आज महल मे हर ओर शहनाई की गूँज थी| सारा राज्य ख़ुशी से झूम रहा था| आज बहुत ही शुभ दिन था| आज खुशी के दो दो कारण थे| आज राज्य को अपनी नई महारानी मिलने वाली थी और नए महाराज भी!
सबसे पहले भैरवी का राज्याभिषेक था और उसके तुरंत बाद ही वीर भैरवी का विवाह!
महाराज चंद्रसेन एवं अमात्य सुबह से बहुत खुश थे|
सारे महल को दुल्हन कि तरह सजाया गया था|
सबसे पहले तो युवराज्ञी भैरवी का आज सुबह पंचामृत से स्नान करवाया गया| उसके पश्चात भैरवी की शपथविधी संपन्न हुई| सारी प्रजा के समक्ष उसका राज्याभिषेक किया गया| उसे महारानी का ताज पहनाया गया|
उसी क्षण से वो नीलमगढ की महारानी कहलायी|
हर ओर उसकी जयजयकार गूँजने लगी| महाराज चंद्रसेन की आँखो मे खुशी के आँसू आ गए| वीर तो बहुत ही खुश था|
राज्याभिषेक के तुरंत बाद महाराज ने भैरवी को तैयार होने के लिए भेज दिया|
विवाह मुहूर्त मे अभी कुछ घंटे शेष थे|
महाराज चंद्रसेन अपने कक्ष मे तैयार हो रहे थे| तभी अमात्य वहा आये| वो जरा हडबडाये हुए लग रहे थे|
"क्या हुआ अमात्य? सब ठीक तो है? आप चिंतित प्रतीत होते है?" महाराज ने पूछा|
"महाराज! ग्रहों की गती मे अनाकलनीय परिवर्तन है और ये हमारे लिए उचित नही! ये सब संभवता है किसी आने वाले संकट की!" अमात्य बोले|
"ऐसा मत कहिये अमात्य! आपने जैसे कहा मैने सब वैसे ही तो किया! फिर ये सब?" महाराज रुआँसे होकर बोले|
"महाराज! मैने कहा था कि हम विधी के विधान को नही बदल सकते पर हम शायद उसे रोकने के प्रयास कर सकते हैं!" अमात्य बोले|
"तो अब हम क्या करे अमात्य?" महाराज ने पूछा|
"इससे पहले की कोई अनहोनी हो! हमे शीघ्रती शीघ्र वीर भैरवी का विवाह संपन्न करवाना होगा!" अमात्य बोले|
तभी एक सैनिक भागता हुआ वहा आया|
"महाराज! महाराज! वो सीमा पर...... " वो हाँफता हुआ बोला|
" सीमा पर क्या? ठीक से बताइये!" महाराज ने पूछा|
"महाराज वो.....एक बहुत ही विशाल सेना हमारी राज्य की सीमा की ओर बढ रही रही है| " वो बोला|
" सेना? कौनसी सेना? कौन कर रहा है उसका नेतृत्व?" अमात्य ने पूछा|
"वो.... वो युवराज.... युवराज राजवीर! वो कर रहे हैं सेना का नेतृत्व!" वो सैनिक बोला|
ये सब सुनते ही महाराज चंद्रसेन और अमात्य के पैरो तले जमीन खिसक गई|
"राजन शायद यही है हमारा चेताया संकट!" अमात्य बोले|
"अब हम क्या करेंगे अमात्य? ये तो घोर विपदा आ पडी है| यदि राजवीर आ रहा है तो ये विवाह कदापि संपन्न होने नही देगा|" महाराज बोले....
"हम हमारी योजना मे कोई बदलाव नही करेंगे महाराज! हमे कुछ भी हो जाये पर वीर भैरवी का विवाह नियोजित मुहूर्त पर ही संपन्न करना है| केवल हमे ये देखना होगा कि कोई राजवीर को यही रोक कर रखे ताकि जब तक राजवीर यहा उलझा रहे और उस दौरान उन दोनो का विवाह संपन्न हो सके|"अमात्य बोले|
"इस लिए मेरे पास एक योजना है अमात्य!" महाराज चंद्रसेन बोले| उनकी आँखों मे अपनी पुत्री को किसी भी हालत मे बचाने का दृढ निश्चय था|
उसके बाद कुछ समय तक महाराज ने अमात्य से अपनी योजना की चर्चा की और दोनो निश्चय के साथ महल के बाहर विवाह स्थल के लिए निकल पडे|
महाराज और अमात्य महल के द्वार पर खडे थे|
तभी सेनापति वीर तैयार होकर बाहर आये| सब लोग उनको देखते ही रह गए|
लाल रंग की शेरवानी, माथे पर लाल रंग की ही रत्नजडीत पगडी, गले मे मोतीयों के हार, हाथ मे शाही तलवार!
सेनापति वीर आज किसी राजकुमार से कम नहीं लग रहे थे!
सबसे पहले उन्होने महाराज और अमात्य के पैर छुए|
तब तक भैरवी भी बाहर आ गई|
आज वो दुल्हन के लिबास मे बहुत सुंदर लग रही थी|
लाल रंग का लेहेंगा, माथे पर दुपट्टा, उसपर सुयोग्य गहने, माथे पर माथापट्टी, नाक मे नथनी, हाथो मे चुडिया, माथेपर बिंदी!
उसे दुल्हन के लिबास देख महाराज चंद्रसेन की आँख भर आयी|
उसे देखकर वीर की तो धडकन और तेज हो गई| उसने जैसा सोचा था भैरवी आज दुल्हन बनी वैसी ही लग रही थी|
भैरवी चलकर महाराज के पास आयी| उसने अमात्य के पैर छुए| महाराज के भी पैर छुए पर महाराज ने उसे कसकर गले लगा लिया| उनकी आँखों मे आँसू थे| भैरवी की भी आँख नम थी|
"आप बहुत सुंदर लग रही है बेटा! आज आपको देखकर हमे आपकी माँ की याद आ गई| आप हुबहू प्रियांशी के जैसी ही है और आज का दिन तो हमारे जीवन का बहुत ही अमूल्य दिन है|" महाराज की आँखो मे पानी था| वो देख भैरवी भी रोने लगी|
" नही! नही बेटा! आज तो बहुत खुशी का दिन है! आज आँसू नही चाहिए| आज सिर्फ आपके चेहरे पर हसी होनी चाहिए| अब ये आँसू पोछिये और जल्दी चलिए| विवाह मुहूर्त समीप ही है|" महाराज भैरवी के आँसू पोछते हुए बोले|
महाराज ने वीर भैरवी दोनो को कसकर गले लगा लिया| वो बडी मुश्किल से अपनी भावनाओं को संभाल रहे थे|
उन्होने खुद अपने हाथो से वीर को घोडे पर बिठाया और भैरवी को डोली मे बिठाया|
जैसे ही भैरवी की डोली उठी, महाराज के आँसू बहने लगे|
"रुकिये! रुकिये!" भैरवी ने डोली रोकी|
"पिताजी! क्या आप नही आयेंगे?" भैरवी ने अचंभे से पूछा|
"बेटा! कुछ तैयारीयाँ करनी अभी बाकी है| आप चलिये! हम आपके पश्चात पहुँच जायेंगे!" महाराज बोले|
बहुत समझाने के बाद भैरवी मानी और उसकी डोली निकल पडी|
"पिताजी! हम आपका इंतजार करेंगे! जल्दी किजीएगा! " भैरवी केवल इतना ही बोली और वो निकल पडे|
अमात्य ने भी महाराज से कुछ कहकर उनसे अलविदा ली|
वो लोग कैलाशधाम पर्बत पर जा रहे थे| वही पर वीर भैरवी का विवाह संपन्न होना था|
उनके जाते ही महाराज सज्ज हो गए अपनी तलवार लेकर! आने वाले संकट का सामना करने के लिए!
इधर राजवीर नीलमगढ को पूरी तरह से तहस नहस करते हुए आगे बढ़ रहा था|
देखते ही देखते वो महल तक आ पहुँचा और उसने अपनी सेना के साथ महल पर धावा बोल दिया|
इस बार राजवीर का रूप कुछ अलग ही लग रहा था| वो बहुत ज्यादा आक्रमक हो चुका था| अपने रास्ते मे आने वाली हर बाधा को वो नष्ट करता हुआ आगे बढ़ रहा था|
उसकी सारी सेना नीलमगढ की सेना को परास्त करते हुए महल के अंदर दाखिल हो गई|
महाराज चंद्रसेन भी अपनी सेना के साथ पूरी ताकत से उसकी सेना से लड रहे थे| उन्हें कुछ भी कर केवल अपनी बेटी और अपने राज्य को बचाना था|
राजवीर महाराज चंद्रसेन तक पहुंच गया| वो उनसे भी लड रहा था|
" तुम ये क्या कर रहे हो राजवीर? तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया है? नीलमगढ और संग्रामगढ मित्र है और तुमने हमपर आक्रमण कर दिया!" महाराज चंद्रसेन उसपर वार करते हुए कहने लगे|
" मित्रता? कौनसी मित्रता? मित्रता तो वो थी जो मेरे पिता ने आपसे की थी| पर आपने क्या किया? आपने उन्हें धोका दिया| हमारा अपमान करके हमे यहा से निकाल दिया और शायद यही अपमान मेरे पिता सहन ना कर पाये और उनका देहांत हो गया| जिसके सदमे मे मेरी माँ पागल हो गई|
आज.... आज वो मुझे तक नही पहचान पा रही है|" राजवीर महाराज चंद्रसेन पर वार कर रहा था| उसकी आँखों में आसू और गुस्सा दोनो थे|
ये सुनते ही महाराज चंद्रसेन के पैरो तले जमीन खिसक गई| वो चौंक गए|
"क्या??? " वो भावुक हो गए|
इसी का फायदा उठाकर राजवीर महाराज चंद्रसेन और वार पर वार करता गया|
वो खून से लथपथ हो गए|
"आप मेरे पिता की मृत्यु के कारण है और मेरी माँ के इस हाल के भी! आप ही के कारण मैने अपना पूरा परिवार खो दिया| आपको जिवीत रखने के लिए मेरे पास कोई कारण नही है|" इतना गुस्से मे कहकर उसने महाराज चंद्रसेन की गर्दन पर तलवार से वार कर दिया|
उनकी गर्दन से खून बहने लगा|
वो जमीन पर गिर पडे| ये महाराज चंद्रसेन के जीवन के आखरी क्षण थे|
"आपका अंत तो ऐसा ही होना था क्योंकि आपने राजवीर से दुश्मनी मोल ली थी मेरे परिवार को मुझसे दूर करके! मेरी भैरवी को मुझसे दूर करके! अब मै उसे अपने साथ ले जाउंगा!" राजवीर के चेहरे पर गुस्सा था|
महाराज चंद्रसेन की आँखे बंद हो रही थी|
पर तब भी उनकी आँखों के सामने केवल भैरवी का चेहरा था|
वो पल जब महाराज ने पहली बार नन्ही भैरवी को अपनी गोद मे उठाया था, प्रियांशी के साथ जब उन्होंने उसे प्रजा के समक्ष लाया था, जब प्रियांशी के जाने के बाद उसकी हर ख्वाहिश उन्होने पूरी की थी, जब उन्होंने अपने हाथों से वीर के हाथ मे भैरवी का हाथ दिया था, उसका राज्याभिषेक किया था, उसे विदा किया था!
उन्होने अपनी आँखें बंद कर ली|
राजवीर महल मे गया और हर तरफ भैरवी को ढूँढने लगा| वो उसके कमरे मे भी गया पर वो कही नही थी| वो भैरवी को वहा ना पाकर बौखला गया|
उसी कमरे मे एक दासी छिपी हुई थी| वो राजवीर को देखकर वहा से भागने लगी|
तभी राजवीर ने उसे पकड लिया और उससे पूछने लगा कि भैरवी कहा पर है|
पहले तो वो दासी उसे बता नहीं रही थी पर जब राजवीर ने उसकी गरदन पर तलवार रखी तब वो डर गई और डरकर उनका पता बता दिया|
जब राजवीर वहा से बाहर निकला तब उस दासी की गर्दन उसके धड से अलग हो चुकी थी|
राजवीर ने नीलमगढ के महल पर कब्जा कर लिया और बाद मे वो सीधे अपनी सेना को लेकर कैलाशधाम पर्बत की ओर निकल पडा|
इस ओर भैरवी और वीर पर्बत पर पहुंच गए|
वीर घोडे से नीचे उतरे और जैसे ही भैरवी ने डोली के बाहर कदम रखा उसे वीर दिखायी पडा| उसने अपना हाथ वीर के हाथ मे दिया और उसके साथ चल पडी| अमात्य उनका मार्गदर्शन कर रहे थे|
परबत पर एक बहुत ही दिव्य विवाह मंडप तैयार किया गया था| पूरी तरह रंगबिरंगे फूलो से सजा! शिवपार्वती के दिव्य मूर्ति के समक्ष ही वो मंडप तैयार किया गया था|
उस मंदिर तक जाते जाते वीर भैरवी की नजर केवल शिव-शक्ति कि गगनभेदी मूर्ति की ओर ही थी|
अमात्य उनको मंडप तक ले गए|
"आइये महारानी! आइये महाराज! आप आसन पर विराजीये! हम विवाह की विधीयाँ शुरू करते है| " अमात्य बोले|
" किंतु राजगुरू पिताजी अब तक पहुंचे नही? " भैरवी बोली|
"महारानी! वो आ जायेंगे| उनका संदेश मिला था रास्ते मे !
एक फरियादी आया है| महाराज उनका न्याय करके ही लौटेंगे| उन्होने कहा है कि तब तक विधीयाँ आरंभ की जाए ताकि मुहूर्त मे देर ना हो|" अमात्य ने समझाया|
"किंतु राजगुरू......... "
"भैरवी हमे लगता है कि हमे पिताश्री की आज्ञा का पालन करना चाहिए! " वीर भैरवी की बात काटते हुए बोले|
भैरवी उसकी बात मान गई|
आकाश मे भी नवग्रह अपनी दिशा बदलने लगे थे|
सबसे पहले जैसे की वीर ने भैरवी से वादा किया था, उन्होने शिवपार्वती के दर्शन किए!
शिव गौरी को साक्षी मानकर उन्होने एक-दूसरे को वचन दिया की वे हमेशा एक दूसरे के साथ रहेंगे! कभी भी एक-दूसरे का साथ नही छोडेंगे!
फिर वो लोग मंडप मे जाकर बैठ गए|
अमात्य ने ही उनका गठबंधन भी किया|
वीर भैरवी आज बहुत खुश थे| ये उनके जीवन का सबसे सुंदर दिवस था|
अमात्य ने विवाह की विधीयाँ आरंभ करवायी और वो खुद सैनिकों को कुछ समझाने मे लग गए|
उनके चेहरे पर चिंता साफ नजर आ रही थी| भैरवी का पूरा ध्यान उनपर था| अब उसे भी अजीब सी घबराहट होने लगी थी|
राजगुरू के आदेश पर सैनिकों ने तुरंत ही पूरे पर्बत को घेर लिया|
"क्या हुआ भैरवी? सब ठीक तो है?" वीर ने पूछा|
" वीर! वो पिताजी अब तक नही आये और मुझे भी अजीब सी घबराहट हो रही है और वो देखिये! ये राजगुरू क्या कर रहे हैं? इतने सैनिक? इतनी सुरक्षा? हमारे लिए किंतु क्यो?
हमे लग रहा है कि जरूर कोई ना कोई बात है!" भैरवी बोल रही थी|
"भैरवी! आप चिंता मत करीए! हम है ना!" वीर बोल ही रहा था कि तभी एक बडे धमाके की आवाज से सारा पर्वत दहल उठा|
वीर भैरवी ने सामने देखा तो बहुत बडा धमाका हुआ था| हर ओर मिट्टी और उसमे लिपटे सुरक्षा रक्षकों के मृत शरीर!
वो दृश्य देखकर सबका दिल दहल गया|
जब धुआ छटा तो उसके बीच मे से राजवीर निकला|
वो बहुत ही खूंखार लग रहा था| वो सारे सैनिको को मारते हुए अपनी सेना के साथ आगे बढ रहा था|
पर जैसे ही उसकी नजर भैरवी पर पडी, वो खुश हो गया|
उसे देखते ही सब चौंक गए| वीर-भैरवी अपनी जगह से उठ खडे हुए|
राजवीर उनके सैनिको को मारता हुआ जा रहा था|
वीर ने ये देखा और वो उनकी सहायता के लिए जाने लगा|
इसके कारण वीर भैरवी का गठबंधन छूट गया| भैरवी ने ये देखा और वीर का हाथ पकड लिया|
उसने इशारे से ही उसे ना जाने के लिए कहा पर वीर बोला, "भैरवी! वो हमारे सैनिको को मार रहा है| हमे उनकी की रक्षा करनी होगी और अब आप इस राज्य की महारानी है! तो ये आपका भी कर्तव्य है! आपको अपनी रक्षा करते हुए राज्य की रक्षा भी करनी है! तो सज्ज हो जाइये!" वीर ने भैरवी को उसकी तलवार दी और वो उससे कसकर गले मिलकर चला गया| उस समय दोनो ही बहुत ज्यादा भावूक हो गए थे|
वीर ने किसी मरे हुए सैनिक के हाथो से तलवार ले ली और वो राजवीर के सैनिको पर टूट पडा|
भैरवी ने वरमाला निकाली, माथे का दुपट्टा हटा दिया और सज्ज हो गई लडने को! वो भी दुश्मनो पर टूट पडी|
राजगुरू ने भी तलवार उठा ली थी| वो भी दुश्मनों का ख़ात्मा कर रहे थे पर तभी अचानक किसी ने पीछे से उनके पेट मे तलवार घोप दी|
वो राजवीर था|
जैसे ही अमात्य ने उसकी ओर मुडकर देखा, वो शैतानी हसी हस रहा था|
उसने अपनी तलवार से उनपर फिरसे तीन चार वार कर दिये| वो नीचे गिर पडे|
"आप मेरी भैरवी की शादी उस वीर से करवाने चले थे ना? ये उसी की सजा है! भैरवी केवल मेरी है समझे? वो मेरी थी मेरी है और सदैव मेरी ही रहेगी!" इतना कहकर राजवीर आगे बढ़ गया|
"हे प्रभु! हमारे महाराज और महारानी की जय रक्षा करना| हर हर महादेव! जय माँ गौरी!" शिव-शक्ति की प्रतिमा की ओर देखते हुए वो हाथ जोडकर बोले और इतना कहकर ही उन्होने अपनी आँखें बंद कर ली|
वीर भैरवी चाहकर भी राजगुरू को नही बचा पाये| वो सब बाकी सैनिको से लड रहे थे|
सब लोग घायल हो चुके थे| भैरवी भी लडते लडते लहुलूहान हो गई थी|
वीर लडते लडते राजवीर तक आ पहुँचा| दोनो मे बहुत घमासान हुआ| भैरवी का पूरा ध्यान उनपर था| अब उनके सैनिक ज्यादा नही बचे थे|
वीर और राजवीर दोनो एक-दूसरे को चोट पर चोट पहुंचाते जा रहे थे|
वीर को तकलीफ होती देख भैरवी की जान निकल रही थी| दोनो लहुलूहान हो गए थे| अब वीर राजवीर पर भारी पडने लगा था पर राजवीर ने धोखे से वीर की आँखो मे मिट्टी डाल दी और उसके सीने पर तलवार से वार कर दिया|
उसी वार के साथ वीर जमीन पर गिर पडा|
ये देखते ही भैरवी ने सब छोड दिया और वो रोते हुए वीर की तरफ भागी|
इससे पहले की वो वीर के पास जाये राजवीर ने उसे पकड लिया|
"भैरवी! भैरवी तुम उसके पास क्यो जा रही हो? वो हमारे बीच आया था इसलिए मैने उसे मार दिया| तुम मत जाओ उसके पास! तुम मेरे पास ही रहो!"
वो भैरवी को गले लगाने लगा पर भैरवी ने उसे जोर से धक्का देकर दूर धकेल दिया|
"हटो! छोडो मुझे! वीर! वीर!" भैरवी दौडकर वीर के पास आयी और उसका सिर अपनी गोद मे ले लिया|
"वीर! उठीये ना वीर! ऐसा मत करीए! आप मुझे इस तरह अकेला नही छोड सकते| आपने वचन दिया था हमे कि आप हमे कभी छोडकर नही जायेंगे| उठीये ना वीर!" भैरवी रोते हुए कह रही थी|
वीर बस लंबी गहरी साँसे भर रहा था और भैरवी के चेहरे को निहार रहा था|
"हम..... आह...... हम.... आप... से.... बहुत... बहुत प्रेम करते है| अगर... हम मर भी गए ना.... तो..... आप... के लिए...... वापिस लौट आयेंगे.... हम..... वादा करते है!" वो मुश्किल से कह ही रहा था की राजवीर ने उसके पेट मे तलवार घोप दी|
वीर ने उसी के साथ अपनी आखरी साँस ली| पर उसकी आँखे अब भी खुली थी भैरवी के चेहरे को निहारती हुई!
ये सब इतनी जल्दी हुआ कि भैरवी को कुछ समझ ही नही आया| जब तक सब समझ मे आता वो वीर के खो चुकी थी|
वो सुन्न हो गई| वो बस वीर के चेहरे को निहारती रही|
राजवीर ने उसकी बाँह पकडी और उसे उठाया|
"देखो! देखो भैरवी! ये वीर.... ये मर गया!
मर गया ये! इसे मार दिया मैने! हमारे बीच आ रहा था ये!" राजवीर कहे जा रहा था पर भैरवी बस सुन्न होकर वीर की खुली आँखों मे जान ढूंढ रही थी|
"जो जो हमारे बीच आ रहा था उन सबको मार दिया मैने! तुम्हारे राज्य के लोग, ये वीर, वो अमात्य और वो तुम्हारे पिता, सबको!" राजवीर की बाते सुनकर भैरवी की आँखें बडी हो गई| उसे पता चल गया था कि अब उसके पिता भी इस जग को छोड़कर जा चुके हैं|
वो राजवीर की ओर देखने लगी|
"हाँ भैरवी! मै सच कह रहा हूँ! मैने सबको हटा दिया| अब तुम सिर्फ मेरी हो| सिर्फ मेरी! अब हम लोगो को कोई भी जुदा नही कर सकता| हम हमेशा के लिए एक हो जायेंगे|" वो हसकर कह रहा था| वो भैरवी को अपनी बाहो मे भरने लगा पर भैरवी ने उसे बहुत जोर से धक्का दिया और वो सीधा मंडप के खंभे से जाकर टकरा गया|
"किसके एक होने की बात कर रहे हो तुम?
हमारे? तुम्हारे और मेरे?
अगर ये होना होता ना तो कबका हो चुका होता!
कितनी बार कहा मैने तुमसे की तुम मेरे सिर्फ दोस्त हो! मै तुमसे प्यार नही करती!
पर तुम नही माने! तुमने अपनी जिद के चलते मेरी हसती खेलती दुनिया उजाड़ दी!
मेरे पिता, मेरा राज्य, मेरा प्रेम! इन सबके बिना तो मै अधूरी हू| तुमने तो मुझसे मेरी पहचान ही छीन ली राजवीर और इसके लिए मै तुम्हे कभी माफ नही करूंगी|
ये सब तुमने मेरे लिए किया ना? अगर मै वीर की ना हुई ना तो किसी की नही हो सकती| जिस तरह मैने अपना प्यार अपनी आँखों के सामने खुदसे दूर जाते हुए देखा है ना! जब तुम भी देखोगे तब शायद तुम्हे मेरे दर्द का अंदाजा हो!"
केवल इतना कहकर उसने वीर के पेट मे फसी वो तलवार निकाली|
राजवीर को लगा की वो उस तलवार से खुदको नुकसान पहुंचायेगी इस लिए वो उसे रोकने के लिए उसकी ओर भागा|
जैसे ही वो भैरवी के थोडा करीब आया, भैरवी ने वो तलवार उसी के सीने मे घोप दी|
इस अचानक हुए वार से वो बौखला गया| वो सीधा नीचे अपने घुटनो पर बैठ गया|
"तुम्हे क्या लगा? मै खुद की जान ले रही हू? वो तो तुम पहले ही ले चुके हो पर अगर अपने प्रेम का बदला लिये बिना मै मर गई ना! तो शायद अपने आपको कभी माफ ना कर पाउ!
ये है तुम्हारे कर्मो का दंड!" भैरवी ने इतना कहकर उसके सीने पर जोर से लात मारी और उसी वजह से वो पीछे गिर गया|
वो अपनी आखरी साँसे गिनने लगा|
भैरवी की नजर वीर के पार्थिव पर गई|
वो उसके पास बैठ गई| उसका सिर अपने गोद मे लेकर वो बहुत रोने लगी| उसने वीर की आँखे बंद कर दी|
"मुझे माफ कर दो वीर! मै आपको बचा नही पायी| मुझे माफ कर दो| सब खत्म हो गया| सब खत्म हो गया|" उसने वीर का हाथ अपने हाथ मे लिया|
"मै भी आपसे वादा करती हू वीर! अगर मर भी गई ना तो आपकी ख़ातिर वापिस लौटकर आउँगी और भले ही इस बार मै आपको बचाने मे कामयाब ना रही पर अगले सारे जन्मो मे आपको कभी कुछ होने नही दूंगी! ये वादा रहा! वादा रहा!
आह्ह्ह्ह!" वो कहते कहते चिल्ला पडी|
जब उसने नीचे देखा तो तलवार उसके पेट के आरपार हो चुकी थी|
उसने मुडकर देखा तो उसके पीछे राजवीर था|
"मैने कहा था ना! तुम सिर्फ मेरी हो! सिर्फ मेरी! और अगर मेरी नही! तो किसी की नही!" उसने इतना ही बडी मुश्किल से कहा और वो जमीन पर गिर गया| उसने अपनी आँखें मूंद ली|
भैरवी दर्द से बेहाल थी पर उसने वीर के चेहरे की ओर देखा और उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई|
तभी अचानक उसकी आँखे बंद होने लगी और वो वीर के उपर गिर पडी|
वीर के साथ बिताया हर हसीन लम्हा भैरवी के आँखो के सामने से गुजर गया| उसका हर बार उसके पीछे आकर रूक जाना, जंगल मे डाकू बनकर वीर से लडना, बाद मे उसके करीब आ जाना, उसके साथ सगाई, हर खुबसुरत पल उसकी आँखों के सामने से गुजर गया और उसने भी अपनी आँखें बंद कर ली|
दोनो का हाथ एक-दूसरे के हाथ मे ही था| मानो मरने के बाद भी वो वादा अब भी उनके शरीर के माध्यम से जिवीत था|
तभी आकाश मे कुछ हलचल होने लगी|
नवग्रहो की स्थिती प्रतिकूल होने लगी|
आकाश मे काले बादल घिर आये| तेज बारिश शुरू हो गई| बिजलिया कडकडाने लगी| तेज हवाये बहने लगी| ये सब किसी आँधी से कम नही था| जमीन काँपने लगी| जमीन बुरी तरह काँप रही थी| पेड गिर रहे थे|
और धरती ने ऐसा चमत्कार दिखाया की देखते ही देखते वो पर्बत जमीन मे दफन हो गया|
उसी के साथ वीर भैरवी की दास्तान भी जमीन मे दफन हो गई|