जब रुद्र जागा तो वो वही जमीन पर सोया हुआ था| शायद टेंशन में उसे वही नींद आ गई थी|
बाहर बारिश अब भी चल रही थी|
कल से लगातार बारिश हो रही थी|
उसने सोचा की वो जल्दी रेडी होकर गौरी से मिल लेगा|
विवेक : शालिनी जी! आपने रुद्र और गौरी की कुंडली स्वामी जी के आश्रम भिजवा दी ना?
शालिनी : आप बिल्कुल चिंता मत किजीए मि. सिंघानिया! मैने भिजवा दी है कुंडलिया!
शालिनी जी विवेक जी को टाय पहनाते हुए कह रही थी|
विवेक : शालिनी जी मुझे गौरी के लिए चिंता हो रही है|
रिया के रुद्र के करीब जाने से शायद वो ज़्यादा ही इनसिक्योर फील कर रही है|
आपने देखा नही? दो दिन से गौरी रुद्र से बात नहीं कर रही है| मुझे लगता है कि अगर रिया यहा ना हो तभी शायद उसके और रुद्र के बीच सब ठीक हो पायेगा|
शालिनी : ये आप क्या कह रहे हो विवेक जी? आप जानते हो ना कि इस वक्त वो दोनो माँ बेटी यहा क्यो है?
इस वक्त उन्हें हमारी जरूरत है|
राजन जी हमारे कितने वफादार थे| हमारी अहमदाबाद वाली सारी प्रौपर्टी और सारा बिझनेस उन्होने लाइफटाइम बिना किसी धोके के संभाला है और उनके जाने के बाद इन दोनों का कोई नही है| इसीलिए तो मैने खुद उन्हे यहा बुलाया है|
आप जानते हो ना कि इस जमाने मे एक जवान बेटी को अकेले संभालना रेवती के लिए कितना मुश्किल होगा|
आप भी तो उन्हें अपनी बहन ही समझते है ना? तो आप उनके बारे में ऐसा मत सोचिये|
आज नही तो कल रुद्र और गौरी एक हो ही जायेंगे| इसमे रिया का कोई दोष नहीं| आप चिंता मत करीए! मै खुद गौरी से बात करूंगी|
शालिनी जी ने विवेक जी को समझाया|
असल मे राजन राय विवेक जी के बिझनेस कलिग थे| रिया रुद्र बचपन मे साथ ही पले बढे| पर बाद मे उन्होने उनकी वफादारी से खुश होकर उन्हे अहमदाबाद वाली बिझनेस ब्रांच के हेड बना दिया और साथ ही साथ उनकी प्रौपर्टी के केअर टेकर भी!
रेवती उनकी पत्नी थी|
वो एक बहुत ही वफादार आदमी थे|
पर कुछ समय पहले ही उनका देहांत हो गया था|
इस वजह से रेवती जी और रिया को बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड रहा था| जब विवेक और शालिनी जी ने ये देखा तो उन्होंने उनकी मदद करने की ठानी| पर रेवती जी ने साफ मना कर दिया| वो एक स्वाभिमानी औरत थी|
इसलिए जब उन्हे बहन कहकर बुलाया तब जाकर वो मानी|
इस ओर विवेक जी और शालिनी जी जहाँ रेवती को एक स्वाभिमानी औरत समझ रहे थे तो दूसरी ओर रेवती जी का सच कुछ और ही था|
पती की मौत के बाद दर दर की ठोकरें खाकर अब वो बहुत चालाक बन चुकी थी| उन्हें समझ आ चुका था कि उनके पती की वफादारी के बदले उन्हें कुछ हासिल नहीं हुआ इसलिए वो अपनी बेटी के जरीये सिंघानिया एम्पायर की मालिक बनने का सपना अपने दिल मे लेकर उस घर मे आयी थी|
यही वजह थी की वो रिया को रुद्र के बारे मे सपोर्ट कर रही थी|
पर रिया इस बात से अनजान थी|
ये था रेवती राय की पूरा सच!
कुछ देर बाद रुद्र जब रेडी होकर नीचे आया तो सब नाश्ते की टेबल पर उसका इंतजार कर रहे थे| उसने देखा पर गौरी वहा नही थी|
वो जाकर अपनी कुर्सी पर बैठ गया|
"पापा गौरी नही आयी? " उसने पूछा|
" मैने नीचे आते वक्त उसे आवाज़ दी थी पर उसने कोई जवाब नहीं दिया!" विवेक जी ने कहा|
"क्या ? मैने भी नाश्ते के लिए उसे आवाज दी थी पर उसने कमरे से कोई जवाब नहीं दिया| मुझे लगा वो बाथरूम मे है इसलिए जवाब नहीं दिया होगा|" शालिनी जी ने कहा|
"उसने कहा था कि उसकी तबियत कुछ खराब है| कही उसकी तबियत ज्यादा तो खराब नही हो गई?" रिया बोली|
" आप लोग नाश्ता करीये| मै उसे देखकर आती हूँ|" कहकर शालिनी जी उसके कमरे मे गई....
" विवेक जी! रुद्र!" कुछ ही पल बाद शालिनी जी ने उनको आवाज देकर बुलाया|
उनकी आवाज़ सुनते ही गौरी की चिंता मे सब लोग भागकर गौरी के कमरे मे पहुंचे|
"क्या हुआ माँ? आप चिल्लायी क्यो? " रुद्र ने पूछा|
" रुद्र मैने पूरा कमरा छान मारा गौरी कही नही है| उसका फोन भी यही पर है देखिये|" गौरी का फोन बेड पर ही पडा हुआ था|
" तो गौरी गई कहा? यही होगी घर मे कही| आप चिंता मत करो| हम ढुंढते है|" रिया ने कहा|
सब लोग उसे ढूंढने लगे|
रुद्र को तो कल रात के वाकिये की वजह से उसकी चिंता होने लगी थी| शालिनी जी ने तुरंत उसका चेहरा पढ लिया|
सब लोग जब गौरी को ढूँढने लगे तब शालिनी जी ने रुद्र का हाथ पकड़ा और उसे कोने मे ले गई|
" रुद्र क्या बात है? गौरी कहा है? सच सच बताइये!" शालिनी जी पूछने लगी|
शालिनी जी के पूछने पर उसने उन्हें कल रात वाली सारी बात बता दी|
ये सुनकर शालिनी जी भी को भी चिंता होने लगी|
वो दोनो फिर से गौरी को ढुंढने लगे|
विवेक जी गौरी को ढूँढते ढूँढते छत पर पहुंच गए|
उन्होने हर तरफ देखा| अचानक उन्हे वहा गौरी बेहोश पडी हुई दिखी|
वो भागकर उसके पास आये|
" गौरी! गौरी बेटा उठीये!
रुद्र! शालिनी! यहा आइये! गौरी यहा है!"
बारिश अब भी चल ही रही थी|
रुद्र सिढीयों के पास ही था इस वजह से उसे विवेक जी की आवाज सुनाई पडी और वो सीधे उपर भागा|
विवेक जी गौरी को जगाने की कोशिश कर रहे थे|
रुद्र भागकर उनके पास आया|
"पापा क्या हुआ गौरी को? " रुद्र पूछने लगा|
"पता नही बेटा! जब मै यहा आया तो ये यही पर बेहोश पडी हुई थी| हम एक काम करते हैं गौरी को नीचे ले चलते हैं|"
रुद्र ने उनका कहा मानकर गौरी को उठाया और नीचे ले गया|
गौरी को इस हालत मे देखकर तो शालिनी जी दंग रह गयी|
"रुद्र क्या हुआ गौरी को? ये इस हालत मे? " वो पुछ रही थी|
"माँ आप पहले डॉक्टर को फोन करीये!" रुद्र ने उनसे कहा|
रुद्र गौरी को उसके कमरे मे ले गया|
सब लोग उसके पीछे पीछे आये| शालिनी जी ने देखा तो गौरी को बहुत तेज बुखार था| शायद वो बहुत देर से वहा पडी हुई थी इसलिए शालिनी जी ने सब को बाहर निकाला और गौरी के कपडे बदल दिये|
रुद्र को बहुत चिंता हो रही थी| उसे उसके कल के व्यवहार पर पछतावा हो रहा था|
कुछ देर बाद डॉक्टर आयी| उन्होने गौरी को चेक किया और इंजेक्शन दे दिया|
वो गौरी के कमरे से बाहर आयी और फिर सबको बताने लगी|
उन्होने बताया की वो अब ठीक है और उसका बुखार भी उतर जायेगा साथ ही उसे थोडी देर मे होश भी आ जायेगा|
राघू चाचा डॉक्टर को छोडने गये|
सब लोग बाहर ही खडे होकर चर्चा कर रहे थे|
"मुझे तो ये समझ मे नही आ रहा कि गौरी वहा उपर गई ही क्यो? वो भी इतनी तेज बारिश मे? " रेवती जी कहने लगी|
"अब ये तो गौरी ही बता सकती है!" विवेक जी ने कहा
तभी गौरी के कमरे से उसके चिल्लाने की आवाज आयी|
सब भागकर उसके कमरे मे गए|
वो बहुत जोर जोर से चिल्ला रही थी| वो शायद किसी चीज से डर रही थी|
"दूर चले जाओ मुझसे! छोड दो मुझे!
मैने कहा ना मै तुम्हारी युवराज्ञी नही हू! चले जाओ!" वो किसी की ओर देखकर चिल्ला रही थी|
रुद्र ने उस ओर देखा पर वहा कोई नही था|
सब उसके पास आ गए| रुद्र ने उसे पकडा|
"गौरी! गौरी क्या हुआ? तुम डर क्यो रही हो?" रुद्र उसका चेहरा अपने चेहरे की तरफ करते हुए पूछने लगा|
पर वो लगातार दूसरी ओर देख रही थी और उस ओर इशारा कर रही थी|
"क्या हुआ बेटे? गौरी! क्या है वहा? " शालीनी जी उससे पूछ रही थी|
" नही! नही! नही! मेरे पास मत आना| मैने कहा ना मेरे पास मत आना| मै तुम्हारी युवराज्ञी नही हू!" गौरी रोते हुए कहने लगी|
अब रुद्र को कुछ कुछ समझ आने लगा|
उसने गौरी के गले की ओर देखा| उसके गले में वो माला नही थी|
रुद्र का शक सही निकला|
"माँ! पापा! गौरी की माला! " रुद्र की बात सुनते ही गौरी के गले मे वो माला ना पाकर विवेक और शालिनी जी सब समझ गए क्योंकि वो माला उन्होने ही तो स्वामी जी से गौरी को दिलवायी थी|
"गौरी तुम्हारी माला कहा है? गौरी! तुम्हारी माला कहा है? " विवेक और शालिनी जी दोनो उससे पूछ रहे थे|
पर गौरी थी कि लगातार वही बाते चिल्लाकर दोहरा रही थी और रोये जा रही थी|
रिया और रेवती जी को तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था ये माला का चक्कर!
"माँ! पापा! आप सब लोग गौरी को संभालीये| मै उसकी माला ढुंढकर लाता हू| "
रुद्र भागकर माला ढुंढने लगा|
उसने छत पर, गौरी के कमरे मे, हर जगह ढुंढ लिया| पर वो माला कही नही मिली|
पर तभी अचानक उसे कुछ याद आया और वो अपने कमरे की ओर भागा|
वो अपने कमरे मे गया और हर जगह ढुंढने लगा| उसे गौरी की माला वही पडी हुई मिली|
कल रात गौरी के साथ लडते वक्त खींचा तानी मे वो माला वही गिर गई थी|
उसने वो माला ली और भागकर गौरी के कमरे मे पहुंचा|
गौरी को विवेक जी और शालिनी जी ने पकड रखा था| वो अब डर से बेहाल हो गई थी|
रुद्र ने जल्दी से उसे वो माला पहना दी| जैसे ही गौरी ने वो माला पहनी वो शांत हो गई और बेहोश हो कर गिर पडी|
शालिनी जी ने उसे ठीक से सुलाया और वो लोग गौरी के कमरे से बाहर निकले|
वो सब लोग हॉल मे आये|
" ये सब क्या हो रहा है हमारी बच्ची को साथ विवेक जी!गौरी को मै कभी इस हालत मे नहीं देख सकती विवेक जी!कभी नही!" शालिनी जी विवेक जी के गले लगकर रोने लगी|
"मत रोइये शालिनी जी! हम आज ही स्वामी जी से जाकर मिलेंगे| हमारी गौरी ठीक हो जायेगी| आप चिंता मत किजीए|" वो उन्हे शांत करने लग
उन्हे भावुक हुआ देखकर रुद्र भी भावुक हो गय
पर गौरी के लिए सारे परिवार को परेशान होता देख रेवती को वो अच्छा नही लगा|
तभी राघू चाचा वहा आ गए|
"मालकिन! ये लोग आपसे मिलना चाहते हैं!" राघू चाचा कुछ लोगो को लेकर आये|
वो दोनो स्वामी जी के वही शिष्य थे जो हमेशा उनके साथ रहा करते थे|
"अरे आप! आइये ना! बैठीये!" विवेक जी ने कहा|
"जी धन्यवाद! फिर कभी! पर अब इस समय हमे गुरुजी ने किसी महत्त्वपूर्ण कार्य से यहा भेजा है|" उनमे से एक बोला|
"जी कहीये! " शालिनी जी ने पूछा|
"गुरुजी ने तत्काल आप दोनो को आश्रम मे उपस्थित होने का आदेश किया है| " वो बोले|
" जी! हम अभी इसी बारे में बात कर रहे थे| हम अपनी बेटी गौरी को स्वामी जी के पास ही लाने वाले थे|" विवेक जी कहने लगे|
"नही! इसकी कोई आवश्यकता नही है| केवल आप दोनो को उपस्थित होने का आदेश है| वो भी तत्काल!
आपने जो भेजा है, उस विषय मे गुरुजी को आपसे कोई गंभीर विषय पर चर्चा करना चाहते हैं इसलिए आप तत्काल आश्रम मे उपस्थित हो|" उनमे से एक ने समझाया|
उसकी बात सुनते ही शालिनी जी और विवेक जी के माथे पर चिंता की लकीरें साफ नजर आने लगी|
पर उन्होने ज़्यादा सवाल पूछना योग्य नहीं समझा|
" जी अब हमे आज्ञा दिजीए! नमस्कार!" वो दोनो चले गए|
कुछ देर बाद गौरी को होश आ गया| अब गौरी ठीक है ये देखकर और गुरुजी पर पूरा विश्वास होने के कारण विवेक और शालिनी जी कुछ देर बाद तुरंत ही उनके आश्रम के लिए निकल गए गौरी को रुद्र की देखरेख मे छोडकर!
रेवती जी रुद्र और रिया नीचे हॉल मे बैठकर बाते कर रहे थे| गौरी को भी बस कमरे मे पडे रहना ठीक नही लग रहा था इसलिए वो नी़चे उन सब के बीच जाकर बैठ गई|
" गौरी! तुमसे एक बात पूछू?" रिया ने पूछा|
" हाँ! पुछिये ना!" गौरी ने जवाब दिया|
"सुबह जो कुछ हुआ तब हमे कुछ भी समझ ही नहीं आ रहा था पर जब रुद्र ने हमे सब बताया तो हमे सब समझ आया| क्या तुम सच मे इन सब बातो मे विश्वास करती हो?" रिया ने पूछा|
"पहले तो नहीं करती थी| कभी कभी हमे कानो सुनी बातो पर भरोसा नहीं होता पर जब वही बात आँखे देख ले तो हमे यकीन करना पडता है और मेरे साथ भी यही सब हुआ है|" गौरी ने रुद्र की ओर देखकर कहा|
"सच कहू तो मुझे इन बातों मे जरा भी भरोसा नहीं है| अगर ऐसा होता कि मरा हुआ इंसान वापिस लौट आता तो शायद इस दुनिया मे हमे एक भी जिंदा इंसान बचा दिखाई नहीं पडता|" रिया कहने लगी|
"ऐसा नहीं है रिया! ये सारी बाते हर कोई महसूस नही कर पाता और हर मरा हुआ इंसान लौटकर आये ये भी जरूरी नहीं! " गौरी ने शांति से कहा|
"वही तो! हर ढोंगी इंसान ये बात यही कहकर टाल देता है कि ये सब हर कोई महसूस नही कर सकता|
आय एम सॉरी गौरी! पर मुझे लगता है तुम्हे खुदको किसी अच्छे सायकैट्रीस्ट को दिखाना चाहिये|" रिया बोल पडी|
उनकी बाते अचानक झगडे का रुप लेने लगी|
गौरी शांत ही थी पर रिया की बात का उसे बहुत बूरा लगा| उसकी आँखे नम हो गई और ये बात रुद्र के समझ में आ गई|
"आय एम सो सॉरी टू से गौरी! पर मै झूठ नही बोल पाती इसलिए जो मन में था वो कह दिया| या तो तुम नाटक कर रही हो या तो तुम्हें सच मे किसी डॉक्टर की जरूरत है| " रिया की बात से गौरी को बहुत बुरा लगा और उसके आँसू बहने लगे|
वो वहा से उठकर जाने लगी पर किसी ने उसका हाथ पकडकर उसे रोक लिया|
उसने पीछे मुड़कर देखा तो वो रुद्र था|
ये देखते ही रिया और रेवती उठकर खडे हो गए|
"रुको गौरी! रिया को जवाब तो देती जाओ!" रूद्र ने कहा|
"हाथ छोडिये रुद्र! मुझे जाना है!" गौरी अपना हाथ छुडाने लगी पर रुद्र ने उसका हाथ कसकर पकडा और उसे रिया के सामने खडा कर दिया|
"तुम जानती हो रिया? गौरी एक पढी लिखी, हमारी कंपनी मे अच्छे पोस्ट पर काम करने वाली और साथ ही एक डॉक्टर की बेटी है| पर इसका मतलब ये नहीं की ये भगवान मे भरोसा नही करती|
तुम बताओ! तुम साल मे कितनी बार मंदीर जाती हो? " रुद्र अब रिया को पूछने लगा|
रिया को तो कुछ समझ ही नहीं आया| उसे याद ही नही आ रहा था कुछ|
"क्या हुआ? कुछ याद नही आ रहा? कोई बात नहीं! मै बताता हू!
मुश्किल से 2-3 बार!
ये हर सोमवार शिवजी के मंदिर मे जाती है| शंकर भगवान के लिए इसके मन मे जो श्रद्धा है ना उसमे मै भरोसा करता हूँ|
जब ये बहुत ज्यादा गुस्सेमें या टेंशन मे 'ओम नम: शिवाय' बोलती है ना! तो उसमे भी वास करने वाली शिवजी की भक्ति पर मै विश्वास करता हू|
ये जब कहती है ना कि उस माला के बजाय इसे भूत प्रेत दिखाई देते है| तब भी मै इसपर विश्वास करता हू|
और जब वो माला पहनकर ये नॉर्मल हो जाती है ना तब भी मै इसपे उतना ही भरोसा करता हूँ|" रुद्र ने गौरी का हाथ और कसकर पकडते हुए कहा|
रेवती जी को ये देखकर गुस्सा आया|
गौरी तो बस रुद्र को ही देखे जा रही थी| उसकी बातो मे उसे अजीब सी कशिश महसूस हो रही थी|
"और मै ही नही! इस घर का हर सदस्य गौरी पर उतना ही भरोसा करता है जितना मै!
मै ये नही कहता कि तुम भी करो! पर गौरी से किसी का भी इस तरह बात करना मुझे जरा भी गवारा नही! अगली बार याद रखना!
चलो गौरी! तुम्हारी तबीयत खराब है| अपने कमरे मे चलकर आराम करो|"
रुद्र गौरी को उसके कमरे तक ले गया| अब भी गौरी का हाथ उसके हाथ मे ही था|
रिया और रेवती तो उन्हें देखती ही रह गयी|
रिया को अपनी गलती का पछतावा हुआ|
गौरी तो रुद्र को ही देख रही थी|
रुद्र का उसके लिए रिया से लडना उसे मन ही मन खुश कर गया था| उसे ये जानकर बहुत खुशी हो रही थी की रुद्र उसपर इतना भरोसा करता है|
रुद्र ने उसे उसके कमरे तक छोडा और जाने लगा|
पर गौरी ने उसका हाथ पकड लिया|
"मुझपर इतना विश्वास करने के लिए शुक्रिया|" गौरी ने स्माइल के साथ कहा|
"तुम आराम करो| तुम्हें आराम की जरूरत है|" रुद्र ने भी मुस्करा कर जवाब दिया|
गौरी अपने कमरे मे आराम करने चली गई| रुद्र भी अपने कमरे मे चला गया|
अब जाकर कही गौरी को रुद्र की तरफ खिंचाव साफ होने लगा|
पर रेवती को अब गौरी से खतरा महसूस होने लगा|
उधर विवेक जी और शालिनी जी स्वामी जी के आश्रम पहुंचे|
वहा का वातावरण बहुत ही ज्यादा मनमोहक था|
बहुत सारे वृक्ष!अब बारिश रुक चुकी थी पर उनके पत्तो पर पडी पानी की बुंदे अब भी वैसी ही थी| हर तरफ से धूप की सुगंध और मंत्रोच्चारण की आवाजे! इस सब से उनका मन प्रसन्न हो गया|
उन्हे देखते ही स्वामी जी के शिष्य उनके पास आये और उन्हे स्वामी जी की कुटिया तक ले गए|
जब वो लोग वहा पहुंचे तो स्वामी जी आँखे बंद कर ध्यान कर रहे थे|
"आइये! अच्छा हुआ आप लोग आ गए| मै कबसे आपकी प्रतिक्षा कर रहा था|" स्वामी जी बोले|
आँखे बंद होकर भी उन्हे उनके आने का पता चल गया था|