रुद्र को होश आया| रुद्र के आँखे खोलते ही सारे गाव वाले बहुत ही खुश हो गए| जब उसने आँखे खोली तो उसके सर मे बहुत ही ज्यादा दर्द हो रहा था|
उसने देखा की उसके सिर पर पट्टी बंधी हुई हैं और उसके घाव पर भी मरहम लगा हुआ है|
"गौरी! गौरी कहा है?" रुद्र जोरसे और डरकर चिल्लाया|गौरी को आसपास ना पाकर वो डर गया| वो उठने लगा पर सिर मे बहुत दर्द उठने के कारण वो फिर नीचे बैठ गया| तब उसे पंंडितजी और कुछ गाव वालो ने शांत किया|
"पंडितजी! मै यहा कैसे और गौरी कहा है? उसे बहुत चोट लगी थी| हम पर एक प्रेतात्मा ने हमला किया था| हम घर की तरफ ही आ रहे थे कि किसी ने मेरे सर पे....... " उसके सिर मे फिरसे दर्द होने लगा|
"रुद्र बेटा! तुम अपने दिमाग पर ज्यादा जोर मत डालो!" पंडितजी ने उसे कहा|
"मै बिल्कुल ठीक हू पंडितजी पर गौरी कहा है? आप बस मुझे इतना बता दिजीये|" रुद्र के इस सवाल पर सब लोगो ने नाराज होकर गर्दन झुका ली|
"क्या हुआ? आप सब कुछ बताते क्यो नही? गौरी ठीक तो है ना?"
"रुद्र बेटा कल रात को जब हम लोग तुम दोनों को ढुंढने निकले तब हमें सिर्फ तुम ही मिले| वहा गौरी नही थी|" पंंडितजी ने हिचकते हुए रुद्र को बताया|
"क्या? गौरी वहा नही थी? पर ऐसा कैसे हो सकता है? वो तो मेरे साथ थी! गौरी!" रुद्र गौरी के लापता होने के बारे में सुनते ही बौखला गया|
"मतलब गौरी जिंदा थी?" पंंडितजी ने चौंककर पूछा|
"जिंदा थी मतलब? वो जिंदा है! अगर मैं जिंदा हू तो इसका मतलब वो भी जिंदा है! मुझे उसे ढूंढना होगा|" इतना कहकर रुद्र गौरी को ढूंढने बाहर निकल पडा|
उसके पीछे सब लोग उसे ढूंढने बाहर निकले|
सारा गाव गौरी को ढूंढ रहा था|
ये देखकर विकास भी बाहर निकला|
वो मन ही मन खुश हो रहा था कि भले सब लोग उसे कितना भी ढूंढ ले गौरी अब उन्हें नही मिलेगी क्योंकि शायद अब तक वो मर चुकी हो|
पर रुद्र पागलों की तरह गौरी को पूरे गाँव मे ढूंढ रहा था|
कुछ देर ढूंढने के बाद एक आदमी थक हार कर बोला,"मुझे लगता है अब उन्हें ढूंढकर कोई फायदा नही! वो रुद्र जी के साथ होते हुए जिंदा थी पर मुझे नहीं लगता कि अब तक वो जिंदा रही होगी!"
ये बात सुनते ही रुद्र भडक उठा और उस आदमी का कॉलर पकड लिया|
"क्या कहा तुमने? क्या कहा? कहना क्या चाहते हो तुम? की गौरी अब......" रुद्र की आँखों में पानी और गुस्सा दोनो एक ही वक्त पर दिखाई दे रहा था|
तब गाव के कुछ लोग और पंडितजी ने उसे संभाला|
"छोडिये मुझे पंडितजी! ये ऐसा कह कैसे सकता है? यहा खडा हर इंसान जान ले कि अगर गौरी की साँसे चल रही है इसका सबसे बड़ा सबूत मेरा जिंदा होना हैं! जब तक मै जिंदा हू गौरी को कुछ नहीं हो सकता! समझे!" ये कहकर वो नीचे बैठकर रोने लगा|
"कहा हो तुम गौरी? मै जानता हूँ तुम जिंदा हो! अगर ऐसा ना होता ना तो शायद आज मै भी जिंदा ना होता! लौट आओ गौरी! मेरे पास आओ!" रुद्र रो रहा था|
सबको उसे इस हालत मे देखकर बहुत बुरा लगा|
पर विकास ही ऐसा था जो उसे ऐसे देखकर खुश हो रहा था|
"पंडितजी! पंडितजी! पंडितजी!" कोई आदमी हाँंफते हाँफते आया|
"पंडितजी चलिए! वहा... वहा.... मंदिर....."
"क्या हुआ? ठीक से बताओ!" पंंडितजी पूछने लगे|
" आप... आप चलिये! मंदिर के पास चलिये पंडितजी!" ये कहकर वो आदमी मंदिर की ओर भागा|
उस आदमी की बात सुनकर रुद्र को एक आशा की किरण नजर आयी|
वो भी उस आदमी के पीछे दौडा| सब लोग वहा गए|
विकास मन ही मन खुश हो रहा था उसे लगा जैसे गौरी की लाश मिली होगी! वो भी तमाशा देखने चल पडा|
सब मंदीर के पास आ पहुँचे|
सब वो मंजर देखकर बहुत डर गए| पंंडितजी तो सुन्न रह गए|
"पंडितजी! मंदिर का दरवाजा! हे माँ! अब क्या होगा? पंडितजी ये तो अपशकुन है| पूजा के पहले ही दरवाजा... ये दरवाजा तो आज गौरी जी के हाथ खुलना चाहिये था|लेकिन हे प्रभु ये क्या अनर्थ हो गया? गौरी जी भी लापता हैं! अब हमे देवी माँ के कहर से कोई नहीं बचा पायेगा|" एक आदमी रोते हुए बोला|
"ये संभव नही है! ये दरवाजा गौरी के अलावा कोई नहीं खोल सकता| कही ये दरवाजा गौरी ने तो...,?" पंडितजी रुद्र की तरफ देखते हुए बोले|
रुद्र को उनका इशारा समझ आ गया और वो मंदिर की ओर चल पडा|
"रुक जाइये बेटा! देवी के प्रकोप से बचने के लिए हमने मंदिर के दरवाजे बंद करने का निर्णय किया था और इस तरह बिना पूजा और माँ दुर्गा के त्रिशूल के अंदर जाना ठिक नही होगा!" पंडितजी रुद्र के सामने आकर खडे हो गए|
"पर पंडितजी गौरी अंदर हो सकती है!"
"मै जानता हूँ बेटा! पर माँ दुर्गा का प्रकोप......"
"जहा तक मै जानता हू पंडितजी, जो हमे जन्म देता है वो ही हमारी जान नही ले सकता| इस गाँव पर देवी माँ का कोई प्रकोप नही है और इसका सबूत मुझे और गौरी को खुद कल रात मिल चुका है| आपके गाँव पर देवी का प्रकोप नही किसी बहुत ही खतरनाक आत्मा का साया है और ये जो सब खून है, वो ही कर रहा है| मुझपर और गौरी पर उसी ने कल रात हमला किया था
और अगर सच मे देवी माँ की कोई प्रकोप है इस गाँव पर, तो अपनी गौरी के लिए मै किसी भी प्रकोप को सहन करने के लिए तैयार हू!" ये कहकर वो मंदिर के अंदर चला गया|
रुद्र की बात सुनकर सब चौंक गए| उसका निश्चय देखकर उसे कोई नही रोक पाया|
पर मंदिर मे जाने की किसी की हिम्मत नही हो रही थी|
रुद्र के मंदिर मे जाते ही मंदिर की घंटिया जोर जोर से बजने लगी और पता नहीं कहा से पर ढोल नगाडे और शंखनाद की आवाज़ चारो ओर गूँजने लगी|
वो आवाज सुनकर सब हक्के बक्के रह गए| किसी को समझ नहीं आ रहा था कि ये आवाजे कैसे आ रही है| पर आवाजे मंदिर से ही आ रही थी|
जहा सब लोग अचंभित थे, वहा पंडितजी के चेहरे पर अलग ही तेज नजर आ रहा था|
"माँ दुर्गा का संकेत मिला है! अब समय आ गया है मंदिर की रौनक वापस लाने का! चलो भाइयों!
जय माँ दुर्गा!"
पंडितजी ने जोर से चिल्ला चिल्लाकर कहा|
रुद्र के बाद उन्होंने भी मंदिर के अंदर कदम रखा| उनके पीछे पीछे गाव वाले भी मंदिर के अंदर दाखिल हुए|
पर विकास बाहर ही था| पता नही क्यों एक अजीब सा डर उसे सता रहा था|
रुद्र गौरी को मंदिर के अंदर पागलो की तरह ढूंढ रहा था|
सब गाव वाले भी उसे ढुंढने लगे
वो एक बहुत ही बडा मंदिर था|
उसके इर्दगिर्द सुरक्षा के लिए बहुत उंची पत्थर की दिवार थी और बीचोबीच देवी माँ का मंदिर! मंदिर के इर्दगिर्द चारो दिशाओं में खुली जगह!
मुख्य द्वार से अंदर जाते ही बडी सी खुली जगह और फिर बीचोबीच मंदिर! मंदिर तक पहुंचने के लिए सीढिया चढकर जाना पडता था|
कुछ लोग तो बहुत इमोशनल लग रहे थे| क्योंकि काफी लंबे अरसे बाद वो मंदिर मे वापिस आये थे|
पंडितजी को मंदिर मे आते ही कल्याणी की याद आ गई|क्योंकि इसी जगह पर उन्होंने अपनी बेटी के साथ आखरी लम्हे बिताये थे|
उन्हें याद करके उनकी आँखे नम हो गई पर दुसरे ही पल उन्होंने खुद को संभाला और अपना सारा ध्यान गौरी को ढुंढने मे लगाया|
रुद्र गौरी को ढुंढते हुए देवी की मुर्ती पास पहुंचा| देवी को जंजिरो से बंद करके रखा गया था| वो देखकर उसे बहुत दुख हुआ|
"मै जानता हूँ की ये सब आपका प्रकोप नही है| ये तो कोई और है जो ये सब कर रहा है और ये भोले गाव वाले इसे आपका प्रकोप समझ रहे हैं| इन्हें माफ कर दिजीये माँ|इन्ही की मदद के लिए मेरी गौरी यहा आयी थी और आज वह ही मुसीबत में है माँ! प्लीज मेरी मदद करीये! मुझे मेरी गौरी लौटा दिजीये माँ! मुझे मेरी गौरी लौटा दिजीये!" रुद्र घुटनों के बल बैठकर देवी के सामने रोने लगा| तभी अचानक उसे कुछ याद आया और वो सीधा नीचे भागा|
पंंडितजी ने उससे पुछने की कोशिश की कि वो कहा भागा जा रहा है| पर रुद्र बिना जवाब दिये सीधा मंदिर के पीछे की तरफ भागते हुए गया|
सब लोग उसके पीछे भागे उन्हें लगा की शायद कुछ हुआ है|
रुद्र जैसे ही मंदिर के पीछे आया उसे उसकी गौरी वहा मिल गई|
गौरी वही पर बेहोश पडी हुई थी जहा वो कल रात थी|
रुद्र उसे देखते ही उसके पास दौडा|
उसकी हालत बहुत खराब थी|
पूरी तरह मिट्टी से सनी हुई, लहूलुहान होकर वो वही पर पडी हुई थी| कल रात गले पर लगी चोट से अभी भी थोडा बहुत खून निकल रहा था|
रुद्र ने गौरी का चेहरा अपनी हथेली मे लिया|
"गौरी! गौरी! उठो गौरी! क्या हुआ तुम्हें? गौरी उठो! देखो मै हूँ रुद्र! उठो ना गौरी! उठो प्लीज!" रुद्र गौरी को सीने से लगाकर रोये जा रहा था| तभी उसकी नजर नीचे पडी उसकी माला पर गई|
इक पल के लिए उसे लगा मानो माला ना होने की वजह से किसी प्रेतात्मा ने गौरी पर हमला किया और उसकी जान तो नही.........
पर दुसरे ही पल रुद्र ने खुदको संभाला| झट् से माला उठायी और गौरी के गले मे डाल दी|
उसने गौरी के सीने से अपना कान लगाया तो उसे गौरी की धडकने सुनाई पडी|
रुद्र की तडप सब लोग देख पा रहे थे|
"पंडितजी! मेरी गौरी जिंदा है| इसकी धडकने अभी भी चल रही है| अरे कोई डॉक्टर को बुलाओ!" रुद्र जोरसे चिल्लाया|
गौरी जिंदा है सुनकर सब की जान मे जान आयी| सब मे एक नयी उम्मीद जागी|
रुद्र ने गौरी को अपनी गोद मे उठाया और घर की तरफ निकल पडा|
उसके पीछे सब लोग चल पडे|
बाहर विकास गौरी की मौत की खबर सुनने के लिए बेचैन था|
तभी उसे रुद्र गौरी को मंदिर से बाहर लाते हुए दिखा| गौरी की हालत देखकर उसे लगा जैसे गौरी की मौत हो गई है|
वो मन ही मन खुश होने लगा|
रुद्र गौरी को लेकर सीधा घर की ओर निकल गया|
"अच्छा हुआ गौरी जी को कुछ नही हुआ! अब हम सब सुरक्षित है| वो हमे इस प्रकोप से बचा लेंगी| जय माँ दुर्गा!" विकास ने कुछ गाव वालो को बात करते हुए सुना|
गौरी जिंदा है ये सुनकर उसके होश उड गए| अब गौरी के रुप मे उसे एक अनजाना खतरा उसकी ओर बढता नजर आने लगा| अब उसका दिमाग एक और शैतानी खेल रचने के लिए तैयार था|
कुछ देर बाद....
जैसे ही डॉक्टर गौरी के कमरे से बाहर आयी रुद्र दौड़कर उनके पास गौरी की तबीयत के बारे मे पूछने पहुंचा|
"देखिये! अब वो ठीक है| मैने उन्हें इंजेक्शन दे दिया है और घाव पर पट्टी भी कर दी है| उन्हें कुछ देर मे होश आ जायेगा|
बस थोडा खून बहने की वजह से आपको उनके खाने पीने पर ध्यान देना होगा और उनके घाव पर भी!जखम अभी ताजा है! अच्छा अब मै चलती हूँ|"
अपनी बात बताकर डॉक्टर चली गई|
डॉक्टर के जाते ही रुद्र गौरी के पास उसके कमरे मे चला गया|
"पंडितजी अब पूजा का क्या होगा?" गाव के एक आदमी ने पंडितजी से पूछा|
"आप चिंता मत करीए! जैसे नियोजित है सब वैसे ही होगा| आप सब लोग जाइये और मंदिर मे पूजा की तैयारी किजीये| शाम तक हमे सब वैसा ही बनाना है जैसा पहले था| जाइये! गौरी को लाने की जिम्मेदारी मेरी!" पंडितजी ने गाव वालो को पूजा के कामो मे लगा दिया|
उन्होंने गौरी के कमरे मे झाँक कर देखा तो रुद्र उसका हाथ पकडकर रोते हुए बैठा था|
"जल्दी से अपनी आँखें खोल लो गौरी! आय लव्ह यू! आय लव्ह यू सो मच!" इतना कहकर रुद्र ने गौरी के हाथ पर अपना माथा रखा|
पंडितजी बाहर से ये सब देख रहे थे|
"आपने कुछ कहा?" गौरी ने धीमी आवाज मे पूछा|
गौरी की आवाज सुनते ही रुद्र उठा| पंडितजी भी कमरे में आ गए|
"गौरी! गौरी तुम्हे होश आ गया| तुम ठीक तो हो ना? तुम जानती हो मै कितना डर गया था!" रुद्र को समझ नही आ रहा था कि वो हसे या रोये|
"बस.. बस...मेरी तूफान मेल! कितना बोलते हो आप? आपका मुह दर्द नही करता क्या? मै ठीक हू! आप तो ठीक है ना?" गौरी ने मुस्कुराते हुए पूछा|
"मै ठीक हू गौरी!"
"बेटा माँ दुर्गा का लाख लाख शुक्र है की आप ठीक है| एक बेटी को तो खो चुका हूँ अब दूसरी को नहीं खोना चाहता|" पंडितजी ने गौरी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा|
उनकी आँखें नम हो गई थी| अपने आँसू छिपाने के लिए वो वहा से चले गए|
उन्हे देखकर रुद्र और गौरी भी भावूक हो गए|
गौरी उठने जा रही थी की रुद्र ने उसे रोक लिया|
"गौरी! गौरी तुम लेटी रहो उठो मत! डॉक्टर ने आराम करने के लिए कहा है तुम्हें!"
"अब आराम करने का वक्त नही है रुद्र! वक्त है पंडितजी और इन सारे गाव वालो के आँसूओं का हिसाब लेने का! उस इंसान से जिसकी वजह से ये गाव खंडहर बनने जा रहा था| पूजा तो आज ही होगी, वो भी मेरे हाथो से! फिर देखते है की कौन इस गाव का क्या बिगाड पाता है!" गौरी की आँखो से अजीब सी आग थी|
"ये तुम क्या कह रही हो गौरी? पूजा की तैयारी वगैरा सब ठीक है पर बिना उस त्रिशूल के पूजा होगी कैसे?" रुद्र का सवाल वाजिब था|
"किसने कहा पूजा बिना त्रिशूल के होगी? मै लाउँगी वो सारे गहने और वो दिव्य त्रिशूल! पर उससे पहले मंदिर मे कुछ जरूरी बात करनी है मुझे सबसे!" गौरी ने पूरे विश्वास के साथ कहा|
"तुम्हे पता है वो त्रिशूल कहा है?" रुद्र ने पूछा|
गौरी ने सिर्फ मुस्कराते हुए कहा,"जाइये! तैयार हो जाइये| हमे पूजा मे जाना है| पंडितजी को भी बता दिजीयेगा की रात की पूजा से पहले शाम तक सबको मंदिर मे बुला लिजीये| मुझे सबसे कुछ बात करनी है|"
शाम तक पंडितजी और सबने मिलकर पूजा की सारी तैयारीयाँ कर ली| विकास भी इसमे मदद कर रहा था पर उसकी हरकतो से लग रहा था मानो वो कुछ और करने की फिराक मे हो|
आज गाँव का वातावरण बहुत ही ज्यादा मोहक लग रहा था|
खासकर मंदिर का! पूरे मंदिर मे फूलो से सजावट की गई थी| हर तरफ हर प्रकार के फूलों की महक से पूरा मंदिर महक उठा था|
पंडितजी मंदिर मे श्वेत वस्त्र धारण कर पूजा की सारी तैयारीयाँ कर रहे थे| तभी मंदिर मे रुद्र आया|
सब बस उसको देखते ही रह गए|
रुद्र आज सफेद कुर्ता और पजामा पहनकर आया था| वो उन कपडो मे बहुत ही मोहक लग रहा था| गाँव की सारी लडकियाँ तो उसे ही देख रही थी|
वो पंंडितजी के पास पहुंचा|
"बेटा गौरी कहा है? वो नही आयी आपके साथ?" पंंडितजी ने पहले गौरी के बारे मे पूछा|
"दरअसल पंडितजी जब मै घर से निकला तब वो तैयार हो रही थी| मैने कहा की हम साथ चलते हैं मै रुकता हू पर आप तो जानते हैं वो कितनी ज़िद्दी है! उसने पहले मुझे भेज दिया ताकि मै आपकी मदद भी कर सकू और सब गाँव वालो को जमा कर सकू! उसे सबसे कुछ बात करनी है|" रुद्र ने जवाब दिया|
रुद्र की ये बात सुनकर विकास डर गया| उसे लगने लगा जैसे गौरी उसके बारे मे सबको बता देगी| इसलिए उसने किसी को फोन किया|
अब वो गौरी से लड़ने के लिए बिल्कुल तैयार था|
कुछ देर बाद मंदिर मे सब जमा हो गए| सब गौरी का इंतजार कर रहे थे| सबको ये भी जिज्ञासा थी की गौरी उनसे क्या बात करना चाहती है|
आखिर सब का इंतज़ार खत्म हुआ और गौरी ने मंदिर मे कदम रखा|
गौरी के मंदिर मे कदम रखते ही मंदिर की घंटिया जोर जोर से बजने लगी|
सब की नजर गौरी पर थी|
उसे देखकर पंडितजी की आँखे खुली की खुली रह गयी|
सब उसे देखकर चौंक गए| सबसे ज्यादा विकास!
गौरी बिल्कुल कल्याणी जैसी लग रही थी|
नीले रंग की ज़री वाली साडी जिसकी किनारी सुनहरी थी, टेंम्पल ज्वेलरी, गले मे छोटा सा नैकलेस, कानो मे झुमके, माथे पर छोटा सा माँग टिका, बालों की चोटी जो सामने कंधे से उसकी कमर तक आ रही थी|
बालो मे मोगरा के फूलों को गजरा, नाक मे छोटी सी नथनी, माथे पर साडी से मैचिंग नीले रंग की छोटी सी बिंदी, हाथों मे कंगन, पैरो मे पायल!
पंडितजी को लगा मानो उनकी बेटी कल्याणी लौटकर आ गई है| सब को वो कल्याणी ही लग रही थी| विकास तो भौंचक्का रह गया|
पर रुद्र के गौरी का ये रुप बहुत ही मनमोहक था| उसने गौरी को पहले कभी साडी मे नही देखा था और आज गौरी को इस रुप में देखकर वो देखता ही रह गया| आज वो पूरी तरह भूल गया की गौरी सिद्धार्थ की मंगेतर है|
गौरी चलकर के रुद्र और पंडितजी के पास आयी| वो लोग मंदिर मे खडे थे और सब गाव वाले नीचे! गौरी को देखकर सब उसे नमस्ते करने लगे| उसने भी सबको नमस्ते किया और सीधा रुद्र के हाथ मे अपने गले की माला उतारकर दे दी|
"मै आप पर दुनिया में सबसे ज्यादा भरोसा करती हू| मै जानती हूँ आप मुझे कुछ नही होने देंगे!" रुद्र उसे कुछ पूछ पाये या बता पाये उससे पहले उसने झट् से अपनी आँखें बंद कर ली और बेहोश होकर गिर पडी|
रुद्र ने उसे अपनी बाहो मे जकड लिया|
"गौरी! गौरी क्या हुआ?" रुद्र ने उसके चेहरे पर हाथ लगाया|
उसने रुद्र की आवाज से ही अपनी आँखें खोली|
"तुम ठीक तो हो?" रुद्र ने पूछा|
गौरी ने बस सिर हिलाकर हा कह दिया और इससे पहले की रुद्र पूछे की उसने माला क्यो उतारी गौरी ने अपना रुख पंडितजी की ओर मोडा|
"क्या हुआ पंडितजी?" गौरी ने उनसे पूछा क्योंकि पंडितजी बस उसे ही देखे जा रहे थे|
"कुछ नहीं बेटा! ऐसा लगा मानो......" पंडितजी ने अपनी बात अधूरी छोड दी|
"मानो आपकी गुडिया वापिस आ गई है? यही ना पिताजी?" गौरी की आवाज अचानक बदल गई| वो कल्याणी की आवाज थी|
सब लोग चौंक गए| रुद्र तो बस देखता ही रह गयाट
पर पंडितजी की आँख से आँसू रुकने का नाम नही ले रहे थे| गौरी का भी यही हाल था|
पंडितजी को ये समझते जरा भी देर नही लगी की वो कल्याणी है| क्योंकि वो कल्याणी को बचपन मे गुडिया बुलाते थे|
गौरी ने पहले तो रोते रोते पंडितजी के पैर छुए पर पंडितजी ने उसे गले से लगा लिया|
सब को ऐसा लग रहा था मानो कल्याणी वापस आ गई है|
विकास को तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था| कुछ ऐसा ही हाल रुद्र और गाव वालो का भी था|
पर तभी गौरी पंडितजी से अलग हुई, अपने आँसू पोछे और विकास की तरफ देखा|
"अरे विकास जी! आप वहा पीछे क्या कर रहे हैं? यहा आइये हमारे पास! आप ही के बारे मे बात करने तो हम यहा आये हैं! आइये उपर आइये!" गौरी ने विकास से कहा|
गौरी की बात सुनकर विकास हिचकते हुए उपर उनके पास आकर खडा हो गया|
अब गौरी बोलने लगी, "इन्हें तो आप सब लोग जानते ही होंगे! ये है पंडितजी के सबसे बडे शिष्य विकास! जिन्होंने 6 महीने पहले अपनी जान तक दाव पर लगा दी थी, माता रानी के गहने बचाने के लिए! हमारे इस गाँव को बचाने के लिए! जिसमे इन्हें और इनके कुछ साथियों को बहुत चोट भी लगी थी|
सच मे विकास जी! आपने बहुत ही बडा काम किया है और प्लीज मुझे माफ कर दिजीये! उस दिन की बदतमीजी के लिए मै आपसे माफी मांगती हू!
अब आप लोग सोच रहे होंगे की मै ये सब बाते इस वक्त यहा पर क्यों कर रही हू?
अब आप ही सोचिये! अब हमारे गाव मे सब ठीक होने जा रहा है तो इसका मतलब ये थोडी ना है की हम इनके अहसान को भूल जायेंगे! हमारा ये फर्ज बनता है की हम इनके अहसान को एक बार ही क्यो ना हो पर याद करे!
इसलिए मै चाहती हू की विकास जी हमे उस दिन का पूरा घटनाक्रम फिर से बताये| ताकि भविष्य में हमारे साथ ऐसा कुछ ना हो और हम सतर्क रहे|
आप सबको क्या लगता है? मै सही कह रही हू या नही?" गौरी ने गाँव वालो ने पूछा|
सब लोग गौरी से सहमत थे| वो हा कहने लगे|
रुद्र को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि गौरी ऐसा क्यो कर रही है! पर वो कुछ नही बोला क्योंकि वो जानता था की गौरी के दिमाग मे जरूर कोई प्लान है|
विकास को भी कुछ समझ नही आ रहा था पर गाँव वालो के दबाव के कारण उसे सामने आकर सब बताना पड रहा थ आज वो बहुत डरा हुआ था क्योंकि वो गौरी की चाल को समझ ही नहीं पा रहा था|
वो पसीना पसीना हो गया| पता नही क्यों पर उस दिन की बात बताने से वो डर रहा था|
फिर उसने बताना शुरु किया|
"उस दिन पंडितजी ने हमें गहने लाने के लिए तिजोरी की चाबी देकर घर भेजा| हम जब गहने एक बैग मे भर रहे थे तब हमे पास वाले कमरे से आवाजे आने लगी|
जब हमने जाकर देखा तो वहा कल्याणी और उसके कुछ दोस्त आपत्ती जनक अवस्था मे हमे मिले|
(ये सुनते ही पंडितजी को बहुत दुख हुआ)
फिर हमने सोचा की कल्याणी हमारे गाव की इज्जत है
और हमसे देखा नहीं गया| हम सब उन्हें रोकने के लिए अंदर गए| तब उलटा कल्याणी समेत वो सब लोग हम पर भडक उठे|
हम लोगों में हाथापाई तक बात पहुंची| तभी अचानक उनमे से एक की नजर हमारे पास जो गहने थे उनपर पडी|
उन गहनो के लिए उन सबने हमे बहुत मारा और गहने लेकर भाग गए| कल्याणी भी उनके साथ भाग गयी| हमने पूरी कोशिश की उन्हें रोकने की पर नहीं रोक पाये उन्हे!
कल्याणी को तो हमने पंंडितजी का वास्ता भी दिया पर वो रुकी ही नहीं! बल्कि बोली की 'कह देना पंडित से की मर गई तेरी बेटी!' " विकास ने बात खत्म की|
"अच्छा ये बताइये कितने लडके थे कल्याणी के साथ?" गौरी ने बेझिझक सबके सामने पूछा|
"जी.... जी... वो चार पाच होंगे!" विकास की जबान लडखडाने लगी|
"चार या पाँच?" गौरी ने पूछा|
" जी... जी पाँच!" विकास ने डरकर जल्दी जवाब दे दिया|
"क्या कर रहे थे वो लोग?" गौरी बिना डरे पूछ रही थी वो भी सबके सामने पर सब लोगो को ये सब बहुत अजीब लग रहा था|
विकास के तो पसीने छुट रहे थे|
"बताइए विकास जी! क्या कर रहे थे वो लोग?"
"अब हम सब के सामने कैसे बता सकते है?"
"बताइये विकास जी! इसमे झिझक कैसी? बताइये हम सब सून रहे है|" गौरी अपनी बात पर अड गई|
विकास तो बौखला गया|
"बताइये विकास| क्या कर रहे थे वो लोग? क्या कल्याणी उनके नीचे सोई हुई थी? या उपर बताइये! बताइये!" गौरी चिल्लाकर पूछने लगी|
"अरे कहा था ना हमने की सो रही थी उन पाँच लडको के साथ! चरित्रहीन थी वो! चरित्रहीन थी! चरित्रहीन!" विकास भी बहुत चिल्लाकर बोला|
विकास के ये कहते ही गौरी ने बहुत गुस्से मे उसे एक जोरदार थप्पड़ सब के सामने फिर एक बार जड दिया|
इस बार उसे बहुत गुस्सा आया| वो पलटकर गौरी को मारने वाला था की गौरी ने उसका हाथ पकडकर मरोड दिया और ऐसा मरोडा की वो नीचे जाकर गिर पडा| वो वापस उठ खडा हुआ|
"एक कहानी तुने सुनाई ना! अब एक कहानी मै सुनाती हू|ध्यान से सून और आप सब लोग भी सुनो!
उस दिन कल्याणी अपने पिताजी की मदद कर रही थी| तभी उसे उसके दोस्त अविनाश का फोन आया| अविनाश गाँव मे माँ दुर्गा की भव्य पूजा देखने आया था| वो घर पर रुका हुआ था| कल्याणी उसे लेने के लिए चली गई और वो उसके पिताजी के साथ बिताया उसका आखरी वक्त बन गया|
कल्याणी घर गई तब अविनाश उसी के कमरे मे उसका इंतजार कर रहा था|
जब वो वहा पहुंची तो वो उसकी बनाई चीजे देखने मे मगन था|
जैसे ही उसकी नजर कल्याणी पर पडी| उसने दौड़कर जाके उसे गले लगा लिया|
अविनाश : ओह कल्याणी! आय लव्ह यू सो मच बेबी! मैने तुम्हें बहुत मिस किया! लव्ह यू सो मच!
कल्याणी : लव्ह यू टू अविनाश! मैने भी आपको बहुत मिस किया!
अविनाश : अब मै तुम्हें मेरी नजरो से जरा भी दूर नही होने दूंगा| मैने मम्मी पापा को कह दिया है की वो जल्द ही हमारे रिश्ते की बात करने तुम्हारे पिताजी के पास आये और गुड न्यूज ये है की वो कल ही पिताजी से तुम्हारा हाथ माँगने आने वाले हैं|
कल्याणी : क्या! ओह माय गॉड! अविनाश क्या आप सच कह रहे हो?
अविनाश : बिल्कुल सच! तुम्हारी कसम! अब मै तुमसे जरा भी दूर नही रहना चाहता| 6 साल कम नही होते!लेकिन अब नही! अब मै यहा आया हू तो तुम्हे दुल्हन बनाकर ही ले जाऊंगा|
ये कहकर दोनो एक दूसरे से लिपट गए| दोनो को ही आँखो मे आँसू थे|
तभी अचानक उन्हे कुछ आवाज सुनाई पडी|
जब वो दोनो देखने बाहर निकले तो वो आवाज तिजोरी वाले कमरे से आ रही थी| दरवाजा थोडा खुला था| अंदर विकास कुछ लोगों के साथ था|
उसके पास हुबहू असली गहनो जैसे दिखने वाले गहने थे|
उन लोगों की बातो से यही पता चल रहा था कि वो लोग मंदिर में नकली गहने देकर असली गहने खुद लेकर जाने वाले थे|
कल्याणी और अविनाश दोनों ने दरवाजे से वो सब देख लिया|
तभी विकास को किसी का फोन आया|
वो फोन पर किसी से गहने भारी किमत मे बेचने की बात कर रहा था|
"ये सब क्या हो रहा है कल्याणी?"
ये सब सुनकर अविनाश ने कल्याणी से धीमी आवाज मे पूछा|
"ये माँ दुर्गा के गहने है| उस दिव्य त्रिशूल के बिना पूजा पूजा नही मानी जायेगी और ये लोग........!
मै ऐसा नही होने दे सकती!" कल्याणी अविनाश से कहने लगी| वो बहुत गुस्सेमें लग रही थी|
वो सीधे दरवाजा खोलकर अंदर चली गई| उसे देखते ही वो सब लोग बहुत ही ज्यादा डर गए| अविनाश भी कल्याणी के साथ खडा हो गया|
"ये सब क्या हो रहा है? विकास तुम.... तुम ऐसा करोगे ऐसा कोई सोच भी नही सकता| कम से कम एक बार मेरे पिताजी के बारे में तो सोचा होता जिन्होंने बचपन से तुम्हें अपने बेटे की तरह समझा और तुमपर इतना भरोसा दिखाया की इन गहनो की जिम्मेदारी तुम पर सौंपी|
तुम रुको! तुम्हें तो मै......"
कल्याणी ने गुस्से मे विकास को थप्पड मार दिया| पर अविनाश ने उसका हाथ पकडकर उसे रोक लिया|
"रुक जाओ कल्याणी! ये तुम क्या कर रही हो? इन्हें तो हमे सारे गाँव वालो के सामने एक्सपोज करना चाहिए| चलो! सब गाँव वालो को इनका असली चेहरा दिखाते है|"
"आप सही कह रहे हैं| अब वो लोग ही इनका फैसला करेंगे| ये असली गहने ले लिजीए अविनाश! ये मा दुर्गा के गहने है! उनपर इन अधर्मीयों की परछाई तक नही पडनी चाहिये|" कल्याणी के कहते ही अविनाश ने गुस्से में विकास के हाथ से असली गहनो की बैग ली और कल्याणी का हाथ पकडकर उसे बाहर से गया|
विकास अब बहुत चिंता मे आ गया था|उसे समझ नही आ रहा था कि वो क्या करे|
"पकडो दोनो को! दोनो मे से कोई भी बाहर जिंदा नही जाना चाहिए| वरना गाँव वाले हमे जिंदा नही छोडेंगे और वो लोग जिन्हें हमे ये गहने बेचने है वो अलग हमारे सिर पर नाचेंगे!" उसने सब आदमियो को उनके पीछे लगाया और वो भी उन्हें पकडने चल पडा|
इससे पहले की कल्याणी और अविनाश घर की दहलीज़ लाँघ कर बाहर जा पाते विकास और उसके आदमियो ने उन्हें पकड लिया|
उन्होंने जबरदस्ती अविनाश के हाथ से गहनो का बैग ले लिया और उन्हे पकडकर रखा|
"छोडो हमे! ये क्या कर रहे हो तुम? तुम जानते हो ना विकास की गाँव के किसी भी आदमी को तुम्हारी इस हरकत का पता चला तो तुम्हारे साथ क्या होगा?" कल्याणी झटपटाने लगी
"जब किसी को पता चलेगा तब ना! अगर तुम दोनों मे से कोई जिंदा ही ना रहे तो किसी को क्या पता चलेगा?" विकास हसते हुए कहने लगा|
कल्याणी और अविनाश दोनों को उसकी बात समझ मे आ गई|
कल्याणी तो बहुत डर गई| पर अविनाश समझ चुका था की ये वक्त डरने का नहीं लडने का है वरना वो दोनो ही मारे जायेंगे|
अविनाश ने जैसे तैसे खुद को उनसे छुडाया और कल्याणी को भी! वो उनसे लडने लगा| कल्याणी भी उसकी मदद कर रही थी| जो चीज हाथ मे आये उससे वो उन सब को मार रही थी|
जैसे तैसे विकास से लडकर अविनाश ने वो बैग हासिल कर ली|
सबको मार के और कल्याणी को लेकर वो बाहर भागा|
उनके पीछे वो सब लोग भी भागे|
अब कुछ भी करके कल्याणी और अविनाश को अपनी जान बचाते हुए वो गहने उन पापीयो के हाथो से भी बचाने थे| वो दोनो बहुत थक चुके थे पर फिर भी भाग रहे थे|
विकास और उसके आदमी उनके पीछे थे|
वो दोनो हाथ नही आ रहे हैं ये देखकर विकास ने बंदूक निकाली और उनको शूट कर दिया|
गोली सीधे कल्याणी के पैर मे लगी और वो नीचे गिर गई| उसके पैर से बहुत ज़्यादा खून निकलने लगा|
ये देखते ही विकास के चेहरे पर शैतानी हसी छा गई और वो तेजी से उनकी ओर बढने लगे|
अविनाश : कल्याणी! कल्याणी उठो!
हे भगवान अब मै क्या करू?
कल्याणी को बहुत दर्द हो रहा था|
कल्याणी ने देखा वो लोग तेजी से उनकी तरफ बढ रहे थे|
कल्याणी : अविनाश! अविनाश आप जाइये! आप चले जाइये! ये सब लेकर चले जाइये!
अविनाश : ये तुम क्या कह रही हो कल्याणी? मै तुम्हें छोडकर कही नही जाने वाला हू भले ही कुछ भी हो जाये!
अविनाश ने उसे उठाने की बहुत कोशिश की पर उससे खडा नही हुआ जा रहा था|
कल्याणी : अविनाश! अविनाश मेरी बात सुनिये! अगर वो लोग यहा आ गए तो हम दोनों को मार देंगे और ये गहने मेरी जान से बढकर है| अगर ये गहने इन लोगों के हाथ लग गए ना तो बहुत बुरा होगा| आपको मेरी कसम अविनाश जाइये! जाइये!
कल्याणी के कसम के आगे अविनाश को हार माननी पडी|
उसने कल्याणी को कसके गले लगा लिया|
"आय लव्ह यू सो मच अविनाश! लव्ह यू सो मच!"
"आय लव्ह यू टू कल्याणी!"
वो दोनो रो रहे थे| नम आँखों से अविनाश ने कल्याणी से विदा ली और वो भाग गया| कल्याणी जब तक वो आँखो से ओझल हुआ तब तक उसे ही देख रही थी|
जब उसने पीछे नजर घुमायी तो विकास तेजी से उसकी तरफ बढ रहा था|