2 - 3 दिन तक गौरी ने सिद्धार्थ से बात ही नहीं की| सिद्धार्थ उसे मनाने की कोशिश करता पर वो उसे इग्नोर कर रही थी|
गौरी किसी से ठीक से बात नही कर रही थी| ऑफिस में रुद्र से भी नही! रुद्र को पता था की वो ऐसा क्यो कर रही है! वो ज्यादातर गुमसुम रहती थी| सीमा जी को उसकी चिंता हो रही थी|
गौरी को रह रहकर उन बुढे पंडितजी का चेहरा याद आ रहा था| वो उन लोगो की मदद करना चाहती थी| उसी चिंता मे थी वो! पर सिद्धार्थ की वजह से जा नही पा रही थी| इस वजह से वो सिद्धार्थ से गुस्सा थी|
कल तो वो रातभर सो नही पायी| इस वजह से वो दिनभर थकी थकी लग रही थी| रुद्र ने भी उसका हाल देखकर इस बारे मे उससे बात करने की कोशिश की पर गौरी ने बात टाल दी| घर आकर वो वही सब सोच रही थी| पर आज उसने मन ही मन कुछ ठान लिया और अपना मोबाइल निकालकर विवेक जी को कुछ मैसेज किया|
फिर अपनी बैग निकालकर कपडे पैक करने लगी|
"शिवालय जा रही हो गौरी?" पीछे से आवाज़ आयी|
अचानक आयी आवाज से गौरी डर गई और उसके हाथ से कपडे भी नीचे गिर गए|
" ओह ममा! आप हैं? मै तो डर ही गई थी|" सीमा जी दरवाजे पर खडी थी|
" वो.... वो... मैं.... ममा...... " गौरी बोल नही पा रही थी|
" मै जानती थी की आज नही तो कल आप वहा जरूर जायेगी| भले किसी की मर्ज़ी हो या ना हो! मै आपको रोकुंगी नहीं बेटा! बल्कि मै तो चाहती हू की आप उन लोगों की मदद करे| पता नही क्यों पर उन पंडितजी की आँखो में मैने सच्चाई देखी है बेटा!" सीमा जी ने गौरी के सर पर हाथ रखकर कहा|
" मुझे भी यही लगता हैं ममा| वो लोग हो ना हो किसी बहुत बड़ी मुसीबत मे है और अगर मै उनकी मदद कर सकती हू तो मै जरूर करूंगी| इसी बहाने सिद्धार्थ को भी सबक मिल जायेगा| कुछ दिन मुझसे दूर रहेंगे तो अपने आप अकल ठिकाने आ जायेगी|" गौरी कह रही थी|
" अब बाते छोडो! जल्दी करो! वरना सिद्धार्थ जाग गया तो आपको जाने नही देगा| " सीमा जी उसे मदद करने लगी|
पैकिंग करके गौरी सीमा जी का आशीर्वाद लेकर निकल पडी| सिद्धार्थ के कमरे मे झाँक कर देखा तो वो सो रहा था| गौरी को उसे इस तरह छोडकर जाना अच्छा नहीं लग रहा था पर फिर भी दिल पर पत्थर रख, अपने आँसू रोककर वो निकल पडी|
उसने शिवालय जाने के लिए उसने एक बस ली|
बस मे एक आदमी मुह पर रुमाल डालकर सोया हुआ था उसी के पास वो बैठ गई| अपने पर्स मे कुछ ढुंढते हुए ही उसने पूछा," भाईसाहब हमे शिवालय पहुंचने मे कितनी देर लगेगी?"
"व्हॉट? भाईसाहब?" उसने अपने चेहरे से रूमाल निकाला|
वो इतनी जोर से बोला की सब लोग उसकी तरफ देखने लग गए|
गौरी ने देखा तो वो रुद्र था|
उसे देखकर गौरी चौंक गई| उसे तो अपनी आँखों पर विश्वास ही नही हो रहा था| उसकी आँखों में अजीब सी चमक आ गई|
"आप? आप यहाँ?"
" क्यों? नही आना चाहिए था? मुझे लगा इतनी रात को शिवालय जैसा लंबा सफर तय करना है तो शायद तुम्हें मेरी कंपनी की जरूरत होगी? पर अगर तुम कहो तो मै चला जाता हूँ!" ये कहकर वो उठने लगा पर गौरी ने उसका हाथ पकडकर वापिस उसे नीचे बिठाया|
" नही! नही! नही! मेरा वो मतलब नही था|"
" तो क्या मतलब था बताओ जरा?" रुद्र उसे चिढाने के इरादे से बोला|
" पागल! आप ना बहुत बडे पागल हो!" वो हसते हसते उसकी बाहो मे समा गई| वो रुद्र के साथ से बहुत खुश थी|
पर रुद्र को उसका ऐसे गले लगना अजीब लगा| वो जानता था की गौरी किसी और की अमानत है और उसे सिद्धार्थ की बाते भी याद आयी| उसने उसे हाथ नहीं लगाया|
"मै बहुत खुश हूँ रुद्र की आप मेरे लिए मेरे साथ आये|"
" आता कैसे नही? दोस्त हू तुम्हारा! तुम्हें अकेले कैसे छोड देता? अब वहा की प्रॉब्लम्स हम दोनो साथ मे मिलके निपटायेंगे!" रुद्र की इस बात पर गौरी हस पडी|
अब इस खतरनाक सफर मे गौरी अकेली नही थी|
रात भर सफर करने के बाद सूरज की पहली किरण के साथ गौरी और रुद्र अपनी मंजिल तक पहुँच गए| पर वो शिवालय गाव नही था| कंडक्टर से पूछने पर उसने बताया की वहा कोई गाडी नही जाती| उन्हें वहा से पैदल जाना पडेगा|
इसलिए वो दोनो पैदल ही चल पडे|
बाहर ठंड थी|
रात भर की थकान के बावजूद भी गौरी बेहद खूबसूरत लग रही थी| उसके चेहरे पर पडने वाली सूरज की किरणें उसे और भी सुंदर बना रही थी| रुद्र की तो उससे नजर ही नही हट रही थी| पर उसने जैसे तैसे खुदको संभाला|
सुबह जब सिद्धार्थ को पता चला कि गौरी चली गई हैं तो उसे बहुत बुरा लगा| पर सीमा जी ने उसे समझाया तो वो समझ भी गया| कही ना कही मन ही मन उसे गौरी का जाना अच्छा नहीं लगा था|
कुछ देर चलने के बाद गौरी और रूद्र शिवालय पहुँच गए|
पूरा गाँव कोहरे से ढका और बहुत ही सुनसान लग रहा था| अब तक किसी भी घर के दरवाजे नही खुले थे| बस एक चाय की दुकान दिखाई दे रही थी|
रुद्र गौरी वहा गए|
रुद्र ने आगे आकर चायवाले से पूछा|
"सुनीये! ये पंडित विश्वास जी का घर कहा है? क्या आपको पता है? " रुद्र ने पूछा|
"अरे बेटा! आप हमारे पंडितजी के मेहमान हो? पर आपको पहले कभी देखा नही यहा?" उस 40-45 साल के आदमी ने कहा|
"जी वो हम मुंबई से आये हैं| ये मेरी दोस्त हैं गौरी| प्लीज आप हमे उनका अड्रेस बता दिजीए| हम चले जायेंगे|" रुद्र के कहते ही गौरी ने हाथ जोडकर नमस्ते किया|
पर रुद्र के मुँह से गौरी का नाम सुनते ही उसके चेहरे के भाव बदल गये|
"आप... आप... आप गौरी है?" वो चौंककर पूछने लगा|
गौरी ने बस हिचकिचाते हुए गर्दन हा मे हीला दी|
ये देखते ही उस आदमी ने चाय बनाना छोड दिया और आस पास के घरो के दरवाजें खटखटाने लगा| उसके चेहरे पर खुशी का कोई ठिकाना नही था|
" अरे संजय! उठो! देखो बाहर कौन आया है! गौरी आयी है!
विनोद! उठ जल्दी! देख जल्दी बाहर आ!"
वो आदमी सब के घर के दरवाजें खटखटाकर उन्हें चिल्ला चिल्लाकर उठा रहा था|
कुछ देर बाद देखते देखते उसने कई लोगों को वहा जमा कर लिया| वो लोग भी चेहरे से बहुत ही ज्यादा खुश लग रहे थे| उसने किसी बच्चे को पंडितजी को बुलाकर लाने के लिए भेजा| वो लडका भागते हुए गया|
सब लोग गौरी की ही तरफ देख रहे थे| ये देखकर रुद्र ने गौरी को अपने पास खींच लिया| वो उसका हाथ पकडकर खड़ा था|
रुद्र के बिहेवियर से गौरी चौंक गई थी| पर उसे मन ही मन उसका अपने प्रति ऐसे चिंतित होना अच्छा लग रहा था|
उन लोगों में से एक आदमी आगे आया|
" क्या....क्या आप सच मे गौरी हो???" उसने दबी आवाज मे पूछा|
"जी हाँ! ये गौरी है!" गौरी कुछ बोले इससे पहले रुद्र ने जवाब दे दिया|
ये सुनकर सब बहुत खुश हो गए और आपस मे कुछ बाते करने लगे|
गौरी और रुद्र को तो कुछ समझ नहीं आ रहा था|
तभी हांफते हुए पंडितजी वहा पहुंचे|
वो गौरी को देखते ही बहुत ज्यादा खुश हो गए|
"आपका बहुत बहुत शुक्रिया! मुझे तो समझ नहीं आ रहा है कि मै आपका शुक्रिया कैसे करू?" पंडितजी गौरी के आगे हाथ जोड़कर खडे थे|
" ये आप क्या कह रहे हैं? प्लीज ऐसा मत कहीए! मै भी आप लोगों की मदद करना चाहती हू| वरना यहा क्यो आती?" गौरी ने कहा|
" देखिये! मैने आप लोगों से कहा था ना! ये वही है! यही है जो हमे इस विपदा से बचा सकती है! शायद अब हमारे गाँव की सारी परेशानिया माँ दुर्गा की कृपा से खत्म हो जायेगी!" पंडितजी सबसे कहने लगे|
तभी एक 4 साल का बच्चा गौरी के पास दौडकर आया और उससे लिपट गया|
उस बच्चे ने गौरी को नीचे झुकने का इशारा किया| वो उसके सामने बैठ गई|
" मेरी माँ कहा है?"
"माँ?" गौरी को कुछ समझ नहीं आया|
"पंडितजी ने कहा था कि हमे सारी मुसीबतो से बचाने के लिए माँ गौरी खुद आयेंगी और वो मेरी माँ को भी साथ मे लायेंगी|" वो मासूम बच्चा कह रहा था|
पर गौरी को कुछ समझ नहीं आया| इसवजह से उसने पंडितजी की तरफ देखा|
" इसकी माँ अब नहीं रही| हमारे गाँव का श्राप उसे खा गया|" पंडितजी ने नम आँखो से कहा|
ये सुनते ही गौरी ने उस बच्चे को गले लगा लिया|
"मै आपकी माँ को वापिस तो नहीं ला सकती पर ये वादा करती हूँ कि आज के बाद किसी बच्चे से उसकी माँ नही दूर होगी|" गौरी की ये बात सुनकर रुद्र को बहुत अच्छा लगा|
"और तुम्हारे हर कदम मे मै तुम्हारा साथ दूंगा|" ये कहकर रुद्र भी उन दोनों से लिपट गया|
सब लोग गौरी और रूद्र का स्वभाव देखते ही रह गए|
तभी उस बच्चे के पिता आगे आए|
"माफ करना बेटी! छोटा है ना!" वो आदमी उस बच्चे को गोद मे उठाते हुए बोला|
"इसमे माफी की क्या बात है! ये तो बहुत ही प्यारा है| इसका नाम क्या है?" रुद्र ने पूछा|
"जी पीयूष!" उस आदमी ने कहा|
"बेटा! आप दोनो मेरे साथ चलिये| आप मेरे साथ मेरे घर पर ही रहेंगे|
आप सब लोग जाइये और दुर्गा पूजा की तैयारीयाँ किजीए| अब स्वयं गौरी आ गई है तो फिर से दुर्गा पूजा होगी हमारे गाव मे! मंदिर के दरवाजे खोलने का समय आ गया है!" पंडितजी ने कहा|
"पर पंडितजी बिना मातारानी के दिव्य त्रिशूल के पूजा का आयोजन? यदि सही समय पर माँ दुर्गा के गहनो सहित वो त्रिशूल मंदीर मे स्थापित ना हुआ तो कोई अनहोनी....." चायवाला आदमी बोलते बोलते रुक गया|
"अब कोई अनहोनी नही होगी| आप केवल माता की आज्ञा का पालन करीए| जाइये! तैयारीयाँ करीए|" पंडितजी ने सबको आदेश किया|
सब लोग खुश होकर चल दिये|
पंडितजी ने उन मे से कुछ लोगों को रुद्र गौरी का सामान साथ लेकर चलने को कहा और वो उन दोनों को अपने घर लेकर गए|
गाव मे एक नयी उम्मीद जगी थी| सब बहुत खुश थे| पर उनमे कोई तो था जो गौरी पर नजर बनाये हुआ था| उसकी हर हरकत पर नजर रख रहा था| उसे गौरी का गाँव मे आना शायद पसंद नही आया था|
पंडितजी गौरी और रुद्र को लेकर घर आये| उनका घर ज्यादा बडा तो नहीं था पर छोटा भी नहीं था! पुरानी बनावट का बहुत सुंदर था वो घर! गौरी को तो घर बहुत पसंद आया था|
उनके आते ही पंडितजी ने घर के सारे नौकरों को उनका पूरा खयाल रखने को कहा|
"पंडितजी घर मे आपके अलावा कोई नही है?मेरा मतलब आपकी पत्नी?" गौरी ने पूछा|
" बेटे मैने उस दिन बताया था ना तुम्हे! मेरी बेटी बस 4 साल की थी जब मेरी पत्नी का स्वर्गवास हो गया|" कहते हुए उनका चेहरा उतर गया|
" माफ किजीये!" गौरी ने माफी मांगी|
उन्होंने पहले गौरी को उसका कमरा दिखाया|
" ये आपका कमरा! दरअसल ये मेरी बेटी कल्याणी का कमरा था|" उनकी आवाज से पता चलता था की वो अपनी बेटी से दूर होकर खुश नही थे|
उन्होंने रुद्र को भी उसका कमरा दिखाया|
उनके जाने के बाद जब गौरी ने वो कमरा ध्यान से देखा तो वो कमरा बहुत ही सुंदर था| बडे ही प्यार से कल्याणी ने कमरे की हर चीज़ खुद के हाथों से बनाकर सजाकर रखी थी| गौरी पूरे कमरे को ध्यान से देख रही थी| कल्याणी की हर बनाई चीज को हाथ लगाकर देख रही थी और मन ही मन खुश हो रही थी|
देखते देखते वो आईने के सामने से गुजरी| पर उसे कुछ अजीब लगा इसलिए वो वापिस उस आइने के पास आयी| उसने आइने को हाथ लगाया| उसे कुछ अजीब सा एहसास हो रहा था|
उसने कुछ देर सोचा और अपने गले की माला पर हाथ रखा| उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे! फिर उसने उस माला को कसकर पकडा और हिम्मत जुटायी|
" ओम नम: शिवाय.... " शिवजी का नाम लेकर उसने अपने गले से माला उतारी और आइने के सामने वाले टेबल पर कपकपाते हाथो से रखी|
वो खुद से माला दूर नहीं करना चाहती थी| पर उसने जैसे तैसे हिम्मत जुटायी और माला डेस्क पर रख दी|
उसके चेहरे पर डर साफ नजर आ रहा था|
उसने माला नीचे रखी और आसपास देखा| कोई नही था| उसने डरते डरते हलके से आइने पर हाथ लगाने के लिए हाथ बढाया| जैसे ही उसने आइने को हाथ लगाया उसे बहुत डरावना मंजर दिखाई दिया| कोई लडकी जिसका पूरा चेहरा खून से सना हुआ था, वो बहुत जोर जोर से चिल्ला कर रो रही थी| उसकी आवाज इतनी तेज थी की गौरी का दिल दहल गया| वो बहुत ज्यादा डर गई| डर के मारे वो चिल्ला पडी| वो सीधा नीचे गिर गई पर बचने के लिए जैसे तैसे उसने झट् से अपनी माला उठायी और कमरे के बाहर दौडी|
बाहर रुद्र और पंडितजी बात कर रहे थे| गौरी की आवाज सुनकर वो दोनो गौरी के कमरे की तरफ भागे| गौरी चिल्लाते हुए बाहर आयी और सीधे रुद्र से टकरा गई| रुद्र ने उसे गले से लगा लिया और उसे शांत करने की कोशिश करने लगा|
"गौरी! गौरी शांत हो जाओ| क्या हुआ? क्या हुआ?"
" व्..... व्.... वो..... अंदर! अंदर कमरे में..... " वो डरी हुई थी|
"कमरे मे क्या गौरी?" रुद्र की नजर गौरी के गले पर पडी| उसके गले मे माला नही थी| माला गौरी के हाथ में थी|
" गौरी! गौरी! माला क्यो उतारी तुमने?" रुद्र ने उसके हाथ से माला ली और उसे पहना दी|
उन्होंने उसे बिठाया और पानी पिलाकर शांत किया|
कुछ देर बाद गौरी शांत हो गई|
पंडितजी को तो कुछ समझ मे नही आ रहा था|
" गौरी! क्या हुआ? मुझे ठीक से बताओ!" रुद्र ने प्यार से पूछा|
" रुद्र! वो अंदर.... " वो बताने ही वाली थी कि उसकी नजर सामने लगाई एक बडी तस्वीर पर पडी|
गौरी उठकर उस तस्वीर के पास जाकर उसे गौर से देखने लगी| उसमे पंडितजी के साथ साडी पहनी एक लडकी थी|
" क्या हुआ गौरी?" रुद्र ने पूछा|
" ये मेरी बेटी है| कल्याणी....! ये तस्वीर बहुत जबरदस्ती खिचवाई थी उसने जब वो शहर से वापस आयी थी!" पंडितजी की ये बात सुनते ही गौरी बहुत चौंक गई|
"ऐसा कैसे हो सकता है? आपने तो कहा था ना की आपकी बेटी सारे गहने लेकर अपने दोस्तों के साथ भाग गयी!" गौरी ने अचंभे से कहा|
"हा! ये सच हैं! मैने तो कभी सोचा भी नहीं था की मेरी परवरिश...... " पंडितजी की आँखो से पानी छलक पडा|
"ये झूठ है! रुद्र ये सब झूठ है!" गौरी रुद्र के पास आकर बोली|
"मैने अभी अभी अंदर इसी लडकी को देखा है रुद्र! यही थी वो! और आप जानते हैं ना मेरे कल्याणी को देखने का मतलब?" गौरी की आँखो मे सच्चाई नजर आ रही थी|
"तुमने कल्याणी को देखा कही इसका मतलब ये तो नहीं की?" रुद्र गौरी की बात समझ गया|
"आप दोनो क्या बात कर रहे हो मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा|" पंडितजी बोले....
"पंडितजी! आप शायद यकीन नही करेंगे पर गौरी को अत्रुप्त आत्माये दिखाई देती है और..... और कमरे मे अंदर गौरी ने कल्याणी को देखा है! इसका मतलब... आप...आप समझ रहे हैं ना?" रुद्र की इस बात पर पंडितजी सुन्न हो गए|
गौरी आगे आयी|
"पंडितजी!आपकी परवरिश गलत नहीं है| आपने समझा की कल्याणी भाग गयी है| पर हो न हो उसके साथ कुछ बहुत बुरा हुआ है! बहुत बुरा! शायद... शायदअब वो इस दुनिया मे नही है!" गौरी की आँखें भर आयी थी|
ये सुनते ही पंडितजी नीचे बैठ गए| रुद्र और गौरी उनको संभालने लगे| पंंडितजी अपनी बेटी के शोक मे डूब गए|
"कल्याणी! मेरी बच्ची! अब तक कम से कम ये आस तो थी की किसी दिन तुम अपने पिताजी के पास वापिस आओगी! पर अब तो वो भी नही रही!मै तुम्हारे बिना कैसे जिउंगा बेटा कल्याणी?" वो बहुत ज्यादा रो रहे थे|
उसी दिन शाम को पंडितजी ने सब को बुलाया और ये खबर दी की कल्याणी नही रही| उन्होने गाव वालो को वो सब बता दिया जो रुद्र और गौरी ने उन्हे बताया|
"देखिये! मै ये तो नही कह सकती की चोरी कल्याणी ने की है या नहीं पर उसके साथ हो ना हो बहुत बुरा हुआ है और इसी गाँव मे हुआ है! पर चौंकाने वाली बात ये है कि इतने बडे गाँव में किसी को कुछ कैसे पता नही चला| किसी ने तो देखा होगा उसे?" गौरी ने सब से पूछा|
" बेटा दुर्गा पूजा के दिन सारा गाँव बहुत ज्यादा काम मे रहता है| सब लोग तो मंदिर मे ही होते है| शायद इस वजह से किसी ने ना देखा हो!" एक बूढ़ी औरत ने कहा|
" पर फिर भी! कोई तो होगा जिसने देखा होगा कल्याणी के साथ कुछ गलत होते हुए?" गौरी ने सबसे सवाल किया|
"ये नही हो सकता मैडम! आपको कोई गलतफहमी हुई है| नमस्ते पंडितजी! ये किन्हे ले आये आप? ये हमारे गाव को बचायेंगी? जो खुद ही शायद अब तक किसी सपने से बाहर नही आयी!" आवाज जानी पहचानी थी| सब ने पिछे मुडकर देखा| वो विकास था| पंडितजी का शिष्य! जो कई दिनों से नजर नही आया था और आज अचानक आ धमका|
वो हाथ जोडकर सबको नमस्ते करते हुए आया|
रुद्र को उसकी बात पर गुस्सा आ रहा था|
"विकास तुम? आओ बेटा! तुम्हें कोई गलतफहमी हुई है| ये वही है जो हमारे गाव को बचा सकती है| ये आ गई इसका मतलब स्वयं माँ आ गई हमे बचाने!" पंडितजी ने कहा|
विकास सबके सामने आया| उसकी नजर गौरी पर थी| ये वही नजर थी जो गौरी पर आने के बाद से ही निगाहे रखे हुए थी|
"अब आप लोग ही बताइये! इन्होने एक सपना देखा, जिसमे उन्होंने कल्याणी जी को देखा! इससे पता लगा लिया की वो मर गई है और वो भी इसी गाव मे? वो भी कैसे? क्योंकि इन्हें लगता है कि इन्हें आत्माए दिखाई देती है! आज तक आप लोगों ने किसी आत्मा को देखा है? हमारे गाव मे कितनी मौते हुई, कितने हादसे हुए! पर क्या किसी ने आत्मा को देखा?" उसकी बात पर सब लोग खुसुरफुसूर करने लगे|
रुद्र और गौरी को उसका बहुत गुस्सा आ रहा था|
"बताइये देखा क्या? पर हमने देखा है! हमने देखा है कल्याणी को अपने दोस्त के साथ रंगरलिया मनाते हुए और गहने लेकर भागते हुए! आप सबने देखा था ना की हमे कितनी चोट लगी थी! हमे बहुत मारा और फिर वो लोग भाग गए थे|
अरे चरित्रहिन थी वो! कई यारो के साथ पकडा था हमने उसे वो भी दुर्गा पूजा के दिन!"
ये सुनते ही गौरी ने विकास को जोरदार तमाचा जड दिया|
"बस्स! अब बहुत हुआ! अब हम तुम्हारी एक भी बात नही सुनेंगे| तुम्हें शरम नही आती किसी लडकी के बारे मे ऐसी गंदी बात कहते हुए? अगर मेरे पास कोई सबूत नही है की कल्याणी मर चुकी है, तो तुम्हारे पास क्या सबूत है की गहने उसने चुराये है तुमने नही? ऐसा भी तो हो सकता है की उसको और उसके दोस्तो को मारकर गहने तुमने चुराये हो!" गौरी ने उसे बहुत बुरी तरह सुनाया| गौरी की इस बात से गाव वालो को भी उसपर यकीन सा होने लगा|
"चलिए पंडितजी! जिसको हमपर यकीन होगा वो हमारे साथ खडा होगा वरना हम अकेले लडेंगे हर मुसीबत से!" ये कहकर गौरी रुद्र और पंडितजी को लेकर वहा से चली गई|
पर इस थप्पड़ से विकास पूरी तरह हिल गया था|
रातभर वो तीनो लोग चिंता से सो भी नही पाये| पूरी रात चिंता मे निकल गई|
सुबह सुबह घर का नौकर उन तीनो को बुलाकर गैलरी मे लेकर आया|
जब उन्होंने आकर देखा तो सारे गाव वाले नीचे हाथ जोडकर खडे थे|
"मैने देखा था पंडितजी! मैने देखा था! उस दिन कल्याणी बिटीया लहूलुहान होकर भाग रही थी और कुछ लोग उसका पीछा कर रहे थे| उन लोगों के हाथ मे हथियार भी थे| पर मै बोल नही पाया क्योंकि मै डर गया था| बहुत ज़्यादा डर गया था| मुझे माफ कर दिजीये!" ये सुनकर पंडितजी की आँख भर आयी|
"हम सब आपके साथ है पंडितजी! आप जैसा कहेंगे हम वैसा करेंगे!" सब ने उन्हे आश्वस्त किया|
ये सुनकर सब खुश हो गए|