखकर सब हैरान थे|
रुद्र के ठीक होते ही गौरी नेगी और विकास की तरफ मुडी|
जैसे ही उसने उनको देखा| वो बहुत गुस्सेमें आ गई| उसकी आँखे गुस्से से लाल हो गई|
"मैने तुम्हें आगाह किया था ना कि वक्त है, सुधर जाओ? मैने तुम लोगो को कई अवसर दिये पर तुमने सब गवाँ दिये| पर शायद तुम लोगो की मृत्यू मेरे ही हाथो लिखी है महादेव ने!" गौरी उनके तरफ देखकर गुस्से मे कहने लगी|
"देख क्या रहे हो विकास? मार डालो उसे और वो त्रिशूल भी लेकर आओ! देख नही रहे कितना किमती नजर आ रहा है ये त्रिशूल? इसकी बहुत तगडी कीमत मिलेगी!"
नेगी ने विकास से कहा|
उसके कहे अनुसार विकास कुछ आदमीयो को लेकर उसे मारने गया|
पर गौरी ने सब आदमीयो को त्रिशूल से ही मार दिय वो सब पर काल बनकर टूट पडी| इतने गुस्से मे तो वो साक्षात आदिशक्ती माँ काली लग रही थी| वो सबको मारे जा रही थी| सबका संहार आज उसके हाथ से ही लिखा हुआ था|
विकास तो उसका ये हिंसक रुप देखकर डर गया और दूर हो गया|
गौरी ने एक एक करके सब को मार दिया| रुद्र तो बहुत ही डरा हुआ था| उसने गौरी का ये रुप पहली बार देखा था|
वो किसी के गले पर वार कर रही थी की किसी के सीने पर!
उनके खून से गौरी पूरी तरह सन चुकी थी|
जब नेगी उसके सामने आया तो उसने उसके सीने मे त्रिशूल घोपकर उसे मार दिया|
अब सिर्फ विकास बचा था पर वो गौरी से डरकर भागने लगा|
गौरी भी उसके पीछे भागी और उसके पीछे सारा गाँव! रुद्र को तो गौरी की बहुत चिंता हो रही थी| उसे समझ नहीं आ रहा था कि गौरी को हुआ क्या है जो वो इतनी हिंसक बन गई है|
विकास भागते भागते मंदिर के पास आ पहुँचा और गौरी से बचने के लिए उस मंदिर मे चला गया|
पर गौरी ने पीछे से उसकी तरफ त्रिशूल फेंक दिया| जो सीधे उसकी पीठ मे गड गया| जिसकी वजह से वो जमीन पर गिर पडा|
अब सब लोग मंदिर में थे|
गौरी ने विकास के पास जाकर वो त्रिशूल उसकी पीठ से निकाला| विकास फिर से भागने की कोशिश करने लगा|पर गौरी ने उसकी छाती पर पैर रखकर उसे रोके रखा|
"कहा भाग रहा है दुष्ट? तेरे पापो की घडा अब भर गया है|तुझे सुधरने का अवसर मिला था पर तुने उसे ठुकरा कर गलती कर दी और दूसरी गलती तुने की रुद्र को हानी पहुंचा कर!
तुझे शायद याद होगा किसीने तुझसे कहा था की तुझे तेरे पापो की सजा देने स्वयं माँ दुर्गा आयेंगी! तो देख मुझे दुष्ट! उसी के शब्दो का मान रखने के लिए मै स्वयं आयी हू!
गौर से देख मुझे! तेरा अंत हू मै!" गौरी बहुत ज्यादा गुस्से मे चिल्लाकर बोली|
उसकी ये बात सुनते ही सब लोग जो समझना था वो समझ गए|
अचानक गौरी के पीछे से दिव्य रौशनी नजर आने लगी| जिसे देखकर सबके रौंगटे खडे हो गए|
गौरी ने त्रिशूल उठाया और पूरी ताकत के साथ विकास की छाती में घोप दिया| उसी के साथ उसका खून गौरी के चेहरे पर गिरा|
अपने आखरी पलो मे विकास को गौरी साक्षात माँ दुर्गा दिखाई देने लगी| उसने मरते मरते अपने हाथ जोडे और अपने प्राण त्याग दिए|
विकास को मारने के बाद भी गौरी शांत नही हुई| उसका गुस्सा अब भी उफान पर था|
वो बहुत ही जोर जोर से चिल्ला रही थी| उसकी आवाज़ से सबने अपने कान ढक लिये| वहा बहुत जोरो की हवा चलने लगी| मंदिर की घंटिया जोर जोर से बजने लगी|
तब पंडितजी भागकर रुद्र के पास गए और उससे कहने लगे, "रुद्र! रुद्र बेटा! इनको तुम ही हो जो रोक सकते हो!जाओ!"
पंडितजी की बात मानकर रुद्र चला तो गया पर उसे समझ नही आ रहा था कि वो क्या करे!
उसने कुछ पल सोचा और गौरी ने जिस हाथ मे त्रिशूल पकड रखा था उसपर अपना हाथ रखा| इससे गौरी कुछ शांत हो गई| उसने रुद्र की तरफ देखा|
कुछ देर रुद्र की आँखों मे देखने से वो अपने आप शांत हो गई|
"शांत हो जाओ गौरी! तुमने उन सबको उनके किये की सजा दे दी है| अब तो मेरी गौरी बन जाओ|" रुद्र ने उससे बहुत प्यार से कहा|
उसकी बात सुनकर गौरी ने अपनी आँखें बंद कर ली और दो पल लंबी साँस लेकर अपनी आँखें खोली|
उसकी लाल आँखे अब ठीक हो गई थी| वो एकदम शांत हो गई|
उसके शांत होते ही पंडितजी हाथ जोडकर उसके पास आये| गाँव के सब लोग उसके सामने हाथ जोडकर खडे थे|
"हम सबको आशीर्वाद दिजीए माता और मंदिर मे विराजमान होकर हमारे गाँव के सारे दुख हर लिजीये|" पंडितजी की बात सुनकर गौरी ने बस हल्का सा स्मितहास्य किया और वो मंदिर की ओर चल पडी|
वहा मुख्य मंदिर के बाहर रखे बडे से पट पर वो विराजमान हो गई|
उसके वहा बैठते ही गाव के कुछ लोग, औरते और पुजारीयो ने मिलकर सबसे पहले यज्ञ प्रज्वलित किया| फिर मंत्रोच्चारण शुरू होते ही मंदिर की देवी की मूर्ति को आजाद किया गया|
देवी की मुर्ती के साथ साथ गौरी का भी पंचामृत से अभिषेक किया गया|
फिर उनकी पूजा की गई|
देवी के सारे गहने गौरी को पहनाये गए और वो त्रिशूल भी गौरी के हाथ मे पंडितजी ने स्वयं दिया|
इस रुप मे गौरी साक्षात माँ दुर्गा लग रही थी| रुद्र तो उसे देखता ही रह गया|
"अपनी कृपा हमेशा हमपर बनाये रखें माता!" सब गाँव वालो ने उसके आगे माथा टेका|
"मै सदैव आपके साथ हू! माता कभी अपनी संतान से कुपित नही होती|" गौरी ने अपना हाथ उठाकर सबको आशीर्वाद दिया|
रुद्र ये सब देख रहा था| वो समझ चुका था की गौरी नक्षत्र मे जन्म लेने वाली गौरी स्वयं माँ पार्वती का अवतार है|
वो मन ही मन खुश तो था ही पर गौरी के लिए चिंतित भी था|
तभी उसकी नजर गौरी पर पडी| उसकी आँखे बंद हो रही थी| गौरी चक्कर खाकर गिरने ही वाली थी कि रुद्र ने आकर उसे संभाल लिया| पर गौरी बेहोश हो गई थी|