एक सेवक रुद्र और रिया को लेकर महल के अंदर जा रहा था| जैसे जैसे रुद्र आगे बढ़ रहा था उसे सब बहुत अजीब लग रहा था| महल के हर कोने से उसे अजीब सा लगाव महसूस हो रहा था| वो सारा महल बहुत बारीकी से देखते हुए आगे बढ़ रहा था|
" इस ओर आइये! राजकुमार आपका उनके कमरे मे इंतज़ार कर रहे है!" वो सेवक रुद्र और रिया को रास्ता दिखा रहा था|
तभी अचानक रुद्र की नजर एक बंद कमरे पर पडी|
वो जाकर उस दरवाजे के पास रुक गया|
वो एक बहुत ही सुंदर कारीगरी किया हुआ दरवाजा था|
दरवाजे पर बहुत बडा ताला लगा हुआ था|
अचानक रिया और वो सेवक रुक गए| देखा तो रुद्र पीछे रह गया था|
"क्या हुआ रुद्र? तुम रुक क्यो गए? " रिया ने पूछा|
वो दोनो रुद्र के पास आये पर रुद्र का ध्यान अब भी उनपर नही बल्कि उसी कमरे पर था|
रुद्र उसी दरवाजे को बडे ध्यान से देख रहा था|
उसने देखते देखते उस दरवाजे को हाथ लगाया| जैसे ही उसने दरवाजे को हाथ लगाया उसे बहुत ही अजीब अजीब से दृश्य दिखाई देने लगे पर सब धुंधले!
उसने डरकर अचानक अपना हाथ पीछे ले लिया|
" क्या हुआ रुद्र? तुम ठीक तो हो ना?" रिया ने पूछा|
" कहा जाता है कि ये कमरा हमारे राज्य के महान सेनापति वीरभद्र का था| वे हमारे राज्य के बहुत ही वीर योद्धा थे पर अब ये कमरा हमेशा बंद ही रहता है| किसी को भी इस कमरे मे जाने की अनुमति नहीं है! " वो सेवक बोला|
" आइये अब शीघ्र चलिये! राजकुमार आपका इंतजार कर रहे होंगे!" वो सेवक इनको लेकर जाने लगा|
पर जाते वक्त भी रुद्र का ध्यान उसी कमरे पर था|
सेवक उनको एक कमरे के दरवाजे तक ले आया|
"आप अंदर जाइये! " उसने रुद्र और रिया को अंदर भेजा|
जैसे ही दोनो अंदर गए विजय अंदर दोनो का इंतज़ार कर रहा था|
जैसे ही उसने रुद्र को देखा वो दौडकर उसके पास आया और उसके गले लग गया|
" रुद्र तुम आ गए! तुम नही जानते कि मैने तुम्हें कितना याद किया! कितना इंतज़ार करवाया तुमने!
बहुत समय लगा दिया तुमने पर मुझे पूरा भरोसा था कि तुम जरूर आओगे और देखो तुम आ गए!" विजय बोला|
" रिया कैसी हो तुम?" विजय ने रिया से पूछा|
" मै ठीक हू भैया! " रिया ने कहा|
" ये सब क्या है भैया? ये सब हो क्या रहा है? पहले गौरी हम सब की आँखो से सामने किडनैप हो जाती है फिर आप और पूजा भाभी गायब हो जाते हैं और आप लोग मिलते भी हो तो कहा! यहा! नीलमगढ में!
वो भी इस तरह! आपको पता भी है कि वहा हम सब की हालत क्या है?
मेरी तरफ देखिए! मेरी हालत देखिये! पागलो की तरह ढूंढ रहा हूँ मै आप सबको! आपको ढूंढने के लिए शहर का हर वो कोना देख चुका हूँ मै! जिसका कभी मैने नाम तक ना सुना था! मेरी कुछ समझ मे नही आ रहा| मुझे लगता है कि मै पागल हो जाउँगा!" रुद्र गुस्सेमें कहने लगा|
" खुदको संभालो रुद्र! तुम मेरी बात सुनो! मै तुम्हें सब बताता हू!" विजय बोला|
विजय बताने लगा|
" ये सब जानने से पहले तुम्हे हमारे राज्य के इतिहास के बारे मे जानना होगा!
हम लोग महान शासनकर्ता महाराज चंद्रसेन के वंशज है| उनकी इकलौती बेटी थी युवराज्ञी भैरवी! उनको हमारे राजपरिवार मे देवी का दर्जा दिया जाता है| कहा जाता है कि उनके छूते ही मुरझाए फूल खिल उठते थे| मुर्दे जी उठते थे|" विजय बता रहा था|
भैरवी का नाम सुनते ही फिरसे रुद्र की आँखो के सामने उसके पिछले जन्म के दृश्य मंडराने लगे|
" क्या हुआ रुद्र? तुम ठीक तो हो ना? " रिया ने पूछा|
रिया के पुकारने से रुद्र उस भ्रम से अचानक बाहर निकला|
" ठीक हू रिया! आप बोलिये विजय भैया! मै सुन रहा हूँ!" रुद्र बोला|
" युवराज्ञी भैरवी के बाद हमारे राजपरिवार मे जन्म लेने वाली राजकुमारी नीलाद्रि यानी गौरी पहली लडकी है! उसके जन्म के समय ही हमारे राजगुरू ने भविष्यवाणी की थी कि नीलाद्रि हमारे राज्य की उद्धारक बनेगी इसलिए राज्य की बागडोर उसी के हाथ मे सौपी जाये|
मुझे तो बचपन से ही सिंहासन का कोई लालच नही था पर महल मे हर कोई ऐसा नही था| कई लोग थे जो सिंहासन की लालसा पाले हुए थे|
हमारे राज्य मे गौरी के जन्म से बहुत खुशहाली छायी हुई थी| माँ-पिताजी भी गौरी को पाकर बहुत खुश थे|
माँ-पिताजी राज्य के कारोबार की वजह से हमे ज्यादा समय नही दे पाते थे|
तब मैने गौरी को मैने अपनी गोद मे खिलाया है|
नन्ही सी रोती नीलाद्रि को चूप कराना, उसका मन बहलाना, उसे खाना खिलाना, उसके साथ खेलना, सारी जिम्मेदारी मुझपर आ गई| उसे अपनी बच्ची की तरह पाला है मैने!
इसी तरह कुछ साल बीत गए और इस दौरान हमारा रिश्ता बहुत मजबूत भी हो गया|
पर नीलाद्रि की पाचवी सालगिराह पर हमपर मानो पहाड टूट पडा|
सारा नीलमगढ नीलाद्रि की सालगिराह की तैयारीयाँ कर रहा था| राजदरबार मे बहुत भव्य आयोजन किया गया था| उसी दिन मेरे चाचाजी और चाचीजी ने माँ और पिताजी को बताया कि हमारे राज्य मे एक बहुत ही दिव्य त्रृषी का आगमन हुआ है| वो बहुत ही सिद्ध पुरुष है| किसी का भी मुख देखकर बता देते है कि उसके भविष्य में क्या लिखा है|
महाराज ने उनकी बात सुनकर उन्हे भी आमंत्रित किया| कुछ ही समय मे राजदरबार मे उन दिव्य महर्षि का आगमन हुआ|
महाराज ने उनके आगमन के साथ ही उन्हे यथोचित आदरातिथ्य करवाया|
पर जैसे ही उन्होंने नीलाद्रि को देखा उनके हावभाव बदल गए| ये बात मेरी समझ में आ गई थी|
समारोह के पश्चात वे महाराज और महारानी से एकांत मे मिले| उनके साथ मेरे चाचा चाची भी थे|
महर्षि : राजन हमे आपकी पुत्री के विषय मे एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण बात करनी है|
महाराज प्रताप ( गौरी के पिता ) : कही कोई चिंता का विषय तो नही ना महर्षि?
महर्षि : चिंता का विषय तो है राजन!
महारानी यामिनी (गौरी की माँ) : क्या बात है स्वामीजी? हमारा दिल बैठा जा रहा है! हमारी नीलाद्रि के विषय मे सब ठीक तो है ना?
महर्षि : कुछ भी ठीक नही है महारानी!
महाराज : अर्थात?
महर्षि : अर्थात ये कि आपकी पुत्री को जैसे ही मैने देखा मैने उसमे आपके राज्य का सर्वनाश देखा|
ये सुनते ही सब चौंक गए|
महाराज : क्या? ये आप क्या कह रहे हैं?
महर्षि : मै सत्य कह रहा हूँ राजन!
आपके राज्य का विनाश लिखा है आपकी ही पुत्री के हाथो! यदि ये इस राज्य मे रही तो आपके राज्य का विनाश निश्चित है|
महारानी : ये सच नही हो सकता महाराज| ये बिल्कुल सच नही हो सकता| हमारी राजकुमारी युवराज्ञी भैरवी के बाद कुल मे जन्म लेने वाली पहली लडकी है| राजगुरू ने कहा था कि वो युवराज्ञी भैरवी के स्वरूप है| ऐसा नही हो सकता|
महर्षि : ठीक है| यदि आपको हमारी भविष्यवाणी पर विश्वास ही नहीं है तो हमारा यहा रुक कर क्या उपयोग? इससे अधिक अपमान हमारा क्या हो सकता है? हम अभी यहा से प्रस्थान कर रहे है! परंतु एक बात याद रखना राजन! एक सिद्ध पुरुष का अपमान किया है आपने!
वो त्रृषी गुस्से मे वहा से चले गए|
ये सब मैने छिपकर सुन लिया था|
उसके पश्चात मेरे चाचाजी ने महाराज को बताया कि वो बहुत सिद्ध साधू थे और उनकी भविष्यवाणी आज तक कभी झूठी साबित नही हुई| आपको उनका अपमान नही करना चाहिए था|
किसी तरह उन लोगों ने महाराज और महारानी को मजबूर कर दिया की वो भविष्यवाणी पर यकीन कर ले|
मै नीलाद्रि को सुला रहा था| उसी रात महाराज महारानी नीलाद्रि के कमरे मे आये| उससेे बहुत प्यार भरी बाते करने लगे| मुझे तभी समझ मे आ गया की कुछ तो बात है|
कुछ ही देर मे कुछ सैनिक कमरे मे आये और नन्ही सी नीलाद्रि की हाथो मे लोहे की ज़ंजीरे डाल दी गई|
आज भी मुझे याद है कि वो किस तरह रो रही थी, बिलख रही थी| मैने सबसे बहुत मिन्नते कि पर उसे कारागार मे बंद कर दिया गया|
हालांकि इस बात से मेरे माता पिता भी खुश नही थे| वो रो रहे थे पर ये उनकी मजबूरी थी|
कोई कुछ करे ना करे पर मै अपनी जान से प्यारी बहन को इस हालत मे नही देख सकता था|
इसीलिए एक दिन मौका पाकर किसी तरह मै उसे कारागार से बाहर भगा लाया|
इससे पहले कि किसी को कुछ पता चले मै उसे महल से बाहर लेकर भाग आया|
मुझे समझ नही आ रहा था कि मै मेरी बहन को लेकर कहा जाऊ! हम दोनो दौडते दौडते थक गए थे|
नीलाद्रि कि तबियत कारागार मे काफी खराब हो गई थी इस वजह से वो भागते भागते बेहोश हो गई|
मेरी कुछ भी समझ मे नही आ रहा था कि मै क्या करू? मै उसे वही छोडकर मदद माँगने भागा|
तभी मुझे एक घर दिखायी पडा|
मैने उस घर का दरवाजा खटखटाया|
घर के अंदर से पति पत्नी दोनो बाहर आये|
राजकुमार को दरवाजे पर इस तरह देखकर वो डर तो गए थे पर मैने उनसे मदद माँगते ही वो मदद के लिए तैयार हो गए|
मै उन्हे नीलाद्रि के पास ले आया| वो अब भी बेहोश थी| इसलिए उस आदमी ने सुझाया कि हम उसे उनके घर ले चले क्योंकि उनकी बेटी शहर से आयी थी| वो शहर मे डॉक्टरी पढ रही थी और वो शायद उसे होश मे ला पाती|
उन्होने नीलाद्रि को उठाया और अपने घर ले गए|
तब तक इस ओर महल मे उसके गायब होने की खबर लग चुकी थी और सैनिक हर जगह उसे तलाश रहे थे|
इस ओर उन दोनो की बेटी ने नीलाद्रि को कोई दवाई दी जिससे वो होश मे आ गई|
(उन दोनो की बेटी और कोई नही बल्कि गौरी की माँ सीमा जी ही थी|)
उस शहरी लडकी को देखकर अपनी बहन को कारागार से बचाने के लिए मेरे दिमाग मे एक खयाल आया|
मैने अपने शरीर पर जितने भी मूल्यवान आभूषण थे सारे उतारे और उन लोगो को दे दिये और उनसे विनती की के वो लोग अपनी बेटी के साथ नीलाद्रि को उसी वक्त शहर भेज दे और उसे कभी यहा वापिस ना बुलाये| पहले तो वो लोग तैयार नही थे पर जब मैने उनको सारा घटनाक्रम समझाया तो वो लडकी उसे अपने साथ ले जाने के लिए मान गई|
नीलाद्रि मेरा हाथ छोडने के लिए तैयार नही थी पर किसी तरह मैने उसे समझा बूझाकर और अपने दिल पर पत्थर रखकर उसे खुदसे दूर कर दिया|
उस दिन जो नीलाद्रि का हाथ मुझसे छूटा वो लगभग 15 साल के लिए!
हम दोनो को अलग कर के आसमान भी रोया था|
कुछ दिन बाद जब सब शांत हो गया| नीलाद्रि को ढूँढ ढूँढकर सब थक गए तब मै वापिस उन दोनो पती पत्नी के घर नीलाद्रि की खुशहाली और उसका शहर का पता पूछने पहुंचा|
पर जब मै वहा पहुंचा तो मुझे पता चला कि तेज तुफान मे उनका घर गिर गया और मलबे मे दब जाने से दोनो पती पत्नी की मौत हो गई|
अब ऐसा कोई नही था जो मुझे अपनी बहन का पता बता पाता|
उसके कुछ दिन बाद ही एक और बडा खुलासा हुआ कि अपने बेटे को राजगद्दी पर बिठाने की लालच में, नीलाद्रि को रास्ते से हटाने के लिए मेरे चाचाजी और चाचीजी ने एक बहुरुपिये के साथ मिलकर ये महर्षि की भविष्यवाणी का ढोंग किया था|
ये जानने के बाद तो हम सब के पैरो तले जमीन ही खिसक गई थी|
ये जानने के बाद महाराज ने मेरे चाचाजी और चाचीजी को राज्य से बेदखल कर दिया|
महाराज और महारानी को अपनी गलती का एहसास हुआ पर तब बहुत देर हो चुकी थी|
नीलाद्रि को हमने खो दिया था|
उस दिन से मेरी नीलाद्रि की तलाश शुरू हुई जो मुंबई आकर खत्म हुई |
नीलाद्रि मुझे मिली तो सही पर गौरी के रूप में और सच कहू तो नीलाद्रि से ज्यादा ये गौरी के रूप मे मुझे मेरी बहन बहुत ज्यादा खुश लगी| उससे मिलने से बाद ही मुझे पता चला कि वो इन सालो मे मेरे माता पिता से बहुत ज्यादा नफरत करने लगी है|
पर उसको खोकर हम सब भी खुश नही थे| कितनी मिन्नतों के बाद वो हमे मिली पर वो यहा वापिस लौटने के लिए तैयार नही थी| तो मै भी उससे जबरदस्ती नही करना चाहता था पर हमारे महाराज का आदेश था कि मै गौरी को किसी भी हालत मे यहा तक ले आऊ और मै महाराज का आदेश किसी भी हालत मे टाल नही सकता था| पर गौरी की मर्जी से ये संभव नही था इसलिए मुझे उसे अगवा करना पडा|
मै गौरी को यहा नही लाना चाहता था रुद्र! गौरी की खुशी वहा है! तुम हो और मै उसे उसकी खुशी से जुदा नही करना चाहता था!मै ये सब नही करना चाहता था रुद्र! "
विजय बता रहा था| उसकी आँखों में पानी जमा हो गया|
" तो फिर आपने ऐसा क्यों किया भैया? क्यो किया आपने ऐसा? ऐसी क्या मजबूरी थी आपकी?" रुद्र ने चिल्लाकर गुस्से मे उनसे पूछा|
" क्योंकि मैने अपने पिता को वचन दिया था रुद्र और गौरी को यहा लाना जरूरी था क्योंकि उसका राज्याभिषेक करना जरूरी था और इसके बाद गौरी का स्वयंवर आयोजित किया जायेगा|"
" गौरी का स्वयंवर! मतलब उसकी शादी?" रुद्र विजय की बात काटते हुए बोला|
" तुम मेरा यकिन करो रुद्र! गौरी का राज्याभिषेक होते ही मै खुद तुम्हे लेने आने वाला था क्योंकि मै नही चाहता की गौरी की शादी तुम्हारे अलावा किसी और से हो!
प्लीज रुद्र! मेरा यक़ीन करो! मै कभी नही चाहता की तुम दोनो एक दूसरे से अलग हो जाओ| मै जानता हू कि मैने जो किया वो गलत किया है पर प्लीज तुम मुझे माफ कर दो|" विजय हाथ जोडकर कहने रहा था|
रुद्र को ये देखकर बूरा लगा उसने विजय का हाथ पकड लिया|
"आपको ये सब करने की जरूरत नही है! प्लीज
आप मुझे बताइये की गौरी की तबियत अब कैसी है?उसकी सर्जरी का क्या हुआ?" रुद्र ने पूछा|
ये सुनते ही विजय थोडा हडबडा गया|
"हाँ! हाँ! वो अब ठीक है! उसका ऑपरेशन करवा दिया है मैने! अब वो बिलकुल ठीक है!" विजय बोला|
ये सुनते ही रुद्र बहुत ज्यादा खुश हो गया|
" क्या आप सच कह रहे हैं भैया? आप नही जानते कि ये सुनकर मै कितना खुश हू! भैया क्या मै गौरी से मिल सकता हूँ? मै उससे मिलना चाहता हूँ! वो मेरा इंतज़ार कर रही होगी| उसने बाहर देखा था मुझे! मै जानता हूँ कि मेरे बिना वो भी खुश नही होगी! " रुद्र खुश होकर बोला|
" ठीक है! मै खुद तुम्हे गौरी के पास ले जाउंगा पर पहले सेवक तुम्हे तुम्हारे कमरे दिखा देगा| तुम लोग जाकर कुछ देर आराम कर लो ओके! " विजय बोला|
" हाँ! हाँ! ठीक है? अब हमारी गौरी आपकी युवराज्ञी बन गई है| सब सही है! चलो रिया! " रुद्र बोला|
विजय को उसकी बात से हसी आ गई|
कुछ देर बाद विजय रुद्र और रिया को लेकर गौरी के कमरे मे गया|
जैसे ही रुद्र उस कमरे मे गया उसे बहुत अजीब सा एहसास होने लगा|
( ये वही कमरा था जिसमे युवराज्ञी भैरवी रहा करती थी| )
गौरी आज भी उसी गैलरी मे खडी थी जहा पर भैरवी रुका करती थी|
जैसे ही रुद्र कमरे मे आया गौरी को अपने आप पता चल गया| वो दौडते हुए कमरे मे आयी|
जैसे ही रुद्र और गौरी ने एक दूसरे को देखा वो दोनो ही रोने लगे| गौरी दौडकर रुद्र के गले लगना चाहती थी पर उसने खुदको रोक लिया| पर रुद्र कहा खुद को रोक पाता| वो दौडकर गौरी के गले से लग गया|
दोनो के ही आँखो से आंसू बह रहे थे| गौरी को बाहो मे भरकर रुद्र को बेहद सुकून मिल रहा था|
" गौरी तुम.... तुम ठीक तो हो ना?
तुम जानती हो मैने तुम्हे कितना ढूँढा?
आखिरकार तुम मुझे मिल ही गई| आय मिस्ड यू सो मच|
तुम्हे पता है माँ-पापा भी तुम्हे बहुत याद करते है| अब जैसे ही मैने उन्हें फोन पर बताया ना गौरी की तुम मिल गई हो उनकी खुशी का ठिकाना नही था| सब तुमसे बहुत प्यार करते है गौरी! मै तुमसे बहुत प्यार करता हूँ! आय लव्ह यू सो मच!" रुद्र कह रहा था|
पर गौरी बस पुतले कि तरह खडी थी| गौरी ने कुछ नही कहा|
" क्या बात है गौरी? तुम ठीक तो हो ना? क्या हुआ तुम्हें?" रुद्र गौरी का चेहरा अपने हाथों मे पकडे पूछ रहा था|
" नही कुछ नही! मै बिल्कुल ठीक हू! आप कैसे हो रुद्र? घर मे सब कैसे है? पापा की तबियत कैसी है? " गौरी पूछने लगी|
" सब ठीक है गौरी! बस तुम्हें बहुत याद करते है! तुम जल्दी से घर लौट चलो फिर सब ठीक हो जायेगा!" रुद्र गौरी का हाथ पकडकर बोला|
ये सुनते ही गौरी के चेहरे के हावभाव बदल गए| उसने अपना हाथ रुद्र के हाथ मे से खींच लिया|
" मै अब वापिस नही लौट सकती रुद्र! अब यही मेरी दुनिया है! पर मै चाहती हू कि आप वापिस लौट जाये..... घर पर सबसे कहीयेगा कि मै उन सब को बहुत याद करती हू! " इतना कहकर गौरी ने उनसे मुँह मोड लिया|
" ये तुम क्या कह रही हो नीलाद्रि! ऐसे बात क्यो कर रही हो? कल तक जिस रुद्र के पास जाने की रट लगाये हुए थी आज वो खुद तुम्हे लेने आया है तो तुम उसे लौट जाने के लिए कह रही हो!" विजय गौरी से कहने लगा|
" मै जो कह रही हू बिल्कुल सोच समझकर कह रही हू| ये हमारे राज्य के महमान है| इनकी हर योग्य खातिर कीजिये| कोई ये ना कह पाये कि युवराज्ञी के दोस्तों का नीलमगढ मे योग्य आदरातिथ्य नही किया गया! " इतना कहकर गौरी वहा से जाने लगी|
पर तभी रुद्र ने उसका हाथ पकड लिया|
" तुम्हे आखिर हो क्या गया है गौरी? तुम तो ऐसी नही थी| तुम मुझे लौटने के लिए क्यो कह रही हो? मै तुम्हें साथ ले जाने के लिए आया हू और तुम्हे साथ लेकर ही जाऊंगा| " रुद्र गौरी की बाहे पकडकर बोला|
" ये नही हो सकता रुद्र! मै आपके साथ नही आ सकती| बेहतर यही होगा कि आप मुझे भूल जाये और यहा से चले जाये!" गौरी बोली|
" भूल जाउ? व्हॉट यू मीन भूल जाउ? मै तुमसे प्यार करता हू गौरी और मै जानता हूँ कि तुम भी मुझसे बहुत प्यार करती हो! "
" तो फिर ये आपकी गलतफहमी है रुद्र! मै आपसे प्यार नही करती| कुछ ही दिनो मे मेरा स्वयंवर है| मै आपको भूल चुकी हू| हमारे बीच जो भी था आप भी भूल जाइये| इसी मे सबकी भलाई है! रात हो चुकी है पर आशा करती हू कि सुबह होते ही आप यहा से चले जायेंगे| आपके जाने की तैयारी हम भैया से कहकर खुद करवा देंगे| " गौरी रुद्र का हाथ झटककर वहा से चली गई|
गौरी की बाते सुनकर सब चौंक गए थे|
" ये सब क्या हो रहा है भैया? ये गौरी को क्या हो गया है? ये ऐसा बर्ताव क्यो कर रही है?" रुद्र पूछने लगा|
" मै नही जानता रुद्र! मै नही जानता की इसे क्या हो गया है! कल तक तो गौरी ये सब कुछ छोडकर बस तुमसे मिलने के लिए बेचैन थीपर आज...."
" कोई ना कोई बात तो जरूर है भैया! गौरी जरूर कुछ ना कुछ छुपा रही है| मै नही मानता कि गौरी मेरे साथ ऐसा कर सकती है! पर मै ये जरूर जानता हूँ कि मै गौरी को अपने साथ लिये बिना यहा से कही नही जाने वाला!" रूद्र ने ठान लिया|
अगली सुबह....
रुद्र के कानो पर आरती की आवाज पड रही थी| उसी आवाज़ से उसकी नींद खुली|
वो आवाज का पीछा करते करते महल के बाहर शिवमंदिर तक पहुंचा|
ये वही शिवमंदिर था जहा युवराज्ञी भैरवी नित्य आरती किया करती थी|
आज गौरी वहा आरती कर रही थी| सब लोग वहा थे|
रुद्र वहा जाकर खडा हो गया पर उसे कुछ पिछली धुंधली धुंधली यादे सताने लगी|
तब तक रिया भी वहा आ गई|
तभी गौरी आरती और प्रसाद देते देते उसके पास आयी और तभी महाराज और महारानी की नजर रुद्र पर पडी|
उसको देखकर महाराज और महारानी के चेहरे का मानो रंग ही उड गया था|
तभी विजय आगे आया|
विजय : महाराज! ये है रुद्र सिंघानिया! ये मुंबई से आये है| युवराज्ञी और हमारे बहुत ही खास दोस्त है और अब कुछ दिन ये हमारे राज्य के खास महमान है|
रुद्र ने आगे आकर गौरी के माता पिता के पैर छुए|
पर अब भी वो दोनो आश्चर्यचकित थे|
" हमारे बच्चों के खास दोस्त यानी हमारे लिए भी आप बहुत खास हैं| आपका नीलमगढ मे स्वागत है! आप जितने दिन चाहे यहा रह सकते हैं!" महाराज बोले|
पर रुद्र को देखकर उनके चेहरो के रंग उड गए थे|
तभी रुद्र की नजर वहा खडे एक इंसान पर पडी| जिसे देखकर रुद्र को अपनी ही आँखो पर भरोसा नही हो रहा था|
" आप? आप यहा? यहा कैसे? " रुद्र चौंककर बोला|
रुद्र के सामने गुरुजी आकर खडे हो गए| अपने दोनो शिष्यों के साथ! वही गुरुजी जिन्होने हर बार रुद्र की मदद की थी गौरी को ढुंढने मे!
तभी विजय आगे आया और बोला, " इनसे मिलो रुद्र! ये हमारे राजगुरू है! "
ये सुनते ही रुद्र को एक और झटका लगा|
" राजगुरू? पर ऐसा कैसे हो सकता है? हम तो मुंबई मे मिले थे! "
" हाँ राजगुरू अब तक राज्य से दूर थे| युवराज्ञी को राज्य मे वापिस लाने के प्रण के कारण!
परंतु अब ये इनका वो प्रण पूर्ण कर चुके है इसलिए वो यहा लौट आये! " विजय बोला|
" रुद्र हम इस बारे मे बाद मे बात करेंगे| मै तुम्हे सब समझा दूंगा पर अभी यहा नही प्लीज!" विजय धीरे से रुद्र के कानो मे बोला|
रुद्र ने उसकी बात मान ली|
सब लोग वहा से जा रहे थे|
तभी गौरी ने पिछे से रुद्र को रोक लिया|
गौरी : रुद्र! मै चाहती हू कि आप अभी रिया के साथ यहा से चले जाये|
रुद्र : तुम ये सब क्यो कर रही हो गौरी? क्या हो गया है तुम्हे? अगर कोई प्रॉब्लम है तो मुझे बताओ! तुम जानती हो ना हम साथ मिलकर हर मुश्किल का सामना कर सकते है!
गौरी : प्लीज रुद्र! अब हम दोनो कभी साथ नही हो सकते| हमारे बीच जो कुछ था सब भूल जाइये और यहा से चले जाइये| ये युवराज्ञी नीलाद्रि का आदेश है!
इतना कहकर गौरी वहा से चली गई|
पर रुद्र कहा उसकी बात मानने वाला था|
राज्य के कामकाज खत्म कर के गौरी देर रात को दासीयो को साथ अपने कमरे की ओर लौट रही थी|
तभी वो रास्ते मे रुक गई और दासीयो को वापिस भेज दिया| वो वहा से मुडी और रुद्र के कमरे की ओर गई|
उसने देखा तो दरवाजा बंद था| वो दरवाजा खोलकर अंदर पहुंची| उसने अंदर हर जगह देखा पर रुद्र कहा नही था उसे लगा कि रुद्र वापिस चला गया| इस सोच से ही गौरी उदास हो गई|
" कही आप मुझे तो नही ढूँढ रही युवराज्ञी? "
आवाज सुनकर गौरी पीछे मुडी| पीछे रुद्र खडा था|
एक पल के लिए गौरी रुद्र को देखकर खुश हो गई|
" आपको? नही तो!
मै आपको क्यो ढूंढने लगी भला?
मै तो ये देखने आयी थी कि क्या आप लोग लौट गए या नहीं! आशा करती हू की कल सुबह सूरज की पहली किरण के साथ आप प्रस्थान करेंगे!" गौरी ने हाथ जोडकर कहा और नजरे झुकाये वहा से जाने लगी|
पर रुद्र ने उसका हाथ पकडकर उसे अपने पास खींच लिया|
वो रुद्र के बेहद करीब थी|
" य्..... य्... ये आप क्या कर रहे हैं? छोडिये मुझे!"
पर रुद्र ने गौरी के दोनो हाथ पकड लिये और उसको अपने और करीब खींचा|
" मै यहा से तुम्हें अपने साथ लिये बिना बिल्कुल नही जाऊंगा.| तुम्हे जो करना हो कर लो और हा रही तुम्हारे स्वयंवर की बात तो देखता हू कि तुमसे शादी कौन करता है! तुमसे शादी तो सिर्फ मै ही करूंगा! तुम सिर्फ मेरी हो| समझी तुम?
नही भी समझी होगी तो मै समझा दूंगा!" रुद्र गौरी की आँखो मे आँखें डालकर बोला|
"क्या बक्वास है! छोडिये मुझे! मैने कहा छोडिये मुझे! वरना मै........." गौरी कह ही रही थी की तभी रुद्र ने अचानक से उसको किस कर लिया|
जैसे ही रुद्र के होठ गौरी के होठो से मिले गौरी शांत हो गई| रुद्र ने भी उसके हाथ छोड दिये और उसके चेहरे को अपनी हथेली मे पकडकर रुद्र उसको किस कर रहा था|
गौरी के सिर से उसका दुपट्टा अपने आप ही गिर गया|
रुद्र ने गौरी के बाल कसकर पकड लिये|
गौरी ने भी रुद्र की शर्ट को कसकर पकड लिया| दोनो की आँखे बंद थी| दोनो एक दूसरे मे खो गए|
तभी गौरी अचानक होश मे आयी और रुद्र को दूर धकेल दिया|
उसकी आँखो से आंसू छलक पडे और वो वहा से भाग गयी|
गौरी के आँसू देखकर रुद्र को जो समझना था वो समझ गया पर गौरी का इस तरह उससे दूर जाना उसे अच्छा नही लग रहा था|
उसने गौरी का नीचे गिरा दुपट्टा उठाया और उसके पीछे भागा|
" गौरी! रुक जाओ! मेरी बात तो सुनो! रुक जाओ गौरी!" रुद्र गौरी के पीछे जा रहा था|
कमरे के दरवाजे के बाहर खडे सैनिकों को दरवाजा बंद करने और किसी को भी अंदर ना आने देने का आदेश देकर गौरी रोते रोते अपने कमरे मे चली गई|
रुद्र गौरी के कमरे तक आया पर सैनिकों ने उसे अंदर जाने नही दिया|
रुद्र : गौरी! गौरी इन्हे कहो कि मुझे अंदर आने दे! गौरी मुझे तुमसे बात करनी है|
गौरी तुम सुन रही हो या नही? मैने कहा मुझे अंदर आने दो!
गौरी उसकी आवाज सुन रही थी पर उसने कोई जवाब नही दिया|
रुद्र : ठीक है| तुम इसी तरह मुझसे और हालात से भागना चाहती हो तो ठीक है| पर मै नही भागूंगा| मै इस सब का सामना करूंगा और तुम्हें लिये बगैर तो मै यहा से कभी नही जाउंगा| भले ही मेरी जान ही क्यों ना चली जाये|
ये सुनकर गौरी जरा हडबडा गई पर उसने खुदको बाँधे रखा| रुद्र गुस्सेमें वहा से चला गया|
पर गौरी अपने कमरे मे खूब रोयी| उसके दिमाग मे चल क्या रहा था ये सिर्फ वो ही जानती थी|
जब रुद्र गुस्सेमें अपने कमरे की तरफ बढ रहा था तभी एक ठंडी हवा का झोका उसको छूकर गुजर गया| जिससे उसके रोंगटे खडे हो गए|
रुद्र एकदम से रुक गया|
वो उसी बंद कमरे के पास आकर खडा था|
उस कमरे को देखकर रुद्र को बार बार बहुत अजीब एहसास हो रहे थे|
रुद्र उस दरवाजे के पास आकर खडा हो गया| उस दरवाजे पर बहुत बडा ताला लगा हुआ था| रुद्र ने उस दरवाजें के जैसे ही हाथ लगाया उसे कुछ धुंधली धुंधली सी बाते दिखाई देने लगी|
" क्या हुआ रुद्र? तुम यहा क्या कर रहे हो? " अचानक विजय वहा आ गया|
विजय की आवाज से रुद्र होश मे आया|
" भैया ये किसका कमरा है और बंद क्यो है?" रुद्र ने विजय से पूछा|
" ये कमरा हमेशा बंद रहता है रुद्र! बचपन से आज तक कभी भी हमने ये कमरा खुला नही देखा| किसी को भी इस कमरे के आस पास आने तक की अनुमति नहीं है!" विजय ने बताया|
" पर इस कमरे मे है क्या?" रुद्र ने पूछा|
" पता नही! कभी कोई इस कमरे के अंदर गया ही नही तो अंदर क्या है ये जानने का सवाल ही पैदा नही होता! " विजय ने बताया|
रुद्र उस कमरे को बडे ही गौर से देख रहा था| वो दरवाजे को छू रहा था| गौरी का दुपट्टा अब भी उसके हाथ मे ही था|
" ये गौरी का दुपट्टा तुम्हारे पास कैसे? " विजय ने पूछा|
" वो.... वो... दरअसल मुझे वहा गिरा हुआ मिला! " रुद्र ने बात को टाल दिया|
तभी बात करते करते अचानक रुद्र का हाथ उस दरवाजे के बडे से ताले पर लगा और तब जो हुआ उसे देखकर वो दोनो के दोनो भौचक्के रह गए|
उस दरवाजे का ताला अपने आप टूट कर नीचे गिर गया|
" ये... ये कैसे हुआ? ये इतना बडा और मजबूत ताला नीचे कैसे गिर गया? वो भी टूटकर!" रुद्र चौंककर बोला|
विजय की भी कुछ समझ मे नही आ रहा था....
" ये कबसे यहा लगा हुआ है| बहुत पूराना होने की वजह से शायद ये टूटकर गिर गया हो!" विजय बोला|
" भैया अब जब ये ताला अपने आप टूट ही गया है तो क्यो ना हम लोग अंदर जाकर देखे की अंदर आखिर है क्या!
मै देखना चाहता हूँ कि इस कमरे मे है क्या!पता नही क्यों पर इस कमरे के पास आते ही मुझे बहुत अजीब सा एहसास होने लगता है! " रुद्र बोला|
ये सुनकर विजय जरा हडबडा गया|
" नही रुद्र! हम इस कमरे मे नही जा सकते क्योंकि किसी को भी इस कमरे के अंदर जाने की इजाजत नही है| महाराज का आदेश है! " विजय बोला|
"आपको इन्हें अंदर जाने देना चाहिए कुमार! " ये आवाज राजगुरू की थी|
विजय : राजगुरू प्रणाम! आप यहा इस समय?
राजगुरू : यही उचित समय है मेरे यहा आने का!
आपको इन्हे अंदर जाने देना चाहिए कुमार!
विजय कुछ देर सोच मे डूब गया|
विजय : यदि आपकी आज्ञा है तो मुझे क्या आपत्ति हो सकती है!
ये सुनते ही रुद्र के चेहरे पर खुशी छा गई|
विजय : आओ रुद्र दरवाजा खोलते है|
विजय और रूद्र दोनो ने बहुत कोशिश की बाद वो दरवाजा खोला| वो बहुत सालो से बंद जो था|
जैसे ही दरवाजा खुला उन्होने देखा की दरवाजे पर ही बहुत सारे मकडी के जाले जमा हो चुके थे|
उन्हे हटाकर वो दोनो अंदर आये| उनके पीछे पीछे राजगुरू भी आये|
अंदर बहुत ज्यादा धूल और गंदगी थी|
पूरे कमरे मे बहुत ही अंधेरा था| कुछ भी दिखायी नही दे रहा था| कमरे के अंदर आते ही रुद्र एकदम शांत हो गया|
विजय ने सैनिको को आदेश दिया| वो कुछ है देर मे कमरे मे दिये जलाकर चले गए|
दिये जलते ही कमरे मे पूरी तरह से उजाला छा गया|
अब सब कुछ साफ नजर आ रहा था|
पर कमरे मे बहुत गंदगी थी|
रुद्र कमरे के हर हिस्से को बडी बारिकी से देख रहा था| वो पूरी तरह से खो गया था| उसने कमरे की खिड़की खोल दी| वहा से ठंडी हवा कमरे मे आने लगी|
कमरे की हर चीज़ देखकर रुद्र के रौंगटे खडे हो गए थे| उसे हर चीज से लगाव महसूस हो रहा था|
कमरे की कुछ चीजे सफेद कपडों से ढकी हुई थी|
रुद्र ने एक कपडा हटाया|
उस कपडे के नीचे एक शेल्फ पर तलवारे रखी हुई थी|
वो सेनापति वीरभद्र के हथियार थे|
रुद्र ने एक तलवार हाथ मे उठायी| उसे देखकर रुद्र को कुछ याद तो आ रहा था पर सब धुंधला धुंधला था|
विजय रुद्र की हालत देखकर उसके पास जा रहा था पर राजगुरू ने उसका हाथ पकडकर उसे रोक लिया|
रुद्र आगे आया| तभी कमरे मे एक ओर बहुत से सफेद कपडे बीछे हुए थे|
रुद्र ने एक कपडे को हाथ लगाया| जैसे ही उसने उसे हाथ लगाया उसका दिल बहुत जोर जोर से धडकने लगा|
ये देख रुद्र ने जल्दी से वो कपडा हटाया|
वो एक पेंटिंग थी| उसे देखते ही रुद्र के पैरो तले जमीन खिसक गई|
उसकी आँखों से आँसू बहने लगे|
उसके दिमाग ने काम करना है बंद कर दिया|
" य्.... य्.... ये कैसे हो सकता है? "
उसके पैर अपने आप पीछे हटने लगे| वो किसी चीज से टकरा गया|
ये देख विजय आगे आया ये देखने के लिए कि आखिर रुद्र ने ऐसा देखा क्या है|
विजय ने जब वो पेंटिंग देखी तो वो भी भौचक्का रह गया|
रुद्र आगे आया और उसने एक एक करके सारे कपडे हटा दिये|
कुछ ही देर मे रुद्र बहुत सारी तस्वीरो से घिर गया|
वहा सेनापति वीरभद्र ने अपने हाथों से बनाई हुई युवराज्ञी भैरवी की बहुत सारी खूबसूरत पेंटिंग्स थी|
रुद्र की आँखो से लगातार आँसू बह रहे थे|
वो भैरवी की एक तस्वीर के पास गया| वो उसे गौर से देख रहा था| रुद्र ने धीरे से उस पेंटिंग को हाथ लगाया|
जैसे ही उसने उसे छुआ रुद्र को सब याद आने लगा|
उसका वीर के रुप मे वो पेंटिंग्स बनाना,भैरवी को झरने मे डूबने से बचाना, उसके साथ समय बिताना, उसका राज्याभिषेक, राजवीर का भैरवी पर वार करना,उन दोनो का शादी के मंडप मे बैठना, वहा राजवीर का आक्रमण करना, अपनी मृत्यु! रुद्र को सब याद आने लगा|
" भैरवी! " रुद्र जोर से चिल्लाया|
इसी के साथ रुद्र होश मे आया|
विजय : रुद्र! रुद्र क्या हुआ?
विजय रुद्र के पास आया|
राजगुरू भी उसके पास आये|
उसके सामने से उसकी पिछली जिंदगी एक ही पल मे गुजर गई थी|
" ये सब क्या है? गौरी की इतनी सारी पेंटिंग्स! वो भी इस बंद कमरे मे! ऐसा कैसे हो सकता है? हमने तो कभी ये पेंटिंग्स बनवायी ही नही!" विजय चौंककर बोला|
" भैया!
भैरवी...... ये मेरी भैरवी है!
मेरी गौरी! ओह माय गॉड! आय जस्ट कान्ट बिलिव्ह धिस! गौरी ही भैरवी है! मेरी भैरवी!" रुद्र विजय की बाहे पकडकर कह रहा था|
" ये तुम क्या कह रहे हो रुद्र? मेरी कुछ समझ मे नही आ रहा! " विजय बोला|
रुद्र ने उसे जो कुछ याद आया था वो विजय को बताया पर विजय को इस सब पर भरोसा ही नही हो रहा था|
" रुद्र ये तुम क्या कह रहे हो? मुझे लगता है तुम्हारी तबियत ठीक नही है इसी वजह से तुम्हें ऐसा लग रहा है! " विजय बोला|
पर राजगुरू एक जगह पर खडे थे और मुस्कुरा रहे थे|
रुद्र : भैया मेरा यकीन करीए मै सच कह रहा हूँ|
विजय : रुद्र! रुद्र मेरी बात सुनो! मुझे लगता है कि तुम ठीक नही हो और वैसे भी तुम गौरी को लेकर बहुत परेशान हो शायद इस वजह से ये सब हो रहा है| तुम्हे आराम की जरूरत है रुद्र!
विजय रुद्र का हाथ पकडकर बोला|
रुद्र को समझ नही आ रहा था कि वो विजय को कैसे यकीन दिलाये| रुद्र को बहुत गुस्सा भी आ रहा था|
रुद्र : आपको मेरी बातो पर यकीन नही है ना भैया? मै आपको यकीन दिलाता हूँ! आप यही पर रुकिये!
रुद्र ने विजय से अपना हाथ छुडाया|
वो कमरे मे बने एक खंभे के पास गया और उसपर एक डोरी बंधी हुई थी| उसने वो डोरी खिंचकर खोल दी|
जैसे ही रुद्र ने वो डोरी खींची उपर से एक परदा नीचे गिर आया| उसपर युवराज्ञी भैरवी और सेनापति वीरभद्र का चित्र बना हुआ था|
रुद्र ने एक एक करके कमरे के सारे खंभों पर बंधी डोरीया खोल दी और देखते ही देखते वो सब वीर-भैरवी की कई तस्वीरो से घिर गए जिनमे वो दोनो साथ थे|
ये सब देखकर विजय के ते पैरो तले जमीन ही खिसक गई|
उसके सामने रुद्र-गौरी थे पर वीर-भैरवी के रुप में!
राजगुरू भी ये सब देखकर चकित थे| उनका मन तो गद्गद हो गया था|
रुद्र की आँखे उन तस्वीरो को देख नम हो गई थी|
रुद्र : क्या अब आपको यकिन हुआ भैया? ये सब तस्वीरे मैने ही बनायी थी इसीलिए मै जानता था कि ये कहा है! क्या अब आपको मेरी बातो पर यकीन है?
विजय : पर.... पर ये सब कैसे हो सकता है? इट्स इम्पॉसिबल! तुम दोनो की तस्वीरे..... यहा.....!!!!
रुद्र : ये हम दोनो ही है भैया पर ये तस्वीरे वीर -भैरवी की है! यानी कि रुद्र -गौरी की! भैरवी ही गौरी है और मै वीर!
राजगुरू : रुद्र सत्य कह रहे हैं राजकुमार! शत् प्रतिशत!
राजगुरू की बात सुनकर विजय चौंक गया|
विजय : ये आप क्या कह रहे हैं राजगुरू?
राजगुरू : ये सब सत्य है राजकुमार! ये तस्वीरे जो आपके समक्ष है ये युवराज्ञी भैरवी और सेनापति वीरभद्र की ही है!
ये सुनकर विजय को विश्वास ही नही हो रहा था|
रुद्र भी राजगुरू के उसे समर्थन करने पर अचंभित था|
विजय : यानी की.... यानी की.....
राजगुरू : आप सही सोच रहे है राजकुमार इनका पुनर्जन्म हुआ है और ये बात मुझे आरंभ से ज्ञात है|
विजय : क्या? आपको ये सब पता था राजगुरू? तो आपने मुझे ये सब बताया क्यो नही?
राजगुरू ने विजय को वीर-भैरवी के बारे में सब बता दिया| उनके जन्म का रहस्य, उनका मिलना, बिछडना, राजवीर का उनके जीवन मे उत्पात!
विजय : हे भगवान! इसका मतलब की ये जो दंतकथाये है सेनापति वीर और युवराज्ञी भैरवी के विषय मे.# वो सब सच है! यानी की युवराज राजवीर ने सच मे नीलमगढ पर हमला करके सब तहसनहस कर दिया था| मुझे लग रहा था कि ये सब बस कहानीयाँ है|
राजगुरू :पर ये सब सच है और ये दोनो इस बात का जीता जागता नमूना है और आप दोनो आज फिर से यहा है| वही रंग, वही रुप, वही चेहरा लेकर और वो भी एक-दूसरे के साथ! एक-दूसरे के लिए! इसका अर्थ यही है कि महादेव उनकी इस अपूर्ण रचना को पूर्ण करना चाहते है|
हम सबको ये सुनिश्चित करना है कि इस बार ऐसा कुछ ना हो जैसा सदियों पहले हुआ था|
रुद्र : अब ऐसा कुछ भी नही होगा गुरुजी| अब मुझे सब याद आ गया है| अब मै अपनी भैरवी को अपने आप से दूर नही जाने दूंगा और ना ही अपने राज्य पर कोई आँच आने दूंगा| भले ही इसके लिए मुझे कुछ भी करना पडे|
पर इस सब मे मुझे आपकी मदद चाहिये|
राजगुरू : आपको ये सब स्पष्ट करने की आवश्यकता नही है| आपकी सहायता के हेतु ही महादेव ने हमे यहा भेजा है| हमारे जीवन मे महादेव के आशीर्वाद बनकर आये है आप!आपकी सहायता करना हमारा सौभाग्य है!
राजगुरू रुद्र के आगे हाथ जोडकर बोले|
विजय : मै भी तुम्हारे साथ हू रुद्र! तुम्हारी मदद के लिए!
ये देखकर की वो दोनो उसके साथ है रुद्र खुश हो गया| पर उसकी आँखों मे अजीब सा निश्चय था|
अगले दिन....
रुद्र आज सुबह से ही गौरी से बात करने की कोशिश कर रहा था पर गौरी उसे काम के बहाने से टाल रही थी|
अपने कमरे मे महाराज और महारानी बात कर रहे थे|
महारानी : ऐसा कैसे हो सकता है महाराज?
महाराज : राजगुरू का कहा सच होने वाला है महारानी! कदाचित वो समय आ गया है| हमे सज्ज रहना होगा| इस बार हम अपनी बेटी को को किसी भी हालत मे अकेला नही छोडेंगे|
तभी सेवक अंदर आया|
" महाराज महारानी की जय हो! महाराज युवराज्ञी नीलाद्रि पधारी है| आपसे मिलना चाहती है! " वो बोला|
" क्या? वो बाहर क्यो खडी है! उन्हे जल्दी अंदर भेजिये!" महाराज खुश होकर बोले|
महाराज महारानी के चेहरे खिल उठे|
सेवक के जाते ही युवराज्ञी अंदर आयी| उसके हाथ मे कुछ पेपर्स थे|
" नीलाद्रि बेटा आप यहा? " महाराज बोले|
" क्या बात है बेटा नीलाद्रि? " महारानी उसके सिर पर से हाथ फेरते हुए बोली|
" प्लीज! ये प्यार का झूठा नाटक मेरे सामने तो करीये ही मत!
इसकी कोई जरूरत नही है| मै यहा एक जरूरी काम से आयी ह इन पेपर्स पर आपके सिग्नेचर चाहिये महाराज! प्लीज क्या आप साइन कर देंगे?" गौरी बोली|
महाराज ने साइन कर दिये|
गौरी ने वो पेपर्स ले लिये और उनको थैंक्स करके वहा से जाने लगी|
पर तभी महारानी ने उसे रोक लिया|
महारानी : नीलाद्रि बेटा!
उनकी आवाज सुनते ही गौरी रुक गई|
महारानी उसके पास आयी|
महारानी : क्या आप सिर्फ इसी काम के लिए आयी थी यहा?
गौरी : जी हाँ महारानी जी!
महारानी : आप कब तक गुस्सा रहेंगी अपने माता पिता से? हम तरस गए है बेटा आपके मुँह से माँ सुनने के लिए! आपके पिता तरस गए हैं पिताजी सुनने के लिए!
गौरी : गुस्सा? मै भला आप लोगो से गुस्सा क्यो होने लगी महारानी?
गुस्सा तो अपने लोगो से हुआ करते हैं और मै आपको ये साफ साफ बता देना चाहती हू कि आप लोग मेरे अपने नही है!
महाराज : ये आप क्या कह रही है बेटा! हम माता पिता है आपके!
गौरी : आपको कोई गलतफहमी हो रही है महाराज! आप लोग मेरे माता पिता होने का हक बहुत पहले खो चुके हैं|
आप लोगो को पता भी है माता पिता क्या होते है! शायद ये आपको मेरे ममा पापा से मिलकर पता चले!
मुझे बहुत जरूरी काम है! मुझे चलना होगा!
इतना कहकर गौरी वहा से चली गई|
पर गौरी की बातो से महाराज महारानी बहुत आहत हो गए थे| महारानी तो रोने लगी पर महाराज ने उन्हे संभाला|
गौरी महाराज के कमरे से बहुत गुस्से मे बाहर निकली| उसने दासीयो को भी उसे अकेला छोड देने के लिए कहा|
वो आगे बढ़ ही रही थी की किसी से बहुत जोर से टकरा कर नीचे गिर गई|
उसने डरकर अपनी आँखें बंद कर ली|
जब उसने आँखे खोली तो वो रुद्र की बाहो मे थी| रुद्र उसे बहुत प्यार से देख रहा था|
उसके हाथ गौरी की कमर पे थे|
पर रुद्र को देखकर वो और गुस्सा हो गई|
गौरी : आप? आपकी हिम्मत कैसे हुई मुझे पकडने की? छोडिये मुझे!
रुद्र : अरे!
पहली बात तो ये कि मै सुबह से तुमसे कुछ जरूरी बात करने कि कोशिश कर रहा हू पर तुम हो कि मुझे जानबूझकर टाल रही हो और फिर भी मैने तुम्हे गिरने से बचाया और तुम हो की मुझे ही डाँट रही हो!
गौरी : और मै किसकी वजह से गिरने वाली थी?
छोडिये मुझे! मैने कहा छोडिये!
गौरी रुद्र पर गुस्सा करने लगी|
रुद्र ने भी गौरी की कमर पर अपनी पकड छोड दी|
गौरी सीधा जमीन पर गिर पडी|
वो दर्द से कराहने लगी|
गौरी : आह्ह!
यू स्टुपिड! छोडा क्यो?
रुद्र : ओह माय गॉड! कितनी पलटू हो यार तुम!
जब मैने पकड रखा था तब तो चिल्ला रही थी मुझपर की 'छोडो मुझे..... छोडो मुझे.... ' और अब जब छोड दिया तो कह रही हो कि क्यो छोडा!
वाह रे वाह! नीलमगढ की युवराज्ञी!
गौरी : यू फूल!
शट अप अँड हेल्प मी नाउ! मेरी कमर तोड दी आपने!
गौरी ने अपना हाथ आगे बढाया|
रुद्र ने गौरी का हाथ पकडा और उसे अपनी ओर खींचा| गौरी उसके सीने से जाकर लग गयी|
रुद्र की धडकनो की आवाज वो साफ सुन पा रही थी|
गौरी को बाहो मे भरकर रुद्र भी बहुत सुकून महसूस कर रहा था| गौरी भी कुछ ऐसा ही महसूस कर रही थी|
आज भैरवी - वीर को तकदीर फिर से एक दूसरे के करीब ले आयी थी|
तभी गौरी रुद्र से अलग हो गई|
"म्.... मुझे बहुत जरूरी काम है मुझे जाना होगा|" इतना कहकर वो वहा से चली गई|